
सफ़ेद मुसली लिलियेसी कुल का सदस्य है ! यह बहुवर्षीय जड़ी होती है ! जो वर्षा होने पर वृद्धि करती है तथा वर्षा समाप्त पर इसके पत्ते व् उपरी हिस्सा सुख जाता है तथा शीत व् ग्रीष्म काल में भूमिगत रहकर इसकी आधार की कालिया प्र्शुप्त रहती है ! मूल में भोजन संचित रहता है जो वर्षा प्रारम्भ होने पर कलियों की वृद्धि हेतु भोजन उपलब्ध कराती है ! वर्षा प्रारंभ होते ही इसकी वृद्धि होने लगती है ! पत्तियों के साथ साथ इसमें पुष्प-वृन्त का भी उदभवन होता है एवं जुलाई अगस्त में पुष्पनहो जाता है साथ ही फल पककर बीज बनते रहते है ! इस प्रकार इनकी वृद्धि वनस्पति विधि से प्रति वर्ष होती रहती है ! इसका प्रवर्धन बीज से भी होता है जो बीज पककर भूमि में बिखर जाते है ! वर्षा प्रारंभ होने पर प्राकृतिक रूप से उगते रहते है ! इसकी अंकुरण क्षमता लगभग 30 से 40 % होती है ! बीज बहुत छोटे, काले रंग के प्याज़ के बीज के समान होते है ! इन बीजो को इक्कठा करके भी पौधे तैयार किये जा सकते है ! प्रारंभ में ये पौधे बहुत कमज़ोर होते है ! लेकिन जो पौधा वानस्पतिक विधि से इसकी मूल के अक्ष में कली के साथ अलग कर के लगाया जाता है उसका पौधा प्रारम्भ से मजबूत होता है ! सफ़ेद मुसली की 175 प्रजाति होती है उनमे से प्रमुख ओषधिय गुण वाली जातिया इस प्रकार है
1 क्लोरोफाइटम बोरी मिलियानम
2 क्लोरोफाइटम लेक्स्म
3 क्लोरोफाइटम असन्ड़ोनेसियम
4 क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम
क्लोरोफाइटम बोरी मिलियानम
इसका महत्व सबसे अधिक है यह जाती सामान्य सागौन के वनों में मध्यप्रदेश में बहुतायत से पी जाती है ! इन जड़ो की मोटाई प्राय: एक समान,बेलनाकार ही होती है तथा जडो की और पतली होती जाती है ! इसकी जड़े गुच्छो में आधार पर स्लगन रहती है ! इसकी लम्बाई 10 से 15 cm होती है ! अधिक खाद देने पर ये 20 से 25 cm लम्बी हो जाती है !
क्लोरोफाइटम लेक्स्म
क्लोरोफाइटम लेक्स्म की मूल भी आधार से गुच्छे के रूप में निकलती है ! परन्तु प्रारंभ में में धागे के समान पतली होती है और अंत में ये एकाएक फूल जाती है तथा छोर पर पुन: धागे के समान पतली हो जाती है ! इन फूली हुई जड़ो पर झुर्रिया होती है !
क्लोरोफाइटम अरुन्ड़ोनेसियम
इसकी जड़े भी लेक्सम के समान ही होती है परन्तु इसकी जडो का फुला हुआ हिस्सा चिकना होता है ! उसमे लेक्सम की तरह झुर्रिया नही होती है तथा उसकी तुलना में मूल का आकार बड़ा होता है ! यह प्रजाति मध्यप्रदेश के सीधी,शहडोल, अमरकंद के साल वृक्ष के जंगलो में अधिक पाई जाती है !
क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम
इसकी जड़ भी आधार से गुच्छो के रूप में निकलती है परन्तु आधार से निकलकर ये धागे के समान पतली होती है ! तथा इस पतले हिस्सा की लम्बाई अरुन्ड़ोनेसियम व् लेक्सम प्रजाति की तुलना में अधिक होती है तथा अंत: में फुला हुआ हिस्सा दोनों प्रजातियों की तुलना में अधिक बड़ा होता है तथा इसकी सतह चिकनी होती है 1 पत्ते लम्बे व् अन्य प्रजातियों की तुलना में चौड़े होते है !
सफ़ेद मुसली का उपयोग
क्लोरोफाइटम बोरी मिलियानम प्रजाति का सबसे अधिक महत्व है !
इसका उपयोग बल, वीर्य, एवं पुरुषत्व वर्धक के रूप में किया जाता है !
विश्व बाजार में सफ़ेद मुसली की अत्यधिक मांग है !
भूमि
उपयुक्त जल निकास वाली हलकी, रेतीली, दोमट, लाल मिटटी इसकी खेती को अच्छा माना गया है ! अधिक उपजाऊ भूमि में इसकी उपज अधिक होती है ! जल भराव यह सहन नही कर सकती ! पथरीली मिटटी में जड़ो की वृद्धि कम होती है ! यह पहाड़ो की ढलानों तथा अन्य ढालू भूमि में भी होती है !
जलवायु
यह वर्षा ऋतू की फसल है ! यह समशीतोष्ण जलवायु तथा वन क्षेत्रो में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है ! इसको 800 से 1000 mm वर्षा वाले क्षेत्रो में वर्षा पर आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है
डिस्क / बीज
सफ़ेद मुसली की डिस्क या अक्ष में जो कलियाँ होती है ! डिस्क को बीज के रूप में प्रमुख रूप से उपयोग करते है ! वनस्पतिक प्रवर्धन की विधि द्वारा बह्गुणन होता है ! इसकी जड़े गुच्छो में होती है जो अक्ष में जुडी रहती है ! इन जडो को इस प्रकार अलग करते है की जड के साथ अक्ष का हिस्सा भी लगा रहे जिसमे कम से कम एक कली हो ! इसको रोपने पर एक पौधे का निर्माण होता है ! यदि डिस्क को एक साथ लगाते है तब एक ही स्थान पर अनेक पौधे निकलते है ! लगभग 1.90 लाख डिस्क प्रति हेक्टेयर लगाना आवशक है ! क्योंकि प्रति हेक्टेयर लगभग 2400 वर्ग मीटर क्षेत्र नालियों में निकल जायेगा !
यह बीज के द्वारा भी उगाई जा सकती है ! 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर डिस्क की आवश्कता होती है ! अत: इतना अधिक एक बार में खरीदने में अधिक खर्च आएगा ! अत: प्रथम बार केवल ¼ एकड़ या 100 मीटर x 10 मीटर क्षेत्र में रोपाई करे ! उसके बाद लगभग 6 क्विंटल नये पौधे तैयार हो उनको पुन: अगले वर्ष रोपने हेतु उपयोग करे ! यदि खर्च अधिक वहन न कर सके तब उसमे से लगभग 6 क्विंटल जडो को निकल कर सुखा कर बेच दे व् 3 क्विंटल डिस्क को एक एकड़ (4000 वर्ग मीटर ) क्षेत्र में रोपने के कम में लाये !
खाद / कम्पोस्ट
खाद अधिक से अधिक मात्रा में दे सकते है ! जितना अधिक खाद डी जाएगी उतनी ही अधिक मूल की उपज ली जा सकती है ! सामान्यत: 20 से 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर देकर अच्छी उपज ली जा सकती है ! पांच वर्ष में एक बार 150 ट्रोली खाद प्रति हेक्टेयर देकर अच्छी उपज ली जा सकती है ! ध्यान रखा जाये की गोबर की खाद पूर्ण रूप से सड़ी होनी चाहिए तथा भुरभुरी हो ! कच्ची खाद डालने से जडो में सडन/गलन रोग का प्रकोप हो जाता है तथा पौधे मर जाते है ! खाद को ग्रीष्म ऋतू में खेत में समान रूप से डालकर खेत तैयार करे !
खेत की तैयारी
रबी की फसल काटने के बाद ग्रीष्म ऋतू में खाद डालने के बाद एक बार बोल्ड पलाऊ से जुताई करे ! जुताई करने के बाद 2 बार कल्टीवेटर चलाये जिससे खरपतवार व् जड़े सुख जाये ! उसके बाद डिस्क हेर्रो 2 बार चलाकर खेत को समतल कर दे ! उसके बाद 2 मीटर चौड़ी 10 मीटर लम्बी एवं 20 cm ऊँची क्यारियाँ ( सीड बेड) बनाये ! एक क्यारी से दूसरी क्यारी की दुरी 50 cm रखे ! जिससे निंदाई करते समय क्यारी में न घुसना पड़े ! क्यारी में बैठकर निंदाई करने से मृदा दब जाती है व् जडो की वृद्धि प्रभावित होती है ! क्यारियों के बीच में 20 cm का अंतर छोड़ने से एक प्रकार की नाली बन जाती है जो की वर्षा ऋतू में जल निकास का कार्य करेगी ! वर्षा समाप्ति पर ये नालिया सिंचाई करने में सहायक रहेंगी ! इन नालियों का क्षेत्रफल लगभग 2400 वर्ग मीटर प्रति हेक्टेयर से कम हो जायेगा !
रोपाई की विधि
डिस्क को 20 cm कतार से कतार की दुरी पर तथा 20 cm डिस्क से डिस्क की दुरी पर लगाना आवशक है ! यदि प्रत्येक जड़ को अलग अलग करके लगाया जाता है तो एक जड़ से दूसरी जड़ की दुरी 10 cm रखे ! ध्यान रहे की रोपने की गहराई उतनी ही हो जितनी जड़ की लम्बाई हो जो अक्ष का भाग जड़ से स्लगन रहता है ! वह भूमि की उपरी सतह के बराबर हो उसको मृदा से ढकना नही चाहिए ! केवल जड़ ही मिटटी के अंदर रहे ! लगाते समय कुन्दाली से 5-6 cm गहरी लाइने 20 cm के अंतर से बना ले ! जड़ या पूरी डिस्क लगाने के बाद उसके चारो तरफ मिटटी भरकर दबा दे ! डिस्क भी पूरी तरह मिटटी के अंदर न हो उसका अक्ष व् पप्रसुप्त कलिकाए भूमि की सतह पर हो !
रोपाई का समय
मानसूनी वर्षा प्रारंभ होने पर जून या जुलाई में इसकी रोपाई करना आवशक है ! शीत या ग्रीष्म ऋतू में यह dormant अवस्था में रहती है ! अत: इन ऋतुओ में इसे नही लगाना चाहिए ! जून में यह प्रसुप्ति से जागृत हो जाती है तथा कलिकाए जडो में संचित भोज्य पदार्थ का उपयोग करने लगती है ! वर्षा प्रारम्भ होते ही पत्तिया निकल आती है और पौधा वृद्धि करने लगता है ! इसका प्रसुप्ति काल समाप्त हो जाता है ! भंडारित डिस्क की कालिया की वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है इसे इनके रोपण का समय समझना चाहिए !
सिचाई
रोपने के बाद यदि वर्षा नही होती है तब सिंचाई की आवशकता होती है ! अन्यथा इसकी फसल को सिंचाई की आवशकता नही होती ! 15 सितम्बर के बाद यदि वर्षा न तो तो अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक सिंचाई करे ! सिंचाई यदि स्प्रिंकलर के द्वारा डी जाये तो अच्छा रहता है ! सामान्य वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्कता नही रहती ! असामान्य वर्षा होने पर सितम्बर के मध्य या अक्टूबर में सिंचाई की आवशकता होती है !
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार अधिक प्रभावित करते है अत: इनका नियंत्रण 20 व् 45 दिन की अवस्था पर करे ! निंदाई हैण्ड हो या खुरपी से करे ! ध्यान रखे की निंदाई करते वक्त पौधो की जड़े प्रभावित न हो !
खुदाई
सफ़ेद मुसली की खुदाई दिसम्बर, जनवरी माह में लगाने के 6 से 7 महीने बाद की जाती है ! इस समय इसकी पत्तिया सुख जाती है ! भूमि के अंदर जड़ व् डिस्क dormant हो जाती है ! इस समय जड़ का छिलका अपने आप निकलने लगता है ! खुदाई से 2 दिन पहले स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से मुसली खोदने में आसानी होती है ! खुदाई कुदाली या फोर्क के द्वारा की जाती है !
सफ़ेद मुसली की खेती आय व् व्यय प्रति हेक्टेयर (अनुमानित)
1 खेत की तयारी
- एक बार मोल्ड बोर्ड पलाऊ से जुताई 3200
- हेर्रो 2 बार 1200
- डिस्किंग 2 बार 1200
- पाटा 2 बार 900
- क्यारी बनाना व् मजदूरी 800
2 खाद 6000
3 खाद खेत में डालना व् परिवहन खर्च 4500
4 बीज 1.90 हज़ार डिस्क 1.0 रूपए प्रति डिस्क 190000
5 रोपाई 2500
6 निंदाई 10000
7 सिंचाई 1000
8 खुदाई 5000
9 सफाई/सुखाना 20000
10 बोरी/बैग/रख रखाव 1000
11 बेचने का खर्च 1000
12 अन्य खर्च 10000
कुल खर्च = 258300 रूपए अनुमानित
प्रसंस्करण व् सुखाना
मुसली की खुदाई करने के बाद उसकी सफाई करना आवशक है ! यदि मुसली पर मिटटी लगी है तो उसे धो कर साफ करे ! उसके बाद मुसली को डिस्क से तोडकर अलग कर ले ! बाद में मुसली के उपरी सतह से छिलके को निकाले ! छिलका चाकू या कांच के टुकड़े या खुरदरे पत्थर आदि से घिसकर साफ करे व् सूखने के लिए धुप में डाल दे ! साफ करने के बाद मुसली को सफ़ेद नये कपडे में या पोलीथीन पर सुखाना चाहिए ! अन्यथा मुसली का रंग सफ़ेद नही होगा उसका रंग मट मैला या पिला हो जायेगा ! जिससे बाज़ार में उसका मूल्य कम हो जायेगा ! अत: सफाई व् सुखाई का कार्य सावधानीपूर्वक करना आवशक है ! मुसली में फफूंद आदि का आक्रमण नही होना चाहिए ! छोटी मुसलियो को डिस्क सहित छाया में रेत के अंदर भंडारित कर अगले वर्ष की फसल रोपने के काम में लाये !
उत्पादन
ताजा सफ़ेद मुसली का उत्पादन 15 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है तथा सुखी मुसली का उत्पादन 4 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है
बाज़ार भाव
ताजी जड़े 50 से 100 रूपए प्रति किलो तथा सुखी 800 से 1000 रूपए प्रति किलोग्राम
शुद्द लाभ
प्रति हेक्टेयर 5 लाख रूपए का खर्च निकाल कर शुद्द लाभ कमाया जा सकता है
भंडारण
- प्रसंस्करण की हुई सुखी जड़े (8-9% moisture) पोलीथीन की थेलियो या नाइलान की बोरियो में शुष्क स्थान पर बेचने हेतु रखे !
- बीज रोपने हेतु एक- दो छोटी मूल सहित डिस्क भंडारण रेत में छायादार कमरे में करते है ! यदि खोदते समय डिस्क के साथ स्लगन एक-दो मूल सहित भुसली को छोड़ दिया जाये तो अलग से भण्डारण की आवशकता नही होती है वे शीत व् ग्रीष्म काल में खेत में ही पड़ी रहकर अगले वर्ष बीज का काम करती है ! बीज हेतु भंडारित की गई डिस्क सहित जडो में सिंचाई नही करनी चाहिए !