mirch ki kheti kaise kare
Mirch ki kheti का भारत में अहम् स्थान है! मिर्च एक नगदी फसल है तथा हमारे भोजन का प्रमुख अंग है। स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए एवं सी पाये जाते हैं एवं कुछ खनिज लवण भी होते हैं।
mirch ki kheti के भूमि एवं जलवायु
अच्छी उपज के लिये उपजाऊ दोमट भूमि जिसमें पानी का अच्छा निकास हो उपयुक्त रहती है। mirch ki kheti में मिर्च पर पाले का प्रकोप अधिक होता है अतः पाले की आशंका वाले क्षेत्रों में इसकी अगेती फसल लेनी चाहिये।
उन्नत किस्में mirch ki unnat kism
चरपरी मसाले वाली
एन पी 46 ए (NP 46 A), पूसा ज्वाला (Pusa Jawala), मथानिया लोंग (Mathania Long), पन्त सी-1 (Pant C 1), जी-5, हंगेरियन वैक्स (पीले रंग वाली) Hungerian wax, पूसा सदा बहार (निर्यात हेतु बहुवर्षीय) Pusa Sadabahar, पन्त सी-2 (Pant C 2), जवाहर (Jawahar), आर सी एच-1,
शिमला मिर्च (सब्जी वाली) – यलो वण्डर, केलीफोर्निया वण्डर, बुलनोज व अर्का मोहिनी।
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बुवाई Mirch ki kheti ka time
•mirch ki kheti वर्ष में तीन बार की जा सकती है। प्रायः इसकी फसल खरीफ एवं गर्मी में ली जाती है। शिमला मिर्च की फसल गर्मी में ही ली जाती है।
•पहले नर्सरी में बीज की बुवाई कर पौध तैयार की जाती है। इसके लिये खरीफ की फसल हेतु मई-जून में और गर्मी की फसल हेतु फरवरी-मार्च में नर्सरी में बीज की बुवाई करें। एक हैक्टर क्षेत्र के लिये पौध तैयार करने हेतु एक से डेढ़ किलो बीज पर्याप्त रहता है।
•बीजों की बुवाई से पहले थाईरम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें जिससे बीज जनित रोगों का प्रकोप न हो सके।
नर्सरी में सूत्रकृमि एवं पौध पर लगने वाले रस चूसक कीटों के प्रभावी नियंत्रण हेतु क्यारियों में कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत कण 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से क्यारी की भूमि में मिलाकर सिंचाई करें।
Mirch ki kheti में नर्सरी में बीज की बुवाई से पहले ऑक्सीफ्लोरफेन 100 ग्राम प्रति हैक्टर दर से छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है। यदि बुवाई के समय यह उपचार सम्भव नहीं हुआ हो तो पौध की रोपाई से 2 सप्ताह पहले ऐसीफेट 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 0.05 प्रतिशत का छिड़काव करें।
•यदि नर्सरी में कीटनाशी दवा का प्रयोग नहीं किया गया हो तो मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. के एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल में पौध को डुबोकर खेत में लगायें।
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रोपाई Mirch ki ropai
•बुवाई के 4 से 5 सप्ताह बाद पौध रोपने योग्य हो जाती हैं इस समय इसके पौधों की रोपाई खेत में करें । गर्मी की फसल में कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर तथा पौधों के बीच की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखें।
•खरीफ की फसल के लिये कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर और पौध से पौध की दूरी 30-45 सेन्टीमीटर रखें। रोपाई शाम के समय करें और रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देवें।
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खाद एवं उर्वरक mirch ki kheti me khad
अन्तिम जुताई के पहले प्रति हैक्टर लगभग 150 से 250 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिलावें । इसके अलावा 70 किलो नत्रजन, 48 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है।
नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पहले देवें तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा रोपाई के 30 दिन से 45 दिन बाद दो बराबर भागों में खेत में छिड़क कर तुरन्त सिंचाई करें।
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सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई mirch ki kheti me pani
गर्मी में 5 से 7 दिन के अन्तराल पर और बरसात में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचाई जब भी करें हल्की करें। खरपतवार नियंत्रण हेतु समय-समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिये जिससे खरपतवार नहीं पनपें।
खरपतवार नियंत्रण हेतु 300 ग्राम ऑक्सीफ्लोरफेन का पौध रोपण से ठीक पहले छिड़काव (600 से 700 लीटर पानी प्रति हैक्टर) करें।
पौध संरक्षण mirch ki kheti me lagne wale rog or upchar
रोपाई बाद कीटनाशी उपचार क्रम –
जैविक प्रबन्धन organic mirch rog upchar
मिर्च फसल में प्रमुख नाशी कीटों एवं लीफ कर्ल के प्रबंधन हेतु 30 व 40 दिन की फसल अवस्था पर आवश्यकतानुसार एजाडिरेक्टिन (0.03 प्रतिशत ई.सी.) 3 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ वर्टिसीलियम मित्र फफूंद 1 मि. ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।
दूसरा छिड़काव 50 दिन की फसल अवस्था पर केवल वर्टिसीलियम फफूंद 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें । अन्तिम दो छिड़काव 70 व 90 दिन की फसल अवस्था पर स्पाइनोसेड 45 एस.सी. 200 मि.ली. प्रति हैक्टर की दर से आवश्यकतानुसार पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मूल ग्रन्थि (chilli nematodes) mirch me sutr krimi
इसके प्रकोप से mirch ki kheti में पौधों की जड़ों में गाठे बन जाती हैं तथा पौधे पीले पड़ जाते हैं । पौधों की बढ़वार रुक जाती है, जिससे पौधों की पैदावार में कमी हो जाती है। नियंत्रण हेतु पौध रोपण के समय 25 किलो कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत कण प्रति हैक्टर की दर से भूमि में मिलावें।
आद्र गलन (डेम्पिंग ऑफ) रोग mirch ki kheti me damping off
रोग का प्रकोप पौधे की छोटी अवस्था में होता है। जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ कर कमजोर हो जाता है तथा नन्हें पौधे गिरकर मर जाते हैं। नियंत्रण हेतु बीज की बुवाई से पूर्व थाईरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोयें। नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइरम 4-5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से मिलावें । नर्सरी आस-पास की भूमि से 4 से 6 इंच उठी हुई भूमि में बनावें ।
छाछ्या रोग
रोग के प्रकोप से पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती है। नियंत्रण हेतु डाइनोकेप (0.1 प्रतिशत) या माइक्लोब्यूटानिल 10 डब्ल्यू.पी. 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें व आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहरावें।
श्यामवर्ण रोग mirch me anthracnose
पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते हैं तथा पत्तियाँ झडने लगती हैं। उग्र अवस्था में शाखाये शीर्ष से नीचे की तरह सूखने लगती हैं पके फलों पर भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं।
नियंत्रण हेतु मेन्कोजेब 2 ग्राम या कार्बेण्डाजिम आधा ग्राम या डाइफेन्कोनाजोल 25 ई.सी. आधा मिली लीटर प्रति लीटर पानी के घोल के 2 से 3 छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें।
जीवाणुधब्बा रोग mirch ka jivanu rog
रोग के प्रकोप से पत्तियों पर छोटे-छोटे जलीय धब्बे बनते हैं व बाद में गहरे भूरे से काले रंग के उठे हुये दिखाई देते हैं । अन्त में रोगग्रस्त पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती हैं।
नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 मिली ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तर पर करें।
पर्णकुंचन व मोजेक (विषाणु रोग) mirch ka vishanu rog
पर्णकुंचन रोग के प्रकोप से पत्ते सिकुड़ कर मुड़ जाते हैं, छोटे रह जाते हैं व झुरियाँ पड़ जाती हैं। मोजेक रोग के कारण पत्तियों पर गहरे व हल्का पीलापन लिये हुये धब्बे बन जाते हैं।
रोगों के प्रसारण में कीट सहायक होते हैं। नियंत्रण हेतु रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें। रोग को आगे फैलने से रोकने हेतु डाइमिथोएट 30 ई.सी. एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये।
नर्सरी तैयार करते समय बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत कण 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलावें। पौध रोपण के समय स्वस्थ पौध काम में लेवें । मैलाथियॉन 50 ई.सी. एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़कें।
•रोपाई के बाद रसचूसक कीटों (थ्रिप्स, सफेद मक्खी, मोयला, हरा तेला, माइट्स) आदि की रोकथाम हेतु फसल पर कीट प्रकोप शुरु होते ही रोपाई के लगभग तीन सप्ताह बाद आवश्यकतानुसार छिड़काव शुरु करें
•माईट्स के प्रकोप अनुसार पहला छिड़काव डाइकोफाल 18.5 ई.सी. 0.04 प्रतिशत (सवा लीटर प्रति हैक्टर) रोपाई के तीन सप्ताह बाद करें।
•दूसरा छिड़काव पहले के लगभग 3 सप्ताह बाद आवश्यकतानुसार क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. का 0.03 प्रतिशत (डेढ़ लीटर प्रति हैक्टर) में नीम आधारित कीटनाशी 0.05 प्रतिशत (डेढ़ से दो लीटर प्रति हैक्टर) या क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 1 लीटर प्रति हैक्टर मिलाकर करें।
•तीसरा छिड़काव आवश्यकतानुसार 3 सप्ताह बाद एसीफेट 75 एस.पी. चूर्ण 600 ग्राम प्रति हैक्टर दर से मिलाकर करें। तीसरे छिड़काव के लगभग तीन सप्ताह बाद आवश्यकतानुसार क्यूनालफॉस 25 ई.सी. का 0.05 प्रतिशत (एक लीटर प्रति हैक्टर) के साथ नीम आधारित कीटनाशी 0.05 प्रतिशत (दो से सवा दो लीटर प्रति हैक्टर) की दर से मिलाकर करें।
•उपरोक्त छिड़काव से पत्ते सिकुड़न रोग (विषाणु एवं मोजेक) प्रसार करने वाले कीटों की रोकथाम से इस रोग में कमी आ जाती है।
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