इसका वैज्ञानिक नाम tagetes erecta है ! गेंदा (Marigold/genda flower) जिसे भारत का गुलाब के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण पुष्प वाली एक वर्षीय फसल है जिसे सुन्दरता का प्रतीक माना जाता है तथा इसके फल अन्य फलों से सस्ता होने के कारण बाजार में इसकी माँग भी अधिक है।
गेंदा (Marigold/genda flower) सुन्दरता, औषधियों और औद्योगिक महत्व की एक महत्वपूर्ण फलों वाली फसल है। गेंदा सभी पुष्पों से अधिक आमदनी देने वाला तथा सरल खोती की श्रेणी में आता है। गेंदे की खोतीवर्ष भर कर सकते हैं।
प्रजातियाँ : (Marigold/genda flower variety)
किसानों के द्वारा व्यवसायिक कृषि में गेंदे की दो प्रजातियाँ फूलों के उत्पादन में काम ली जाती हैं।
1. अफ्रीकन गेंदा (African Marigold/genda flower)
2. फ्रेन्च गेंदा (French Marigold/genda flower)
1. अफ्रीकन गेंदे की किस्में (Marigold/genda flower Variety)
इस प्रजाति के पौधों की औसत ऊँचाई 80-90 सेंमी होती है, और इसके फूलों का रंग सफेद, नारंगी व पीला होता है। इनमे मुख्य किस्मे निम्नलिखित है –
गोल्डन येलो, गोल्डस्मिथ, हैपिनेस, हवाई, हनी कॉम्ब, मि.मूनलाइट, पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, अलास्का, एप्रिकॉट, बरपीस मिराक्ल, बरपीस हाईट, क्रेकर जैक, क्राऊन ऑफ गोल्ड, कूपिड़, डबलून, फ्लूसी रफल्स, फायर ग्लो, जियाण्ट सनसेट, गोल्डन एज, गोल्डन क्लाइमेक्स जियान्ट, गोल्डन जुबली, गोल्डन मेमोयमम, ओरेन्ज जूबली, प्रिमरोज, सोबेरेन, रिवरसाइड, सन जियान्ट्स, सुपर चीफ, डबल, टेक्सास, येलो क्लाइमेक्स, येलो फ्लफी, येलोस्टोन, जियान्ट डबल अफ्रीकन ओरेन्ज, जियान्ट डबल अफ्रीकन येलो आदि।
अफ्रीकन हाइब्रिड् गेंदा किस्मे : (Hybrid Marigold/genda flower)
अपोलो, क्लाइमेक्स, फर्स्ट लेडी, गोल्ड लेडी, ग्रे लेडी, मून सोट, ओरेन्ज लेडी, शोबोट, टोरियडोर, इन्का येलो, इन्का गोल्ड, इन्का ओरेज्न आदि।
2. फ्रेन्च गेंदे की किस्में – (French Marigold/genda flower)
इस प्रजाति के पौधों की औसत ऊँचाई 50-60 सेंमी होती है, इसमें फूलों का रंग लाल-पीला होता है
सिंगल : डायण्टी मेरियटा, नॉटी मेरियटा, सन्नी, टेट्रा रफल्ड रेड इत्यादि।
डबल : बोलेरो, बोनिटा, बारउनी स्कॉट, बरसीप गोल्ड नगेट, बरसीप रेड एण्ड गोल्ड, बटर स्कॉच, कारमेन, कूपिड़ येलो, एल्डोराडो, फोस्टा, गोल्डी, जिप्सी डवार्फ डबल, हारमनी, लेमन ड्राप, मेलोडी, मिडगेट हारमनी, ओरेन्ज फ्लेम, पेटाइट गोल्ड, पेटाइट हारमनी, प्रिमरोज क्लाइमेक्स, रेड ब्रोकेड, रस्टी रेड, स्पेनिश ब्रोकेड, स्प्री, टेन्जेरीन, येलो पिग्मी आदि |

भूमि का चुनावः (Soil for Marigold/genda flower)
गेंदे की फसल को सभी प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है। इसके लिए उचित वायु संचार, गहरी मृदा, उपयुक्त जल-धारण क्षमता तथा 6.0-8.0 पी. एच. मान वाली भूमि में अच्छी पैदावार ली जा सकती है। गेंदे की फसल के लिये उपयुक्त मृदा बलुई दोमट मानी जाती है।
भूमि की तैयारी: (Field preparation for Marigold/genda flower)
मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करने के बाद एक देशी हल से जुताई कर देते हैं तथा बाद में मृदा में जैविक खाद डाल दी जाती है भूमि की तैयारी के समय 10-15 टन गोबर की खाद मिला दी जाती है तथा फिर एक गहरी जुताई कर दी जाती है ताकि वो जमीन में अच्छी तरह मिल जाये
क्योंकि गोबर की खाद डालने से भूमि मे जल धारण क्षमता, वायु संचार और पौधों को मौसम की प्रतिकूल पारिस्थतियों सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है जिसका प्रभाव सीधा उसकी उपज पर पड़ता है।
प्रवर्धन :
गेंदे के प्रवर्धन की कई विधियाँ हैं परन्तु कृषक दृष्टिकोण से बीज के द्वारा प्रवर्धन की विधि उपयुक्त मानी जाती है। गेंदे का बीज आकार में बहुत छोटा होने के कारण नर्सरी में इसकी पौध तैयार करने हेतु एक हैक्टेयर के लिये 1-1.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त माना जाता है।
पौध अन्तराल: (planting distance in Marigold/genda flower)
गेंदा की फसल से उचित उत्पादन प्राप्त करने हेतु खेत के अन्दर पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखते हैं।
उर्वरक: (fertilizer in Marigold/genda flower)
गोबर की खाद के अलावा पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग किया जाता है ! इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटेशियम की निम्न मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए।
नाइट्रोजन 100-150 किलोग्राम, फास्फोरस 60- 80 किलाग्राम व पोटेशियम 80-100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर।
उवर्रक देने का उचित समय:
नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा तथा फास्फोरस व पोटेशियम की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई से पहले खेत में डाल देनी चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा 50-60 दिन बाद प्रयोग करनी चाहिए।
सिंचाई: (irrigation in Marigold/genda flower)
गेंदे में सिंचाई मुख्यतया मौसम पर निर्भर होती है। ग्रीष्म ऋतु में 7 दिन, सर्द ऋतु में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
वैसे वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है मगर फिर भी पानी की कमी दिखाई देने पर एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: (weed control in Marigold/genda flower)
खरपतवारों के नियंत्रण के लिए कई रसायन बाजार में उपलब्ध हैं परन्तु जहाँ तक हो गेंदा की फसल में खरपतवारनाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके नियंत्रण के लिए 2-3 निराई-गुड़ाई करें।
पिंचिंगः
गेंदे के पौधों को भली-भांति विकसित करने के लिए उसके शीर्ष भाग के साथ 2-3 पत्तियों को 30-35 दिन बाद तोड़ी जाती हैं जिससे पौधे की ऊँचाई कम तथा बाहरी शाखाओं की वृद्धि अधिक होती है जिससे फूलों का उत्पादन अधिक होता है।
फूलो की चुनाई:
(1) फूलों की तुड़ाई उचित अवस्था पर करें ।
(2) फूलों की तुड़ाई ठण्डे मौसम में करें। इसके लिये सुबह या शाम का मौसम उपयुक्त रहता है।
(3) फूलों की तुड़ाई निश्चत अन्तराल पर लगातार करनी चाहिए, क्योंकि लगातार नहीं करने पर उपज में कमी आ जाती है।
(4) सामान्यत गेंदा की फसल में 8-12 तुड़ाई की जाती है।
पैकिंग:
फूलों की तुड़ाई के बाद इनको ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए तथा बाजार के लिए अपने पास उपलब्ध वस्तु में भरकर ले जायें।
उपज: (production of Marigold/genda flower)
सामान्यतः गेंदा की फसल से औसतन 18-22 टन प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। परन्तु उचित प्रबंधन करने से 30-35 टन तक भी उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
रोग व कीट: (disease insect pest in Marigold/genda flower)
गेंदा की फसल रोग व कीटों से स्वतंत्र मानी जाती है परन्तु विशेष परिस्थितियों में रोग व कीटों का प्रकोप हो जाता
है।
आद्रगलनरोगः
इस रोग के प्रकोप से पौधे का तना जमीन की सतह से गल जाता है। रोकथाम :-
(1) मृदा को फोमीलीन से उपचारित करके बोना चाहिए।
(2) केप्टान 2 गाम/लीटर की दर से छिड़काव करें।
पत्ती धब्बा रोग :-
इस रोग के अन्तर्गत पत्तियों में सफेद धब्बे बन जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए कवकनाशी का छिड़काव करें।
जड़-सड़न :-
इस रोग के अन्तर्गत पौधे की जड़ सड़ने लग जाती है तथा पौधों को उखाड़ने पर उसकी जड़ से एक दर्गन्ध आती है।
रोकथाम :-
इसके लिये भूमि को उपचारित करना चाहिए। फसल में इस रोग का प्रकोप होने से थाइरम 2 मिलीग्राम प्रतिलीटर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
कीट व उनका प्रबधंन :
मोयला
इस कीट का प्रकोप सम्पूर्ण पौधे पर होता है जब वातावरण में बादलों का लम्बे समय तक रहना, आर्द्रता का अधिक होना। इसके अन्तगर्त कीट पौधों का रस चूसकर उसकी वृद्धि व विकास को रोक देता है। इसके नियंत्रण के लिये डाइमिथोएट (रोगोर) 2 मिलीग्राम प्रतिलीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
थ्रिप्स
यह कीट ‘ पत्तियों का रस चूसकर उसकी वृद्धि को रोक देता है। पत्तियों में ‘ पीलापन दिखाई देने लगता है। नियंत्रण के लिये डाइमियोएट (रोगोर) 2 मिलीग्राम प्रतिलीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
सावधानियाँ:
गेंदे की फसल को पौधशाला में रोग व कीटों से बचाव का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
पौधशाला हमेशा एक उचित स्थान पर ही बनानी चाहिए। क्योंकि पौधा जितना स्वस्थ होगा उत्पादन उतना ही अधिक होगा।
मौसम की प्रतिकूल | परिस्थितियों से बचाने के लिये बुवाई के समय में थोड़ा परिवर्तन कर देना चाहिए।
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