(Litchi ki kheti) – हमारे देश में लीची की औसत पैदावार लगभग 70 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है और करीब 60 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती है। यह फलों के कुल क्षेत्रफलों का 1.44 प्रतिशत है।

भारत में लीची के कुल क्षेत्रफल में 45 प्रतिशत तथा कुल उत्पादन में 66 प्रतिशत का योगदान बिहार राज्य का है। लीची की उत्पादकता बिहार में लगभग 120 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है जो देशभर में सबसे ज्यादा है !
लगभग सभी राज्यों में इस फल का एरिया बढ़ ही रहा है। अतः भविष्य में इसके फैलाव की असीम संभावनाएँ है तथा उतम तकनीक से खेती करने पर इसकी उत्पादकता तथा गुणवत्ता दोनों बढायी जा सकती है।
लीची में पोषक तत्व
इसके ताजे फल में 70 प्रतिशत भाग गुद्दे का होता है जो खाने में स्वादिष्ट होता है। इसमें चीनी की मात्रा 10-15 प्रतिशत तथा प्रोटीन 11 प्रतिशत होती है यह विटामीन ‘सी’ का भी अच्छा श्रोत है।
लीची की किस्मे
1) मई के प्रथम पक्ष में पकने वाली – देशी, अर्ली बेदाना
2) मई के दूसरे पक्ष में पकने वाली – शाही, रोज सेन्टेड, एवं पूर्वी
3) मई के अन्त से जून के प्रथम सप्ताह में पकने वाली – चायना, कसबा, मंदराजी, लेट बेदाना
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लीची के लिए जलवायु
लीची की सफल बागवानी (Litchi ki kheti) के लिए आर्द्र जलवायु उपर्युक्त है।
मिट्टी
litchi ki kheti विभिन्न प्रकार की मिट्टी में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परन्तु इसके लिए दोमट अथवा बलुआही दोमट मिट्टी तथा जलस्तर 2.5 से 3 मीटर नीचे हो उपयुक्त समझा जाता है।
भूमि काफी उपजाऊ गहरी एवं उत्तम जल निकासी वाली होनी चाहिए। इसके लिए हल्की क्षारीय एवं उदासीन मिट्टी अधिक उपर्युक्त समझी जाती है।
अप्रैल के शुरू में जमीन का चुनाव करके जुताई कर समतल कर लें। लीची का बाग वर्गाकार पद्धति से लगायें।
मई के प्रथम या द्वितीय सप्ताह में 8 मीटर की दूरी पर 90 से0मी0 व्यास तथा 90 से0मी0 गहराई के गडढ़े खोदकर दो सप्ताह खुले छोड दें ताकि मिट्टी में उपलब्ध हानिकारक फफूंद या कीट का नाश हो जाये।
जून के दूसरे सप्ताह में निम्नलिखित खाद गडढ़े से निकाली मिट्टी में मिलाकर पुनः गडढ़े में भर दें।
कम्पोस्ट –40 किलोग्राम
सिंगल सुपर फॉस्फेट – 2.3 किलोग्राम
म्युरियेट ऑफ पोटाश – 01 किलोग्राम
नीम की खल्ली –250 ग्राम
थाईमेट –05 ग्राम
गडढ़े की मिट्टी बैठने पर ही पौधे जुलाई-अगस्त में लगायें। पौधे लगाने के बाद जड़ के बगल में मिट्टी भर दें तथा शुरू में सुबह-शाम पानी बराबर दें।
ड्रिप सिंचाई संयंत्र का विवरण
क्षेत्रफल – 01 हेक्टेयर
लगाने की दूरी- 8मीटर x 8मीटर
सिंचाई की अवधि
लीची (litchi ki kheti) में ड्रिप सिचाई के लिए 8 लीटर से लेकर 67 लीटर प्रति दिन प्रति पौधा जल की आवश्कता पड़ती है। साधारणतः पानी की आवश्यकता मिट्टी के प्रकार, पेड के उम्र तथा मौसम की स्थिति के मुताबिक पडती है
लीची में ड्रिप सिंचाई एक दिन के अंतराल में दिया जाता है। सिंचाई जल के साथ खाद एवं पोषक तत्व फलदार वृक्षों में मार्च से मई के प्रथम सप्ताह तक एक सप्ताह के अंतराल में दिया जाता है।
फल फटने की रोकने के लिए लीची के पुर्णीय भाग को 2 cm आकार का लीची फल बनने के बाद मिनि स्प्रिंकलर से हर दिन 2-3 घंटे, 30 लीटर प्रति घंटा तथा 3 मीटर व्यास की जगह को भिगोने वाला मिनि स्प्रिंकलर का उपयोग किया जाता है।
ड्रिप सिचाई एवं मिनि स्प्रिंकलर से लाभ
- पानी की बचत
- उत्पादन में वृद्धि।
- फल फटना 11 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत रह जाता है।
- खाद एवं पोषक तत्व की बचत एवं उसके उपयोग दक्षता में बचत एवं उसके उपयोगदक्षता में बढोतरी।
- कम पानी धारण क्षमता वाले मिट्टी, ऊँच-नीच भूमि तथा उसर भूमि में सिंचाई की जा सकती है।
- उर्जा एवं मजदूर की बचत।
- अच्छी गुणवत्ता वाला एवं रोगयुक्त उत्पाद ।
खाद एवं उर्वरक
मिट्टी में खाद देने का उपयुक्त समय वर्षा ऋतु की आरंभ (जून- जूलाई) है। पौधे लगाने के बाद तालिका-1 में बताई गई मात्रानुसार खाद डालें।
जस्ते की कमी वाली मिट्टी में जब पत्तियों का रंग काँसे जैसा होने लगता है वृक्षो पर 4 किलो जिंक सल्फेट, 2 किलो बुझे हुऐ चूने के साथ मिलाकर 500 लीटर पानी में घोल कर पत्तियों तथा तनों सहित पूरे बाग में छिडकाव करें।
तालिका-1
खाद का नाम | प्रथम वर्ष (किलोग्राम) | प्रतिवर्ष बढ़ाने वालीमात्रा किलोग्राम | प्रौढ़0 वृक्ष के लिएमात्रा किलोग्राम |
कम्पोस्ट/ सड़ी गोबर खाद | 2 | 1 | 60 |
अण्डी की खल्ली | 0.5 | 0.5 | 5 |
नीम की खल्ली | 0.5 | 0.5 | 3 |
सिंगल सुपर फॉस्फेट | 0.5 | 0.25 | 5 |
म्युरियेट ऑफ पोटाश | 0.1 | 0.15 | 1.5 |
चूना (जहाँ कमी हो) | 2 | – | – |
यूरिया | 0.15 | 0.2 | 2 |
नोट:- पानी में अधुलनशील सभी खाद को मिट्टी में ही डालें। परन्तु धुलनशील तरल खाद (युरिया के रूप में नेत्रजन) को सिचाई जल के साथ धोलकर 9-10 बार हर पखवारे फर्टिगेशन दें।
कटाई-छटाई (litchi ki kheti training & pruning)
साधारणतः लीची में किसी प्रकार की कटाई छंटाई की आवश्यकता नहीं होती है। फल तोडतें समय लीची के गुच्छे के साथ टहनी का भाग भी तोड लिया जाता है।
इस तरह इसकी हल्की काट- छाँट अपने आप हो जाती है। और नयी शाखाओं में फूल -फल भी अच्छे लगते है। कीटग्रस्त, आपस में रगड खाने वाली सुखी एवं अवांछित डाली की छंटाई करते रहें।
खरपतवार नियंत्रण
ग्लाइसेल तृण नाशक का इस्तेमाल खर-पतवार को मारने के लिए किया जा सकता है। काली प्लास्टिक सीट से पेड के चारो ओर मलचिंग कर देने से तथा टपकाव विधि से सिंचाई करने पर खर पतवार का नियंत्रण बहुत हद तक हो जाती है तथा मलचिंग से मिट्टी के नमी का भी नुकसान कम से कम हो पाता है।
अतवर्ती फसलें
litchi ki kheti में अर्न्तवर्ती फसल जैसे विभिन्न सब्जियाँ, दलहनी फसल, ओल, हल्दी, अदरक इत्यादि लगाये जाते है।
पौधा संरक्षण
कीटों एवं रोगों की रोकथाम
(क) लीची माइट
सुक्ष्म कीट द्वारा रस चुसने पर पत्तियों सिकुड जाती है और उनकी निचली सतह पर लाल मखमली गद्दा बन जाता है। आक्रान्त पत्तियों मिलकर गुच्छे बना देती है।
नियंत्रण
1) ग्रसित टहनियों को कुछ स्वस्थ हिस्सा के साथ जून एवं अगस्त माह में काटकर जला दें।
2) केलथेन (18.5 ई0सी0) नामक दवा का 30 मि0ली0 या सिस्टोक्स (26 प्रतिशत तरल) का 10 मि0ली0 10 लीटर पानी में लेकर छिडकाव करें। यदि पेड अकांत न हो तो पहला छिडकाव मार्च- अप्रैल तक अवश्य कर दें। आक्रांत बागों का 5 दिनों के अन्तराल पर 2 या 3 बार छिडकाव करें
(ख) तनाछेदक
तना तथा शाखाओं में छेदकर कीडे रहते है।
नियंत्रणः
1) छेदों में तार डालकर इनकी कीटों को मार डालें।
2) छेद के अंदर रूई में भिगोकर थोडा किरासन तेल या पेट्रोल रख दें।
3) तत्पश्चात छेदों को गीली मिट्टी या सीमेन्ट से बंद कर दें
(ग) यह कोमल पत्तियों की नये सतहों के बीच में खाता है एवं टहनियों में छेद कर देता है। जिससे कच्ची पत्तिों पेड से टूटकर नीचे गिर जाता है।
1) सुण्डी सहित टहनियों को तोडकर जला दें।
2) पेड में फुल लगने के पहले रोगर (30 ई0सी0) 30 प्रतिशत छोल की 1 लीटर या मेटासिस्टॉक्स (25 प्रतिशत) छोल कर 650 मि0ली0 दवा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
(घ) लीचेन
वृक्ष के तनी तथा शाखाओं पर सफेद या हरे रंग या काई जैसा लीचेन लगता है। जुलाई- अगस्त में एकबार कास्टिक सोडा का 1 प्रतिशत (1 लीटर पानी में 10 गाम ) घोल बनाकर ग्रसित अंगों पर छिडकें।
(ड.) गमोसिस
विशेषकर बाढ. के इलाकों में शाखाओं की छाल फटकर रस निकलती है जो बाद में काला गोंद जैसा हो जाता हैं ग्रसित स्थान के आस पास की छाल छीलकर हटा दें। कटे स्थान पर ब्लाइटॉक्स के पेस्ट बनाकर लेप लगा दें। पानी की निकास ठीक रखें।
औद्योगिक दृष्टिकोण
लीची से संबंधित एक महत्वपूर्ण उद्योग मधुमक्खी पालन है। लीची के बाग के मधु का मुल्य साधारण मधु से अधिक होता है।
इसके बाग में मधुमक्खी पालने से फूलों के परागन में काफी सहायता मिलती है। जिससे 20-30 प्रतिशत अधिक फल प्राप्त होते है।
लीची के फलों से जैम, शरबत, सुखौता आदि तैयार किया जा सकता है ! पर्याप्त लीची फलों का उत्पादन बढाकर लीची पर आधारित उद्योग खडें किये जा सकते है एवं इनका निर्यात कर विदेशी मुद्रा का भी अर्जन किया जा सकता है।
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