मोती का बनना (Pearl Making) moti palan
moti palan – माना जाता है कि जब सीप के शरीर के अंदर पानी और रेत के कुछ कण अंदर चले जाते हैं, तब मोती का निर्माण होता है, लेकिन यह सब काल्पनिक धारणा है।
एक प्राकृतिक मोती पालन (moti palan) तब होता है, जब एक परजीवी आमतौर पर कोशिका को नुकसान पहुंचाने के लिए सीप, मांसपेशी या मेन्टल के अंदर प्रवेश करता है। तब सीप खुद को बचाने के लिए उस जगह को पूरी तरह ढकना शुरू कर देता है।
इस प्रक्रिया के दौरान एक प्राकृतिक मोती का निर्माण (moti palan) होता है, जो कि आज महंगा आभूषण माना जाता है।
सीप धरती का एक ऐसा जीव है, जिसके बिना धरती पर शुद्ध पानी की कल्पना करना मुश्किल है। यह एक ऐसा जीव है, जो मोती का उत्पादन करने में सक्षम होता है।
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सीप का बनना (Oyster formation)
सीप (Oyster) एक ऐसा जीव है, जो कि कैल्शियम कार्बोनेट के आवरण में ढका होता है। प्रजनन के दौरान मादा सीप अपना अंडा पानी में छोड़ती है, उसके तुरंत बाद नर अपना शुक्राणु छोड़ता है।
ये शुक्राणु अंडे में प्रवेश करते हैं, फिर अंडा निषेचन होता है। इस प्रक्रिया को बाहरी चिषेचन कहते हैं। उसके बाद जो पहला लार्वा विकसित होता है, उसे ट्रोकोफोर लार्वा कहते हैं।
यह आगे बढ़कर स्पॉट लार्वा में बदल जाता है और इस अवस्था को सीप की प्रौढ़ अवस्था कहते हैं।
सीप (Oyster) दो प्रकार का होता है, खाने योग्य (Edible oyster) और खेती योग्य (Pearl oyster)।
मोती की खेती (Pearl Farming / moti palan) में मुख्य उत्पादक जीव
मीठे पानी वाला जीव
(क) प्लाकुना मैक्सिमा (ख) यूनियो मारगरीटीफेरा
खारे पानी वाला जीव
(क) पिनटाडा फुकाटा (ख) पिनटाडा मारगरीटीफेरा

मोती पालन की विधि (Pearl Farming)
सीप का चयन
प्राथमिक पालन
नाभिक का प्रवेश
मुख्य पालन
कटाई करना
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सीप का चयन
सबसे पहले वयस्क सीप का चयन करना चाहिए, जो स्वस्थ हो और किसी भी प्रकार के रोग से मुक्त हो।
इसका आकार लगभग 8-10 सें.मी. का होना चाहिए। ये हमें प्राकृतिक जल संसाधनों जैसे-नदी, तालाब, बांध तथा झीलों में मिल सकते हैं।
उत्तम किस्म के बीज को सरकारी एवं निजी प्रक्षेत्र प्रसिद्ध स्थान जैसे-कोलकाता, तमिलनाडु तथा गुजरात आदि जगहों से लाया जा सकता है।
प्राथमिक moti palan
सबसे पहले चयनित बीज को अच्छी तरह से साफ पानी में धोकर एक टैंक या छोटे तालाब में रखते हैं।
उसके बाद बीज को जाल में लटकाकर तालाब, जिसका आकार 20X10 फीट तथा गहराई 5-6 फीट हो, में रखा जा सकता है।
इस आकार के तालाब में बीजों की संख्या लगभग 1000 नग रखी जा सकती है। इसको लगभग 10 से 20 दिनों के लिए उस पानी में छोड़ दिया जाता है, ताकि जीव अपना जीवन आसानी से समायोजित कर सकें।
नाभिक प्रवेश Nucleus penetration in Pearl Farming
जिस आकार का हमें मोती उत्पादन करना है, उसी आकार के हमें नाभिक की जरूरत होगी।
नाभिक का आकार 2 मि.मी. का होना चाहिए। फिर एक-एक करके उस जीव में नाभिक को डालना होता है।
उसे थोड़ा सा खोलना पड़ता है। चाकू, चिमटा और कैंची की सहायता से यह कर सकते हैं। उसके बाद फिर से सीप को उसी पानी में यथावत डालना होता है।
इसे लगभग एक से दो वर्ष तक उसी पानी में रखा जाता है, तब कहीं जाकर मोती तैयार होता है।
अगर गोल आकार का मोती चाहिए तो यह दो से तीन वर्ष में तैयार होगा। अगर कुछ और आकार का मोती चाहिए तो छह माह से एक वर्ष के बीच में यह तैयार होगा।
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मुख्य moti palan
सीप का जीव बहुत ही मुलायम किस्म का होता है और यह अपना आहार स्वयं नहीं बना सकता है।
इसको बाहर से आहार देने की जरूरत पड़ती है। मुख्य रूप से ये छोटे-छोटे प्राकृतिक जीव जैसे-शैवाल, डायटम, इन्फूसर्या एवं चीटोंसेरांस आदि को आहार के रूप में ग्रहण करता है।
इन जीवों के पालन करने के लिए गोबर खाद, केले के छिलके आदि का उपयोग कर सकते हैं।
moti palan में उत्पादन Pearl Production
लगभग दो से तीन वर्ष के पूरा होने के बाद उस सीप को पानी से बाहर निकालना चाहिए, फिर उसे एक-एक करके खोला जाता है।
खोलने के बाद बने हुए मोती को बाहर निकालकर इकट्ठा किया जाता है, फिर इसे साफ पानी में अच्छी तरह धो लिया जाता है, बाद में इसे बाजार में बेच सकते हैं और इसी तरह मोती पालन से बहुत लाभ ले सकते हैं।
मोती पालन से लाभ
चिकित्सा औषधियों में मांस प्राप्त करने में (खाने में) व्यवसाय के रूप में पानी को स्वच्छ बनाने में मोती पालन बहुत ही लाभकारी है।
मनुष्य अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए इन सीपों का दोहन कर चुका है, जिससे इनकी प्रजातियों में लगभग 85 प्रतिशत लुप्तप्राय अवस्था में आ चुकी हैं। इससे पानी का संसाधन पूरी तरह दूषित होता जा रहा है।
इसलिए आज के समय में सीप पालन को बढ़ावा देना अति आवश्यक है, जिससे इनकी प्रजातियों की संख्या बनी रहे और अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो। इसके साथ ही साथ पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाने में इनसे मदद मिलती रहे।
स्त्रोत – ICAR ( जानकारी का इस्तेमाल किसान कृषि विशेषज्ञ के परामर्श से करे I यह लेख केवल जानकारी हेतु है I)
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