शीशम को सूखने से कैसे बचाएं shisham tree

शीशम (Shisham Tree)

शीशम (Shisham Tree) भारत व पाकिस्तान उपमहाद्वीप में उत्पन्न होने वाला चौड़ी पत्तियों से भरपूर एक महत्वपूर्ण वृक्ष है ! यह प्राकृतिक रूप से पूरे पर्वतीय क्षेत्र और हिमालय की घाटी में 1500 मीटर का उचाई तक होता है। यह बहउद्देश्यीय आसानी से लगाये जाने काफी उपयोगी होने के कारण वृक्षारोपण के लिए प्रमुख जातियों में से एक है। इसलिए ये मुख्य सड़कों के किनारे-किनारे, नहरों और रेलवे के किनारे छाटी पहाड़ियों पर लगाये जाते हैं।

शीशम को सूखने से कैसे बचाएं shisham tree

शीशम (Shisham Tree) को  सिसु, ताहली या ताली, और इरुगुदुवा भी कहते है । भारतीय सामान्य नाम बिरदी, और सिसाऊ हैं। आम नाम पंजाब में ‘शीशम (Shisham Tree)’ और ‘तहली’ हैं। अफगानिस्तान में इसका नाम शेवा है और फारसी में इसे जग कहा जाता है। Dalbergia sissoo भारत के पंजाब राज्य का राज्य वृक्ष है और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का प्रांतीय वृक्ष है।

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यह ग्रामीणों और किसानों का प्रिय वृक्ष है। इसकी लकड़ा खाना बनाने के लिए, जलाये जाने के लिए काफी मंहगी पड़ती है। कच्चे माल के रूप में यह उद्योगों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है। खासतौर से घर बनाने और फर्नीचर बनाने के लिए और गाव के बढ़ई के लिए यह वरदान स्वरूप है। यह कृषि वानिकी के लिए काफी उपयुक्त है।

जलवायु और मिट्टी

यह उष्ण कटिबन्धीय वृक्ष है। अपनी प्राकृतिक अवस्था के लिए यह अधिकतम लगभग 39 डिग्री से 49 डिग्री सेंटीग्रेड तक और न्यूनतम लगभग -4 डिग्री से 6 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक पाया जाता है। इसे वर्ष में लगभग 750 से 4500 मि.ली. वर्षा की आवश्यकता होता है। दसरी तरफ रेतीले इलाकों में केवल 400 मि.ली. वर्षा में ही वक्षारोपण के लिए यह उपयुक्त है। इसके लिए सूखी रेतीली नमीयुक्त मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। इसके लिए भारी सूखी मिट्टी ठीक नहीं होती है और ऐसी मिट्टी से इसकी बढ़वार रुक जाती है। यह क्षारीय मिट्टी बरदाश्त नही कर सकता। शीशम (Shisham Tree) को अधिक प्रकाश की आवश्यकता होती है। यह पाला सहन करने योग्य है ! किन्त छोटी पत्तियां भयंकर पाले से शीघ्र ही प्रभावित हो जाती हैं। बिना सिंचाई किए वृक्षारोपण की स्थिति में पाले का असर 4 मीटर की ऊंचाई प्राप्त कर लेने पर भी होता है। इसके बीज जल्दी ही सूख जाते हैं, यहां तक कि अधिक और भंयकर सूखे में छोटे-छोटे पौधे मर जाते हैं।

पौधे से पौधे उत्पन्न करना (Plant propagation)

इसका प्राकृतिक उत्पादन जड़ों और बीज द्वारा होता है। कृत्रिम रूप से निम्न प्रकार से लगाया जा सकता है –

(1) सीधे बुवाई

(2) पौधशाला में उत्पन्न किए हए बीजों से

(3) कलम द्वारा

(4) जड़ों के द्वारा

कलम के द्वारा पौधा लगाने की विधि अधिक अच्छी है।

बीज संग्रह और रख-रखाव (Seed collection and storage)

शीशम को सूखने से कैसे बचाएं shisham tree

इसके पके हुए बीज (फली) दिसम्बर से जनवरी में एकत्र किए जाते हैं तथा धूप में सुखाये जाने के बाद इनको ऐसे बर्तन, जिसमें हवा प्रवेश न कर सके में डालकर सूखे स्थान पर रखा जाता है। उचित तरीके से तैयार किए हुए बीज एक वर्ष तक रखे रहने से अपनी अंकुरण क्षमता बनाए रखते हैं।

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सीधी बुवाई (Direct seeding)

इसकी सीधी बुवाई जून से जुलाई तक मानसून वर्षा के प्रारम्भ होने के पश्चात् करें। इसकी बुवाई 2 से 3 मीटर दूरी पर अलग-अलग पंक्तियों में करें और अच्छी तरह तैयार की हुई भूमि की गहराई लगभग 15 सें.मी. रखें। बुवाई के लिए टूटे हुए बीजकोष या साफ बीज जल्दी

और समान रूप से अंकुरित होते हैं। इसकी 1.5 सें.मी. की गहराई में बुवाई करें।

पौधशाला की देखभाल (After care of nursery)

जहां सिंचाई की सुविधा है वहां फरवरी से मार्च तक पौधशाला में बुवाई करें और वर्षा पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों में जुलाई में बुवाई करें। बुवाई से पहले पौधशाला के स्थान को अच्छी तरह से तैयार करें। 24 घण्टे तक ठण्डे पानी में डूबे हुए दो से तीन बीजों वाले बीजकोषों को 25 से.मी. की दूरी वाली अलग-अलग पंक्तियों में 1.5 सें.मी. गहरी मिट्टी में बोयें। बोने के बाद इनकी सिंचाई करें। लगभग एक सप्ताह में बोए हुए बीजों का अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है और लगभग तीन सप्ताह में पूरा हो जाता है। अधिकतम और जल्दी अंकरण के लिए 30 सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। 20 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तथा 35 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान बीजों के अंकुरित होने में प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

स्टम्प की गोलाई 1 सें.मी. से ज्यादा रखें। स्टम्प लगाने के पहले ही काट लें ताकि लगाने में काई कठिनाई न हो। इस प्रक्रिया में ऊपर और नीचे प्रत्येक भाग को लगभग 2 सें.मी. काट दें व सूखे हुए किनारों को हटा दें। तैयार की हई कलम का ऊपरी भाग 5 सें.मी. और नीचे जड़ वाला भाग 20 से.मी. होता है। तैयार हो जाने के तुरन्त बाद कलम लगा दें। यदि कुछ समय के लिए कलमों को रखना आवश्यक हो तो उन्हें नमीयक्त बोरे के अन्दर लपेट कर रखें और कभी भी पूरी तरह से सूखने नहीं दें। शीशम (Shisham Tree) के स्टम्प को जुलाई में निकालें और लगाएं। स्टम्प को लगाने के लिए यह आवश्यक है कि जड़ और ऊपरी हिस्से का सन्तुलन बना रहे ताकि पौधे चल सकें।

वृक्षारोपण विधि (Method of transplantation)

पहले से खोदे हुए 30 सें.मी. गहरे गड्ढे में जुलाई और अगस्त में इसका वृक्षारोपण करें। मिट्टी के साथ लगभग 2 किलोग्राम एफ. वाई. एम. और 15 से 20 मि.ली. क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. मिला दें। खेतों के साथ एक कतार के वृक्षारोपण के लिए आमतौर से 4 मीटर की दूरी रखें और ऐसे ही पास की पंक्ति के लिए 2.5 मीटर की दूरी रखें। वृक्षारोपण बदली वाले या वर्षा के दिन करें। छोटे पौधों में उचित रूप से सिंचाई करें।

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कृषि वानिकी (Agro-forestry)

फसल लेने के लिए शीशम (Shisham Tree) के वृक्ष 10×10 मीटर (कतार से कतार व पौधे से पौधे) की दूरी पर लगाएं। खरीफ मौसम में चारे के लिये ज्वार की पैदावार अच्छी पाई गई है। रबी में चारे की फसलें (बरसीम व जई) और गेहूँ की फसल ली जा सकती है।

बीमारियों के कारण, लक्षण व रोकथाम (Causes, symptoms and control of diseases)

आर्द्रगलन रोग (Damping off):

इस रोग से पौधे उगने से पहले व उगने के बाद मर जाते हैं। जमीन की सतह के साथ पौधे के तने पर भूरा धब्बा दिखाई देता है जिसके फलस्वरूप पौधा गिर कर सूख जाता है।

बीज का उपचार 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम या कैप्टान दवाई एक किलो बीज में मिलाकर करें। उगने के बाद गिरने से बचाने के लिए 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम या कैप्टान का छिड़काव करें।

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चूर्णी रोग (Powdery mildew):

यह रोग सितम्बर-अक्तूबर मास में पुराने पत्तों पर दिखाई देता है। गम्भीर अवस्था में नई पत्तियां और टहनियां भी इससे प्रभावित हो जाती हैं। कभी-कभी 0.2 प्रतिशत बेनलेट या सल्फेक्स दवाई का छिड़काव करें।

उखेड़ा (Wilt) :

इसके लक्षण जड़ों के रोगग्रस्त होने के काफी समय बाद दिखाई देते हैं। रोगग्रस्त पौधों में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तथा बाद में गिर कर बहुत कम हो जाती हैं। शाखायें या पूरा वृक्ष ही 2-3 महीने के अन्दर सूख जाता है। जड़ों पर किसी प्रकार का ज़ख्म या घाव न लगे, वक्ष के नीचे पानी खड़ा न रहने दें, रोगी वृक्ष के चारों तरफ 1 मीटर गहरी व 1/2 फुट चौड़ी नालियां बनाकर स्वस्थ पौधों की जड़ों को अलग कर दें।

शीशम (Shisham Tree) सखने के कारण (Causes of Shisham mortality)

इस वृक्ष के सूखने के बहुत से कारणों में से एक जमीन की निचली सतहों में ऊपरी सतह नजदीक ही कठोर मृदा सतह का होना है। शुरूआत में वृक्ष 5-6 वर्षों तक अच्छी बढ़वार दिखाता है, परन्तु जड़े मृदा सतह के ऊपर ही रहने से पानी की कमी के कारण पौधा ज्यों-ज्यों बडा होता जाता है, त्यों-त्यों सूखता जाता है। राजस्थान के रेतीले-दोमट क्षेत्रों में सूखने की यही समस्या पाई गई है। दूसरा इस वृक्ष में उखेड़ा बीमारी के प्रति भी सहनशीलता की कमी है। इस वक्ष के छोटे और वयस्क पौधों पर ही इस बीमारी का ज्यादा प्रभाव रहता है। खैर, कीकर व सिरिस में भी इस बीमारी का ज्यादा प्रकोप रहता है और यदि इस प्रकार के पौधे शीशम (Shisham Tree) के साथ खड़े हों तो शीशम (Shisham Tree) पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। इस बीमारी के कारण पौधा कुछ ही दिनों में सूख जाता है।

इसके अतिरिक्त गैनोडर्मा जड़-गलन बीमारी भी शीशम (Shisham Tree) के सूखने का एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी से पौधा धीरे-धीरे कई वर्षों में सूखता है।

शीशम (Shisham Tree) को सूखने से बचाने के उपाय (Prevention of Shisham mortality)

• सूखे हुए वृक्षों को खेत से जड़ सहित उखाड़ कर तुरन्त हटा दें ताकि कीट व फफूंद का संक्रमण दूसरे स्वस्थ पौधों में न फैले।

• गैनोडर्मा फफूंद की छतरी वृक्ष पर जहां भी दिखे, उसे वहां से हटाकर तुरन्त नष्ट कर दें।

• वृक्ष के पास ज्यादा समय तक पानी खड़ा न रहने दें।

• वृक्ष की जड़ों को कटने से बचाएं।

• शीशम (Shisham Tree) के पौधे उचित भूमि में ही लगाएं।

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2 thoughts on “शीशम को सूखने से कैसे बचाएं shisham tree”

  1. Me rajsthan se hu hamare yaha retili mitti h Kai shisham ke vraksha bhi h par unme se kuch vraksha dhere dhere sookh rahe h pahle ek vraksha tha ab dhere dhere sabhi sukhne lage h jaldi se koi upay bataye

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