मेस्टा/kenaf (लकरा) की दो प्रजातियां, हिबिस्कस सबदरिफा और हिबिस्कस कैनबिनस, मालवेसी परिवार से संबंधित हैं। इसकी खेती रेशे के लिए की जाती है ।
हिबिस्कस कैनबिनस दक्षिणी एशिया की मूलभूत प्रजाति है, जिसका मूल स्थान अज्ञात है। हिबिस्कस सबदरिफा को रोजली के नाम से भी जाना जाता है। अलग अलग स्थानों में इसे जावा जूट, थाईलैंड जूट, हैम्प, पालेची आदि नामों से भी जाना जाता है।
कैनबिनस मेस्टा को आमतौर पर केनफ (Kenaf) के नाम से जाना जाता है। Kenaf ki kheti विभिन्न राज्यों आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, ओडिशा, तमिलनाडु, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में की जाती है ।
मेस्टा/kenaf गर्म आर्द्र या शुष्क जलवायु तथा वर्षा ऋतु की फसल है। इसकी खेती के लिए 50-90 सें.मी. वार्षिक वर्षा और तापमान 18-43 डिग्री उपयुक्त रहता है। इसकी खेती समुद्र तल से 1000 मीटर ऊंचाई तक की जा सकती है।
मेस्टा/kenaf का उपयोग
मेस्टा/kenaf की ताजी पत्तियों का साग बनाया जाता है।
औषधीय रूप से इसमें मूत्रवर्धक, एंटीसेप्टिक, एंटीस्कार्बिक, कोलेरेटिक, रेचक आदि गुण पाये जाते हैं।
दिल के रोग, अस्थमा, तंत्रिका रोग और त्वचा रोगों को ठीक करने के लिए औषधि के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
मेस्टा/kenaf के बीजों में मूत्रवर्धक और टॉनिक के गुण पाये जाते हैं। इसका उपयोग अपच, दुर्बलता आदि के लिए भी किया जाता है।
सूखे एवं ताजे रेशे (केनेफ) का उपयोग कृषि उद्योगों में जैसे-पेपरपल्प, थर्मोप्लास्टिक, जियोटेक्टाइल, पो टमिक्स और कृषि मल्च आदि में किया जाता है।
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Kenaf ki kheti के लिए मिट्टी
kenaf ki kheti सभी प्रकार की मिट्टी जैसे-जलोढ़, चिकनी दोमट, लाल दोमट आदि में की जा सकती है, लेकिन यह फसल अम्लीय मिट्टी के लिये उपयुक्त नहीं मानी जाती है।
खेत तैयारी
मानसून आने के समय ही मेस्टा/kenaf के लिये खेत की तैयारी आरम्भ कर दी जाती है।
इसके पौधों की जड़ें लंबी होती हैं, इसलिए खेत की गहरी जुताई आवश्यक है। इसका बीज भी छोटा होता है, इसलिए भूमि की जुताई अच्छी तरह करके इसे ढीला व भुरभुरा बना लेना चहिए, जिससे बीज का अंकुरण अच्छी तरह से हो सके।
बुआई समय एवं तरीका
kenaf ki kheti के लिए मई-जून या मानसून आने पर बुआई करते हैं। पौधे से पौधे की दूरी 7-10 सें. मी. तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से 30 सें.मी. रखें।
इसमें पौधों की संख्या प्रति हैक्टर 4 से 5 लाख अवश्य हो। छिटकवां विधि से
बुआई करने पर थिनिंग द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. तक रखनी चाहिए।
बुआई की विधियों के आधार पर दोनों प्रजातियों की बीज दर निम्न अनुसार है:
हिबिस्कस कैनबिनस
पंक्तियों में बुआई के लिए 13 से 15 कि.ग्रा. तथा छिटकवां विधि से 15 से 17 कि.ग्रा बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है।
हिबिस्कस सबदरिफा
पंक्तियों में बुआई के लिए 11 से 13 कि.ग्रा. तथा छिटकवां विधि से 13 से 15 कि.ग्रा बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है।
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बीजोपचार
बेहतर kenaf ki kheti के लिए बीज बुआई से पहले फसल को रोगों के संक्रमण से बचाने के लिए विशेष रूप से बीज का उपचार करना होता है। बीजोपचार 5 ग्राम एग्रोसेन जीएन प्रति कि.ग्रा. बीज या 4 ग्राम डाइथेन एम 45 प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से करना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
kenaf ki kheti में अच्छी उपज के लिए खाद एव उर्वरक देना आवश्यक है। खेत की तैयारी के समय 5 से 8 टन गोबर की खाद मिट्टी में मिला दी जाती है।
हिबिस्कस सबदरिफा
इसमें नाइट्रोजन की मात्रा 25 से 60 कि.ग्रा., फॉस्फोरस की मात्रा 30 कि.ग्रा. और पोटाश की मात्रा 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर देते हैं।
हिबिस्कस कैनबिनस
इसमें अपेक्षाकृत कम उर्वरक की आवश्यकता होती है।
सिंचाई
बारिश में आमतौर पर किसी प्रकार की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। मेस्टा/kenaf की फसल के लिए लगभग 50 सें.मी. पानी की आवश्यकता होती है। अच्छी पैदावार के लिए फसल की महत्वपूर्ण अवस्था में सिंचाई की सलाह दी जाती है।
मेस्टा/kenaf की उन्नत किस्में किस्में
- हिबिस्कस सबदरिफा
एमवी-3 (सूर्या)
140-150 दिन में तैयार होती है । इस किस्म की रेशा उत्पादन क्षमता लगभग 18.75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है I यह सूखा सहनशील किस्म है।
एमवी-4 (कलिंगा)
ये किस्म 140-150 दिन में तैयार होती है I लगभग 20 क्विंटल रेशा उत्पादन देती है I ये किस्म भी सूखा सहनशील है
एमवी-7 (जनार्दन)
130 से 140 में तैयार होती है I यह किस्म 25 से 30 क्विंटल रेशा उत्पादन करती है I यह किस्म पत्ती सडन के सहनशील है I
(ब) हिबिस्कस कैनबिनस
एएमसी-108 (भीमली)
120-130 दिन लेती है तैयार होने में I औसत पैदावार 12.5 क्विंटल रेशा प्रति हेक्टेयर I इसके रेशे की गुणवत्ता अच्छी होती है I
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अंतःसस्य क्रियाएं
बारिश न होने पर बुआई के तुरंत बाद खेत की सिंचाई की जाती है। रोपाई होने पर 4 दिनों के नियमित अंतराल पर सिंचाई की जाती है। शुष्क अवधि के दौरान एक सप्ताहिक सिंचाई पर्याप्त है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए सामान्यत: 2 निराई, बुआई के 21 दिनों बाद बुआई के 35 दिनों बाद करना पर्याप्त है।
खरपतवार की समस्या बहुत ज्यादा हो, तब 3 निराइयां बुआई के 14 से 21 दिनों बाद, बुआई के 28 से 35 दिनों बाद और बुआई के 42 से 49 दिनों बाद करने की सलाह दी जाती है।
पहली निराई के दौरान हल्की थिनिंग और दूसरी निराई के दौरान अंतिम थिनिंग की सलाह दी जाती है।
कीट व् बीमारियाँ
जैसिड कैटरपिलर और मिलीबग एसेमी लुपर इसके गंभीर कीट हैं। इसी प्रकार तना एवं जड़ विगलन, पत्ती झुलसा तथा विषाणु भी मेस्टा/kenaf के हानिकारक रोग हैं।
उपयुक्त कीटनाशी एवं रोगनाशी रसायनों का छिड़काव कर इन पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
कटाई
कटाई की सामान्य अवधि 140 से 150 दिनों पर होती है। केनाबिनस मेस्टा/kenaf की कटाई के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर होता है।
सबदरिफा मेस्टा/kenaf की कटाई 50 प्रतिशत फूल आने पर नवम्बर में करते हैं। जब पौधों की कटाई जल्दी की जाती है, तब रेशे का उत्पादन कम तथा रेशा अपरिपक्व एवं नरम होता है।
जब पौधों की कटाई से देरी की जाती है, तो उपज अच्छी मिलती है, लेकिन रेशे की गुणवत्ता घट जाती है।
उपज क्षमता
मेस्टा/kenaf की औसत पैदावार 12-25 क्विंटल प्रति हैक्टर है।
सड़ाने की क्रिया या रैटिंग
तने से रेशे को अलग करने के लिए तने को सड़ाया जाता है। सड़ाने की क्रिया बहुत ही सावधानी से करते हैं। इसका प्रभाव रेशे की गुणवत्ता पर पड़ता है।
पौधों को सड़ाने के लिए गट्ठर व बंडल को 50 से 60 सें.मी. गहरे पानी में 3 से 4 दिनों के लिए दबाया जाता है।
3 से 4 दिनों के बाद खड़े बंडलों को रैटिंग पानी में रखा जाता है और सीमेंट ब्लॉक या पत्थरों की सहायता से पानी में लगभग 10 सें.मी. तक डुबोया जाता है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि भार सामग्री टैनिन और लोहे से मुक्त हो।
सड़ने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए kenaf स्टिक पर 1.25 प्रतिशत यूरिया घोल का छिड़काव बंडलों के सड़ने से पहले जरुरी है। जल्द ही सड़ने की क्रिया पूरा होने पर रेशे को पौधे से अलग करते हैं और पानी में अच्छी प्रकार से धोते हैं।
इन्हें निचोड़कर सुखाने के लिए लकड़ियों पर लटका देते हैं। 3 या 4 दिनों के बाद सूखे रेशे को अच्छी तरह से मिश्रित किया जाता है और इसे विपणन के लिए अलग-अलग श्रेणी में बांधा जाता है।
रेशा निकालने की प्रक्रिया का प्रवाह चिन्ह
बंडल डंठल → सड़ाना + स्ट्रेपिंग + धुलाई + निचोड़ + संड्री → बइलिंग , कूड्चा पैकिंग + भंडारण या परिवहन।