सरसों राया और तोरिया की उन्नत खेती
फसलों के इस समूह में तोरिया, भूरी सरसों, पीली सरसों, राया तथा तारामीरा आते है । राया सिंचित व बरानी दोनों क्षेत्रों में उगाया जाता है। साधारणतया इनकी पैदावार मौसम की स्थितियों पर निर्भर करती हैं।

जलवायु :-
सरसों रबी मौसम की फसल है जिसे ठन्डे शुष्क मौसम और चटक धुप वाले दिन कि आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा वाले स्थान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है अधिक तेल उत्पादन के लिए तोरिया और सरसों को ठंडा तापक्रम साफ खुला मौसम और पर्याप्त मृदा नमी की आवश्यकता पड़ती है। फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से सरसों की फसल पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इस मौसम में कीटों और बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है। तोरिया की फसल पाले के प्रति अधिक संवेदी होती है। अत: इसे जल्दी बोया जाता है तथा पाला आने के संभावित समय से पहले काट लिया जाता है।
भूमिः
तोरिया और सरसों कि खेती के लिए मध्यम उपजाऊ उदासीन अथवा हल्की क्षारीय भूमि उपयुक्त होती है। हल्की दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोतम रहती है फसल की अच्छी वृद्धि व विकास के लिए उदासीन पी.एच. वाली मृदा अच्छी होती है।
उन्नत किस्में:
आरएच 725 :-
एचएयू में विकसित सरसों की नई किस्म आरएच 725 अधिक उपज के कारण किसानों के लिए बहुत लाभदायक हो सकती है। यह प्रजाति 136 से 143 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी फलियां लंबी होती हैं ! फलियों में दानों की संख्या 17-18 तक है तथा दानों का आकार मोटा है। इसकी फलियों वाली शाखाएं लंबी होती हैं और उनमें फुटाव भी ज्यादा है। सरसों की ये वैरायटी किसानो द्वारा काफी पसंद भी की जा रही है। प्रति एकड़ पैदावार का अनुमान RH 0749 से ज्यादा का लगाया जा रहा है !
आर एच 0749 :
इस किस्म की सन् 2013 में भारतवर्ष के जोन-2 (हरियाणा, पंजाब, दिल्ली व राजस्थान के कुछ क्षेत्र) के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए सिफारिश की गई है। यह 145-148 दिनों में पकती है व इसकी मध्यम ऊँचाई होती है। इस किस्म की फलियां लंबी व मोटी होती हैं व दाने का आकार भी बड़ा (5.8 ग्राम/1000 बीज) होता है। इसमें तेल मी मात्रा 39-40 प्रतिशत व इसकी औसत पैदावार 10.0-11.5 क्विटल/एकड़ है।

आर.एच 30 :
पछेती बिजाई में भी यह अन्य किस्मों से अधिक पैदावार देती है। इसको नवम्बर के अन्त तक बोया जा सकता है। इसका बीज मोटा होता है (5.5 से 6.0 ग्राम/1000 बीज। पकने के समय फलियां नहीं झड़तीं। मिश्रित खेती के लिए यह एक उत्तम किस्म है। यह 135 से 140 दिन में पकती हैं। इसकी औसत उपज 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है तथा तेल अंश 40 प्रतिशत है।
टी-59 (वरूणा) :
यह किस्म कानपुर (उ.प्र.) में विकसित की गई है। यह 140-142 दिन में पकती है। इसका बीज मोटा होता है (5 से 5.5 ग्राम प्रति 1000 बीज) और पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है व तेल अंश 40 प्रतिशत है।
आर एच 8113 (सौरभ) :
यह किस्म 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। यह लम्बी बढ़ने तथा घनी शाखाओं वाली किस्म है जिसके नीचे के पत्ते चौड़े, धारियां लम्बी तथा मध्य-शिरा चौड़ी होती है। इसकी औसत उपज 9-10 क्विंटल प्रति एकड है। बीज मध्यम आकार के (बीज भार 3.5 ग्राम/ 1000 दाने) तथा गहरा-भूरा रंग लिए होते हैं जिनमें 40 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। इस फिल्म की विशेषता यह है कि आल्टरनेरिया, सफेद रतुआ तथा डाऊनी मिल्ड्यू रोगों की मध्यम प्रतिरोधी है।
आर.बी. 50 :
इस किस्म को 2009 में भारतवर्ष के जोन-2 (हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान के कुछ हिस्सों) में बारानी क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति ने विमोचित किया है। इसकी फलियां लम्बी एवं मोटी है। यह अधिक बढ़ने वाल (194-207 सें. मी. मध्यम समय में पकने वाली (146 दिन) एवं मोटे दाने (5.5-6.0 ग्राम/1000 दाने) वाली किस्म है। समय पर बिजाई से बारानी क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 7.2 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसमें तेल अंश 39 प्रतिशत है।
आर.एच. 8812 (लक्ष्मी) :
यह अधिक उपज देने वाली किस्म है इस किस्म की पत्तियां छोटी, शाखाओं का रुख ऊपर की ओर व तना एवं शाखायें चमक रहित होती है। फलियां मोटी, बीज मोटे तथा काले रंग के होते है। इसकी औसत पैदावार 9-10 क्विंटल प्रति एकड़ हैं यह किस्म 142-145 दिन में पकती है तथा तेल अंश 40 प्रतिशत है।
आर एच 781 :
इस किस्म की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं – पकने में 140 दिन, ऊँचाई मध्यम (180 सैंमी.) भरपूर फुटाव व टहनियां, मध्यम आकार का दाना (4.2 ग्राम/1000 बीज) तथा तेल अंश 40 प्रतिशत। इसकी औसत पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है तथा यह पाला व सर्दी की सहनशील है।

आर एच 819 :
यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। यह लम्बी (226 सैं.मी.) मध्यम समय (148 दिन) में पकने वाली व मध्यम आकार के दानों(4.5 ग्राम/1000 बीज) वाली किस्म है। इसका तेल अंश 40 प्रतिशत है। इसके पत्ते गहरे रंग के, टहनियां भरपूर व छोटी होती हैं। बारानी क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ है जो कि आर एच 30 व वरूणा से क्रमश: 10 तथा 30 प्रतिशत अधिक है।
आर एच 9304 (वसुन्धरा):
इस किस्म को वर्ष 2002 में केन्द्र ने भारतवर्ष में जोन-3 (उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों) के लिए अनुमोदित किया है । इस किस्म की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं – पकने में 130-135 दिन, ऊँचाई मध्यम (180-190 सै.मी.) भरपूर फुटाव व टहनियां, मोटे दानों वाली(5.6 ग्राम/1000 बीज) तथा तेल अंश 40 प्रतिशत। इसकी औसत पैदावार 9.5-10.5 क्विंटल प्रति एकड़ है तथा पकने के समय इसकी फलियां नहीं झड़ती तथा उच्च तापमान के प्रति मध्यम सहनशील है।
आर एच 9801 (स्वर्ण ज्योति) :
इस किस्म को लाईन आर.सी. 1670 से विकसित किया गया है तथा केन्द्र ने देश के जोन-3 (उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों) के लिए वर्ष 2002 में अनुमोदित किया है। इसकी औसत उपज 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है व इसको नवम्बर के अन्त तक भी बीजा जा सकता है। यह 125-130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है। इसका दाना मध्यम आकार का (4.0 ग्राम/1000 बीज) है पकने के समय इसकी फलियां नहीं झड़ती।
आर एच 0406 :
इस किस्म का भारतवर्ष के जोन-2 (हरियाणा, पंजाब, दिल्ली व राजस्थान के कुछ क्षेत्र) के बारानी क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए अनुमोदन सन् 2012 में किया गया है। इस किस्म की ऊँचाई मध्यम है व यह पकने के लिए 142-145 दिन लेती है। यह किस्म मोटे दानों वाली (5.5 ग्राम/1000 बीज) है एवं इसमें फलियों की स्थिति में झुकाव प्रतिरोधकता भी है। इस किस्म में तेल अंश 39 प्रतिशत व इसकी औसत उपज 8.5 -9.5 क्विंटल/एकड़ है। यह किस्म सिंचित अवस्था में भी अच्छी पैदावार दे देती है।
आर बी 9901 (गीता):
यह किस्म भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान के कुछ हिस्सों में बारानी क्षेत्रों के लिए ‘केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति’ द्वारा दिसम्बर 2002 में विमोचित की गई है। इसके पौधों की फलियों में दाने चार पंक्तियों में होते हैं। यह किस्म समय पर बिजाई करने पर बारानी क्षेत्रों में अन्य सिफारिश की गई किस्मों से अधिक उपज देती है। यह किस्म 140-147 दिन में पक कर 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ औसत उपज देती है। इस किस्म के दाने मोटे होते हैं और इनमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है। यह किस्म सफेद रतुआ के लिए मध्यम रोधी है।

भूरी सरसों हरियाणा-1:-
हरियाणा में खेती के लिए यह किस्म 1966 में दी गई थी। यह लगभग 136 दिन में पकती है। इसकी प्रति एकड़ औसत पैदावार 5 क्विंटल है व तेल की मात्रा 45 प्रतिशत है।
वाई एस एच 0401 :
इस किस्म को 2008 में सम्पूर्ण भारतवर्ष के पीली सरसों बोने वाले क्षेत्रों के लिए एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए समय पर बिजाई के लिए अनुमोदित किया गया है। यह कम अवधि (115-120 दिन) में पकने वाली व अधिक तेल मात्रा (45 प्रतिशत) वाली किस्म है। इसकी औसत पैदावार 6.5-7.5 क्विटल प्रति एकड़ है।
तारामीरा
टी-27 :
यह किस्म लगभग 150 दिन में पकती है। औसत पैदावार 2.5 क्विंटल प्रति एकड है व तेल अंश 32 प्रतिशत है। बारानी क्षेत्रों के लिए यह किस्म वरदान है।
तोरिया
संगम :
यह संश्लिष्ट किस्म है। यह लगभग 112 दिन में पक जाती है और अधिक उपज देती है (प्रति एकड़ 6-7 क्विंटल) व तेल अंश 44 प्रतिशत है।
टी एल 15 :
इसके पौधे की ऊँचाई मध्यम होती है। प्राथमिक तथा द्वितीय शाखायें बहुत अधिक होती हैं जिनमें पर्याप्त फलियाँ लगती हैं। बीज बड़े आकार के भूरे रंग के होते हैं जिनमें 44 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। यह किस्म 85-90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। यह तोरिया – गेहूँ फसल-चक्र अपनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ है।
टी एच 68 :
यह पकने में लगभग 90 दिन लेती है। यह अगेती किस्म है। इसके पौधे की ऊंचाई मध्यम (107 सैं. मी.) है। इसका बीज छोटा होता है (3.2 ग्राम / 1000 बीज) तथा तेल अंश 44 प्रतिशत है। इस किस्म के कुछ पौधों की फलियां नीचे झुक जाती है। यह तोरिया – गेहूँ फसल – चक्र के लिए सर्वोत्तम किस्म है। इसकी औसत पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ है जो लगभग संगम किस्म के बराबर है।
टी.एल.-17 (2011) :
इसके पौधे की ऊँचाई मध्यम होती है शाखायें बहुत अधिक होती है जिनमें पर्याप्त फलियां लगती है बीज बड़े आकार के भूरे रंग के होते है जिसमें 42.0 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है यह किस्म 85-90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है इसकी औसत उपज 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ है।

मिट्टी और जलवायु :
तोरिया तथा सरसों हल्की से लेकर भारी दोमट मिट्टी में अच्छी होती है।
भूमि की तैयारी :
असिंचित क्षेत्रों में जहाँ सरसों की खेती खरीफ के खाली खेतों में की जाती है यहाँ प्रत्येक अच्छी वर्षा के बाद डिस्क हेरोइंग किया जाता है ताकि नमी एकत्रित की जा सके। जब वर्षा समाप्ति की ओर हो तब प्रत्येक हैरोइंग के बाद पाटा लगाया जाये जिससे खेत महीन तैयार हो।
बीज एवं बुवाई :
किसी भी फसल में अगर समय से बुवाई कर दी जाये तो समझना चाहिए कि 50 प्रतिशत सफलता मिल गयी। अच्छी उपज लेने के लिए साफ और प्रमाणित बीज होना अनिवार्य है। देर से बोई गई फसल की उपज कम मिलती है। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए बुवाई के समय तापक्रम 26-30 डिग्री सेल्सियस हो। यदि बुवाई के समय तापक्रम अधिक है तो बुवाई में देरी कर देनी चाहिए।
बीज उपचार :
बीज जनित रोग और भूमि जनित रोग का बीज उपचारित करने से छुटकारा मिलता है।
बुवाई के तरीके :
शुष्क दशाओं में अच्छी फसल लेने के लिए पौधों की उचित एवं वांछित पौध संख्या बनाये रखना वांछित पौध संख्या बनाये रखना वास्तव में बाधा है। इस समस्या के निवारण हेतु जहाँ तक संभव हो बीज को रिजर सीडर द्वारा पंक्तियों में बोया जाये। बुवाई के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज उर्वरक के संपर्क में न आये अन्यथा अंकुरण प्रभावित होगा। इसके लिए बीज को 4-5 से भी गहरा तथा उर्वरक को 7-10 से.मी. गहरा डाला जाये। अच्छे अंकुरण एवं उचित पौध संख्या को सुनिश्चित करने के लिए बुवाई से पूर्व बीजों को पानी में भिगोकर बोया जाये। इसके लिए सही तरीका यह होगा कि भीगे बोरे में बीजों को रखकर रात भर ढक दिया जाये या गीली मिट्टी में रख सकते हैं। बुवाई के तुरंत बाद यदि वर्षा हो जाये तब ऐसी स्थिति में पुनः बुवाई कर देनी चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में 10-12 प्रतिशत नमी होनी चाहिए।
सिंचाई :
सरसों वर्ग की फसलों के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है। तोरिया, पीली सरसों, सरसों लाहा में दो सिंचाई लाभदायक होती है जिन्हें बुवाई के बाद 15, 33, 50, 63, व 79 दिनों पर दिया जाये इसकी जल मांग 400 मिमी या 40 से.मी. है पहली दो सिंचाई हल्की होनी चाहिए तथा बाद की सिंचाई में 75 मि.मी. पानी प्रत्येक सिंचाई में हो यह प्रयोग द्वारा देखा गया है कि पहली सिंचाई देर से कि जाये जिससे शाखाएं फूल और फलियाँ अधिक बन्ती है। पहली सिंचाई का सबसे अच्छा समय फूल लगने पर बुवाई के 25-30 दिन बाद होता है और दूसरी सिंचाई फली की अवस्था में दी जाये। सिंचाई पर्याप्त रहती है यदि जाड़ो में एक वर्षा हो जाये तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
खरपतवार नियंत्रण :
तोरिया फसल के खेती की तैयारी करके बिजाई से पूर्व ट्राईफलूरेलीन (48 ई.सी.) को 400 एम एल प्रति एकड से खेत की आखरी जुलाई के बाद स्प्रे करना चाहिए। जब फसल 20-25 दिन की हो जाये तब तक निराई गुड़ाई खुरपी द्वारा किया जाये। जरुरत पड़ने पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए जिससे फसल अच्छी और तंदुरुस्त होगी।

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सिंचाई :
राया व सरसों पर सिंचाई का अच्छा असर होता है तोरिया, सरसों और राया में दो सिंचाइयां – एक फूल निकलने के समय और दूसरी फलियां लगते समय – ज्यादा पैदावार देती हैं। यदि पानी की कमी हो तो फूल आते वक्त एक सिंचाई बहुत ही लाभदायक है। तारामीरा में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
निराई तथा गोड़ाई :
तोरिया में व्हील हैंड हो से बिजाई के तीन सप्ताह बाद एक गोड़ाई तथा सरसों व राया में दो गोड़ाइयां बिजाई के तीन तथा पांच सप्ताह बाद अवश्य करें।
सरसों में मरगोजा परजीवी खरपतवार का नियंत्रण :

मरगोजा (ओरोबैंकी) परजीवी खरपतवार के नियंत्रण के लिए राऊंडअप ग्लाईसेल(ग्लाईसोफेट 41 प्रतिशत एस.एल.) की 25 मि.ली. मात्रा प्रति एकड़ बिजाई के 25-30 दिन बाद व 50 मि.ली. मात्रा प्रति एकड़ बिजाई के 50 दिन बाद 125-150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव हमेशा फ्लैट फेन नोजल व नैपसैक स्प्रेयर से ही करे। अगर इस खरपतवारनाशक का सही समय पर व सही मात्रा में उपयोग न किया जाए तो इससे सरसों की फसल को भी नुकसान हो सकता है। इसलिए फसल पर दोबारा ज्यादा मात्रा में छिड़काव न करें। ध्यान रखें कि छिड़काव के समय या बाद में खेत में नमी का होना जरूरी है। इसके लिए छिड़काव से 2-3 दिन पहले या बाद में सिंचाई अवश्य करें। सुबह के समय पत्तो पर ओस नमी बनी होती है तब भी छिड़काव न करें।
आरा मक्खी :
इसकी गिडारे सरसों कुल की सभी फसलों को हानि पहुंचाती है। गिडारें काले रंग की होती है जो पत्तीयों को बहुत तेजी से किनारों से अथवा विभिन्न आकार के छेद बनाती हुई खाती है जिससे पत्तियां बिलकुल छलनी हो जाती है।
बालदार गिडार :
इस गिडार के शरीर का रंग पीला अथवा नारंगी होता है। परन्तु सर और पीछे का भाग काला होता है तथा शरीर का रंग पीला अथवा नारंगी होता है। परन्तु सर और पीछे का भाग काला होता है तथा शरीर पर घने काले वाल होते हैं।
माहू :
यह छोटा और कोमल शरीर वाला, हरे मटमैले भूरे रंग का कीट है जिसके झुण्ड पत्तियों फूलों डंठलों फलियों – आदि पर चिपके रहते है एवं रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते हैं।