सर्पगंधा की खेती और फायदे

सर्पगंधा Rauvolfia serpentina

(Rauvolfia serpentina) सर्पगंधा की जड़ों में रिसप्रिन, सपेरेंटिंन, अजमेली सीडीन, अजमेलीसीन, अजमेलीनाईन आदि एल्कलॉइड पाए जाते हैं जिनका उपयोग रक्तचाप, अनिद्रा, उन्माद, हिस्टीरिया जैसे रोगों के उपचार में किया जाता है ! सर्पगंधा की जड़ों की छाल में 2.4 प्रतिशत कुल एल्केलाइड मिलते हैं, जबकि जड़ों में इसका प्रतिशत 0.40 प्रतिशत होता है ! जडो में मिलने वाला एल्कलॉइड का प्रतिशत 0.7 से 3.00 प्रतिशत होता है ! सर्पगंधा की एक अन्य प्रजाति राबुल्फिया टेट्राफाईला कहते हैं, जिस में भी औषधीय गुण पाए जाते हैं ! लेकिन राबुल्फिया स्प्रेंटीना की तुलना में इसका महत्व कम है !

भारतीय उपमहाद्वीप में सर्पगंधा प्राकृतिक रूप से हिमालय की तलहटी से लेकर बंगाल व असम पूर्वी तथा पश्चिमी घाटों, छोटानागपुर बिहार, उड़ीसा एवं मध्य प्रदेश के कई स्थानों पर उपलब्ध होती है परंतु जंगल से लगातार दोहन से आज यह समाप्ति की ओर अग्रसर है ! अतः कृषि के माध्यम से इसका उत्पादन बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है ताकि औषधीय रूप में इसकी मांग पूरी की जा सके ! सर्पगंधा 18 से 24 माह की अवधि में तैयार होने वाली फसल के रूप में इसकी खेती की जा सकती है !

जलवायु

(1) गर्म आद्र और उष्ण जलवायु
(2) औसत तापमान 10 से 38 डिग्री सेल्सियस तक
(3) 150 से 375 सेंटीमीटर प्रति वर्ष

खेत का चुनाव

(1) बलुई दोमट से चिकनी दोमट मिट्टी वाले खेत
(2) ph 8 से कम होना आवश्यक है
(3) भूमि मैं जीवाष्म की बहुलता होनी चाहिए
(4) जल निकास का प्रबंध एवं मिट्टी से अच्छी जल धारण क्षमता होनी चाहिए

खेत की तैयारी

(1) खेत की गहरी जुताई गर्मी में करें  (2) एक बारिश के बाद दो से तीन बखरनी करें                   (3) इसके बाद पाटा चला कर खेत समतल कर दें

उन्नत किस्में
आर. एस. 1 JNKVV में विकसित की गई है !

नर्सरी की तैयारी

बीज की सीधे खेत में बुवाई अपेक्षित परिणाम नहीं देती ! अतः नर्सरी में पौध लगाकर उसकी रोपाई की जाती है !
(1) एक हेक्टेयर हेतु 2×10 मीटर की 25 क्यारियां जमीन की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंची बनाएं !
(2) बीज को बुवाई से पहले पानी में डुबोकर रखें !
(3) बीज को 3 ग्राम प्रति किलो की दर से 24 घंटे बाविस्टिन पाउडर से उपचारित करना चाहिए !
(4) एक हेक्टेयर में सर्पगंधा की फसल के लिए 5 किलोग्राम बीज की नर्सरी में बुवाई करें तथा उसको अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद 1 किलो प्रति मीटर की दर से मिट्टी में मिलाएं !
(5) प्रत्येक क्यारी में 200 ग्राम बीज 10 से 15 सेंटीमीटर दूर कतारों में 1 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई करें !  कतारों को छने हुए गोबर की खाद व मिट्टी के मिश्रण से ढक दिया जाता है ! बुआई करने के बाद लगभग प्रतिदिन सिंचाई करें !
(6) बुवाई का कार्य अप्रैल 25 से 10 मई तक अवश्य कर लें !
(7) करीब 15 से 20 दिन में अंकुरण शुरू होकर 30 से 35 दिन में पूरा हो जाता है !

नर्सरी में तैयार पौध की खेत में रोपाई

(1) जुलाई माह में 45 से 50 दिन पुराने पौधे जिनकी लंबाई 6 इंच से 8 इंच हो एवं जिनमें 4 से 6 प्रतियां आ गई हो उन्ही पौधों को जड़ सहित रोपाई के लिए प्रयोग करें ! जड़ों को 0.1 परसेंट बेविस्टीन से उपचारित करें !
(2) पौध की रोपाई 45 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतार में करें ! 10 से 12 दिन बाद गैप फीलिंग करें !
सर्पगंधा की पौध जड़ों के द्वारा भी तैयार की जा सकती है ! 7.5 सेंटीमीटर लंबी 125 ग्राम जड़े 1 हेक्टेयर के लिए काफी है ! जडो को 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बरसात शुरू होने के पूर्व लगा देते हैं और उसे मिट्टी से ढक देते हैं ! जून तक 52 से 79 प्रतिशत तक जड़ों में कल्ले निकल आते हैं ! जड़ों को पैराडीक्स से उपचारित करना चाहिए ! इन्हें रोपण के लिए उपयोग किया जाता है !

उर्वरक एवं खाद

प्रति हेक्टेयर

(1) 10 टन गोबर की खाद

(2) रसायनिक खाद – नाइट्रोजन 60 kg, फॉस्फोरस 30 kg व् पोटाश 30 kg गोबर की खाद, नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा, फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय जमीन में मिला दे ! नाइट्रोजन के शेष भाग का प्रयोग 2 बार समान मात्रा में खड़ी फसल में किया जाता है ! एक बार 3 महीने बाद जब फूल आना चालू होते है तब और उसके बाद 5 महीने बाद जब फल आते है !

सिंचाई

जहाँ पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां गर्मी के मौसम में हर 15 दिन बाद और ठंड में महीने में एक बार पानी लगाये ! सर्पगंधा को वर्षा पर आधारित दशा में भी उगाया जा सकता है !

निराई गुड़ाई

वर्षा काल में 2 बार और शेष समय आवशकतानुसार निराई करे ! वृद्धि के समय में एक बार गुड़ाई अवश्य करे !

अंतरवर्तीय फसले (intercropping)

सर्पगंधा 18 से 24 महीने की फसल है ! प्रारम्भ में इसके पौधे तेजी से नही बढ़ते इसलिए ज्यादा लाभ लेने के लिए सर्पगंधा की कतारों के बीच खरीफ की कम फैलने वाली वाली सोयाबीन की एक लाइन लगाई जा सकती है ! रबी मौसम में लहसुन की तीन लाइने अंतरवर्तीय (intercrop) फसल के रूप में लगाने पर ज्यादा आमदनी प्राप्त होती है !

पौध सुरक्षा

  1. किट एवं नियंत्रण

मोथ, ग्रब, कार्नी बग व् बीटल के आक्रमण को नियंत्रित करने के लिए सिफारिस किये गये रसायन को खेत में तैयारी के समय मिटटी में मिलाया जाता है !

  • उकठा या उखेडा रोग

इसमें शाखाये सूखने लगती है तथा तने में से छिलका मुलायम होकर निकलने लगता है ! इससे बचाव के लिए पानी का अच्छा निकास रखे ! बीजो को थाइरम 3 ग्राम प्रति kg की दर से उपचारित करे ! रोगग्रस्त पोधो को उखाड़ कर जला दे !

  • भभूतिया रोग (fungal disease)

सूखे के समय इसका प्रकोप होता है ! पत्तियों पर सफ़ेद फफूंद लगती है और पत्तिया मुड जाती है ! इससे बचाव के लिए फाईटोक्लोर या मेरिस्टान दवा के 3 % घोल का छिडकाव 10-10 दिनों के अंतर से करे !

  • डाईबैक रोग ( Dieback disease)

इस रोग में तना एवं पत्तिया झुलस जाती है ! इस रोग से बचाव के लिए डायथेन जेड-78 को 0.3 % घोल का छिडकाव 10-10 दिनों पर करे ! थोड़े थोड़े दिनों के अन्तराल पर प्रभावित अंगो को काटकर जलाते रहे !

जडो की खुदाई एवं ग्रेडिंग

            रोपाई के 19 से 24 महीनो के बाद जडो की खुदाई करे ! सुखा हो तो पहले सिंचाई करके 7-8 दिन बाद ट्रेक्टर या हल या गैती से जड़े खोदकर मिटटी साफ करके धोकर सूखने के लिए रखे ! कच्ची जड़े 13 से 15 क्विंटल पैदावार प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है ! जो सूखने पर पर करीब 6 से 9 क्विंटल रह जाती है ! इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 9 क्विंटल सुखी जड़े और 10 -12 किलोग्राम बीज की पैदावार प्राप्त होती है ! जडो को निकालते समय ध्यान रखे की उसकी छाल नष्ट न होने पाए ! जडो को धोने के बाद 10 से 15 cm के टुकड़े करके अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करे ! भण्डारण के समय नमी 3 % होनी चाहिए ! भण्डारण के पहले सुखी जडो को 15-20 cm के टुकडो में काट लेना चाहिए एवं उन्हें ठन्डे एवं सूखे स्थान में भंडारित करना चाहिए ! जडो को समय-समय पर हवा लगानी चाहिए ताकि मोल्ड और कीड़ो से उनकी रक्षा हो सके !

सर्पगंधा फसल का आय व्यय रिपोर्ट

खर्च /हेक्टेयर                                                                                                                  

  1. बीज 5 kg                                                                                    10000
  2. खेत की तैयारी                                                                               2500
  3. नर्सरी की तैयारी                                                                             500
  4. गोबर खाद,रसायनिक खाद, कीटनाशक                                           7500
  5. निराई, गुड़ाई एवं सिंचाई                                                                 1500
  6. खुदाई, सुखाई, ग्रेडिंग, भंडारण                                                        12500
  7. अन्य खर्च                                                                                     5500                                             

कुल खर्च                                                                                            40000 रूपए

सर्पगंधा की प्रति हेक्टेयर उपज व् आय
  1. बीज 30 किलो / हेक्टेयर , 2000 रूपए प्रति किलोग्राम = 60000 रूपए
  2. सुखी जड़े 950 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, 150 रूपए प्रति किलो = 142500

कुल रूपए -202500/ हेक्टेयर

बीज इक्कठे करना

            सितम्बर से दिसम्बर महीने में सर्पगंधा के पौधे पर लगने वाले कत्थई-काले फलो को इक्कठा करके प्लास्टिक की बाल्टी में थोडा पानी डालकर 15 से 20 घंटे रखने के बाद फलो को मसलकर बीज निकाल ले और उन्हें 2-3 दिन तक सुखा ले ! सूखे बीजो को नमी रहित स्थान पर भंडारित करे ! इन बीजो को अगली फसल के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ! सर्पगंधा के 100 बीजो का भार 3.5 से 4 ग्राम होता है !

बीज कहा से ले

  1. औषधीय एवं सुगन्धित पौध विकास परियोजना jnkvv जबलपुर इन्दोर
  2. निर्देशक क्षेत्रिय अनुसन्धान प्रयोगशाला केनाल रोड जम्मू
  3. राज्य वन अनुसन्धान केंद्र पलिपाथर, जबलपुर

प्रमुख खरीददार

  1. मै. गंगाराम मोहनलाल शीतल माता बाज़ार इंदोर
  2. मै.एक्सेलियर कंपनी 29/36, इजराइल मोहल्ला भगवान भवन मुंबई 400006
  3. मै. ओरिएंट ट्रेडर्स पोस्ट ऑफिस स्वर्ण मंदिर 165, झंडा सिंह प्रथम मंजिल , अमृतसर पंजाब
  4. मै. अमसार प्राइवेट लिमिटेड 47 लक्ष्मीबाई नगर इंडस्ट्रियल स्टेट इंदोर- 45.2003(m.p)

स्त्रोत:- Dr. Vahi K. Agrwal JNKVV Jabalpur

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