फालसा फल की खेती से कमाई पूरी जानकारी Phalsa/Falsa Fruit In Hindi farming

फालसा फल क्या है what is Phalsa/Falsa fruit

फालसा फल की खेती देश में मुख्यतः पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में की जाती है। फालसा (ग्रेविया एसियाटिका), देश के शुष्क तथा अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक फलदार पौधा है।

यह टीलिएसी कुल से संबंध रखता है। फलों की शेल्फ लाइफ बहुत कम होने के कारण व्यावसायिक रूप से इसे बड़े शहरों के आसपास उगाया जाता है, ताकि फलों को कम समय में मंडी पहुंचाया जा सके।

सहनशील तथा सूखारोधी होने के कारण फालसा फल कम उपजाऊ एवं लवणीय मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है। इसका पौधा बौना एवं झाड़ीनुमा होता है। इसमें फलन जल्दी एवं नियमित रूप से होने के कारण इसको दूसरे फलों के बाग में पूरक फसल के रूप में भी उगाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है।

फालसा फल के फायदे phalsa/Falsa fruit benefits in hindi

फालसा के फलों का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभप्रद है। एंटीऑक्सीडेंट तथा अन्य पोषक तत्व जैसे-मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन ‘ए’ और विटामिन ‘सी’ आदि भरपूर मात्रा में होने के कारण यह शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में ‘इम्युनिटी बूस्टर’ का काम करता है, जिसका कि वर्तमान के कोरोना महामारी के समय में विशेष महत्व है।

फालसा फल का सेवन गर्मियों में लू से बचाता है तथा फालसे का रस शरीर के लिए टॉनिक का काम करता है। इसके अलावा इसका फल पित्त की समस्या को दूर करने, पाचन तंत्र को मजबूत बनाने, रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कंट्रोल करने, शरीर को कैंसर एवं एनीमिया जैसे रोगों से बचाने में भी काफी लाभप्रद होता है।

फालसा के फलों की पौष्टिकता एवं औषधीय गुणों के कारण बाजार में इसकी काफी मांग होती है, लेकिन आनुपातिक आपूर्ति नहीं हो पाती है। इसकी व्यावसायिक खेती पर उतना ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। अतः उचित देखभाल एवं उन्नत विधियों से फालसे की खेती एक बहुत ही लाभप्रद व्यवसाय हो सकती है।

जलवायु एवं मिट्टी

फालसा फल गर्म एवं अधिक शुष्क मैदानी भाग तथा ज्यादा वर्षा वाले नम स्थान, दोनों ही प्रकार की जलवायु में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। सर्दियों में सुषुप्तावस्था में होने के कारण यह पाले को सहन कर सकता है।

इसका पौधा 3 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बढ़ सकता है। फलों को पकने तथा उचित रंग एवं अच्छी गुणवत्ता के लिए पर्याप्त धूप एवं गर्म तापमान की आवश्यकता होती है।

इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टीओं में की जा सकती है, लेकिन अच्छी वृद्धि एवं उपज के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी अच्छी होती है।

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प्रवर्धन बीज द्वारा

फालसे को मुख्य रूप से बीज द्वारा प्रसारित किया जाता है। एक हैक्टर क्षेत्र के लिए लगभग एक-दो कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।

बीज आमतौर पर जुलाई में बोया जाता है तथा बीजों का अंकुरण _15-20 दिनों में हो जाता है। खेत में 7-8 माह के पौधे लगाए जाते हैं। पौधरोपण के 15-18 माह बाद पौधे फल देने लगते हैं।

वानस्पतिक प्रवर्धन

व्यावसायिक रूप से फालसे का कलम द्वारा प्रवर्धन काफी प्रचलित है। कलम द्वारा विकसित पौधे एक जैसे तथा मातृ पौधे के समान होते हैं।

आई.बी.ए. 200 पी.पी.एम. के प्रयोग से कलम द्वारा प्रवर्धन में सफलता की दर बढ़ाई जा सकती है। पौधरोपण फालसा में रोपण का उचित समय जुलाई-अगस्त का महीना होता है, हालांकि फरवरी-मार्च में भी रोपण किया जा सकता है।

6-8 माह के बीजीय पौधों को 60 x 60 x 60 सें.मी. आकार के गड्ढों में, प्रायः 2.5 x 3.0 मीटर तथा सघन पौधरोपण में 0.60 X 0.60 X 0.30 मीटर की दूरी (युगल पंक्ति रोपण प्रणाली) पर रोपित किया जाता है। इस विधि में पौधों की संख्या लगभग दोगुनी हो जाती है और उपज भी 25 प्रतिशत बढ़ जाती है।

पोषण प्रबंधन

फालसा फल के पौधे को सामान्यतौर पर बहुत ज्यादा पोषण की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी अच्छी उपज के लिए प्रतिवर्ष क्रमशः 70:30:20 ग्राम एन.पी.के. एवं 15-20 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद प्रति पौधे की दर से फरवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह में देनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे-जिंक सल्फेट एवं ऑयरन सल्फेट का 0.5 प्रतिशत की दर से फूल खिलने से पहले और फल ठहराव के समय छिड़काव करना चाहिए।

सिंचाई

फालसा एक सूखारोधी फसल है, किन्तु अच्छी पैदावार एवं उत्तम गुणवत्ता के लिए सिंचाई करना आवश्यक होता है। इसमें फरवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह में खाद व उर्वरक देकर पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद मार्च से मई तक 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

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फालसा फल के पौधे की कटाई एवं छंटाई

फालसा फसल उत्पादन के लिए कटाई एवं छंटाई महत्वपूर्ण सस्य क्रियाएं हैं। फालसा में फल केवल नई शाखाओं पर गुच्छों में आते हैं।

कटाई एवं छंटाई फालसा में प्रतिवर्ष की जाती है। इससे उपज अच्छी एवं फल उत्तम गुणवत्ता के साथ-साथ बड़े आकार के होते हैं।

कटाई एवं छंटाई के लिए वांछनीय ऊंचाई मिट्टी की सतह से 0.8-1.2 मीटर रखी जाती है। कटाई-छंटाई का उत्तम समय 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच का होता है। इस समय पौधे सुषुप्तावस्था में रहते हैं।

निराई-गुड़ाई

खरपतवार को नियंत्रित करने एवं खाद तथा उर्वरकों को ठीक प्रकार से मिलाने के लिए कटाई-छंटाई के उपरांत एक से दो हल्की निराई-गुड़ाई करते हैं।

फूल एवं फलन

फालसा में फरवरी-मार्च में नई शाखाओं पर फूल आते हैं, जोकि मधुमक्खियों द्वारा परपरागित होकर फल बनाते हैं। फल अप्रैल-मई में पकते हैं। फलों का रंग पकने के समय लाल-गुलाबी, आकार 2.0-2.5 सें.मी. और स्वाद खट्टा-मीठा होता है।

वृद्धि हार्मोन (इथरेल 1000 पी.पी.एम. तथा जिब्रेलिक एसिड 100 पी.पी.एम.) के प्रयोग से फालसा के फलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

फालसा फल के मूल्य संवर्धित उत्पाद

फालसा फल phalsa falsa fruit

फालसा के फलों को एक या दो दिनों से ज्यादा सामान्य तापमान पर नहीं रखा जा सकता है अन्यथा ये फल खराब होने लगते हैं। इसलिए इसके फलों का उपयोग मूल्य संवर्धित उत्पाद जैसे-जूस, शर्बत, स्क्वै श तथा नेक्टर आदि बनाने में भी किया जाता है, जो इसके मूल्य को कई गुना बढ़ा देते हैं।

फालसा फल के कीट एवं रोग

तनाछेदक इल्ली

इस कीट की इल्ली तना एवं शाखाओं में छेद करके अंदर से कैंबियम को खाती रहती है। इसके नियंत्रण के लिए छेद में केरोसीन का तेल या पेट्रोल इंजेक्शन डालकर रुई या गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए। यह प्रक्रिया कटाई-छंटाई के तुरंत बाद दिसंबर-जनवरी में करनी चाहिए।

पत्ती का धब्बा रोग

बरसात के मौसम में इस रोग का अधिक प्रकोप होता है। यह कवकजनित रोग है, जिसके लक्षण पत्तियों के दोनों ओर छोटे काले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। धीरे-धीरे पूरा पत्ता सफेद चूर्ण से ढक जाता है और पत्तियां गिर जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए डी.एम.-45 के 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।

फालसा फल की किस्में Phalsa fruit Variety

सामान्य तौर पर फालसा की कोई मान्यता प्राप्त किस्म नहीं है लेकिन इसको दो प्रजातियों-क्रमशः बुआई तथा लंबी प्रजातियों के आधार पर विभाजित की गई हैं।

बुआई किस्में लंबी किस्मों – की तुलना में अधिक उत्पादकता वाली होती हैं। इनमें शुगर की मात्रा भी बुआई किस्मों की अपेक्षा ज्यादा होती है।

फालसा की शर्बती किस्म काफी प्रसिद्ध है और व्यावसायिक रूप से उगाई जाती है।

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फालसा फल की तुड़ाई, उपज एवं भंडारण phalsa fruit yield and storage

फालसा फल अप्रैल के अंतिम सप्ताह से पकने शुरू हो जाते हैं। जून के प्रथम सप्ताह तक फलों की तुड़ाई होती रहती है। केवल पके हुए फलों को रोजाना तोड़ना चाहिए, क्योंकि कच्चे फल तुड़ाई के बाद नहीं पकते हैं।

उन्नत ढंग से फालसा की खेती करने पर औसतन 6-10 कि.ग्रा. प्रति पौधा तक उपज प्राप्त की जा सकती है। पके हुए फलों का भंडारण सामान्य (कमरे के) तापमान पर एक या दो दिनों से ज्यादा नहीं किया जा सकता है, इसलिए तुड़ाई के तुरंत बाद इसकी बिक्री करना बहुत आवश्यक हो जाता है।

इसका शीत भण्डारण 6-8 दिनों तक 5-7 डिग्री सेल्सियस तापमान पर किया जा सकता है।

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