खुम्बी की खेती चूंकि कमरे के अंदर की जाती है ! इसलिए भूमि, जिस पर बढ़ती हुई जनसंख्या का पहले से ही बहुत अधिक दबाव है ! मशरूम लगाने के लिए उतनी आवश्यक नहीं है ! खुम्बी या मशरूम, एक प्रकार की फफूद है ! प्राकृतिक रूप से अपने आप उगने वाली मशरूम कुछ तो खाने योग्य होती हैं, तथा कुछ जहरीली भी हो सकती हैं ! लेकिन वैज्ञानिक ढंग से उगाई जाने वाली मशरूम की सभी किस्में खाने योग्य होती हैं ! बरसात में मौसम में यह खाद के ढेरों पर चरागाहों, खेतों और जंगलों में उग जाती है ! प्रकृति में पाई जाने वाली खुम्बों की संख्या 2,000 तक आंकी गई है ! इसमें से लगभग 70 की खेती की जा सकती है !

आमदनी का अच्छा साधन
मशरूम की किस्म महीना
सफेद बटन मशरूम अक्तूबर-फरवरी
ढ़ीगरी या आयस्टर मशरूम फरवरी-अप्रैल
दूधिया मशरूम (मिल्की मशरूम) जुलाई-अक्तूबर
मशरूम की खेती छोटे, भूमिहीन किसानों, बेरोजगार युवकों व ग्रामीण महिलाओं के लिए आमदनी का अच्छा साधन है ! मशरूम की खेती में अन्य फसलों की भांति भूमि की आवश्यकता नहीं होती ! इसकी खेती कच्चे या पक्के कमरे अथवा अस्थाई छप्पर-झोपड़ी बना कर की जा सकती है ! विश्व भर में लगभग एक दर्जन मशरूम की प्रजातियों का उत्पादन व्यापारिक स्तर पर किया जाता है परंतु भारत में मुख्य रूप से चार प्रजातियां अधिक प्रचलित हैं जिनकी खेती व्यापारिक स्तर पर की जाती है !
अनुकूल तापमान(डिग्री सैल्सियस) नमी(प्रतिशत)
22-24 80-90
25-30 80-90
25-35 80-90
» आयस्टर मशरूम या ढिंगरी मशरूम
» पैडी स्ट्रा, ट्रॉपिकल या चाइनीज मशरूम
» सफेद दूधिया मशरूम
पोषक पदार्थ प्रचुर मात्रा में
मशरूम एक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक आहार है ! जिसमें प्रोटीन, खनिज, लवण, विटामिन जैसे पोषक पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं ! मशरूम की अपनी एक आकर्षक खुश्बू होती है जिसके कारण इसे खाने में ज्यादा पसन्द किया जाता है ! आरंभ में लोग इसे स्वाद के लिए खाते थे किन्तु अब इसे पौष्टिक तत्वों तथा औषधीय उपयोगिता के कारण अब इसे गुणकारी आहार के रुप में खाया जाने लगा है ! खुम्बों में पाये जाने वाले प्रोटीन से शाकाहारी लोग अपने भोजन में प्रोटीन की कमी को पूरा कर सकते हैं ! खुम्बों में प्रोटीन की मात्रा सब्जियों व फलों की अपेक्षा 20-25 प्रतिशत, चावल से 73 प्रतिशत, गेहूं से 132 प्रतिशत, दूध से 252 प्रतिशत, बंदगोभी से दोगुणा, संतरे से चार गुणा व सेब से 12 गुणा अधिक पाई जाती है ! मशरूम में कम कैलोरी, कम वसा, कम स्टार्च, कम कोलेस्ट्रोल होने के कारण मशरूम का आहार उन व्यक्तियों के लिए वरदान है जो मोटापे, मधुमेह, अधिक तनाव व हृदय रोग से पीड़ित हैं !
मशरूम लगाने का तरीका
मौसम के आधार पर कम लागत में जो मशरूम की विभिन्न प्रजातियां को लगाने का तरीका इस प्रकार है ! व्यापारिक स्तर पर काश्त के लिए सफेद बटन मशरूम, आयस्टर या ढींगरी के साथ-साथ दूधिया मशरूम भी लोकप्रिय है ! इन खुम्बियों के उत्पादन के लिए भिन्नभिन्न तापमान व नमी की आवश्यकता होती है और इनकी काश्त भी अलग-अलग समय पर की जाती है !
कम्पोस्ट बनाना
यह निम्न प्रकार से तैयार की जा सकती है !
लम्बी विधि
इस विधि में कम्पोस्ट मिश्रण को बाहर फर्श पर सड़ाया जाता है और दो सप्ताह बाद एक खास कमरे में भर दिया जाता है जिसे चैंबर या टनल के नाम से जाना जाता है ! ठंडे स्थानों पर इस चैम्बर के अंदर कम्पोस्ट को गर्म करने के लिए बॉयलर का इस्तेमाल किया जाता है परंतु हमारे यहां कम्पोस्ट के सूक्ष्म जीवियों की क्रिया से काम चल जाता है ! चैंबर का फर्श जालीदार होता है तथा उसमें नीचे प्रेशर से ब्लोअर द्वारा हवा फैकी जाती है जो सारे कम्पोस्ट का तापमान एक समान बनाए रखती है जिससे कम्पोस्ट जल्दी तैयार हो जाती है !
चैंबर में सात फुट तक कम्पोस्ट भरी जाती है और कम्पोस्ट का तापमान तीनचार घंटों के लिए बॉयलर की भाप द्वारा 58-60 डिग्री सेल्सियस तक किया जाता है ताकि कम्पोस्ट में कीड़े, बीमारियां व सूत्रकृमि नष्ट हो जाए ! इसके बाद कम्पोस्ट का तापमान छह-सात दिन 48 डिग्री से ल्सियस रखा जाता है ! जब कम्पोस्ट में अमोनिया गैस प्रोटीन में बदल जाती है तब कम्पोस्ट का तापमान कम हो जाता है या फिर ताजी हवा से कम किया जा सकता है ! इस विधि से मशरूम उत्पादन लगभग दोगुना हो जाता है ! देश में ज्यादातर किसान लम्बी विधि द्वारा खाद तैयार करते हैं क्योकि ज्यादातर किसान छोटे स्तर पर ही मशरूम उत्पादन करते हैं ! किसान जब कम्पोस्ट बनाना शुरू करें, जो भी तूड़ा/भूसा/पराल लें वह बारिश में भीगी हुई तथा खराब नहीं होनी चाहिए !
कम्पोस्ट बनाने का तरीका
भूसे को फर्श पर फैलाकर अच्छी तरह भिगों लें, जहां तक हो सके कम्पोस्ट बनाने की जगह पक्की होनी चाहिए, नही तो ईटों को बिछाकर जगह पक्की कर लें ताकि कम्पोस्ट में मिट्टी आदि न मिलें ! साफसुथरी कच्ची जगह भी उपयोग की जा सकती है ! भूसे को फर्श पर बिछाकर अच्छी तरह एक दिन (24 घंटे) पानी से भिगोएं ! अब इस भीगे हुए भूसे में खाद व अन्य सामान मिलाकर निश्चित अवधि पर पलटाई करें जिसका कार्यक्रम निम्न है !
पहला दिन :
गीले भूसे को एक फुट की तह में बिछा देते हैं तथा उसके ऊपर रसायन उर्वरक छह किलोग्राम यूरिया, तीन किलोग्राम सुपर फास्फेट, तीन किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 15 किलोग्राम गेहूं का छानस बिखेर दें तथा अच्छी तरह मिला दें ! इसके बाद पांच फुट ऊंचा, पांच फुट चौड़ा तथा लंबाई सुविधानुसार एक ढ़ेर बना दें ! ढ़ेर बनाने के 48 घंटे के अंदर ही तापमान 70-75 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है !
छह दिन बाद पहली पलटाईः
ढ़ेर का बाहरी भाग हवा में खुला रहने से सूख जाता है जिससे खाद अच्छी तरह नहीं सड़ता ! पलटाई देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि अंदर का भाग बाहर व बाहर का भाग अंदर आ जाए तथा सूखे भाग पर पानी का हल्का छिड़काव कर दें ! इस समय तीन किलोग्राम किसान खाद, 12 किलो यूरिया तथा 15 किलोग्राम चोकर मिला दें व ढेर को दोबारा पहले दिन जैसा बना दें !
10 वें दिन दूसरी पलटाईः
खाद के ढेर के बाहर के एक फुट खाद को अलग निकाल लें तथा इस पर पानी का छिड़काव करके पलटाई करते समय ढेर के बीच में डाल दें ! इस पलटाई के समय खाद में पांच किलोग्राम शीरा दस लिटर पानी में मिलाकर ढ़ेर बनाने से पहले ही सारे खाद में अच्छी तरह मिला दें !
13 वें दिन तीसरी पलटाई :
खाद को जैसे दूसरी पलटाई दी थी उसी तरह तीसरी पलटाई देनी चाहिए ! बाहर के सूखे भाग पर हल्का पानी जरुर छिड़के ! खाद में नमी न तो अधिक और न कम होनी चाहिए ! खाद में 30 किलोग्राम जिप्सम मिला लेना चाहिए ! ढेर को ठीक उसी तरह से तोड़ना चाहिए जैसे कि 10वें दिन दूसरी पलटाई पर तोड़ा गया और फिर दोबारा से वैसा ही ढेर बना देना चाहिए !
16वें दिन चौथी पलटाई :
कम्पोस्ट के ढेर में पलटाई करें, तथा नमी देखें, नमी ठीक होनी चाहिए !
19वें दिननपांचवी पलटाई :
कम्पोस्ट में पलटाई कर ढ़ेर बना दें !
22वें दिन छठी पलटाई :
पलटाई कर फिर से ढेर बना दें !
25वें दिन सातवीं पलटाई :
पलटाई करें व ढेर फिर से बना दें !
28वें दिन आठवीं पलटाई :
इस दिन कम्पोस्ट का परीक्षण अमोनिया तथा नमी के लिए किया जाता है ! नमी की उचित मात्रा की पहचान करने का सबसे आसान तरीका यह है कि थोड़ी सी कम्पोस्ट को मुट्ठी में लेकर हल्का सा दबाएं, पानी की बूंदें अंगुलियों के बीच से बाहर आनी चाहिएं, परंतु पानी की धार नहीं बननी चाहिए, यदि पानी की मात्रा आवश्यकता से अधिक है तो कम्पोस्ट के ढेर को खोल कर हवा लगा देनी चाहिए ! कम्पोस्ट के ढेर से कम्पोस्ट को सूखें, इसमें अमोनिया गैस की बदबू जैसी की पहली पलटाई के समय आती थी, नहीं होनी चाहिए, यदि रह गई तो एक दिन छोड़ कर एक दो पलटाई करें, जब तक की यह बदबू खत्म नहीं हो जाए ! यदि पानी की मात्रा उचित है व अमोनिया गैस की बदबू नहीं है तो कम्पोस्ट तैयार है !
कम्पोस्ट में बिजाई (स्पानिंग)
मशरूम की खेती में प्रयोग होने वाले बीज को मशरूम का बीज (स्पान) कहते हैं ! अच्छी पैदावार लेने के लिए बीज शुद्ध व अच्छी किस्म का होना चाहिए ! मशरूम के बीज में चिपचिपापन अथवा बदबू नहीं होनी चाहिए ! अनाज के हर दाने पर मशरूम के कवक का सफेद जाला होना चाहिए ! बीच में किसी प्रकार से सड़ने जैसी गंध नहीं आनी चाहिए ! थैलों में किसी प्रकार का द्रव्य रिसाव नहीं होना चाहिए !
मशरूम का बीज
यह प्लास्टिक बैगों में गेहूं या ज्वार या बाजरा के दानों पर तैयार किया जाता है ! बिजाई के लिए 100 किलोग्राम तैयार खाद के लिए 500 ग्राम बीज काफी है ! बीज की अग्रिम बुकिंग कम से कम एक महीना पहले अवश्य करवा लें ! जब कम्पोस्ट बनाना शुरू करें, उसी समय जितने क्विंटल भूसा लिया है उतना ही किलो स्पान बुक करा दें ! क्योंकि हम जितनी तूड़ी या भूसे की मात्रा से कम्पोस्ट बनाना शुरू करते हैं, तो 28 दिनों बाद कम्पोस्ट की मात्रा दोगुनी हो जाती है !
कम्पोस्ट में स्पान मिलाने से पहले ढ़ेर को खोलकरठंडा होने के लिए छोड़ दें, गर्म कम्पोस्ट में स्पानिंग नहीं करनी चाहिए, खाद में बीज मिलाकर या तो पॉलीथीन बैगों में भरा जाता है या रैकों पर बिछाया जाता है ! ऊपर थोड़ा सा बिखेर दें और खाद के ऊपर दो प्रतिशत फोरमेलन में भिगोया हुआ अखबार या पॉलीथीन शीट बिछा दें ! कमरे का तापमान 24-25 डिग्री सैल्सियस स्पानिंग 15 अक्तूबर के बाद करें, उस समय अंदर का तापमान ठीक होता है तथा नमी 80-90 प्रतिशत बनाए रखें ! आवश्यकतानुसार अखबार के ऊपर तथा कमरे में सुबह शाम स्प्रेयर पंप से पानी का हल्का छिड़काव करें ! यदि स्पानिंग बिजाई) बैगों में की है तो इसमें कम्पोस्ट एक से सवा फुट तक भरना चाहिए व रैकों के ऊपर प्लास्टिक की चादर बिछाकर बिजाई करते हैं तो कम्पोस्ट की ऊचाई लगभग छह इंच होनी चाहिए !
बीज को रखने में सावधानियां
मशरूम का बीज अधिक तापमान पर शीघ्र नष्ट हो जाता है ! मशरूम का बीज 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 48 घंटों में भर जाता है ! इस तरह के बीज में सड़ने की बदबू आने लगती है ! बीज को गर्मियों में रात को लाना चाहिए ! हो सके तो थर्मोकोल शीट के बने डिब्बे में लिफाफों के बीच में बर्फ के टुकड़े रख कर लाएं ! बीज पर धूप नहीं लगनी चाहिए ! यदि बीज बस से लाएं तो बीज को आगे इंजन के पास न रखें !
बीज का भंडारण
मशरूम का ताजा बना हुआ बीज कम्पोस्ट में शीघ्र फैलता है ! मशरूम शीघ्र निकलने शुरू हो जाते हैं तथा पैदावार भी अधिक मिलती है ! फिर भी कभी-कभी भंडारण करना जरुरी हो तो मशरूम को रैफ्रीजरेटर में ही भंडारण करें ! ऐसा करने से 10-15 दिन तक बीज खराब नहीं होता !
केसिंग मिश्रण
खाद में जब स्पान पूरी तरह फैल जाए तो उसके उपर मिट्टी तथा धान के छिलके की राख या अन्य किसी मिश्रण की डेढ इंच की एक परत बिछाई जाती है जिसको हम केसिंग कहते हैं ! केसिंग मशरूम की वनस्पतिक वृद्धि में सहायक होती है, यदि केसिंग न की जाए तो बहुत की कम मात्रा में मशरूम निकलते हैं ! केसिंग के बाद में नमी बनी रहती है जो मशरूम के बनने के लिए आवश्यक है !
केसिंग मिश्रण कैसे बिछाएं
अनुकूल वातावरण में स्पानिंग के 15-20 दिन बाद मशरूम का जाला खाद (कम्पोस्ट) में फैल जाता है, इसके पश्चात् ही केसिंग मिश्रण खाद पर बिछाना ठीक रहता है ! केसिंग करने से पहले अखबार या पॉलीथीन चादर खाद के ऊपर से हटा दें ! इसके बाद खाद के ऊपर एक इंच केसिंग मिश्रण की तह बिछा दें ! केसिंग की सतह समतल रखनी चाहिए ! केसिंग करने के तुरंत बाद फोरमेलिन दो प्रतिशत व बाविस्टिन 0.05 प्रतिशत के घोल का छिड़काव कर देना चाहिए !
केसिंग के बाद पर्यावरण बनाना
खाद के ऊपर केसिंग बिछा देने के बाद 7-10 दिनों तक तापमान 23-25 डिग्री सैल्सियस रहना चाहिए ! जब छोटी-छोटी सफेद खुम्बियां निकलने लगें तो तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से नीचे होना चाहिए ! यह तापमान तब तक बनाए रखें जब तक मशरूम निकलते रहें ! दिसंबर के अंतिम सप्ताह तथा जनवरी में तापमान काफी कम हो जाता है जिसके कारण मशरूम कम निकलते हैं ! तापमान धुएं वाले ईंधन से नहीं बढ़ाएं ! मशरूम निकलने वाले कमरे में नमी का होना जरूरी है और जब मशरूम निकलने शुरू हो जाएं तो नमी 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए ! आमतौर पर यह देखा गया है कि मशरूम उत्पादक केवल खाद पर ही पानी का छिड़काव करते हैं ! नमी बनाए रखने के लिए कमरे की खिड़कियों तथा दरवाजों पर गीली बोरी लटका कर रखनी चाहिए व इन पर पानी छिड़कते रहें ताकि बाहर से जो हवा आए वह भी नम हो जाए !
मशरूम की तुड़ाई तथा भंडारण
बिजाई के 20-25 दिन बाद या केसिंग सात आठ दिन बाद मशरूम के पिन हैड दिखाई देने लगते हैं ! बटन की अवस्था में मशरूम की टोपी का आकार तीन-पांच सेमी. हो जाए तथा इसकी टोपी खुली न हो तो इस अवस्था में मशरूम तोड़ने योग्य होती है ! तोड़ने के लिए टोपी को अंगूठे से हल्का सा पकड़ कर घड़ी की सूई की तरफ या फिर उल्टी तरफ हल्का घुमा देते हैं तथा मशरूम को धीरे से ऊपर की ओर खींच लेते हैं !
मशरूम के तने के निचले सिरे पर केसिंग मिट्टी तथा कवक धागे होते हैं जिन्हें तेज चाकू से काटकर अलग कर दिया जाता है ! मशरूम की तोड़ाई प्रतिदिन होती है ! खुम्बी रगड़ लगने से तथा ज्यादा देर हवा में रखने से भूरी हो जाती है जिससे इसकी कीमत बाजार में घट जाती है ! बाद में खुम्बियों को साफ पानी में धोते हैं ! अधिक सफेदी लाने के लिए मशरूम उत्पादक मशरूम को पोटाशियम मैटाबाईसल्फाईट के घोल से धो लेते हैं ! इसके पश्चात् कुछ देर सूखने के लिए रख देते हैं फिर मशरूम को पॉलीथीन बैगों में भर दिया जाता है ! मशरूम के साधारणत 200 ग्राम के पैकेट बनाए जाते हैं तथा इन पॉलीथीन के लिफाफों में हवा के लिए दो-तीन छेद कर दिए जाते हैं !
सावधानियां
» मशरूम उगाने के लिए खाद/कम्पोस्ट उन्हीं पदार्थों
से बनाना चाहिए जो आसानी से उपलब्ध हो सके ! अच्छी खाद ज्यादा पैदावार देती है ! कम्पोस्ट में गोबर की खाद न मिलाएं !
» कम्पोस्ट बनाने के लिए पहले स्पान की उपलब्धता
अवश्य सुनिश्चित कर लें क्योंकि कई बार बीज समय पर न मिलने से अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है !
» खाद पक्के फर्श पर ही बनाएं !
» खाद में नमी की मात्रा 65-70 प्रतिशत होनी चाहिए !
» अच्छी पैदावार के लिए कमरे का तापमान तथा नमी उचित रखें !
» जब खुम्बी की टोपी फटी-फटी नजर आए तथा खुलने लगे तो कमरे में नमी की मात्रा बढ़ाएं तथा खुम्बी में सीधी तेज हवा न लगने दें !
» जब डंडी लंबी होने लगे तो कमरे में स्वच्छ हवा का प्रवेश होने दें जिससे कार्बनडाई-आक्साईड की मात्रा कम हो जाती है !
» कमरे की सफाई का विशेष ध्यान रखें !
» केसिंग स्पान फैलने के बाद ही करें !
» मशरूम सावधानी से तोड़े तथा उस जगह पर केसिंग कर दें !
» मशरूम भवन में प्रवेश कम से कम हो !
» कम्पोस्ट बनाना सितंबर माह में पहले शुरू नहीं करना चाहिए !
» रेक में खाद की ऊंचाई छह इंच रखें, यदि बैगों में मशरूम लगा रहे हैं तो खाद की ऊंचाई 12-15 इंच रखें
बीज प्राप्त करने के स्रोत
» पौध रोग विभाग चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार !
» राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र चंबाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश !
» हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज, मशरूम केन्द्र, मूरथल, जिला सोनीपत, हरियाणा !
» डिविजन आफ माइक्रो बायोलॉजी एंड प्लांट पैथोलोजी आईएआरआई, नई दिल्ली !
राकेश कुमार चुघ वैज्ञानिक, पादप रोग विभाग
चौधरी चरण सिंह
Kitane biz ak bar me buayi karenge aur kitane niche. Batao sir
Please can you translate into english..feels very interesting..thsnk you