लसोड़े का पेड़ – लसोड़ा के फायदे व् कैसे लगाये पेड़

लसोड़े का पेड़ या गुन्दा का वैज्ञानिक नाम कोर्डिया है और इसका स्थानीय नाम बडा गुन्दा, लसोडा, गुन्दा है I

लसोड़ा मध्यम आकार का पर्णताती वृक्ष है, जो भारत वर्ष में हिमालय के निचले ढलान पर (5000 फीट) और सामान्य व अधिक वर्षा वाले वनों से लेकर उष्ण प्रदेशीय वनों में और कम वर्षा वाले राजस्थान के अर्ध शुष्क वन-क्षेत्र, उद्यान, एवं कृषि भूमि पर भी हो सकता है।

गूंदा के लिए 35 डिग्री से 48.09 डिग्री सैल्सियस के अधिकतम तापमान से लेकर 0 डिग्री से 15.06 डिग्री सैल्सियस का न्यूनतम तापमान उपयुक्त है।

इसी तरह 3050 मि.मी. वर्षा वाले नमीयुक्त क्षेत्रों के अलावा राजस्थान के 255 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आसानी से हो सकता है।

लसोड़े की छाल हल्के भूरे रंग की होती है। इस पर लम्बी धारियां होती है। इसते पत्ते 7 से 15 से.मी. लम्बे और 5 से 10 से.मी. चौडे होते हैं और ऊपरी व बाहरी किनारों कर कटे हुए होते है।

लसोडे के पेड से ग्रीष्म ऋतु में बहुत कम समय के लिये पत्ते झडते हैं। मार्च से मई मके महीनों में इस पर सफेद रंग के छोटे फूल आते है और मई व जून के महिनों में 2 से 3 से.मी. व्यास के गोल गूदेदार फल आते है जो जुलाई से सितम्बर तक पक जाते है। इसके फल का गूदा लसेदार (म्यूसिलेजिनस) व चिपकने वाला होता है।

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लसोड़े का पौधा उगाने की विधि

लसोड़े के फल का गूदा हटाने पर सख्त छिल्के से सुरक्षित बीज धारण करने वाला भाग दिखाई पड़ता है। इसको सल्फ्यूरिक अम्ल अथवा गरम पानी में भिगो कर छिल्के को नरम बनाना आवश्यक है।

लसोड़ा गीज में अकुंरण क्षमता एक वर्ष तक रहती है। इसके बीज को क्यारियों में अंकुरित कर थैलियों में लगाना उपयुक्त है। पौधशाला में एवं प्रत्यारोपण के बाद इसकी बढोतरी मध्यम तीव्र गति से होती है। पौधशाला में एक वर्ष तक पोषित पौधे वृक्षारोपण के लिये उपयुक्त रहते है।

लसोड़े का पेड़ लगाने की विधि

पोलीथीन की थैलियों में उगाये पौधो को बाँस की टोकरी अथवा लकडी के खाकों में वृक्षारोपण स्थल तक परिवहन कर लाया जाता है I

तैयार किये गये गड्ढो में मिट्टी पर एल्ड्रेक्स छिडक कर पौधों को सावधानीपूर्वक थैली हटाकर सीधा रखते हुए मिट्टी भर दी जाती है I इसके पश्चात् पानी दिया जाता है ।

पौधारोपण के साथ साथ पौधे के नीचे अर्द्ध चन्द्राकार थावला बनाकर वर्षा ऋतु में 2-3 बार पौधो के चारों तरफ निराई और मिटटी में नमी बना रखने के लिये सितम्बर अक्टम्बर में 3 बार गुडाई की जाना आवश्यक है।

बढौतरी एवं वृद्धि दर

लसोड़े का पेड़ पहले साल में धीमी गति से बढ़ता है। लेकिन दुसरे वर्ष में इनकी औसत ऊँचाई 135 से.मी.  तक हो जाती है।

नियमित रूप से सिंचाई करने एवं निराई गुडाई से पौधे की बढ़वार में बढ़ौतरी होती है। इसकी औसत सालाना वृद्धि (पेड की गोलाई में) 2 से.मी. प्रति वर्ष होती है।

लसोड़े का उपयोग

इसकी लकडी नरम व हल्की होने के साथ साथ मजबूत भी होती है। इसको ईंधन के लिये काम में भी लिया जाता है।

इसके कच्चे फल को सब्जी बनाने व अचार के रूप में इस्तेमाल में लिया जाता है।

इसकी छाल के रेशे से रस्सी बनती है जिसे नाव के छिद्र बन्द करने के काम में लेते है।

लसोड़े का पेड़ 10 वर्ष से 15 वर्ष बाद फल देने लगता है जिनसे किसान को लगातार 30-40 वर्ष के लिये आय मिल जाती है।

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