मसूर की खेती
मसूर की खेती भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में मुख्य तौर पर की जाती है। मध्य प्रदेश में मसूर की खेती लगभग 5 लाख 87 हजार हैक्टर क्षेत्रफल में की जाती है। देश में मसूर का कुल उत्पादन 2 लाख 16 हजार मीट्रिक टन होता है और इसकी उत्पादकता 387 कि.ग्रा./हैक्टर है।
चने के बाद मसूर का क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों में दूसरा स्थान है। ऐसे असिंचित क्षेत्र जहां पानी के अभाव में गेहूं, मटर एवं सरसों की खेती नहीं की जाती, वहां पर मसूर की खेती आसानी से की जा सकती है।
मसूर की दाल के फायदे
मसूर की दाल के अतिरिक्त कई प्रकार के व्यंजनों में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसकी दाल अन्य दालों की अपेक्षा अधिक पौष्टिक होती है।
मसूर के 100 ग्राम दाने में औसतन 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.08 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.2 ग्राम रेशा, 68 मि.ग्रा. कैल्शियम, 7 मि.ग्रा. लोहा, 0.21 मि.ग्रा. राइबोफ्लेविन, 0.1 मि.ग्रा. थायमीन तथा 4.8 मि.ग्रा. नियासीन पाया जाता है।
रोगियों के लिये मसूर की दाल अत्यंत लाभप्रद मानी जाती है। इसकी प्रोटीन उबालने पर शीघ्र घुलनशील होने के कारण अन्य दालों की तुलना में कम समय में पक जाती है। दानों का इस्तेमाल नमकीन और मिठाइयां बनाने में भी होता है।
हरा व सूखा चारा पशुओं के लिए स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में भी गांठें पायी जाती हैं। इसमें उपस्थित सूक्ष्मजीवाणु वायुमंडल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भूमि में करते हैं। अतः फसलचक्र में इसे शामिल करने से भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है।
मसूर रबी मौसम की एक महत्वपूर्ण फसल है। कृषक भाई वैज्ञानिक तरीके एवं नई प्रजातियों का उपयोग कर इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
मसूर की उन्नत प्रजातियां
मल्लिका (K 75) मसूर
यह किस्म 120-125 दिन का समय लेती है I इसका दाना छोटा होता है I यह प्रति हेक्टेयर 13-15 क्विंटल की पैदावार देती है I इसके 100 दानों का वजन करीब 2.6 ग्राम होता है I
लेन्स-4076
यह किस्म पकने में 135-140 दिन का समय लेती है I इसकी उत्पादन क्षमता 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है I इसका दाना बड़े आकार का होता है I यह किस्म उकठा रोग के प्रतिरोधी है I इसके 100 दानों का भार 2.8 ग्राम के करीब होता है I
जे.एल.-1
ये वैरायटी 110-115 दिन का समय लेती है I इसकी उत्पादन क्षमता 14-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है I इसका दाना मध्यम आकार का होता है I
आई.पी.एल 81 (नूरी)
यह किस्म 110-115 दिन का समय लेती है Iइसकी उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 12-14 क्विंटल है I दाना मध्यम आकार का होता है तथा 100 दानों का भार 2.7 ग्राम होता है I
एल 9-2
यह किस्म पकने में 135-140 दिन का समय लेती है I प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल की पैदावार दे सकती है I इसका दाना छोटे आकार का होता है I
जे.एल.-3 (JL 3)
पकने में 110-115 दिन का समय लेती है I 14-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार दे सकती है I यह किस्म रतुआ एवं उकठा रोग प्रतिरोधी है I
जवाहर मसूर-2
मसूर की यह किस्म तैयार होने में 110-115 दिन का समय लेती है I पैदावार क्षमता प्रति हेक्टेयर 10-20 क्विंटल है I यह किस्म गेरूआ एवं उकठा रोग प्रतिरोधी है I
आर.बी.एल.-31
ये किस्म पकने में 107-110 दिन का समय लेती है I यह 14-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है I इसके दानों का आकार बड़ा होता है I इसके 100 दानों का भार 3 ग्राम होता है I
फसल पद्धति
मसूर की खेती खरीफ की फसलें (धान, ज्वार, मक्का, कपास, आदि) लेने के बाद की जाती है। इसकी मिश्रित खेती । (जैसे सरसों + मसूर और जौ + मसूर) का भी प्रचलन है।
शरदकालीन गन्ने की दो पंक्तियों के बीच मसूर की दो पंक्तियां (1:2) बोई जाती हैं। इसमें मसूर को 30 सें.मी. की दूरी पर बोया जाता है।
मसूर की खेती के लिए मिट्टी
मसूर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है I इसके लिए दोमट और भारी मिट्टी उपयुक्त पाई गई है I अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसकी ph 6.5 से 7 हो, मसूर की खेती के लिए उपयुक्त होती है I
मसूर की खेती में बीज दर
मसूर की बीज दर वैरायटी, दानो के आकार, बोने का समय, मिट्टी आदि पर निर्भर करता है I मध्यम आकार के बीज की वैरायटी के लिए 30-35 कि.ग्रा. बीज/हैक्टर की आवश्यकता होती है।
देर से बुआई करने पर 40 कि.ग्रा./हैक्टर, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सें.मी. एवं बीज से बीज की दूरी 5 से 6 सें.मी. पर बुआई करें।
बीजोपचार
स्वस्थ बीजों को बुआई के पूर्व थीरम या बाविस्टन 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। इसके बाद बीजों को 10 ग्राम राइजोबियम कल्चर एवं 10 ग्राम पी.एस.वी. कल्चर/कि.ग्रा. बीज के साथ उपचारित कर बुआई करें।
खेत में यदि दीमक कीट का प्रकोप है, तो फफूदनाशक के बाद कीटनाशक जैसे-क्लोरोपाइरीफॉस या एनडोक्साकार्ब 5 मि.ली. प्रति बीज की दर से बीज उपचार कर बुआई करें।
बीजोपचार के क्रम में सबसे पहले फफूंदनाशक, कीटनाशक और अंत में कल्चर से बीज उपचार कर तुरंत बुआई करें।
मसूर फसल बुआई का समय
मसूर की फसल असिंचित अवस्था में खेत में नमी उपलब्ध रहने पर अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक बुआई करें।
सिंचित अवस्था में नवंबर के प्रथम सप्ताह से अंतिम सप्ताह तक बुआई की जा सकती है। ज्यादा विलंब से बुआई करने पर कीट-व्याधियों का प्रकोप ज्यादा होता है। इसलिए समय पर बुआई करें।
मसूर बुआई विधि
मसूर की बुआई देसी नाड़ी या सीडड्रिल से करें। बुआई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सें.मी. रखनी चाहिए।
पिछेती फसल की बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 सें.मी. रखें। बीजों की 3-4 सें.मी. गहराई पर ही बुआई करें।
खाद एवं उवर्रक
मसूर की फसल के लिए मृदा परीक्षण के आधार पर संस्तुत उर्वरक मृदा में मिलायें। मध्यम उर्वरा शक्ति की मृदा में 45 कि.ग्रा. यूरिया, 250 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश अवश्य डालना चाहिए।
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अनुपात (20:40:20) के साथ-साथ 25 कि.ग्रा जिंक एवं 10 कि.ग्रा बोरेक्स प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।
सिंचाई
मसूर की खेती असिंचित क्षेत्र में की जाती है। यदि सिंचाई उपलब्ध है, तो खेत में पलेवा कर बुआई करें, ताकि उत्पादन अच्छा हो। इसकी खेती में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पानी उपलब्ध होने पर हल्की सिंचाई फूल आने के पूर्व करें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार के प्रकोप से मसूर की उपज घट जाती है। बुआई से 45-60 दिनों तक खेत खरपतवारमुक्त रहना आवश्यक है। बुआई के 25-30 दिनों बाद एक निराई-गुड़ाई करने से उपज में वृद्धि होती है।
बुआई के तुरन्त बाद पेन्डामेथलिन 30 ई.सी. का 4-5 लीटर प्रति हैक्टर का छिड़काव या बेसालिन (फ्लूक्लोरोलीन) 0.75 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई से पहले खेत में अच्छी तरह मिला देने से खरपतवार नियंत्रण में रहते हैं।
कीट नियंत्रण
माहूं:
यह मसूर की फसल को हानि पहुंचाने वाला प्रमुख कीट है। इसका प्रकोप फूल आने की अवस्था पर होता है। इससे मसूर की फसल कमजोर पड़ जाती है और उत्पादन कम प्राप्त होता है।
इसके नियंत्रण 5 के लिए इमिडाक्लोरोपिड 17.8 SL की 125 मि.ली. मात्रा या डायमेथोएट 30 ई.सी. 1.5 लीटर/हैक्टर अथवा मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. (मेटासिस्टॉक्स 0.05 प्रतिशत) का छिड़काव 600 लीटर पानी में मिलाकर बदली होने या खेत में माहूं दिखने पर शुरुआती अवस्था में करें।
रोग नियंत्रण
उकठाः
यह मसूर का प्रमुख रोग है। इससे फसल की 25-50 प्रतिशत तक हानि हो जाती है। इसके उपचार के लिए उकठा रोगरोधी प्रजातियों का प्रयोग करें एवं बुआई से पूर्व जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज या बाविस्टिन 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से एवं राइजोबियम, पी.एस.बी. कल्चर 10 से 20 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।
गेरूआ:
कभी-कभी इस रोग का प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें।
मसूर की खेती में कटाई तथा मड़ाई
फसल पकने पर ज्यादा सूखने से पूर्व फसल की कटाई करके साफ खलिहान में सुखाकर गहाई न करें।
मसूर की फसल 110-140 दिनों में पक जाती है। अतः बोने के समय के अनुसार मसूर की फसल की कटाई प्रायः फरवरी से अप्रैल तक की जाती है।
जब 80 प्रतिशत फलियां पक जाएं तो कटाई करनी चाहिए। कटाई हंसिये द्वारा सावधानीपूर्वक करनी चाहिए, जिससे फलियां चटकने न पायें।
काटने के बाद फसल को एक सप्ताह तक खलिहान में सुखाते हैं। इसके बाद थ्रेशर द्वारा दाने अलग कर हवा में साफ कर लिये जाते हैं।
उपज एवं भण्डारण
मसूर की उपज किस्म, बोने का समय और नमी की उपलब्धता पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर दाने की उपज 20-25 क्विंटल तथा भूसे की उपज 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है।
दानों में 9-11 प्रतिशत नमी रहने तक सुखाने के बाद उचित स्थान पर भण्डारण करना चाहिए।