सब्जियों मे शिमला मिर्च की खेती का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है ! इसको ग्रीन पेपर, स्वीट र बेल पेपर आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है ! आकार एवं तीखेपन में यह मिर्च से भिन्न होता है ! शिमला मिर्च की लगभग सभी किस्मों में तीखापन अत्यंत कम या नहीं के बराबर पाया जाता है ! इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए तथा सी की मात्रा अधिक होती है ! इसलिये इसको सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है ! यदि किसान भाई शिमला मिर्च की खेती उन्नत व वैज्ञानिक तरीके से करें तो अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त की जा सकती है !
जलवायु
यह नर्म आर्द्रता जलवायु की फसल है ! सामान्यत इसकी वर्ष भर फसलें ली जा सकती है ! पाला इसके लिये हानिकारक होता है ! ठंडे मौसम मे इसके फूल कम लगते हैं, फल छोटे, कड़े एवं टेढ़े मेढ़े आकार के हो जाते हैं ! शिमला मिर्च उगाने के लिए भूमि
इसकी खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली चिकनी दोमट मृदा जिसका पी.एच. मान 6-6.5 हो, सर्वोत्तम माना जाता है ! वहीं बलुई दोमट मृदा में भी अधिक खाद डालकर एवं सही समय व उचित सिंचाई प्रबंधन द्वारा खेती किया जा सकता है ! जमीन के सतह से नीचे क्यारियों की अपेक्षा इसकी खेती के लिये जमीन की सतह से ऊपर उठी एवं समतल क्यारियां ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है ! उन्नत किस्में
शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों में
अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, किंग ऑफ नार्थ, कैलिफोर्निया वांडर, अर्का बसंत, ऐश्वर्या, अलंकार, अनुपम, हरी रानी, पूसा दिप्ती, भारत, ग्रीन गोल्ड, हीरा, इंदिरा प्रमुख है !
खाद एवं उर्वरक
खेत की तैयारी के समय 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद डालना चाहिये ! खाद के रुप मे रोपाई के समय 60 किग्रा. नत्रजन, 60-80 किग्रा. सल्फर एवं 40-60 किग्रा. पोटाश डालना चाहिये ! एवं 60 कि.ग्रा. नत्रजन को दो भागों मे बांटकर खड़ी फसल में रोपाई के 30 एवं 55 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रुप मे छिड़कना चाहिये !
मिर्च की नर्सरी तैयार करना
तीन गुणा एक मीटर आकार की जमीन के सतह से ऊपर उठी क्यारियां बनानी चाहिये ! इस तरह से पांच-छह क्यारियां एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त रहती है ! प्रत्येक क्यारी में दो-तीन टोकरी गोबर की अच्छी सड़ी खाद डालना चाहिये ! मृदा को उपचारित करने के लिये एक ग्रा. बाविस्टिन को प्रति लिटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये ! लगभग एक कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर क्षेत्र मे लगाने के लिये पर्याप्त रहता है ! बीजों को बोने के पूर्व थाइरम, केप्टान या बाविस्टिन के ढाई ग्रा./किलो बीज के हिसाब से उपचारित करके कतारों में प्रत्येक 10 से.मी. की दूरी मे लकड़ी या कुदाली की सहायता से एक से.मी. गहरी नाली बनाकर दो-तीन से.मी. की दूरी में बुवाई करना चाहिये ! बीजों को बोने के बाद गोबर की खाद व मिट्टी के मिश्रण से ढ़ककर हल्की सिंचाई करना चाहिये ! यदि संभव हो तो क्यारियों को पुआल या सूखी घास से कुछ दिनों के लिये ढक देना चाहिये !
बीज एवं पौध रोपण का समय
बीज बोने का समय | पौध रोपाई का समय |
जून-जुलाई | जुलाई-अगस्त |
अगस्त-सितंबर | सितंबर-अक्टूबर |
नवंबर-दिसंबर | दिसंबर-फरवरी |
रोपण एवं दूरी
सामान्यतः10-15 सेमी. लंबा पौध लगभग 45-50 दिनों में तैयार हो जाता है ! पौध रोपण के एक दिन पूर्व क्यारियों में सिंचाई कर देना चाहिये ताकि पौध आसानी से निकाला जा सके ! रोपाई के पूर्व पौध की जड़ को बाविस्टिन एक ग्रा./लि. पानी के घोल मे आधा घंटा डुबाकर रखना चाहिये ! रोपाई के बाद खेत की हल्की सिंचाई करें !
सिंचाई
शिमला मिर्च की फसल को कम एवं ज्यादा पानी दोनों से नुक्सान होता है ! यदि खेत में ज्यादा पानी का भराव हो गया हो तो तुरंत जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिये ! मृदा में नमी कम होने पर सिंचाई करना चाहिये ! नमी की पहचान करने के लिये खेत की मिट्टी को हाथ में लेकर लड्डू बनाकर देखना चाहिये यदि मिट्टी का लड्डू आसानी से बने तो मृदा में नमी है यदि ना बने तो सिंचाई कर देना चाहिये ! सामान्यतः गर्मियों में एक सप्ताह एवं शीत ऋतु में 10-15 दिनो के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिये !
निराई-गुड़ाई
रोपण के बाद शुरु के 30-45 दिन तक खेत को खरपतवार मुक्त रखना अच्छे फसल उत्पादन की दृष्टि से आवश्यक है ! कम से कम दो निराई-गुड़ाई लाभप्रद रहती है ! पहली निराई-गुड़ाई रोपण के 25 एवं दूसरी 45 दिन के बाद करना चाहिये ! पौध-रोपण के 30 दिन बाद पौधो में मिट्टी चढ़ाना चाहिये ताकि पौधे मजबूत हो जाये एवं गिरे नही ! यदि खरपतवार नियंत्रण के लिये रसायनों का प्रयोग करना हो तो खेत मे नमी की अवस्था मे पेन्डीमेथेलिन चार लिटर या एलाक्लोर (लासो) दो किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें !
फूल व फल गिरने से रोकथाम
शिमला मिर्च मे फूल लगना प्रारंभ होते ही प्लानोफिक्स नामक दवा को दो मिलि/लि. पानी मे घोलकर पहला छिड़काव करना चाहिये एवं इसके 25 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें ! इससे फूल का झड़ना कम हो जाता है फल अच्छे आते है एवं उत्पादन में वृद्धि होती है !
पौध सरंक्षण
शिमला मिर्च में लगने वाले प्रमुख कीट एवं रोग का वर्णन व रोकथाम निम्न प्रकार है
शिमला मिर्च के प्रमुख कीट – इसमे प्रमुख रूप से माहो, थ्रिप्स, सफेद मक्खी व मकड़ी का प्रकोप ज्यादा होता है !
रोकथामः इन कीटों से रोकथाम के लिये डायमेथोएट(रोगार) या मिथाइल डेमेटान या मेलाथियान का एक मिलि/लि. पानी के हिसाब से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन बार छिड़काव करें ! फलों की तुड़ाई पश्चात ही रसायनों का छिड़काव करना चाहिये !
शिमला मिर्च के प्रमुख रोग : इसमें प्रमुख रुप से आद्रगलन, भभूतिया रोग, उकटा, पर्ण कुंचन एवं श्यामवर्ण व फल सड़न का प्रकोप होता है !
आद्र्गलन रोग : इस रोग का प्रकोप नर्सरी अवस्था में होता है ! इसमें जमीन की सतह वाले तने का भाग काला पड़कर गल जाता है ! और छोटे पोधे गिरकर मरने लगते हैं !
रोकथामः बुआई से पूर्व बीजों को थाइरम, केप्टान या बाविस्टिन ढाई-तीन ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोयें ! नर्सरी, आसपास की भूमि से छह से आठ इंच उठी हुई भूमि में बनायें !
मृदा उपचार के लिये नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइरम या कैप्टान या बाविस्टिन का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल मृदा मे सींचा जाता है जिसे ड्रेचिंग कहते है ! रोग के लक्षण प्रकट होने पर बोडों मिश्रण या कॉपर
आक्सीक्लोराइड तीन ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें !
भभूतिया रोग: यह रोग ज्यादातर गर्मियों में आता है ! इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे बनने लगते हैं ! रोग की तीव्रता होने पर पत्तियॉ पीली पड़कर सूखने लगती हैं व पौधा बौना हो जाता है ! |
रोकथामः
रोग से रोकथाम के लिये सल्फेक्स या कैलेक्सिन का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन बार छिड़काव करें !
जीवाणु उठका: इस रोग मे प्रभावित खेत की फसल हरी की हरी मुरझाकर सूख जाती है ! यह रोग पौधे में किसी भी समय प्रकोप कर सकता है !
रोकथामः
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करके खेतों को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देना चाहिये ! फसल चक्र अपनाना चाहिए ! रोग सहनशील जातियां जैसे अर्का गौरव का चुनाव करना चाहिये ! प्रभावित खड़ी फसल में रोग का प्रकोप कम करने के लिये गुड़ाई बंद कर देना चाहिए क्योंकि गुड़ाई करने से जड़ों में घाव बनते है व रोग का प्रकोप बढ़ता है ! रोपाई पूर्व खेतों में ब्लीचिंग पाउडर 15 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें !
मोजेक : ये विषाणु जनित रोग है ! पर्ण-कुंचन रोग के कारण पौधों के पत्ते सिकुड़कर मुड़ जाते हैं ! तथा छोटे व भूरे रंग युक्त हो जाते हैं ! ग्रसित पत्तियां आकार मे छोटी, नीचे की ओर मुड़ी हुई मोटी व खुरदुरी हो जाती हैं ! मोजेक रोग के कारण पत्तियों पर गहरा व हल्का पीलापन लिए हुए हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं ! उक्त रोगों को फैलाने में कीट अहम भूमिका निभाते हैं ! प्रभावित पौधे पूर्ण रुप से उत्पादन देने मे असमर्थ सिद्ध होते हैं ! रोग द्वारा उपज की मात्रा व गुणवत्ता दोनो प्रभावित होती है !
रोकथामः
बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान तीन जी, आठ से दस ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलावें ! पौध रोपण के 15 से 20 दिन बाद डाइमिथोएट 30 ई.सी. या इमिडाक्लोप्रिड एक मिलि प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें ! यह छिड़काव 15 से 20 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार दोहरावें !
श्याम वर्ण व् फल सडन
रोग के शुरूआती लक्षणों में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बनते है ! रोग के तीव्रता होने पर शाखाएं ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है ! फलों के पकने की अवस्था में छोटे-छोटे काले गोल धब्बे बनने लगते है बाद में इनका रंग धूसर हो जाता है जिसके किनारों पर गहरे रंग की रेखा होती है ! प्रभावित फल समय से पहले झड़ने लगते हैं ! अधिक आर्दता इस रोग को फैलाने में सहायक होती है !
रोकथाम:
फसल चक्र अपनाना चाहिये ! स्वस्थ एवं उपचारित बीजों का ही प्रयोग करें ! मेन्कोजेब, डायफोल्टान, या ब्लाइटॉक्स का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें !
फलों की तुड़ाई एवं उपजः
शिमला मिर्च की तुड़ाई पौध रोपण के 65-70 दिन बाद प्रारंभ हो जाता है जो कि 90-120 दिन तक चलता है ! नियमित रुप से तुड़ाई का कार्य करना चाहिये ! उन्नतशील किस्मों में 100-120 क्विंटल एवं संकर किस्मों में 200-250 क्विटल/हेक्टेयर उपज मिलती है !
डा. बलराज सिंह, प्रधान वैज्ञानिक,
| संरक्षित कृषि
प्रौद्योगिकी केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई
दिल्ली