उन्नत किस्में (groundnut/peanut variety)
मूंगफली की तीन अलग-अलग प्रजातियां होती हैं। हल्की मिट्टी के लिये फैलने वाली और भारी मिट्टी के लिये झुमका किस्म के पौधों वाली जातियां है, जो भूमि के अनुसार बोने के काम में ली जाती है।
कम फैलने वाली या फैलने वाली प्रजाति के पौधों की शाखायें फैल जाती हैं तथा मूंगफली दूर-दूर लगती है। जबकि झुमका प्रजाति की फलियां मुख्य जड़ के पास लगती है और इनका दाना गुलाबी या लाल रंग का होता है।
इसकी पैदावार फैलने वाली प्रजाति से कम आती है, परन्तु ये जल्दी पकती है। उपयुक्त किस्मों की विशेषताओं का विवरण निम्न प्रकार है।
एच एन जी 10
यह अर्द्ध विस्तारी किस्म, अच्छी वर्षा या जहां जीवन रक्षक सिंचाई जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी पत्तियां गहरी हरी तथा पौधे मध्यम फैलाव वाले होते हैं।
यह किस्म 125-130 दिन में पक कर लगभग 20 क्विण्टल प्रति हैक्टर उपज देती है। इसकी फली में औसतन दो दाने होते हैं। 100 दानों का वजन 45 ग्राम के लगभग होता है तथा इनमें तेल की मात्रा 50-51 प्रतिशत होती है।
टी जी 37 ए
यह एक गुच्छेदार, मध्यम ऊँचाई तथा सीधी बढ़ने वाली किस्म है जो 120-125 दिन में पक कर लगभग 20 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर उपज देती है। इसके दाने गुलाबी रंग के होते हैं तथा 100 दानों का वजन 48 ग्राम होता है। इनमें 48 प्रतिशत तेल तथा 23 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है।
जी जी 20
यह एक अर्द्ध विस्तारी किस्म है जो 115 से 120 दिन में पक जाती है इसकी फली में समान्यतया 2 से 3 दाने होते हैं। 100 दानों का वजन 42 ग्राम के लगभग तथा दानों में 48 प्रतिशत तेल होता है। इसकी औसतन उपज 25 से 30 क्विण्टल होती है।
टी जी 39
इस गुच्छे वाली किस्म को भाभा अणु अनुसंधान केन्द्र, मुंबई तथा राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर ने संयुक्त रूप से विकसित किया। इसके दाने बड़े होते हैं तथा यह किस्म लगभग 115-120 दिन में पक जाती है। इसमें तना गलन तथा पिलिया रोग भी कम होते है। इसकी औसत उपज 25-30 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है।
गिरनार-2
मूंगफली अनुसंधान निदेशालय जूनागढ़ (गुजरात) द्वारा विकसित यह किस्म मुख्यतः खरीफ मौसम के लिये उपयुक्त है। इस किस्म के दाने बड़े आकार के तथा सौ दानों का भार लगभग 62 ग्राम होता है। इसकी औसत उपज 29 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसके दानों में तेल की मात्रा 51 प्रतिशत बतायी गई है। यह किस्म रतुआ रोग के प्रति सहिष्णु बतायी गई है।
एच.एन.जी. 123
कृषि अनुसंधान उप केन्द्र हनुमानगढ़ द्वारा विकसित यह किस्म गुच्छानुमा प्रकार की है। इस किस्म की औसत उपज 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा दानों में तेल की मात्रा 49 प्रतिशत तक बतायी गई है।
आर.जी. 425
राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा द्वारा विकसित यह किस्म विशेषतः राजस्थान राज्य के लिये खरीफ के मौसम के लिये निस्तारित की गई है। इस किस्म की औसत उपज 18-36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा दानों में तेल की मात्रा 48 प्रतिशत पायी जाती है। यह किस्म सूखे के प्रति व कॉलर गलन रोग के प्रति प्रतिरोधी बतायी गई है।
आर जी 510
वर्जिनियां एक प्रकार की यह किस्म विस्तारी वर्ग की है। इसके दाने मोटे व 100 दानो का वजन लगभग 65-68 ग्राम होता है इसकी औसत 28 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म कोलररोट स्टेमरोट लीफ स्पॉट आदि रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। तथा थ्रिप्स, जैसिड व ग्रासहॉपर जैसे कीड़ों के प्रति सहिष्णु भी है।
खेत की तैयारी
मूंगफली विभिन्न प्रकार के मिट्टियों में उपजाई जा सकती है। रेतीली दोमट एवं भारी मटियार दोमट भूमि में अलग-अलग जाति की मूंगफली बोई जाती है।
एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में देशी हल से या हैरा से 2-3 बार खेत की जुताई करें, ताकि भूमि भुरभुरी हो जाये इसके बाद पाटा चला कर बुवाई के लिये खेत तैयार करें।

भूमि उपचार
भूमि उपचार भूमिगत कीड़ों एवं दीमक की रोकथाम के लिये बुवाई से पूर्व भूमि उपचार करना आवश्यक है। जहां सफेद लट का विशेष प्रकोप हो वहां सफेद लट की रोकथाम हेतु की गई सिफारिश अपनानी चाहिये।
दीमक का नियंत्रण उन्हीं कीटनाशकों से हो जायेगा। जिन क्षेत्रों में केवल दीमक का प्रकोप है वहां दीमक की रोकथाम हेतु क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व मिलाना चाहिये।
दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे सूखे डंठल आदि इकट्ठे कर हटा देना, कच्चा खाद का प्रयोग न करना आदि काफी सहायक होते हैं।
सफ़ेद लट नियंत्रण (White Grub control in groundnut)
खरीफ की अधिकांश फसलों में सफेद लट का प्रकोप होता है। इसकी प्रौढ़ अवस्था (बीटल) व लट दोनों नुकसान करती हैं।
प्रौढ़ कीट (भृंग नियंत्रण)
मानसून या इससे पूर्व की भारी वर्षा एवं कुछ क्षेत्रों के खेतों में पानी लगने पर जमीन से भृंग का निकलना शुरू हो जाता है। भृंग रात के समय जमीन से निकलकर परपोषी वृक्षों पर बैठते हैं। परपोषी वृक्ष अधिकतर खेजड़ी, बेर, नीम, अमरूद एवं आम आदि है।
भृंगो का निकलना 4 से 5 दिन तक चालू रहता है। सफेद लट से प्रभावित क्षेत्रों में परपोषी वृक्षों पर, भृंग रात में विश्राम करते है।
ऐसे वृक्षों को रात में छांट लेवें और दूसरे दिन मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. 25 मिली लीटर या क्यूनॉलफास 25 ई.सी. 36 मिली लीटर प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर इन्हीं वृक्षों पर छिड़काव करें। भुंग निकलने के तीन दिन बाद अंडे देना शुरू होता है इसलिये तुरन्त छिड़काव लाभदायक है।
जहां वयस्क भृंग को परपोषी वृक्षों से रात में पकड़ने की सुविधा हो वहां भृंगो के निकलने के बाद करीब 9 बजे रात्रि को बांसों की सहायता से परपोषी वृक्षों पर बैठे भृंगो को हिलाकर नीचे गिराये एवं एकत्रित कर मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर (एक भाग मिट्टी का तेल एवं 20 भाग पानी) नष्ट करें।
लटों वाली अवस्था में नियंत्रण –
क्यूनालफॉस 5 प्रतिशत कण या कारबोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत कण या सेवीमोल 4 प्रतिशत कण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से काम में लेवें ।
खड़ी फसल में सफेद लट नियंत्रण के लिये चार लीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देना चाहिये।
यह उपचार मानसून की वर्षा के 21 दिन के आसपास/भृगों की भारी संख्या के साथ ही खड़ी फसल में करें।
मित्र फफूंद द्वारा दीमक नियंत्रण
10 किलो मित्र फंफूद बावेरिया बेसियाना या मेटारिजियम एनिसोपली पाउडर को प्रति हैक्टेयर की दर से 125 किलो गोबर की खाद में कल्चर करके बुवाई पूर्व खेत में डालें।
उर्वरक
मूंगफली में प्रति हैक्टेयर 60 किलो फास्फोरस और 15 किलो नत्रजन बुवाई के पहले ऊर कर देवें। सिंचित क्षेत्रों में अन्तिम जुताई से पूर्व भूमि में प्रति हैक्टेयर 250 किलो जिप्सम मिलावें फास्फोरस तत्व की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट द्वारा किया जाना उचित रहता है।
मूंगफली की बड़े दानों वाली किस्मों से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिये नत्रजन 20 कि.ग्रा. एवं फास्फोरस 75 कि.ग्रा./हैक्टेयर के साथ 7.5 टन गोबर की देशी खाद देवें।
बीज उपचार (Groundnut seed treatment)
फफूंदनाशी से उपचार :- बुवाई से पहले प्रति किलो बीज में 3 ग्राम थाईरम या 2 ग्राम मैन्कोजेब या कार्बेण्डाजिम या कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + टीएम टीडी 37.5 प्रतिशत ( 3 ग्राम प्रतिकिलो बीज) दवा मिलाकर उपचारित करें।
कीटनाशी से उपचार
सफेद लट की रोकथाम के लिये प्रति 40 किलो बीज को एक लीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. या क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. की दर से उपचारित करें।
दीमक के लिये बीज को 4-5 मिलीलीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्य.एस. 5.0 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से उपचारित करके बोयें
या मित्र फफूंद बावेरिया बासियाना या मेटारिजियम एनिसोपली (कोई एक) से 10 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। फंफूदनाशी, कीटनाशी और राईजोबियम कल्चर से बीजोपचार उपर्युक्त क्रम में ही करें ।
बीज दर एवं बुवाई
झुमका (गुच्छेदार) किस्म का 100 किलो बीज (गुली) प्रति हैक्टेयर बोयें। झुमका किस्मों में कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेन्टीमीटर रखें।
मूंगफली की झुमका किस्मों ( टी जी 39, टी जी 37 ए) की बुवाई का उचित समय मध्य जून है। फैलने वाली (अर्द्ध विस्तारी एवं विस्तारी) किस्म का 60-80 किलो बीज प्रति हैक्टेयर बोयें। फैलने वाली किस्मों में कतार से कतार की दूरी 40-45 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेन्टीमीटर रखें।
मूंगफली की फैलने वाली किस्मों की बुवाई का सही समय जून के प्रथम से दूसरे सप्ताह तक है।
सिंचाई एवं निराई गुड़ाई
सूखा पड़ने पर आवश्यकतानुसार 1-2 सिंचाई खासतौर पर फूल आने और दाना बनते समय अवश्य करें। एक ही सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध हो तो इस सिंचाई को 55-75 दिन की अवधि में देवें। खेत में खरपतवार निकालते रहें।
30 दिन की फसल होने पर निराई गुड़ाई पूरी कर लेवें। बुवाई के एक माह बाद झुमका किस्म के पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ायें। जमीन में सुइयां बनना शुरू होने के बाद गुड़ाई बिल्कुल न करें।
मूंगफली की फसल में रासायनिक तरीके से खरपतवार नियन्त्रण हेतु 1.0 किलोग्राम पेंडीमिथालिन प्रति हैक्टेयर को 600 लीटर पानी में घोलकर कट नोजल द्वारा मूंगफली उगने से पहले ( बुवाई के दूसरे-तीसरे दिन) छिड़काव करें तथा उसके बाद 20 दिन की फसल अवस्था पर एक हल्की निराई-गुड़ाई भी करें।

कातरा :
कातरा नियंत्रण खरीफ में खास तौर से दलहनी फसलों में कातरे का प्रकोप होता है। कीट की लट वाली अवस्था ही फसलों को नुकसान करती है। समन्वित कीट प्रबन्धन प्रभावी रहता है।
कातरे के पतंगे का नियंत्रण
मानसून की वर्षा होते ही कातरे के पतंगों का जमीन से निकलना शुरू हो जाता है। यदि इन पतंगों को नष्ट कर दिया जाये तो फसलों में कातरे की लट का प्रकोप कम हो जाता है। इसकी रोकथाम प्रकाश पाश के उपयोग से सम्भव है जिसके लिये निम्न प्रकार उपाय अपनायें।
• पतंगों को प्रकाश की ओर आकर्षित करने हेतु खेत की मेड़ों पर, चरागाहों व खेतों में गैस लालटेन या बिजली का बल्ब जलायें तथा इनके नीचे मिट्टी के तेल मिले पानी की परात रखें ताकि रोशनी पर आकर्षित पतंगे पानी में गिर कर नष्ट हो जायें।
खेतो में घास कचरा जलाये :- जगह-जगह पर घास व कचरा एकत्रित कर जलायें, जिससे पतंगे रोशनी पर आकर्षित हो एवं जल कर नष्ट हो जायें।
कातरे की छोटी अवस्था खेतों के पास उगे जंगली पौधे एवं जहां फसल उगी हई हो वहां पर अण्डों से निकली लटों एवं इनकी प्रथम व द्वितीय अवस्था पर क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
बंजर जमीन या चारागाह में उगे जंगली पौधों से खेतों को फसलों को लट के आगमन को रोकने के लिये खेत के चारों तरफ खाइयां खोदें और खाइयों में क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण भुरक देवें ताकि खाई में आने वाली लटें नष्ट हो जावें ।
कातरे की बड़ी अवस्था :-
खेतों में लटें चुन-चुन कर एवं एकत्रित कर 5 प्रतिशत मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर नष्ट करें। निम्नलिखित में से किसी एक दवा का भुरकाव/छिड़काव करें।
क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत या फोसलॉन 4 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर का भुरकाव करें। जहां पानी उपलब्ध हो वहां :- डाईक्लोरोवॉस 76 ई.सी. 300 मिली लीटर या क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. 625 मिली लीटर या क्लोरपायरफॉस 20 ई.सी. एक लीटर प्रति हैक्टेयर का छिड़काव करें।।
दीमक
खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप दिखाई देने पर 4 लीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हैक्टेयर सिंचाई के पानी के साथ दीजिये।
मोयला
मैलाथियॉन 50 ई. सी. सवा लीटर या मिथाईल डिमेटॉन 25 ई.सी. एक लीटर दवा का पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
मकड़ी
मकड़ी का प्रकोप कही दिखाई देने पर गंधक चूर्ण 16-20 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकें।
जड़ गलन एवं कॉलर रोट
इन रोगों के नियन्त्रण हेतु मित्र फफूद ट्राईकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार व जरूरत आधारित 250 किलोग्राम जिप्सम + 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट + 20 किलोग्राम फेरस सल्फेट + 30 किलोग्राम पोटाश + 2.5 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरिडी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करें। कृपया, नोट करें कि इन पोषकों की दी गई मात्रा का प्रयोग नियमित न करें बल्कि मृदा जांच उपरांत ही आवश्यकतानुसार करें।
ट्राईकोडर्मा विरिडी 2.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (100 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर) बुवाई पूर्व भूमि में देवें। खड़ी फसल में रोगों के लक्षण दिखाई देते ही कार्बेण्डाजिम दवा (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करें तथा आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद छिड़काव दोहराये ।
टिक्का रोग
टिक्का रोग फसल उगने के 40 दिन बाद दिखाई देता है। इस रोग से पत्तियों पर मटियाले रंग के गहरे भूरे धब्बे पड़ जाते हैं। रोकथाम हेतु रोग दिखाई देते ही कार्बेण्डाजिम आधा ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का अथवा एक से डेढ़ किलो मैन्कोजेब का प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। इसके बाद 10-15 दिन के अन्तर पर ऐसे दो छिड़काव और आवश्यकतानुसार करें। मूंगफली में टिक्का व अल्टरनेरिया रोग की रोकथाम हेतु पाइरोक्लोट्रोबिन + इपॉक्सीकॉनाजोल का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना प्रभावी पाया गया है।
पीलिया रोग
जिन खेतों में मूंगफली में पीलिया रोग लगता है वहां तीन साल में एक बार बुवाई से पूर्व 250 किलो जिप्सम या भूमि परीक्षण/ सर्वे रिर्पोट के आधार पर हरा कसीस प्रति हैक्टेयर डालें। इसके अभाव में गन्धक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का फसल में फूल आने से पहले एक बार तथा पूरे फूल आ जाने के बाद दूसरी बार छिड़काव करके भी पीलिये का नियंत्रण किया जा सकता है।
पीलिया की रोकथाम के लिये बुवाई के 40-55 दिन पर फैरस सल्फेट (हरा कसीस) का 0.5 प्रतिशत का छिड़काव करें। इस घोल में चिपकना पदार्थ जैसे साबुन आदि अवश्य मिलावें।
खुदाई
मूंगफली पकने का समय अक्टूबर अन्त से नवम्बर मध्य तक है। फसल पकते समय भी हरी रहती है अतः खोद कर देख लेवें कि फलियां पक गयी हैं या नहीं। अगर 80 प्रतिशत फलियां पक गई हो और पत्तियां पीली पड़ जाये तो खुदाई कर लेवें।
खेत में सिंचाई करके अथवा बत्तर आने पर पौधे को उखाड़ लीजिये । इन पौधों को ढेर के रुप में 7-10 दिन तक धूप में सुखाये और उसके बाद मूंगफली को तोड़कर अलग निकाल लें।
भण्डारण
मूंगफली को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करें। मूंगफली के दानों में नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये अन्यथा बीज पर एस्परजिलस नामक फफूंद लगने से एक विषैला पदार्थ (एफ्लाटोक्सिन) जमा होना शुरू हो जाता है। इससे ग्रस्त बीजों को खाना घातक सिद्ध होता है।
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