उन्नत किस्में एवं विशेषतायें (sorghum/jowar variety)
सी एस एच 5 (CSH 5 sorghum)
अवधि 100-115 दिन में पकने वाली, मध्यम व अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस संकर किस्म की पैदावार 40-50 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है।
इसका पौधा 150-200 सेन्टीमीटर ऊंचा, चारे की पैदावार 80-100 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर तथा दाना सफेद गेहुंआ, मध्यम आकार का होता है। यह किस्म भारी मिट्टी और वर्षा व पानी की सुनिश्चित सुविधा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
एस पी वी 96 (आर जे 96)
85-90 दिन में पकने वाली इस अगेती किस्म के पौधों की ऊंचाई 150-160 सेन्टीमीटर होती है। इसका दाना मोटा व चमकीला, औसत उपज 30-40 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है।
हरे चारे हेतु किस्में
एस एस जी 59 -3 (SSG59-3)
इसकी 2-3 कटाई आसानी से ली जा सकती है। पहली कटाई 55-60 दिन बाद तथा बाद की प्रत्येक कटाई 35-40 दिन की अवधि के बाद ली जा सकती है। औसतन 400-500 क्विटल चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।
एम पी चरी (MP Chari)
चारे की कई कटाई लेने के लिये उपयुक्त इस किस्म की पहली कटाई बुवाई के 55-60 दिन बाद और बाद की प्रत्येक कटाई 35-40 दिन बाद ली जा सकती है। इससे लगभग 350-400 क्विण्टल चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त हो सकता है।
राजस्थान चरी 1 (Rajasthan chari 1)
एक कटाई देने वाली इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 190–220 सेन्टीमीटर होती है। इसकी कटाई 85-90 दिन में की जा सकती है। अधिक एवं सुनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 400-500 क्विण्टल चारा प्राप्त किया जा सकता है।
राजस्थान चरी 2 (Rajasthan Chari 2)
एक कटाई देने वाली इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 190–220 सेन्टीमीटर होती है। यह किस्म लगभग 70 दिन में कटाई के लिये तैयार हो जाती है। सामान्य एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 300-350 क्विण्टल चारा प्राप्त होता है।

खेत की तैयारी (Field preparation for sorghum/jowar)
ज्वार के लिये जल निकास की व्यवस्था युक्त खेत का चुनाव करें। पानी के भराव वाले क्षेत्रों में ज्वार नहीं बोयें। जहां 40-50 सेन्टीमीटर के लगभग वर्षा होती है वहां संकर ज्वार अंसिचित फसल के रुप में बोई जा सकती है।
वर्षा से पूर्व देशी हल या त्रिफाली या बक्खर से अच्छी तरह जुताई कर खेत तैयार करें। बीज के अंकुरण के लिये मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। जुताई के 20 दिन पूर्व प्रति हैक्टेयर 20-25 गाड़ी गोबर की खाद खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला देवें।
भूमि उपचार (Soil treatment for sorghum/jowar)
अन्तिम पृष्ठों में भूमि उपचार शीर्षक में दिये गये विवरणानुसार नियंत्रण उपाय अपनायें ।
बीज उपचार (sorghum/jowar seed treatment)
बीज उपचारित न हो तो 3 ग्राम थाइरम या 4 ग्राम गन्धक प्रति किलो बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें।
एजेक्टोबेक्टर कल्चर से भी बीजोपचार करें। इससे 20 किलो नत्रजन की बचत प्रति हैक्टेयर की जा सकती है।
बीज दर एवं बुवाई (sorghum/chari seed rate)
प्रति हैक्टेयर 9-10 किलो ज्वार का प्रमाणित बीज बोना चाहिये। वर्षा शुरू होते ही 45 सेन्टीमीटर दूरी की कतारों में बीज ऊर देवें। भारी मिट्टी में बुवाई के बाद कतारों के ऊपर बक्खर चलायें। ध्यान रखें बीज 4-5 सेन्टीमीटर से गहरा न बोयें।
पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सेन्टीमीटर रखें। पौधों की संख्या प्रति हैक्टेयर डेढ़ से पौने दो लाख होनी चाहिये। चरी ज्वार की बुवाई के लिये 25 किलो बीज प्रति हैक्टेयर काम में लेवें।
अंकुरण के बाद घने पौधे दिखाई देवे तो बीच बीच से पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें। उखाड़े हुए पौधों को जानवरों को नहीं खिलायें क्योंकि ये जहरीले होते हैं। यदि वर्षा कम हो तो कतारों में पौधों की छंटाई करें।
अन्तर्राशष्य (intercropping in sorghum/chari)
ज्वार के साथ दलहन फसलों की अन्तर्राशष्य जहां भी सम्भव हो लेवें। ज्वार की दो कतारें 30-30 सेन्टीमीटर की दूरी पर तथा ऐसे दो जोड़ों के बीच 60 सेन्टीमीटर में एक कतार दलहनी फसल ही बोयें।
उर्वरक (fertilizer in sorghum/jowar)
भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचित फसल में 80 किलो नत्रजन एवं 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर देवें। असिंचित क्षेत्र में 30 किलो नत्रजन एवं 20 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर देवें।
उर्वरकों की सही आवश्यकता जानने के लिये मिट्टी की जांच कराने के बाद परीक्षण परिणाम अनुसार उर्वरक प्रयोग करना चाहिये।
नत्रजन की आधी व फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई पूर्व कतारों में 10 सेन्टीमीटर गहरी ऊरकर देवें। शेष आधी नत्रजन बुवाई के एक माह बाद वर्षा होने पर अथवा सिंचाई के साथ देवें । यदि पूर्व फसल में फास्फोरस दिया गया हो तो फास्फोरस देने की आवश्यकता नहीं है।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई (irrigation in sorghum/jowar)
वर्षा न हो तो खड़ी फसल में उर्वरक देने के बाद और सिट्टे आते समय पौधों को सिंचाई अवश्य देवें ।
बुवाई के 15-20 दिन बाद निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकालें । गुड़ाई के समय ध्यान रखें कि पौधों की जड़े न कटें, अतः पौधों के ज्यादा नजदीक गुड़ाई नहीं करें।
निराई-गुड़ाई से खरपतवार नियंत्रण के साथ ही जड़ों में वायु संचार भी हो जाता है। बक्खर/कुली चलाने से खरपतवार नियंत्रण के साथ नमी संरक्षण भी हो जाता है।
शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु आधा किलो एट्राजीन बुवाई के तुरन्त बाद 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़के। छिड़काव के बाद भी निराई करके एक बार खरपतवार अवश्य निकाल देवें ।
ध्यान रखे जिन खेतों में रुखड़ी की समस्या हो वहां एट्राजिन का ही छिड़काव करें। ज्वार के साथ बोयी गयी दलहनी/तिलहनी फसलों में एट्राजीन नहीं छिड़कें।
पौध संरक्षण (sorghum/jowar crop protection)
कण्डवा :- प्रमाणित बीज का उपयोग करें। बीज को 3 ग्राम थाईरम या 4 ग्राम गन्धक चूर्ण प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बोयें।
पत्ती धब्बा :- पौधे उगने के 40-45 दिन बाद, वर्षा एवं वातावरण में अधिक नमी के कारण पत्तियों पर पत्ती चकत्ता, अंगमारी, एन्थ्रेक्नोज एवं जोनेट पत्ती धब्बा रोग हो जाते हैं। इनके बचाव हेतु प्रतिरोधी किस्मों सी एस एच 5, सी एस एच 6 एवं सी एस एच 9 की बुवाई करें।
रोग प्रकोप की सम्भावना हो वहां 2.5 किलो जाइनेब या 1.5-2 किलो मैन्कोजेब प्रति हैक्टेयर छिड़के। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद पुनः छिड़काव करें।
सिट्टा फफूंद :- बीज के लिये फसल लेने की स्थिति में दाना बनते समय वर्षा हो जाए तो सिट्टा फंफूद की रोकथाम हेतु ओरियोफन्जिन 13 ग्राम व कैप्टान 330 ग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पानी में घोल बनाकर छिड़के। दूसरा छिड़काव वर्षा के 15 दिन बाद करें।
तना मक्खी :- यह अंकुरण के चार सप्ताह तक आक्रमण करती है। वर्षा आरम्भ होने के एक सप्ताह के अन्दर बुवाई कर देने पर इसका आक्रमण कम होता है। देर से बोयी गयी फसल पर इसका असर ज्यादा होता है।
रोकथाम हेतु बुवाई करते समय कतारों में बीज से 3 सेन्टीमीटर नीचे कारबोफ्यूरान 3 प्रतिशत कण 15 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से खूड में ऊरकर देवें। जहां सफेद लट की रोकथाम हेतु उपचार किया गया हो वहां अतिरिक्त उपचार की आवश्यकता नहीं है।
तना छेदक :- प्रकाश पाश पर वयस्क कीटों को आकर्षित कर नष्ट करें। फसल कटाई के बाद डंठलों को उखाड़ कर जला देवें जिससे तना मक्खी व तना छेदक के कीट नष्ट हो जावें |
तना छेदक का प्रकोप कम करने हेतु क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत कण 8-10 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के 25 दिन बाद पौधों के पोटों में 5-7 कण प्रति पौधा डालें।
माईट्स :- प्रकोप होने पर 2.5 किलो घुलनशील गन्धक या एक लीटर मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें।
अन्य कीट :- जाला बनाने वाली लट, दाने व सिट्टे को लार से ढक देती है व दानों को खाती है। इसके व अन्य कीट जैसे सिट्टा बग, ब्लिस्टर बीटल, चैफर बीटल, माहू आदि के नियत्रंण के लिए अन्य कीटों को नियत्रंण करने वाली दवाइयों को काम में लेवें।
टिप्पणी :- अंकुरण के 25 दिन बाद ज्वार के पौधों पर ओरगेनो फॉस्फेटिक कीटनाशी दवायें जैसे क्यूनॉलफॉस, मोनोक्रोटोफॉस, मैलाथियॉन आदि का प्रयोग नहीं करें। इस अवधि में पौधों में जहरीला पदार्थ हाइड्रोसायनिक अम्ल बनता है जो इन दवाओं के साथ फॉस्फीन नामक पदार्थ बनाता है जो पौधों के लिए हानिकारक है।
ज्वार चरी में पीलिया रोग :- ज्वार चरी में पहली कटाई के 10-15 दिन बाद नई चारे की पत्तियों में सम्पूर्ण पीलापन व चारे की उपज में भारी कमी को दूर करने के लिये 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) फैरस सल्फेट (हरा कसीस) के घोल का फसल में छिड़काव करें।
आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल के बाद पुनः छिड़काव करें। ऐसा करने पर पीलिया रोग पर सम्पूर्ण नियंत्रण व चारे की उपज बढ़ाई जा सकती है।
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