चने की खेती package and practices of gram chickpea in Hindi 2020

gram or Bengal gram, garbanzo or garbanzo bean, Egyptian pea, chana, and chole. Chickpea seeds are high in protein. चना एक बहुत महत्वपूर्ण दलहन फसल है इसकी खेती रबी ऋतु में की जाती है। पूरे विश्व का 70 प्रतिशत भारत अकेला पैदावार करता है। भारत की अनाज वाली फसलों में चने का क्षेत्रफल तथा पैदावार के हिसाब से क्रमशः पांचवा व चौथा स्थान है। चना क्षेत्रफल व पैदावार अन्य दलहनी फसलों की तुलना में सबसे अधिक है। इसमें पाये जाने वाली तत्वों ने इसका महत्व और भी बढ़ा दिया है, इसमें पाये जाने वाले तत्वों में प्रोटीन (213), कार्बोहाइड्रेट (61.5) व वसा (4.5) मात्रा में होते हैं।

चने की खेती कैसे करें, इसकी पैदावार बढ़ाने के तरीके और बीमारियों से बचाव ( Gram chickpea Cultivation )

विभिन्न जलवायु के अनुकूल ही चने की विभिन्न किस्मों का विकास किया गया है। सभी इलाकों में रोगरोधी किस्मों की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न किस्मों को सिफारिश किया गया है।

सिफारिश की गई देशी किस्में एवं विशेषताएं:

1. सी-235: यह किस्म तराई व सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए, दर्मियानी ऊंचाई कुछ ऊपर बढ़ने वाली, मध्यम (145-150 दिनों में), भूरे-पीले रंग के दाने, औसत पैदावार 8.0 शिवटल/एकड़ । इस किस्म में अंगमारी (ब्लाईट) सहनशील परन्तु उखेड़ा रोग लगता है।

2. हरियाणा चना नं.-1 ( HC-1) : बरानी, सिंचिंत व पछेती बिजाई के लिए। कपास व धान के बाद समस्त हरियाणा, बोना व हल्का-हरा तना, हल्की हरी पत्तियां, लम्बी प्रारम्भिक शाखाएं व शेष छोटी, अगेती (135-140 दिनों में), आकर्षक पीले रंग के दाने, औसत पैदावार 8-10 शिवटल/एकड़ । यह किस्म शीघ्र पकने वाली अपेक्षाकृत फलीछेदक का कम आक्रमण, उखेड़ा सहनशील है।

3. हरियाणा चना नं.- 2,3,5 ( Gram HC-2,3,5): हरियाणा के बारानी क्षेत्र को छोडकर सारे सिंचित क्षेत्रों में बोने के लिए सिफारिश, पौधे ऊंचे, कम फैलाव, लगभग सीधे बढ़ने वाले, इसकी पत्तियां चौडी व गहरे हरे रंग की, मध्यम (150160 दिनों में)व दाना मध्यम से मोटा व भूरा-पीले का दाना औसत पैदावार 8-10 विटल/एकड़ । उखेड़ा व जड़गलन के लिए रोगरोधी

4. पी.बी.जी.7 (Gram PBG-7): सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए सिफारिश, पौधे ऊंचे व सीधे, मध्यम (159 दिनों में),दाना मध्यम व भूरे रंग का, औसत पैदावार 8.0 कंशिवटल/एकड़ । उखेड़ा व जड़गलन के लिए हल्का रोगरोधी व अंगमारी के लिए रोग रोधी

5. पी.बी.जी.4 व 3 (Gram PBG-4): ये किस्में बारानी व कम सिंचित क्षेत्रों के लिए, पौंधे सीधे व गहरे हरे रंग के होते हैं। मध्यम (160 दिनों में) दाना मोटा व भूरे -पीले रंग का ! औसत पैदावार 7.2-7.8 विटल/एकड़ । उखेड़ा व जड़गलन के लिए हल्का रोगरोधी व अंगमारी के लिए रोग रोधी !

6. जी.एन.जी. 1958: ( GNG-1958) : हरियाणा के बारानी क्षेत्रों को छोड़कर सभी क्षेत्रों के लिए, सीधे व गहरे हरे रंग के होते हैं। मध्यम (145-150 दिनों में) दाने भूरे-पीले रंग के औसत पैदावार 8.0-10.5 कंविटल/एकड़! उखेड़ा रोग के प्रति रोगरोधी

सिफारिश की गई काबुली किस्में एवं विशेषताएं:

चने की खेती package and practices of gram chickpea in Hindi

1. हरियाणा काबली नं.1 : हरियाणा राज्य के बारानी क्षेत्र छोड़कर सारे क्षेत्रों में, अधिक शाखायें व फली प्रति पौधा, पौधा फैलावदार,मध्यम, दाना मध्यम आकार , गुलाबी सफेद, पकने में अच्छे ! औसत पैदावार 8-10 क्विटल/एकड। अन्य काबली किस्मों से अपेक्षाकृत उखेड़ा रोग नहीं लगता।

2. हरियाणा काबली नं.2 : हरियाणा राज्य के बारानी क्षेत्र छोड़कर सारे क्षेत्रों में, इस किस्म के पौधे बढ़वार में कम सीधे और हल्के हरे पत्ती वाले होते हैं, मध्यम, दाना मोटा आकार का सफेद होता है। औसत पैदावार 7-8 शिवटल/एकड।यह किस्म चने की मुख्य बीमारियों की रोगरोधी किस्म है।

3. एल.552: हरियाणा राज्य के बारानी क्षेत्र छोड़कर सारे क्षेत्रों में इस किस्म के पौधे लम्बे व सीधे होते हैं। मध्यम, दाना मोटा व क्रीमी सफेद रहता है। औसत पैदावार 7-8 क्विंटल/एकड। यह किस्म चने की मुख्य बीमारियों की रोगरोधी किस्म है।

1. बी.जी.1053: हरियाणा राज्य के बारानी क्षेत्र छोड़कर सारे क्षेत्रों में, इस किस्म के पौधे कम सीधे रहते हैं। मध्यम । दाना गोल व क्रिमीय सफेद रहता है। औसत पैदावार 8.0 विटल/एकड। यह किस्म चने की मुख्य बीमारियों की रोगरोधी किस्म है।

चने की बुवाई के लिए भूमि व उसकी तैयारी: (chickpea Gram Sowing & Field Preparation)

चना अच्छे जल निकास वाली दोमट रेतीली तथा हल्की मिट्टी में अच्छा होता है। खारी व कल्लर वाली मिट्टी इसके लिए अच्छी नहीं होती है। ढीली तथा हवादार मिट्टी इसके लिए अच्छी रहती है। जुलाई-अगस्त में डिस्क/मोल्ड बोर्ड हल से गहरी जुताई करें। इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और भूमि की काफी गहराई तक नमी पहुंच जाये। जो वर्षा का अधिकांश पानी आसानी से सोख लेती है। इससे चने की जड़ें आसानी से अधिक गहराई तक चली जाती हैं जो उसकी उपज को बढ़ाने में सहायक होती है।

बीज की मात्रा ( chickpea Gram Seed Rate)

देशी चने के लिए उपयक्त बीज मात्रा 15-16 किलोग्राम प्रति एकड़ है। हरियाण चना नं.3 के दानेमोटे होने के कारण इसका बीज 30-32 किलोग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त है तथा काबली चने के लिए 36 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ ापत है। 25 प्रतिशत बीज की मात्रा बढ़ाकर पछेती बिजाई के लिए उपयोग करें।

बीजाई का समय ( chickpea Gram Sowing Time)

देशी चने की बिजाई का उपयुक्त समय मध्य अक्तूबर है। अगेती बोई गई फसल की बिजाई के समय औसत 30 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होने पर उखेड़ा रोग लग जाता है। अच्छी पैदावार लेने के लिए मध्य अक्तूबर से 30 अक्तूबर तक देशी चने की बुवाई हो जानी चाहिए तथा काबुली चने को बोने का समय अक्तूबर का आखिरी सप्ताह

बीज उपचार ( chickpea Gram Seed Treatment)

चने की फसल में बहुत से कीट व बीमारियां लगती है। इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए बीज उपचार करके ही बोना चाहिए, बीज को कीटों के प्रभाव से बचाने के लिए सबसे पहले फफूंदनाशी उसके बाद कीटनाशी और इसके बाद राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लें । कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब या थायरम की 1.5 से 2 ग्राम मात्रा प्रति एक किलो बीज को उपचारित करने के लिए काफी है। भूमि में दीमक लगने से रोकने के लिए क्लोरोपाइरीफोस 20 ई.सी. की 8 मिलीलीटर मात्रा से एक किलोग्राम बीज का उपचार कर लें। चने की अच्छी पैदावार के लिए बिजाई से पहले बीज को राइजोबियम एवं पी.स.बी. टीके से उपचारित करें। इस उपचार से जड़ों में ग्रन्थियां अच्छी बनती है। राइजोबियम का टीका करने का ढंग इस प्रकार है 50-60 ग्राम गुड़ को 2 कप पानी में घोल लें। फिर इस घोल को एक एकड़ के बीजों में मिला दें। गुड़ लगे बीजों परचने के टीके को डालकर हाथ से मिलाएं ताकि द्रव्य बीजों पर अच्छी तरह से लग जाये। इसके बाद उपचारित बीज को छाया में सुखाकर बीजें। राइजोबियम का टीका हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय,हिसार से माइक्रोबायोलाजी विभाग एवं किसान सेवा केन्द्र से प्राप्त किया जा सकता है।

चने की खेती package and practices of gram chickpea in Hindi

बीजाई की विधि ( chickpea Gram Method of Sowing)

ऐसी भूमि जिसमें ाप्त नमी हो, वहंा चने की बिजाई पंक्तियों में 30 सें.मी. तथा हल्की से मध्यम भूमि में, जहां नमी कम हो वंहा पंक्तियों में 45 सें.मी. की दूरी पर सीड ड्रील या पोरा विधि से करें। चने की बिजाई दोहरी पंक्ति (30/60 सें.मी.) में भी की जाती है। दो पंक्तियों के बीच की दूरी 3. सैं.मी. तथा दोहरी कतारों में आपसी दूरी 60 सैं.मी. की दूरी रखें |बारानी क्षेत्रों में गहरी (7 से 10 सैं.मी.) बिजाई करनी चाहिए। जबकि सिंचित क्षेत्रों में हल्की गहरी (5-7 सैं.मी.) रखें।

खाद व उर्वरक ( Fertilization in chickpea Gram)

सिंचित व असिंचित क्षेत्रों के लिए सिफारिष की गई उर्वरक की मात्रा यूरिया(46) 12 किलो/एकड़ व सिंगल सुपर फॉस्फोरस (163) 100 किलो/एकड़ या डी.ए.पी. (46) 35 किलो/एकड़ के हिसाब से बिजाई के समय या आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायें । सिंचित अवस्था में उपयुक्त पोषक तत्वों के साथ 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ प्रयोग करें।

जस्ते की कमी के लक्षण व उपचार

कमी के लक्षण पुरानी संयुक्त पत्तियों पर विशेषकर मुख्य प्ररोहों की पत्तों की, नाकों की हरिमाहीनता के रूप में आरम्भ होते हैं । ये लक्षण वृद्धि के 50-60 दिन बाद विकसित होते हैं। पत्रकों को प्रीाावित और अप्रभावित भागों में बांटने के लिए अंग्रेजी के ट आकृति की पट्टी बन जाना जस्ते की कमी का एक विशेष लक्षण है।

उपचार

भूमि में जस्ते की कमी है तब आखिरी जुताई से पहले 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालें । यह मात्रा आने वाली 2-3 फसलों के लिए काफी है।

सिंचाई ( Irrigation in chickpea Gram)

चने की बिजाई सिंचित व असिंचिंत दोनों क्षेत्रों में की जाती है। परन्तु सिंचाई करने से बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं। अतः जहां हो सके, फूल आने से पहले, बिजाई के 45-60 दिन के बीच एक सिंचाई करें। अन्य सिंचाई तब करें यदि फसल को सिंचाई की आवश्यकता हो।

निराई-गुड़ाई

चने की अच्छी पैदावार लेने के लिए 2 निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। पहली गुड़ाई बिजाई से 25-30 दिन बाद तथा दूसरी 45-50 दिन पर करें। पछेती बिजाई में दूसरी गुड़ाई 55-60 दिन पर करें।

खरपतवार नियंत्रण ( Weed Control in chickpea Gram)

1 एलाक्लोर 50 ई.सी. की 3-4 लीटर प्रति हैक्टेयर बुवाई के तुरन्त बाद (तीन दिन के अन्दर)छिड़काव करें।

2 फ्लूक्लोरोलिन 45 प्रतिशत ई.सी. की 2.2 लीटर प्रति हैक्टेयर बुवाई के पहले छिड़काव करें।

3 पेंडीमिथलीन 30 ई.सी. की 3.3 लीटर प्रति हैक्टेयर बुवाई के बाद (तीन दिन के अन्दर)छिड़काव करें।

चने की खेती package and practices of gram chickpea in Hindi

चने के रोगों का एकीकृत प्रबन्धन ( Disease Control in chickpea Gram)

खडी फसल पर प्रमुख रोग: उकठा रोग, मूल विगलन, ग्रीवा गलन, तना विभाजन एवं एस्कोकाइटा ब्लाइट।

1 गर्मियों में मिट्टी पलट हल से जुताई करने से मृदा जनित रोगों का नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।

2 जिस खेत में उकठा रोग अधिक लगता हो उसमें 3-4 वर्ष तक चने की फसल नहीं लेनी चाहिए।

3 बुवाई से पूर्व बीज को 4.0 ग्राम ट्राईकोडरमा पाउडर से शोधित कर लेना चाहिए।

4 समय पर रोग रोधी/सहिष्णु प्रजातियों के प्रमाणित बीज की बुवाई करनी चाहिए। चने की उकठा रोधी प्रजातियों का ही चयन करें।

5 ट्राईकोडरमा पाउडर की 2.5 कि.ग्रा. मात्रा को 60-75 कि.ग्रा., गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई करने से पूर्व खेत में मिलाने से मृदा जनित रोगों जैसे उकठा, ग्रीवागलन, मूल विगलन तथा तना विगलन आदि रोगों के प्रबन्धन करने में सहायता मिलती है।

6 एस्कोकाइटा ब्लाइट रोग की रोकथाम के लिए शुरूआती लक्षण दिखाई देते ही कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू, पी. (कवक नाशी) की 3 किग्रा. मात्रा प्रति हैक्ट.500-600 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार करें।

चने के कीटों का एकीकृत प्रबन्धन ( Insect Pest management in chickpea Gram)

1 समय से बुवाई करनी चाहिए।

2 छिटपुट बुवाई नहीं करनी चाहिए।

3 थोड़ी-थोड़ी दूर पर सूखी घास के छोटे-छोटे ढेर को रख कर कटुआ कीट की छिपी हुई इंडियों को प्रातः खोजकर मार देना चाहिए।

4 चने के साथ अलसी,सरसों, गेहूं या धनियों की सह फसली खेती करने से फली बेधक कीट से होने वाली हानि कम हो जाती है।

5 खेत के चारो ओं एवं लाइनों के मध्य अफ्रीकन जाइन्ट गेंदे को ट्रैप क्राप के रूप में प्रयोग करना चाहिए।

6 प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 बर्ड पर्चर लगाना चाहिए।

7 फूल एवं फलियां बनते समय सप्ताह के अन्तराल पर निरीक्षण अवश्य करना चाहिए।

8 फली बेधक के लिए 5 गंधपाश प्रति हैक्टेयर की दर से 50 मीटर की दूरी पर लगाकर भी निरीक्षण किया जा सकता है।

निरीक्षण में (कटुआ कीट, फलीबेधक एवं कूबड़ कीट) किसी भी कीट के आर्थिक क्षति स्तर पर पहुंचने पर निम्नलिखित कीट नाशियों में से किसी एक को उनके सामने लिखित मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से बुरकाव अथवा 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

क्यूनालफास 25 ई.सी.का 2.0 लीटर या मैलाथियान 50 ई.सी. 2.0 लीटर या फेनवेलरेट 20 ई.सी. का 1 लीटर या फेनवेलरेट 0.4 प्रतिशत धूल 25 कि.ग्रा. या आवश्यकता पड़ने पर दूसरा छिड़काव / बुरकाव करें। एक ही कीटनाशी का दो बार प्रयोग न करें।

उपज बढ़ाने सम्बन्धी संकेत:

उन्नत किस्मों का प्रयोग करें।

दीमक की रोकथाम के लिए बीज का उपचार अवष्य करें।

चने के बीज को राइजोबियम बसीका लगाकर सही ढंग से समय पर बिजाई करें।

सिफारिष की गई उर्वरक तथा राइजोबियम टीके का प्रयोग अवष्य करें।

जरूरत से ज्यादा सिंचाई न करें ।

खरपतवारों की समय पर रोकथाम करें।

2 बरानी क्षेत्रों में चने में फूल आने के समय 2 प्रतिषत यूरिया का स्प्रे करें। 10 दिन बाद फिर एक स्प्रे करें। ऐसा करने से पैदावार बढ़ती है।

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