तिवरा/खेसारी/लतरी (khesari/latri) की उन्नत किस्मे व् खेती

तिवड़ा (खेसारी/लतरी) बुवाई की उन्नत उतेरा विधि

भारत के अधिकतर क्षेत्रों में कृषि पूरी तरफ से वर्षा पर आधारित है तथा सिंचाई के सीमित साधन के कारण ही रबी मौसम में खेत खाली पड़ी रहती है, अतः ऐसे क्षेत्रों के लिए सघन खेती के रूप में उतेरा खेती एक महत्वपूर्ण विकल्प सिध्द हो सकता है।

तिवड़ा को तिवरा, खेसारी, लतरी या खेसाडा आदि के नाम से भी जाना जाता है ! इसका वैज्ञानिक नाम lathyrus sativus है !

उतेरा खेती का मुख्य उद्देश्य खेत में मौजूद नमी का उपयोग अगली फसल के अंकुरण तथा वृध्दि के लिए करना है। एवं द्विफसलीय क्षेत्र कर किसानों को अतिरिक्त आय उपलब्ध कराना है। फसल उगाने की इस पध्दति में दूसरे फसल की बुआई, पहली फसल के कटने से पूर्व ही कर दी जाती है।

उतेरा विधि में उपज में कमी के निम्न कारण (khesari / latri low yield reason)

1. उन्नत किस्मों का प्रयोग नहीं करना

2. बिना उपचारित बीजों (जैव फफूंदनाशक तथा जैव उर्वरक से) का प्रयोग करना।

3. पोषक तत्व प्रबंधन नहीं करना।

यदि तिवड़ा की उन्नत किस्म के उपचारित बीजों (जैव फफूंदनाशक तथा जैव उर्वरक से) का उपयोग कर फसल में पोषक तत्व प्रबंधन निम्न तकनीक से किया जाये तो उपज में बढोत्तरी की जा सकती है।

तिवरा/खेसारी/लतरी (Khesari/Latri) की उन्नत किस्मे व् खेती
Credit: Photo by Vito Buono – Bari

उन्नत उतेरा विधि •

खेत का चुनाव :-

उतेरा खेती के लिए कन्हार या भारी मिट्टी वाली खेत उपयुक्त रहती है। अतः मध्यम या निचली भूमि का चुनाव करना चाहिए। भारी मिट्टी में जलधारण क्षमता अधिक होती है साथ ही काफी लम्बे समय तक इस मिट्टी में नमी बनी रहती है।

लगाने का समय :- (sowing time of Khesari/latri)

उतेरा खेती धान की फसल में की जाती है। धान की फसल कटाई के 15 से 20 दिन पहले जब बालियाँ पकने की अवस्था में हो, अर्थात अक्टूबर के मध्य माह से नवम्बर के मध्य के बीच उतेरा फसल के बीज छिड़क दिये जाते है।

बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए। नमी इतनी होनी चाहिए कि बीज गीली मिट्टी में चिपक जाए। यहां ध्यान रखना चाहिए कि खेत में पानी अधिक न हो अन्यथा बीज सड़ जाएगा, आवश्यकता से अधिक पानी की निकासी कर देना चाहिए।

उन्नत किस्म :- (khesari/latri variety)

उतेरा तिवड़ा के लिए निम्न उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग किया जाना चाहिए जिससे अधिक उपज प्राप्त की जा सके।

1 प्रतीक :

इसके पौधे गहरे हरे रंग के 50-70 से.मी. ऊंचाई के होते है। दाने बड़े आकार व मटमैले रंग के आते है। पकने की अवधि 110-115 दिन तथा उतेरा में औसत उपज 360 कि.ग्रा./एकड़ है। यह किस्म डाउनी मिल्डयू रोग के प्रति सहनशील है।

2. रतन :

इस किस्म के पौधे ऊंचे, पत्तियाँ चौड़ी व हरी, फल्लियां बडी तथा दाने बड़े आकार के होते है। इस किस्म की विशेषता है कि इसकी फल्लियां पकने के उपरांत झड़ती नहीं है। इस किस्म में वृद्धि अच्छी होने के कारण जानवरों के लिए पौष्टिक भुसा पर्याप्त मात्रा में मिलता है। पकने की अवधि 100 से 110 दिन होती है। इसकी औसत उत्पादकता उतेरा में 254 कि.ग्रा./एकड़ है।

3. महातिवड़ा :

इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले, पत्तियां गहरी हरी, गुलाबी फूल तथा 100 दानों का वजन 8 ग्राम होता है। इसके पकने की अवधि 94 दिन तथा उपज 760 क्विंटल प्रति एकड़ है।

यह किस्म उतेरा खेती मध्यम (डोरसा) भुमि से भारी (कन्हार) भुमि के लिए उपयुक्त, सुखा सहनशील, पाउडरी मिल्डयू रोग एवं थ्रिप्स कीट प्रतिरोधक है ।

बीज दर एवं बीजोपचार :- (seed rate of khesari/latri)

उतेरा खेती हेतु तिवड़ा 30-35 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिए। उक्ठा रोग से बचाव हेतु ट्राइकोडर्मा जैव फफूंदनाशक 5 से 6 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

चूंकि तिवड़ा एक दलहनी फसल है, अतः तिवड़ा बीज को रायजोबियम जैव उर्वरक 05 ग्राम/कि.ग्रा. की दर से उपचारित किया जाना चाहिए साथ ही स्फूर घोलक बैक्टीरिया (पी.एस.बी.) से भी 5 ग्राम/कि.ग्रा बीज की दर से उपचारित कर बुवाई किया जाना चाहिए।

बीजोपचार विधी :- (seed treatment of khesari/latri)

बीजोपचार करने के लिए आवश्यकतानुसार पानी गर्म करके गुड़ (1 लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ ) डालें। इस गुड़ पानी के घोल को ठंडा करने के बाद इसमें जैव फफूंदनाशक या जैव उर्वरक मिलाएं तथा इसी घोल से बीजों को उपचारित करें व छाये में सुखाने के बाद बुआई हेतु उपयोग करें। फफूंदनाशक से उपचार उपरांत जैव उर्वरक से उपचार करें।

उतेरा बुआई :- (khesari/latri sowing)

उतेरा विधि में उपचारित तिवड़ा बीज को धान काटने के 15 से 20 दिन पहले खड़ी धान की फसल में छिड़काव विधि से बुवाई करते है। धान फसल की कटाई तक तिवड़ा फसल अंकुरित होकर 4-6 पत्तियों की अवस्था में आ जाती है।

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उर्वरक प्रबंधन :- (fertilizer application in khesari/latri)

प्रायः किसान फसल के पोषक तत्व प्रबंधन पर विशेष ध्यान नहीं देते है, परंतु यदि पोषक तत्व प्रबंधन किया जाये तो अधिकतम उपज (4-5 क्विं प्रति एकड़) प्राप्त की जा सकती है। इस हेतु फसल बुआई के 30 से 35 दिन में युरिया 2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी ) या एन.पी.के. (19:19:19) का पर्णीय छिड़काव करें। एन.पी.के. (19:19:19) की 80-100 ग्राम मात्रा प्रति स्प्रेयर डालकर 8-10 स्प्रेयर प्रति एकड छिड़काव करने से उपज में लगभग 50-60 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई है।

पौध संरक्षण :- (disease management in khesari/latri)

तिवड़ा में विशेषकर थ्रिप्स कीट का प्रकोप प्रायः फूल आने के समय पर देखा जाता है जिससे लगभग 30 प्रतिशत तक उपज में कमी आंकी गई है। इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मि.ली./ लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 100 ग्राम प्रति एकड का उपयोग करें।

अन्य कीट के रूप में पत्ती खाने वाली इल्लियों व फली भेदक इल्ली का प्रकोप होता है। इल्लियों के नियंत्रण हेतु प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. का 400 मि.ली. /एकड की दर से छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिनों बाद पुनः छिड़काव करें।

उतेरा फसलों में अधिकतर उक्ठा व भभूतिया रोग का प्रकोप होता है। उक्ठा से बचाव हेतु ट्राइकोडर्मा विरडी (05 ग्राम/कि.ग्रा.बीज) से बीज उपचार कर बोना चाहिए। रोग प्रतिरोधी जातियों रतन, प्रतीक, महातिवड़ा का चुनाव करना चाहिए। भभूतिया रोग से बचाव के लिए घुलनशील गंधक 03 ग्राम/प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

उन्नत उतेरा खेती से लाभ :- (benefits of khesari/latri farming)

उपरोक्त विधी से उतेरा खेती करने से किसान भाईयों को 4-5 हजार रू. प्रति एकड का शुद्ध लाभ प्राप्त होगा।

उपज :- (yield of khesari/latri)

उतेरा विधि की उन्नत तकनीक अपनाकर काफी कम लागत में 4 से 5 क्विंटल/एकड उपज प्राप्त की जा सकती है।

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