रागी क्या है ! रागी की खेती
रागी या मंडुआ को फिंगर मिलेट भी कहा जाता है ! रागी की खेती भारत और अफ्रीका के शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर की जाती है।
अनाजों में यह भारत में गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार और बाजरा के बाद उत्पादन में छठे स्थान पर है ! देश में रागी 9.5 लाख हैक्टर क्षेत्र में उगाया जाता है तथा इसका वार्षिक उत्पादन 13.2 लाख टन है।
भारत में रागी की खेती मुख्यतः कर्नाटक (4.51 लाख हैक्टर), तमिलनाडु (0.26 लाख हैक्टर), ओडिशा (1.14 लाख हैक्टर), आंध्र प्रदेश (0.23 लाख हैक्टर), उत्तराखंड (1.09 लाख हैक्टर) एवं महाराष्ट्र (0.90 लाख हैक्टर) राज्यों में की जाती है। बिहार में रागी की खेती दियारा, पठारी तथा आदिवासी क्षेत्रों के शुष्क और अर्धशुष्क भागों में की जाती है।
पहाड़ी क्षेत्रों के निर्धन लोगों द्वारा रागी को प्रमुख भोजन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है ! यह पोषक तत्वों एवं रेशे से परिपूर्ण है, जिससे इसका औषधीय उपयोग भी है।
रागी कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन तथा अन्य खनिजों का बढ़िया स्रोत है ! लोग इसे रोटी के रूप में उपयोग करते हैं तथा पशुओं के लिए चारा भी मिल जाता है ! फसल उत्पादन की दृष्टि से रागी को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है एवं यह सूखे को आसानी से सहन कर लेता है ! अतः रागी की खेती शुष्क क्षेत्रों में, जहां दूसरी मुख्य अन्न वाली फसलें नहीं उगाई जा सकती, सुगमतापूर्वक की जा सकती है।
रागी की अवधि मुख्य फसलों से कम (90-115 दिन) होती है ! इसकी फसलों पर कीट-पतंगों व रोगों का आक्रमण भी बहुत कम होता है ! (ज्यादा जानकारी के लिए इसे पढ़े – रागी खाने के फायदे)
रागी की खेती की उन्नत विधि
मृदा एवं जलवायु
रागी की खेती के लिए गर्म क्षेत्र उपयुक्त है ! बीज के अंकुरण के लिए इसके लिए कम से कम 8-10 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी होता है ! इसके अच्छे विकास के लिए औसत तापमान 26 से 29 डिग्री सेल्सियस है।
इसे कई तरह की भूमि पर उगाया जा सकता है, लेकिन बलुई दोमट मृदा जिसमें जल निकासी की सुविधा हो, रागी की खेती के लिए उपयुक्त है।
विकसित किस्में
रागी की कई किस्में विभिन्न संस्थानों द्वारा अलग-अलग राज्यों के लिए विकसित की गयी हैं !
कर्नाटक – जीपीयू 28, जीपीयू 45, जीपीयू 48, पीआर 202, एमआर 6, जीपीयू 66, जीपीयू 67, केएमआर 204, केएमआर 301, केएमआर 340, एमएल 365
तमिलनाडु – जीपीयू 28, सीओ 13, टीएनएयू 946, सीओ 9, सीओ 12, सीओ 15
आंध्र प्रदेश – वीआर 847, पीआर 202, वीआर 708, वीआर 762, वीआर 900, वीआर 936
झारखण्ड – ए 404, बीएम 2
ओडिशा – ओइबी 10, ओयूएटी 2, बीएम 9-1, ओइबी 526, ओइबी 532
उत्तराखंड – पीआरएम 2, वीएल 315, वीएल 324, वीएल 352, वीएल 149, वीएल 348, वीएल 376, पीईएस 400
छत्तीसगढ़ – छत्तीसगढ़-2, बी आर 7, जीपीयू 28, पीआर 202, वीआर 708, वीएल 149, वीएल 315, वीएल 324, वीएल 352, वीएल 376
महाराष्ट्र – दापोली 1, फुले नाचनी, केओपीएन 235
गुजरात – जी एन 4, जी एन 5
बिहार – आरएयू 8, वीआर-708, वीएल-352, आरएयु-3, जीपीयू-45, वीएल-348, जीपीयू-28, जीपीयू-67, जीपीयू-85
रागी की खेती – तैयारी एवं रोपाई
अप्रैल या मई के महीने में एक गहरी जुताई करें तथा फिर से 2-3 बार हैरो से जुताई कर पाटा करें ! एक हैक्टर भूमि के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
रोपनी से पहले कैप्टॉन, थीरम या बाविस्टीन द्वारा 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें ! खरीफ फसल के लिए बुआई का उपयुक्त समय जून-जुलाई है।
बुआई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 सें.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए !बीज को सिर्फ 2 सें.मी. गहराई पर बोना चाहिए।
उर्वरक प्रबंधन
रागी के लिए 50-60 सें.मी. नाइट्रोजन, 40 सें.मी. फॉस्फोरस तथा 25 सें.मी. पोटाश प्रति हैक्टर की मात्रा अनुशंसित है।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा बुआई के 25-30 दिनों बाद देनी चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार नियंत्रण के लिए एक निकाई तथा 2, 4-डी (500 ग्राम सक्रिय तत्व) को 600 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 20 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए।
रोग प्रबंधन
झुलसा रोग रागी में होने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण रोग है, जो पौधे के हर चरण को प्रभावित करता है ! इसकी रोकथाम हेतु नाइट्रोजनयुक्त खाद का अत्यधिक उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि नाइट्रोजन की उच्च मात्रा और झुलसा रोग में सकारात्मक संबंध पाया गया है।
जैविक विधि
स्यूडोमोनास 6 ग्राम/कि.ग्रा. से बीजोपचार करें स्यूडोमोनास 2 ग्राम/लीटर पानी सेछिड़काव करें।
रासायनिक विधि
कैप्टॉन 4 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) 2 ग्राम/कि.ग्रा. से बीजोपचार करें
एडिफेनफोस (हिनोसान) 500 मि.ली. अथवा कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम अथवा आइप्रोबेनफोस (किताजिन) 500 मि.ली./हैक्टर से छिड़काव करें।
फसल कटाई
बाली को दानों के साथ काटा जाता है और पौधों को जमीन के करीब से काट दिया जाता है ! बालियों का ढेर बनाकर 3-4 दिनों तक सुखाया जाता है ! इसके अच्छे से सूखने के बाद गहाई की जाती है।
गहाई
परंपरागत रूप से रागी की गहाई और दानों की सफाई हाथों से की जाती रही है, जिसमें ज्यादा समय, कम उत्पादन और अधिक परिश्रम जैसी मुश्किलें आती हैं ! इस समस्या को दूर करने के लिए, एक 2 एच.पी. मोटर संचालित फिंगर मिलेट-कमपियरलर का उपयोग कर सकते हैं, जिसकी गहाई एवं प्रसंस्करण क्षमता हाथ की अपेक्षा काफी बेहतर है।
सुखाई एवं भण्डारण
बीजों को धूप में सूखने से पहले साफ किया जाना चाहिए ! ग्रेडिंग से पहले बीजों को 12 प्रतिशत नमी की मात्रा तक सुखाया जाता है ! बीजों को जूट के बैग में भण्डारण करें।
रागी उत्पादन
शीघ्र पकने वाली किस्में 15-20 क्विंटल/हैक्टर तक उत्पादन देती हैं, जबकि मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों की उत्पादन क्षमता 20-25 क्विंटल/हैक्टर तक होती है।
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