मुलहटी (Mulhati) (ग्लैसिराइजा ग्लैबरा) Liquorice एक बहुवर्षीय औषध फसल है। इसकी जड़ आयुर्वेदिक, यूनानी और ऐलोपैथिक दवाइयां बनाने में प्रयोग की जाती है और विशेषतौर पर इससे खांसी दूर करने की दवाई बनाई जाती है। इसके कई अन्य उपयोग भी हैं। अभी भी यह दूसर देशो से आयात की जाती है। इसकी अच्छी फसल लेने के लिए यहां दी गई उन्नत विधिया अपनानी चाहिएं।
- 1.जलवायु (Climate)
- 2.किस्मे (Variety)
- 3.भूमि व खेत की तैयारी (Soil and field preparation)
- 4.बिजाई/रोपाई का समय (Time of sowing/transplanting)
- 5.बिजाई/रोपाई का तरीका (Method of sowing/transplanting)
- 6.खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizer)
- 7.निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियन्त्रण (Weeding and hoeing)
- 8.सिंचाई (Irrigation)
- 9.पौध संरक्षण (Plant protection)
- 10.कटाई (Harvesting)
- 11.जड़ों की खुदाई (Uprooting)
- 12.कीमत (Value of produce)

1.जलवायु (Climate)
यह गर्म व शुष्क जलवायु का पौधा है। 250 मि.मी. वार्षिक वर्षा तथा 2-3 निश्चित सिंचाइयां इसकी मूलभूत आवश्यकतायें हैं। सर्दियों में कम तापमान होने के कारण यह सुषुप्त अवस्था में रहती है।
2.किस्मे (Variety)
हरियाणा मुलहटी नं. 1 (Haryana Mulhati No. 1): यह गहरे-हरे व मध्यम आकार के पत्तों, अच्छे फुटाव वाली, 125-150 सें.मी. तक सीधी तथा ऊंची बढ़ने वाली किस्म है। यह पकने में 2.5 से 3.0 वर्ष तक का समय ले लेती है। इसकी सूखी जड़ों की औसत उपज 30 क्विंटल प्रति एकड़ है।
3.भूमि व खेत की तैयारी (Soil and field preparation)
सेम वाली, लूणी, पानी के ठहराव वाली और बिल्कुल ही रेतीली भूमि को छोड़कर इसकी खेती अन्य सभी प्रकार की समतल भूमि में की जा सकती है। अच्छी जोत के लिए 3-4 जुताईया काफी हैं। पहली जुताई गहरी व मिट्टी पलटने वाले हल से करें। शेष 2-3 आर-पार जुताइयां देसी हल से करें और उसके बाद सुहागा लगाकर खेत को अच्छी तरह भुरभुरा कर लें। खेत में ढेले व घास-फूस नहीं होने चाहिएं।

4.बिजाई/रोपाई का समय (Time of sowing/transplanting)
वर्ष में इसकी बिजाई/रोपाई दो बार में की जाती है। जिन क्षेत्रों में पानी का अच्छा प्रबन्ध हो, वहां इसे फरवरी-मार्च के समय लगायें। असिंचित क्षेत्रों में इसकी बिजाई/रोपाई जुलाई-अगस्त में करें। जून के अन्तिम सप्ताह में यदि 50 मि.मी. अधिक वर्षा हुई हो और अच्छे पानी का समुचित प्रबन्ध हो तो भी इसे लगा सकते हैं।
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5.बिजाई/रोपाई का तरीका (Method of sowing/transplanting)
बिजाई/रोपाई कतारों में, कतार से कतार का फासला 90 सें.मी. (3 फुट) रखकर इस प्रकार करें कि इसकी 15-20 सें.मी. (6-8 इंच) लम्बी स्वस्थ जड़ें, जिनमें 3-4 आंखें हों, के तीन-चौथाई (5-6 इंच) भाग को जमीन में दबा दें तथा एक चौथाई (1-2 इंच) भाग को जमीन के ऊपर रखें। पौधों के बीच की आपस की दूरी 45 सें.मी. (18 इंच) या 1/2 फुट रखें। शीघ्र व पूरे जमाव के लिए जड़ लगाने के तुरन्त बाद खेत में पानी लगाएं।
बिजाई/रोपाई के लिए लगभग 100 से 120 कि.ग्रा. स्वस्थ जड़ें प्रति एकड़ पर्याप्त रहती हैं।
6.खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizer)
औसत उपजाऊ और सिंचाई की सुविधा वाली भूमि में खेत की तैयारी के समय 10-12 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छी प्रकार से मिलायें। प्रतिवर्ष जनवरी/फरवरी में फुटाव से पहले आवश्यकतानुसार जैविक खाद डालें।
7.निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियन्त्रण (Weeding and hoeing)
रोपाई के 3 से 5 सप्ताह बाद निराई करें। उचित वायु संचार, नमी संरक्षण व खरपतवार नियन्त्रण के लिए पहले साल में 3-4 बार निराई-गोड़ाई करें। इसकी सुषुप्त अवस्था में अर्थात जनवरी-फरवरी में भी एक अच्छी गोड़ाई करें। बीच-बीच में जरूरत पड़ने पर बाद में हाथ से खरपतवारों को निकालते रहें।
8.सिंचाई (Irrigation)
आरम्भ में अच्छे जमाव के लिए जमीन में नमी बनाये रखें और बाद में आवश्यकतानुसार पानी लगायें। हालांकि यह सूखा सहन करने वाली फसल है। फिर भी अच्छी फसल के लिए प्रथम वर्ष में 5-6 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है। सिंचाइयों की संख्या वर्षा पर निर्भर करती है। दसरे व तीसरे वर्ष में सिंचाइयों की संख्या में कमी कर दें। पानी का ठहराव इसकी जड़ों के लिए नुकसानदाय है। सिंचाई खारे पानी से न करें।
9.पौध संरक्षण (Plant protection)
इस फसल पर बीमारी व कीड़ों का प्रकोप कम ही देखा गया है परन्तु फिर भी कभी-कभा इसके ऊपर पत्तों का धब्बेदार रोग लग जाता है। फलस्वरूप पत्ते पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं। सकी रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार जैविक कीटनाशक का प्रयोग करें ताकि जड़ों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
10.कटाई (Harvesting)
प्रतिवर्ष जनवरी के महीने में जमीन की सतह से ऊपरी भाग को काट देना चाहिए ताकि दुबारा इसका फुटाव अच्छा हो सके।
11.जड़ों की खुदाई (Uprooting)
फसल को लगाने के 2.5-3.0 वर्ष बाद 45-60 सें.मी. (11/2 -2 फुट) गहरा खोदकर जड़ों को निकाल लें। इसके लिए डिस्क हैरो एवं कल्टीवेटर का प्रयोग करना तथा पीछे-पीछे आदमियों द्वारा जड़ों को उठाया जाना उचित रहता है। इस क्रिया को 3-4 बार करने से अधिकांश जड़ें निकल जाती हैं।
12.कीमत (Value of produce)
अच्छी किस्म की जड़, जो अन्दर से पीले रंग की हो, इसका औसत मल्य लगभग 3500-4500 रुपये प्रति क्विंटल है।