क्लोनल सफेदा, निलगिरी

क्लोनल सफेदा ( निलगिरी ) पौधारोपण-कृषि वानिकी

सफेदाtree farming
  • 1) सफेदे की पत्तियों का तेल बेचकर , कीनो बेचकर (लाल तरल गोंद जैसा जहाजी कीड़ो से बचाने के लिए), टेनिन ( चमड़े को चमकाने के लिए प्रयोग किया जाता है )
  • 2) कटाई करके  प्लाईवुड, पेटी, कागज के लिए लुगदी व् फर्नीचर के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है
  • 3) जहाँ पर सफेदे की खेती कर रहे हो उसके साथ साथ मधुमक्खी पालन जरुर करे शहद ज्यादा होगा एक्स्ट्रा इनकम होगी !

हमारे प्राकृतिक वन संसाधनों की उत्पादकता की कमी को देखते हुए, हमें अपनी ईंधन और इमारती लकड़ी की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए, थोड़े समय में ज्यादा पैदावार देने वाले वृक्षों को वन रोपण में प्राथमिकता देनी चाहिए। सफेदे में अच्छी गुणवता वाली इमारती लकड़ी थोड़े समय में पैदा करने की क्षमता है। इसकी लकड़ी समुचित सीजनिंग के बाद बहुत मजबूत और सख्त होती है। सफेदे की लकड़ी के बहुआयामी उपयोग के लिए स्थानीय बाजार उपलब्ध है जहाँ पर इनका इस्तेमाल इमारती निर्माण, प्लाईवुड, ईंधन, पेपर लुग्दी, पैकिंग केसों और बल्लियों आदि में होता है।

सत्तर के दशक में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक के किसानों द्वारा सफेदे को कृषि वानिकी के रूप में बहुतायत में लगाया गया। परन्तु अस्सी के दशक में सफेदे के पौधारोपण को झटका लगा। अस्सी के दशक में सफेदे के पौधारोपण में आई कमी के बहुत सारे कारण विभिन्न स्तरों पर रहे हैं। सबसे बड़ा कारण पेपर मिलों द्वारा कच्चे माल को कम कीमत में खरीदना, मण्डियों में सफेदे की लकड़ी की ज्यादा आवक और उस समय में इसकी लकड़ी के सीमित उपयोग रहे हैं। परन्तु अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं। सफेदे की लकड़ी को बहुत रूपों में प्रयोग किया जाने लगा है जैसे कि इंधनइमारती लकड़ी, पैकिंग केस, बीम, स्लीपर, फर्नीचर, कागज लुग्दी, प्लाईवुड, चारकोल, बल्लियों और खंभों इत्यादि के रूपों में।

सफेदा ( निलगिरी ) में पानी की आवश्कता

सफेदा अन्य वृक्षों जैसे पोपलर, शीशम, कीकर आदि के मुकाबले लकड़ी पैदा करने के लिए कम पानी की खपत करता है।

श्री ए.एन. चतुर्वेदी, वन अनुसंधान अधिकारी के द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार सफेदा अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए जल का समचित प्रयोग करता है।

सफेदे को एक किलोग्राम लकड़ी पैदा करने के लिए केवल 511 लीटर जल की आवश्यकता होती है। जबकि अन्य वक्षों जैसे कीकर और शीशम आदि को क्रमशः 760 लीटर और 890 लीटर जल की आवश्यकता होती है। जबकि सामान्य पारम्परिक कृषि फसलें जैसे धान और गेहूँ, एक किलोग्राम अनाज पैदा करने के लिए क्रमशः 4500 लीटर और 1500 लीटर जल का इस्तेमाल करते हैं। अतः हम देखते हैं कि सफेदे की वार्षिक जल की आवश्यकता सामान्य कृषि फसलों के मुकाबले 15 प्रतिशत से भी कम होती है (अरण्य समाचार मई-जून 2005 वॉल्यूम 2 नं-3, पेज-4)।

उत्पादन

आज के समय में किसान को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए, वन विभाग द्वारा भी होने वाली आमदनी को बढ़ाने के लिए, क्लोनल सफेदे को कृषि वानिकी के रूप में लगाने के लिए प्रचारित किया जा रही है। बीज द्वारा तैयार किए गए सफेदे के पौधों में आपस में बहुत भिन्नता होती है, जिससे की इनकी उत्पादकता में कमी आ जाती है।

हमारे प्राकृतिक वनों की औसतन वार्षिक उत्पादन क्षमता 2 क्यूबिक मी० प्रति हैक्टेयर है, जबकि सफेदे की उत्पादकता वन भूमि में 6-10 क्यूबिक मी० प्रति हैक्टेयर और कृषि वानिकी में 20 क्यूबिक मी० प्रति हैक्टेयर है।

यदि हम हमारी उत्पादकता की तुलना ब्राजील और कोंगो में लगाए गए क्लोनल सफेदे से करें तो, वहाँ पर इसकी उत्पादकता 70-90 क्यूबिक मी० प्रति हैक्टेयर है, जो हमारी तुलना में कहीं ज्यादा है। भद्राचलम (आंध्र प्रदेश) में एक अध्ययन के अनुसार असिंचित वातावरण में क्लोनल सफेदे ने 20-44 क्यूबिक मी० प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष तक की उत्पादकता दी है।

आमतौर पर बीजीय रोपित सफेदों में 67 प्रतिशत कमजोर पौधों द्वारा कुल उत्पादकता का 33 प्रतिशत हिस्सा दिया जाता है जबकि केवल 33 प्रतिशत अच्छे बीजीय पौधों द्वारा ही बाकि का 67 प्रतिशत हिस्सा पैदा किया जाता है। जबकि इसके विपरीत क्लोनल पौधों की बढ़वार एक सार होती है और इसमें स्वयं काँट-छाँट भी होती रहती है, जिससे की क्लोनल पौधों का तना काफी ऊँचाई तक बेलनाकार आकृति लिए हुए होता है। क्लोनिंग विधि द्वारा तैयार किए सफेदे के पौधों की खेती उत्पादकों को अधिक आय प्रदान करती हैं।

सफेदा कहाँ से ख़रीदे

भारत में क्लोनल सफेदे आई.टी.सी., भद्राचलम (आंध्र प्रदेश), हरियाणा वन विभाग स्योंठी कुरूक्षेत्र और प्रगति बायोटेक्नोलोजीज, शेखपुरा, हरियाणा द्वारा तैयार किए जाते हैं। इन स्थानों से अच्छी भूमि व शोरे वाली भूमि के लिए उचित क्लोन प्राप्त किए जा सकते हैं। स्योंठी में एक अध्ययन के अनुसार भद्राचलम के 3,7,10 क्लोनों को इसके दूसरे क्लोनों की अपेक्षा ज्यादा पैदावार देने के लिए उचित पाया गया है। क्षारीय भूमि पर सफेदे की क्लोन नं. 130 लगाई जा सकती है।

  • वेराइटी – 07,319, 403, हाइब्रिड P-36 आदि
सफेदा कैसे लगाये – पौधारोपण
जलवायु

सामान्यतः क्लोनले सफेदे का पौधारोपण अच्छी जल-निकास वाली रेतीली दोमट भूमि पर किया जाता है, जिसका पी.एच.मान 6.5 से 8.5 के बीच में और विद्युत संचालकता 25°C तापमान पर 2 डेसी साईमन्ज प्रति मीटर से कम हो।

दुरी (स्पेसिंग)

क्लोनल सफेदे 3×3 मीटर की दूरी पर 440 पौधे प्रति एकड़ की दर पर लगाए जाते हैं। क्लोनल सफेदे 3 मीटर x 1.5 मीटर की दूरी से 888 पौधे प्रति एकड़ की दर पर बल्लियों व कागज लुग्दी के विकल्प के तौर पर 4 वर्ष के कम समय चक्र के लिए भी लगाये जा सकते हैं।

मेढ़ों पर उत्तर-दक्षिण दिशा में 1.5 मीटर के फासले पर भी इनको लगाया जा सकता है। कृषि वानिकी उपक्रम में इनको दो लाइनों में 2 मीटर x 1.5मीटर की दूरी पर 266 पौधे प्रति एकड़ लगाए जा सकते हैं। अगली दोनों लाइनें 18 मीटर की दूरी पर लगाई जानी चाहिए ताकि अंतर फसलें जैसे गेहूं, बरसीम, आलु, ज्वार और सब्जियों क्लोनल सफेदे की मुख्य फसल की कटाई तक निरंतर और सफलतापूर्वक बोई जा सके।

लगाने का समय

आमतौर पर सफेदा पौधारोपण का समय बरसात का मौसम होता है। परन्तु क्लोनल सफेदे केवल अप्रैल-जून के अति गर्म महीनों के अलावा पूरे वर्ष सफलतापूर्वक लगाए जा सकते हैं, बशर्ते की खेत में निरंतर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो।

गढड़े कम से कम 45 सेंमी. X 45 सेंमी. X 45 सेंमी. साईज के तैयार करने चाहिए। क्लोनल पौधों की ऊपर की सतह पर जड़ होने के कारण, इनको पौधारोपण के समय 30 सेंमी. की गहराई तक लगाना चाहिए। पौधारोपण के समय प्रत्येक गढड़े की मिट्टी में 0.2 प्रतिशत क्लोरपाइरिफॉस व 50 ग्राम डी.ए.पी. मिला देना चाहिए।

सिंचाई एवं खाद / उर्वरक (फ़र्टिलाइज़र)

पहले साल, बरसात के मौसम को छोड़कर, सात दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए और दूसरे साल सिंचाई 15 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। 50 ग्राम अरण्ड की खली व 10 ग्राम एन.पी.के, खाद भी पौधारोपण के समय प्रति पौधा डालनी चाहिए। जब पौधा अच्छी तरह स्थापित हो जाए तो 25 ग्राम यूरिया प्रति पौधा एक खुराक में डाल देना चाहिए। यदि दीमक का प्रभाव, पौधारोपण के समय के उपचार के बाद भी नजर आए तो 2 मिली लीटर हैफ्टाक्लोर 2 लीटर पानी में मिलाकर प्रति पौधा डाल देनी चाहिए। क्लोनल सफेदों को अपनी प्राकृतिक काँट-छाँट के कारण, बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होने के कारण, दूसरे अन्य वृक्षों की तुलना में कम देखभाल की आवश्यकता होती है।

आय–व्यय ब्यौराः

प्रगतिशील किसान श्री कंवर सुरेश पाल सिंह, गाँव पसियाला, अम्बाला के स्वयं के पौधारोपण के अनुभव के आधार पर उसे सबसे अधिक शुद्ध आय 27587 रूपये/एकड़ / वर्ष 3 मी. x 1.5 मी. की स्पेसिंग पर किए गए 4 वर्षीय क्लोनल पौधारोपण से हुई। जबकि असिंचित भूमि में किए गए 5 वर्षीय क्लोनल पौधारोपण से शुद्ध आय 19512 रूपये/एकड़/ वर्ष थी जो कि बीजीय पौधारोपण से 37 प्रतिशत अधिक रही।

सिंचित भमि में 5 वर्षीय क्लोनल पौधारोपण से शुद्ध आय 27367 रूपये/एकड़/वर्ष था, जो कि असिंचित भूमि क्लोनल पौधारोपण से 55 प्रतिशत अधिक थी।

डा० आर.एस.बैनीवाल

सहप्राध्यापक, वानिकी विभाग चौ. चरण सिंह ह. कृ. वि. विद्यालय, हिसार

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