मडुआ, मंडुआ (Mandua), रागी (Ragi), नाचनी से आमदनी/ कैसे करे खेती

मडुआ को मंदुआ, मंडुआ (Mandua), रागी (Ragi), finger millet, नाचनी जैसे नामों से भी जाना जाता है I इसका वानस्पतिक नाम एलुसिन कोरकाना (eleusine coracana) है।

भारत के अनेक राज्यों में इसकी खेती खरीफ मौसम में की जाती है, इनमें झारखंड प्रमुख है। यह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कम देखभाल होने पर अच्छी पैदावार देने वाली फसल के रूप में जानी जाती है।

यह सभी प्रकार की मृदा में उगाई जा सकती है, जिस मृदा में अच्छी जीवांश की मात्रा हो तथा जल निकास की व्यवस्था हो उसमें उगाई जा सकती है।

यह कुछ हद तक जलजमाव भी बर्दाश्त कर सकती है। जमीन की तैयारी के लिए तीन से चार बार खेत की अच्छी जुताई करके पाटा चला दें।

गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खेत में मिला दें तथा फसल की बुआई से पूर्व बीज उपचार कर लेना अति आवश्यक है।

मडुआ बीजदर एवं बोने का उचित समय Madua seed rate and sowing time

बीज का चयन मृदा की किस्म के आधार पर करें, जहां तक संभव हो प्रमाणित बीज का प्रयोग करें। यदि किसान स्वयं का बीज उपयोग में लाता है, तो बुआई पूर्व बीज साफ करके फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम से उपचारित करके बोयें।

मडुआ की सीधी बुआई अथवा रोपा पद्धति से बुआई की जाती है। सीधी बुआई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक मानसून वर्षा होने पर की जाती है।

छिटकवां विधि या पंक्तियों में बुआई की जाती है। पंक्ति में बुआई करने हेतु बीज दर 8 से 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर एवं छिटकवां पद्धति से बुआई करने पर बीज दर 12-15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर रखते हैं।

पंक्ति पद्धति में दो पंक्तियों के बीच की दूरी 22.5 सें.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखें।

रोपाई के लिये नर्सरी में बीज जून के मध्य से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक डाल देना चाहिये। एक हैक्टर खेत में रोपाई के लिये बीज की मात्रा 4 से 5 कि.ग्रा. लगती है एवं 25 से 30 दिनों की पौध होने पर रोपाई करनी चाहिये ।

मडुआ की उन्नत प्रजातियां Madua seed variety

मडुआ की उन्नत प्रजातियों में ए-404 वैरायटी 115-120 दिनों में तैयार हो जाती है I इस क़िस्म की औसत उपज 25-30 क्विंटल / हैक्टर है I

एच. आर. 374 क़िस्म 100-105 दिनों में तैयार हो जाती है I इस क़िस्म की औसत उपज 20-25 क्विंटल /हैक्टर है I

पी. आर. 202 क़िस्म 115-120 दिनों में तैयार हो जाती है तथा इसकी औसत उपज 22-27 क्विंटल / हैक्टर है । इनकी उपज क्षमता प्रजातीय तथा परिपक्वता अवधि पर निर्भर करती है।

खाद एवं उर्वरक

मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग सर्वोत्तम होता है। असिंचित खेती के लिये 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन व 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर की दर से अनुशंसित है।

नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुआई पूर्व खेत में डाल दें। नाइट्रोजन की शेष मात्रा पौध अंकुरण के 3 सप्ताह बाद प्रथम निराई के उपरांत समान रूप से डालें।

कम्पोस्ट खाद 100 क्विंटल प्रति हैक्टर का उपयोग अच्छी उपज के लिये लाभदायक पाया गया है । जैविक खाद एजोस्पाइरिलम ब्रेसीलेन्स एवं एस्परजिलस अवामूरी से बीजोपचार 25 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से लाभप्रद पाया गया है।

सिंचाई

मडुआ के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बीज बारिश के मौसम में लगाए जाते हैं। इसके पौधे अधिक समय तक सूखे को सहन कर सकते हैं।

यदि बारिश समय पर नहीं होती है, तो इसकी पहली सिंचाई बीज रोपाई के एक महीने बाद की जाती है। इसके बाद जब पौधों पर फूल और दानों का विकास हो रहा हो, उस दौरान पौधों की सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतराल में दो से तीन बार की जाती है। इससे बीज अच्छे आकार के प्राप्त होते हैं। और उत्पादन में भी वृद्धि होती है। खरपतवार नियंत्रण

मडुआ की फसल में खरपतवार की समस्या के नियंत्रण के लिए जरूरी है कि समय-समय पर उसकी निराई-गुड़ाई करते रहें।

पहली निराई 21 से 25 दिनों बाद और दूसरी उसके 15 दिनों बाद करने की अनुशंसा की गई है।

ज्यादा पौध होने की स्थिति में छंटनी करके जरूरत से ज्यादा पौधों को निकालने की आवश्यकता होती है। यह कार्रवाई 12 से 15 दिनों के बाद कर लेनी चाहिए। रोपण के 15 से 20 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई पंक्तियों के बीच डच को चलाकर करें।

रसायनों के प्रयोग से खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। इसके आइसोप्रोट्यूरॉन नामक दवा की 1 लीटर मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 48 घंटों के अंदर छिड़काव करनी चाहिए ।

रोग नियंत्रण

मडुआ की फसल में कीट और रोग कम लगते हैं। बालियों में दाना भरते समय गंधी कीट का आक्रमण फसल पर हो सकता है।

धान और मडुआ दोनों फसलों की खेती क्षेत्र में इस कीट का आक्रमण होने पर इसकी रोकथाम के लिए 1.5 प्रतिशत इकॉलक्स या लिडेन धूल का 20-25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से खड़ी फसल पर भुरकाव करें।

मडुआ की फसल में झुलसा रोग प्रायः लगता है। इसकी रोकथाम के लिए 1 लीटर हिनोसन नामक दवा को 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से रोग लगते ही फसल पर छिड़काव करें।

मडुआ की कटाई

प्रजातियों की परिपक्वता अवधि के अनुसार कटाई की जाती है। बालियों के पकने पर कटाई कर तीन से चार दिनों तक खलिहान में धूप में सुखाकर दौनी करनी चाहिए । फिर साफ-सफाई कर इसे भंडारित करें । मडुआ की फसल कम दिनों में तैयार होकर अच्छी उपज देती है।

शेयर करे

2 thoughts on “मडुआ, मंडुआ (Mandua), रागी (Ragi), नाचनी से आमदनी/ कैसे करे खेती”

Leave a comment

error: Content is protected !!