Papaya/Papita Tree farming In Hindi पपीता की खेती, रोग व समाधान

पपीता/Papaya/Papita

  • वानस्पतिक नाम :कैरिका पपाया (Carica Papaya)
  • कुल – कैरिकेसी

इसका जन्म स्थान अमेरिका का उष्ण किटबंधीय भाग माना जाता है। इसकी खेति हमारे देश के लगभग सभी भागो में की जाती है। व्यावसायिक स्तर पर खेती उत्तर प्रदेश. बिहार. महाराष्ट्र, मध्य प्रदश, तमिलनाडु, कार्नाटक, पश्चिम बंगाल असम एवं उड़ीसा राज्यों में होती है ।

Papaya Tree Farming In Hindi पपीता की खेती, रोग व समाधान

पपीता उन फलों में है जो लगाने के बाद बहत जल्द फलने लगता है एवं प्रति एकड़ उपज सबसे अधिक प्राप्त होती है। इसके फलों में सर्करा एवं प्रोटीन के अतिरिक्त विभिन्न लवण जैसे लोहा, कैल्सीयम एवं फासफोरस विटामिन (2500 आइ. यू. प्रति 100 ग्रामि फल में एवं विटामिन सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं जो प्रोटीन को पचाने में विशेष रुप से मदद करता है।

जलवायु (Climate Soil Requirment for Papaya/Papita):-

यह एक उष्ण जलवायु का पौधा हैं, जो अधिक पाला वर्दास्त नहीं करता हैं। अधिक आदर्ता वाला जगहो में फलों के गुण प्रभावित होते है।

अधिक वर्षा एवं अच्छी जल निकास के अभाव में पपीते की खेती सम्भव नहीं है, क्योंकि पौधे पानी लगने से कालर रॉट नामक बिमारी से ग्रसित होकर मर जाते है।

इसकी अच्छी वृद्धि के लिए 22° – 26° तापमान एवं औसत वार्षिक वर्षा 120-150 से. मी. उपयुक्त होती है।

मिट्टी (Soil Requirment for Papaya/Papita):-

बलूई दोमट मिटटी जिसमें जिवांस काफी मात्रा में हो सर्वोत्तम होती है। मिट्टी में जल निकास अच्छा होना सबसे महत्वपूर्ण है। भूमि की गहराई1.50 मी. एवं पी.एच.मान 6.5-7.5 हो उपयुक्त होती हैं।

प्रर्वधन :-

पपीते का व्यावसायिक प्रर्वधन बीज के द्वारा किया जाता हैं। बीज दर 300 से 500 ग्राम प्रति हेक्टर हैं।

बीज बोने से पहले जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना ले। भूमि को छोटी क्यारी में बाँट कर 1-2 मी. चौड़ाई एवं 15 से. मी. तक ऊचाई रखनी चाहिए।

बीजों को बोने से पहले कैप्टान, या थायरम (2ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज) से उपचारित करना चाहिए। इससे गलका रोग से पौधों को बचाया जाता है।

किस्मे/प्रभेद (variety of Papaya/Papita)  :-

हनीड्यू, कुर्ग हनीड्यु, राँची, पूसा नन्हा, सूर्या, पूसा डार्फ, वाशिगंटन

खाद एवं उर्वरक (Fertilizer requirment for Papaya/Papita) :-

पपीते के एक पौधे के लिए 200 ग्राम नत्रजन 100 ग्राम फास्फोरस तथा 200 ग्राम पोटास डालते है। उर्वरक डालते समय यह सावधानी रखें कि इसका सम्पर्क पौधे के तने से न होने पायें।

पौध रोपण (Papaya/ papita planting):-

पपीता की खेती के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए जहाँ पर वर्षा का पानी इकटठा न होता हो। गर्मी के दिनों में भूमि को अच्छी तरह जुताइ करके तैयार कर लेना चाहिए। इसके बाद प्रभेद के अनुसार 2.5-3.0 मीटर की दूरी गडढा खोद लेना चाहिए।

प्र्ति इकाई क्षेत्रफल में आधिक उपज प्राप्त करने के लिए पपीता को 1.8×1.8 मी की दूरी पर लगाया जाता है। गर्मी के दिनों में 45x45x45 घन से. मी. के आकार का गड्ढा तैयार कर लेना चाहिए।

ख़ूँदे हए गडदे को 15 दिनों तक खुला छोड़ दें। मिट्टी में 20 किलो कम्पोस्ट, 1 कि. ग्रा. नीम की खल्ली 300 ग्राम सिंगिल सपर फास्फेट, 75-100 ग्राम क्लोरपायरिफास (5%) धूल मिलाकर गड्ढे को अच्छी तरह भर दें।

Papaya Tree Farming In Hindi पपीता की खेती, रोग व समाधान

जब पौध नर्सरी में 15 – 20 से. मी. की ऊँचाई के हो जाये तब सितम्बर के आखिर या अक्टूबर के शुरु या, मार्च-अप्रैल या जुन-जुलाई में लगाते हैं।

गायनोडायोसियल (मृदा एव उमयलिंगी पौधे)  प्रजाति के 3 पौधे प्रति गड्ढे लगाना चाहिए। जाड़े के दिनों में जहाँ ठंड अधिक हो तथा पाला पड़ाता हो उसे घास-फूस की छप्पर से या पॉलीथीन द्वारा ढके एवं समय -समय पर सिंचाई करनी चाहिए।

बेर की खेती

लिंग भेद (नर मादा) एवं परागण (Gender discrimination in papaya)  :-

पपीते में प्रायः नर एवम्‌ मादा पौधे उत्पन होते है ! इनकी पहचान करना पौधालय में सम्भव नहीं हैं। नर पौधे का पता चलते ही उसे निकाल देना चाहियें तथा केवल 10 प्रतिशत स्वस्थ नर पौधों को छोड़ना चाहिए।

इस प्रकार की परेशानी से बचने के लिये पुसा डेलीशिअस,  हनीड्यू प्रजाति को लगाना चाहिए क्योंकि इससे जो भी पौधे उगते है वे मादा या उभयलिंगी होते है जिससें सभी पौधे पर फल अवश्य लगते हैं।

सिंचाई (irrigation in papaya/Papita):-

पपीते के पौधे को लगाने के बाद हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। गर्मीयों में पौधे की सिंचाई 7-8 दिनों के अन्तर पर एवं सर्दियों में 10-8 दिनों के अन्तर पर करनी चाहिए। पौधे के चारों तरफ मिटटी चढाकर थाला बना देना चाहिए तथा उसक़े चारो तरफ सिचाई इस प्रकार करें कि पानी सीधा तने के सम्पर्क में न आये।

अन्तः सस्यन (Intercropping in Papaya/Papita):-

पपीते के पौधे के मध्य में लेग्यूमिनस फसलें जैसे मटर, मेंथी, चना, फलगोभी. पत्तागोभी, प्याज एवं मिर्च आदि ली जा सकती है।

निराई गुड़ई (weeding in papaya/Papita):-

पपीते के पौधे को नियमित रुप से निराई-गुडाई करे इससे मिट्टी में वायु का संचार बना रहता है और पौधों की बढवार अच्छी होती है। वर्षा ऋत आने से पूर्व तने पर 30 से. मी. तक मिट्टा चढ़ा देनी चाहिए इससे पौधों के जड़ एवं तना का विगलन रोग से बचाव होता है।

पौधे का पाले से बचाव (Frost Protection in Papaya/Papita) :-

पाले से बचाव के लिए पौधे को घास-फूस के बने हुए छप्पर ( थैचिंग) द्वारा ढक दें तथा पाला पड़ने के समय जल्दी-जल्दी सिंचाई करते रहें। बगीचे में तापमान बढ़ाने के लिए धुआ भी किया जा सकता है। फजत वाले पौधों में फलों को पाले से बचाने के लिए, चट्टी वाले बोरे से ढक देना चाहिए।

फूल तथा फल लगना (Flowering & Fruit bearing in Papaya/Papita):-

खेत में ही नर पौधे दिखाई पड़े तुरन्त काटकर खेत से निकाल देना चाहिए। किन्तु परागण हेतु खेत में 10 प्रतिशत नर पौधे अवश्य छोड़ देना चाहिए। पपीते का पौधा 10-14 महीनों के अन्दर फल देना आरम्भ कर देता है।

फलों की तड़ाई एवं उवज (harvesting & Production):-

फल की परिपक्वता को पहचानने के लिए उसके ऊपर सतह पर हल्का सा खरोंच देना चाहिए, रंग में परिवर्तन होने लगे तो समझ लेना चाहिए कि फल पक गया हैं। पपीते के एक पेंड से औसतन 40-50 किलोग्राम फल मिलता है तथा इस तरह से प्रति हेक्टर 40-50 टन उपज प्राप्त की जा सकती है।

तुडाई उपरान्त प्रबन्धन (Post Harvest Management in Papaya/papita) :-

फलों को अलग-अलग कागज में लपेटकर, लकड़ी के बक्से या मजबत फाइबर के गत्ते में रखकर बन्द कर देना चाहिए। बक्से या फाइबर के गत्ते में अन्दर मुलायम कागज का करतन का बिछा दना चाहिए ताकि फल रगड़न आर खराब होने से बच  जाएँ ! पैक करते समय फलों के बीच में धान या गेहूँ का पुआल बिछा देना चाहिए।

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Mango new variety Ambika & Arunika 2020

कीट एवं रोग प्रबन्धन (Insect & Disease control In Papaya/Papita) :

(अ) कीट (Insect):
(1) माहू :-

यह छोटे – छोटे काले व हरे रंग के होते है। यह सतह पर पाये जाते है ! इस प्रकार के कीट पौधों की पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते है तथा विषाण रोगों के फैलाने में वाहक के रुप में कार्य करते है। इसके नियंत्रण के लिए डाइमेंथोएट या 0.04 प्रतिशत मेंटासिस्टाक्स का छिड़काव करना चाहिए।

(2) रेड-स्पाइडर ( Red Spider Control in Papaya/ Papita):-

यह पके फलों व पत्तियों की निचली सतह पर पाया जाता है। इसमें प्रभावित पत्तियाँ पीली एवं चिथड़ी व फल काले या गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए 0.2 % गधक का घोल या 0.06 प्रतिशत डाइमेंथोयेट का छिडकाव करना चाहिए।

(आ) रोग :

1. कवक जनित रोग (Fungal disease of Papaya/Papita)
(1)आद्रगलन (damping off Papaya/Papita) :-

इसका प्रभाव नये अंकरीत पौधों पर होता है तथा पौधे का तना जमीन के पास से सड़ जाता है और पौधा मरझा कर गिर जाता है। बिज को थायरम एग्रोसान जी.एन. या कप्टान (20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) नामक दवाओं से उपचारित कर बोना चाहिए !

पौधशाला में में इस रोग क़े बचाव के लिए बोर्डो मिश्रण (5:5:50) या रिडोमिल (मेंटालाक्सिल) या मेंकोजेब (2.0 ग्राम प्रति लीटर पाना मे) का छिड़काव एक सप्ताह के अन्तराल पर 3-4 बार करना चाहिए।

(2) कली एवं पुष्पवृन्त का सडना (rotting in Papaya/papita) :-

इस रोग के कारण फल तथा कलिका के पास का तना पीला हो जाता है। जो बाद में पूरे फल के तना पर फैल जाता है जिसके कारण फल सिकुड़ जाते है तथा बाद में झड़ जाते है। इसके नियंत्रण के लिए बोर्डोमिश्रण (5:5:50) का 1-5 प्रतिशत या ब्लाइटाक्स 50 (30 ग्राम प्रति लीटर पानी में ) का छिड़काव करें।

(3) जड़ एवं तना विगलन (कोलर रॉट) Papaya collar rot  :-

यह रोग अधिक नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा होता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए पपीता को जल भराव वाले क्षेत्र में नहीं लगाना चाहिए तथा पपीता के बगीचे में जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। तने पर धब्बे दिखई देने की अवस्था में रिडोमिल (मेंटालाक्सिल) या मेंकोंजेब (2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में) का घोल बनाकर पौधों के तने के पास मिट्टी में प्रयोग करना चाहिए।

(4) फलों का सड़ना (एनथ्रक्नोस) :-

इस रोग में फलों के उपर छोटा जलीय धब्बे बन जाता है जो बाद में बढकर पीले या भूरे रंग का हो जाता है। यह रोग फल लगने से लेकर पकने तक लगता है जिसके कारण फल पकने के पूर्व ही गिर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स 50 या मेंकोजेब (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिडकाव करें।

(6) चूर्णी फफुंद (Powdery Fungus) :-

इससे प्रभावित पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसा इकट्ठा हो जाता है जो बाद में सूख जाता है।

2. विषाणु जनित रोग (Viral Disease of Papaya/papita) :
(1) पर्ण कुन्चन (leaf Crushing in Papaya/Papita) :-

इस रोग के कारण शुरु में पौधे का विकास रुक जाता है और पत्तियाँ गुछानुमा आकार की हो जाती है तथा पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है। पत्तियों का ऊपरी सिरा अंदर की तरफ मूड जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला दना चाहिए। यह विषणु रोग सफेद मक्खी और माहु कि वजह से फैलता है। अतः इसकी रोकथाम हेतु मैलाथियान (1.0 मी.ली. प्रति लीटर डाईमेंथोऐट (2.0 मी. ली. प्रति लीटर पानी में) का छिड़काव करें।

(2) रिंग स्पाट (Ring spot of Papaya/Papita):-

इस रोग में पपीते की पत्तियाँ कटी-फटी सी हो जाती हैं तथा हर गाठ पर कटे-फटे पत्ते निकलने लगते हैं। पौधे के तनों एवं फलों पर छोटे गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं। प्रभावित फल का आकार अच्छा नहीं होता है फलत बहत कम होती हैं। इस बीमारी से बचाव के जिए पौधों का रोपण बरसात के बाद करना चाहिए। यह विषाणु रोग भी सफेद मक्खी एवं माहू से फैलता है। अतः इसकी रोकथाम हतु मैलाथियान (1.0 मी. ली. प्रति लीटर पानी में) या डाइमेंथोएट (2.0 मी.ली. प्रति लीटर पानी में) का छिड़काव करना चाहिए।

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4 thoughts on “Papaya/Papita Tree farming In Hindi पपीता की खेती, रोग व समाधान”

  1. राजस्थान रेतीली जमीन पर पपीता की खेती करना चाहते है कृप्या जानकारी उपलब्ध करावें

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