मटर (Pea) को मुख्य रूप से हरी फलियों से हरे दाने निकाल कर विभिन्न प्रकार के व्यंजन व सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है ! मटर (Pea) के हरे दाने को परिरक्षण करके काफी दिनों तक हरी मटर (Pea) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है ! भारत में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली प्रदेश में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है ! जलवायु व खेत की तैयारी

फसल की उचित वृद्धि तथा अच्छी पैदावार के लिए बुवाई के समय 22-25 डिग्री सें.ग्रेड तथा फूल व फलियां बनने के समय 15-18° सें.ग्रेड तापमान अच्छा पाया गया है ! फूल आने की अवस्था में भूमि में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है ! मटर (Pea) प्रायः सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है ! परन्तु दोमट से लेकर बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी गई है ! पहली जुताई गहरी करने के पश्चात् पाटा लगाकर खेत में डले न रहने दें व बिजाई से पहले पलेवा करें ! खेत समतल तथा उसमें जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए ! खाद एवं उर्वरक
जिस खेत में मटर (Pea) की खेती करनी हो उसमें मटर (Pea) की बिजाई के 20-30 दिन पूर्व 8 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालकर मिट्टी में मिला दें ! इसके बाद बिजाई के समय 12 किलोग्राम नाइट्रोजन 20 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ लगा दें ! अच्छा होगा यदि नाइट्रोजन वाली खाद की आधी मात्रा बिजाई के समय तथा शेष बची आधी मात्रा बोने के 4-6 सप्ताह बाद खड़ी फसल में डाल दें ! खाद को बीज से सीधे सम्पर्क से बचाना चाहिए !
उन्नत किस्में
अर्कल :
यह एक अगेती किस्म है और बिजाई के 60-65 दिन बाद फलिया तुड़ाई योग्य हो जाती है ! पौधे बौने, बीज सिकुड़े हुए तथा फलियां हरी, लम्बी (8-10 सें.मी.) होती है ! इसकी हरी फलियों की औसत पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है !
पूसा प्रभात (DDR-23)
यह वैरायटी 2001 में इजाद की गई थी ! यह बिहार, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त है ! पूसा प्रभात सिंचित व् बारानी दोनों स्तिथियों के लिए अच्छी है ! यह किस्म बोनी और जल्दी पकने वाली है और चुर्निय फफूंद के प्रतिरोधी है ! इसकी औसत पैदावार 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है !
पूसा पन्ना (DDR-27)
यह वैरायटी 2001 में इजाद की गई थी ! यह उत्तर प्रदेश, हरियाणा राजस्थान व् पंजाब के लिए उपयुक्त है ! पूसा प्रभात सिंचित व् बारानी दोनों स्तिथियों के लिए अच्छी है ! यह किस्म बोनी और 90 दिन में पकने वाली किस्म है और चुर्निय फफूंद रोग के प्रतिरोधी है ! औसत पैदावार 17.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है !
पूसा श्री
ये अगेती बिजाई वाली किस्म है ! ये किस्म करीब 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है और उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रो के लिए उपयुक्त है ! ये किस्म सितम्बर अंत से अक्टूबर शुरुआत तक बुवाई के लिए अच्छी है ! इसकी फलिया गहरी हरी होती है और एक फली में 6 से 7 दाने होते है ! फलिया तुड़ाई के लिए 50 से 55 दिन में तैयार हो जाती है !
हिसार हरित (पी.एच.-1) :
यह भी अगेती किस्म है ! बिजाई के 70 दिन बाद पहली तुड़ाई की जाती है ! फलियां लम्बी, हरी व अच्छी भरी हुई होती हैं ! बीज हरा व सूखने पर थोड़ा सिकुड़ा हुआ होता है ! इसकी पैदावार 30-35 क्विंटल प्रति एकड़ है !
बोनविले : यह एक अर्द्ध-पछेती किस्म है ! इसके दाने मीठे, सिकुड़े हुए होते हैं ! यह अक्तूबर के मध्य में बिजाई के लिए उपयुक्त है और 100 दिन में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है ! इसकी पैदावार 30 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाती है !
बायोसीड पी10 (Bioseed P10) – बिजाई के 65 से 75 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है ! इसकी फली में 9 से 11 दाने होते है ! ये वैरायटी ज्यादा उत्पादन देती है और क्वालिटी भी अच्छी है !
बिजाई का समय
मटर (Pea) की बिजाई उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर तक का जाती है ! अगेती किस्में मध्य सितम्बर से लेकर अक्तूबर के पहले सप्ताह तक करते हैं ! बीनावल किस्म को अक्तूबर के मध्य से नवम्बर माह तक बोते हैं !
बीज उपचार और बिजाई
अगेती किस्मों के लिए 30-40 किलोग्राम बीज व मध्य पछेती फसल के लिए 20-30 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त है ! मटर (Pea) की बिजाई नमी वाली भूमि में करनी चाहिए तथा मटर (Pea) के बीज को राइजोबियम के टीके से उपचारित करें ! बिजाई में लाइन से लाइन का फासला 30-40 सें.मी. और पौधे का फासला 3-5 सें.मी. रखें ! अगेती फसल के लिए लाइन से लाइन का फासला 20-25 सें.मी. रखें !
सिंचाई व निराई-गुड़ाई
पलेवा देकर बिजाई करें ! इससे बीज का जमाव अच्छा होता है ! बिजाई के बाद पहली सिंचाई फूल आने पर करें ! अगली सिंचाई जरूरत हो तो फलियों में दाने पड़ते समय लगानी चाहिए ! निराई-गुड़ाई के माध्यम से खेत की खरपतवार से मुक्त रखें ! पैंडीमेथानि 400-500 ग्राम प्रति एकड़ (स्टोम्प 30 प्रतिशत, 1.3-1.7 लीटर प्रति एकड़) का बिजाई के 2-4 दिन बाद छिड़काव करने से खरपतवार नियन्त्रण किया जा सकता है !
फसल की तुड़ाई
हरी फलियों को उचित अवस्था पर तोड़ें ! फलियां पौधों को बिना नुकसान पहुंचाए तोड़ें !
फसल की सुरक्षा
मटर (Pea) में फल बेधक सूण्डियां फलियां शुरू होने पर आती है व फलियों में छेद करके दानों को खा जाती है ! इसके लिए 60 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी. या 150 मि.ली. ६,इपरमेथिन 10 से सी. या 500 मि.ली. एण्डोसल्फान 35 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव करें ! आवश्यकता हो तो अगला छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करें ! इससे चूड़ा कीड़ा की भी रोकथाम हो जाती है !