खरगोश पालन के फायदे, तरीका और नस्ले Rabbit farming business in hindi

खरगोश पालन Rabbit Farming in hindi

खरगोश पालन के बहुत सारे फायदे हैं यह एक लाभप्रद व्यवसाय हैं। खरगोश बहुत तेज गति से बढ़वार करने वाला पालतू पशु है।

खरगोश पालन (Rabbit farming) के लिए ज्यादा बड़ी जगह की जरुरत नहीं होती है। इसे आप आसानी से अपने घर के पीछे पड़ी खाली जगह, छत पर या घर के बगीचे में भी शुरू कर सकते हैं। खरगोश पालन की कम लागत शुरुआत की जा सकती है ।

खरगोश की एक इकाई में 3 नर व 7 मादा होती है। मादा की  यौन परिपक्वता 6 महीने व नर में 12 महीने होती है । खरगोश में गर्भावस्था काल मात्र 30 दिनों का होता है व उच्च प्रजनन दर के कारण 5 से 8 बच्चे पैदा होते हैं।

एक बार बच्चे देने के बाद मादा 15-20 दिनों में फिर से गर्भधारण करने के लिए तैयार हो जाती है।

खरगोश एक शुद्ध शाकाहारी पशु है जिसको घास पत्तिया, मक्की, ज्वार , हरी सब्जिया , गाजर, टमाटर आदि देकर विकसित किया जा सकता है I लगभग 4 महीने में खरगोश का शिशु 2 से 3 किलोग्राम का हो जाता है I

खरगोश पालन (rabbit farming) में किसी प्रकार के कुशल श्रमिक की आवश्यकता नहीं होती है। यह मौसम पर आधारित व्यवसाय नहीं है। इसकी उत्पादकता वर्षभर एक समान बनी रहती है।

खरगोश का मांस अधिक पौष्टिक व कम वसा वाला होता है, जिसके कारण इसे मोटापा, हृदय रोग, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और कैंसर आदि रोगों में लाभदायक पाया गया है।

खरगोश को मुख्यतः मांस व ऊन उत्पादन के लिए पाला जाता है। अधिक प्रजनन क्षमता के कारण इसकी मांस उत्पादकता अन्य सभी पशुओं से अधिक है।

खरगोश का मांस अधिक प्रोटीन तथा कम वसा व कोलेस्ट्रॉलयुक्त होता है। अतः यह उच्च रक्त चाप व हृदय रोगियों के लिए उपयोगी होता है।

खरगोश का ऊन भी बहुत मुलायम व गर्म होता है। इसकी खालों से कई प्रकार के उत्पाद जैसे-दस्ताने, टोपियां, पर्स, जैकेट आदि बनाये जाते हैं।

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मांस उत्पादन rabbit meat

खरगोश की मांस उत्पादन क्षमता दूसरे मांस वाले पशुओं की तुलना में अधिक होती है और मांस उत्पादन प्रतिशत लगभग 65.6 तक होता है।

खरगोश के मांस में अन्य पशुओं की अपेक्षा प्रोटीन, कैल्शियम व फॉस्फोरस अधिक तथा वसा कम मात्रा में होती है। 84 दिनों की आयु पर खरगोश का वजन लगभग 1.5 से 2 कि.ग्रा. हो जाता है तथा इस आयु पर मांस के लिए इसका वध किया जाता है।

मांस हेतु खरगोश की एक इकाई (50 मादा व 15 नर) स्थापित करने का एकमुश्त खर्च लगभग 1,98,260 रुपये व आवर्ती खर्च प्रतिवर्ष 2,75,105 रुपये आता है। इस इकाई से प्रतिवर्ष लगभग 1,17,395 रुपये की आमदनी होती है।

खरगोश की किस्मे rabbit breed

व्हाइट जाईंट White Giant rabbit breed

इसके बाल तथा त्वचा का रंग सफेद होता है। इसकी आंखों का रंग लाल होता है। यह नस्ल न्यूजीलैंड व्हाईट से मिलती-जुलती है, लेकिन पीछे के पैर लंबे तथा शरीर भारी होते हैं। इस नस्ल के वयस्क पशु का वजन 3 से 4 कि.ग्रा. होता है।

सोवियत चिंचिला Soviet chinchilla rabbit breed

इसके बाल का रंग काला-सफेद मिश्रित तथा आंखों का रंग काला होता है। त्वचा भी काले रंग से मिलती-जुलती होती है। इस नस्ल के पशु एक बार में लगभग 6 या इससे अधिक शिशु देते हैं।

ब्लैक ब्राउन Black Brown rabbit breed

इसके बाल तथा आंखों का रंग काला होता है। त्वचा भी काले रंग से मिलती-जुलती होती है। इस नस्ल के पशु भी एक बार में लगभग 6 या इससे अधिक शिशु देते हैं।

ग्रे जाईंट Gray Giant rabbit breed

इसके पशुओं के बाल का रंग गहरा भूरा तथा त्वचा का रंग काला होता है। आंखें भूरी होती हैं। इसके वयस्क का वजन 3 से 4 कि.ग्रा. होता है।

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न्यूजीलैंड व्हाईट newzealand rabbit breed

यह सफेद रंग का होता है तथा इसकी त्वचा गुलाबी रंग की होती है। आंखों का रंग लाल तथा आकार मध्यम होता है। इसकी मादा एक बार में छह या इससे अधिक शिशु देती है। वयस्क मादाओं का वजन लगभग तीन से साढ़े तीन कि.ग्रा. होता है।

डच Dutch rabbit breed

इसके बाल का रंग काला सफेद मिश्रित तथा आंखों का रंग काला होता है। त्वचा भी काले रंग से मिलती-जुलती होती है। इस नस्ल की मादा एक बार में लगभग 4 या इससे अधिक शिशु देती हैं।

अंगोरा (ऊन के लिए) Angora rabbit breed

यह उपजाति मुख्यतः ऊन उत्पादन के लिए पाली जाती है। इससे शरीर का रंग सफेद होता है। इसकी ऊन हर 75 दिनों में काटी जा सकती है। इसकी ऊन की लंबाई 75 दिनों में 5 से 6 सें.मी. होती है। यह एक वर्ष में लगभग 800 से 1000 ग्राम तक ऊन देने में सक्षम है। वयस्क अंगोरा का वजन 3 से 4 कि.ग्रा. होता है। अंगोरा खरगोश की रशियन, जर्मन व ब्रिटिश अंगोरा आदि मुख्य उप-प्रजातियां हैं (जिनमें जर्मन अंगोरा से सबसे अधिक ऊन प्राप्त की जा सकती है।

Khargosh palan के लिए जलवायु climate for rabbit

मांस के लिए खरगोश (ब्रायलर) 35 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा शुष्क व नम जलवायु वाले व ठण्डे क्षेत्रों में ऊन वाले खरगोश (अंगोरा) 25 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान वाले क्षेत्रों में संतोषजनक तरीके से पाले जा सकते हैं।

खरगोश आवास Rabbit house

खरगोश आवास की जगह जलवायु के अनुसार तय करनी चाहिए। ठण्डे इलाकों में आवास ऊंची धूप लगती जगह पर तथा गर्म इलाकों में छायादार जगह पर बनाना चाहिए।

आवास हमेशा हवादार एवं नमीरहित स्थान पर बना 2चाहिए। गर्म इलाकों में आवास सूर्य के प्रतिकूल दिशा में होना चाहिए तथा ठण्डे इलाकों में सूर्य की दिशा के साथ होना चाहिए। आवास तेज हवाओं के प्रतिकूल दिशा में ही रखना चाहिए।

खरगोश पालन में सावधानियां Precaution in rabbit farming

फर्श rabbit floor

फर्श पर 3-4 इंच ऊंची लकड़ी के बुरादों की तह दी जाती है तथा खरगोशों को मुर्गी की तरह खुला छोड़ दिया जाता है। इस तरीके से खरगोश पालन पर खर्च कम आता है तथा थोड़ी जगह में ज्यादा खरगोश रखे जा सकते हैं।

खरगोश की बिल बनाने की आदत होने के कारण यह दीवारों एवं बुरादे को खोदता रहता है तथा पांव में जख्म बना लेता है।

इसके अलावा खरगोशों को आपस में लडने की आदत होती है. जिससे एक-दूसरे को जख्मी कर देते हैं। खरगोश आमतौर पर कोकसिडियोसिस रोग से ग्रसित हो जाते हैं।

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खरगोश पिंजरा Rabbit cage

वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक उत्तम तरीका है, जिसमें खरगोशों को साफ-सुथरे ढंग से पाला जाता है। पिंजरे बनाने में शुरुआती लागत ज्यादा आती है, परन्तु पशु रोगी बहुत कम होते हैं।

पिंजरों का आकार खरगोश के आकार एवं अवस्था के अनुसार बदलता रहता है। पिंजरे के आधार की जाली (14 गेज) का आकार 3/4″X3/4″ होना चाहिए ताकि खरगोशों के पैर जाली में न फंसें तथा मेंगनी पूरी तरह नीचे निकल जाये।

किनारों की जाली (14 गेज) का आकार 1″X1/2″ या 1″x1″ होना चाहिए। आकार ज्यादा खुला रखने पर खरगोश अपने पैरों को फंसा देता है तथा शिशु खरगोशों के पिंजरे में चूहे तथा सांप आदि घुस जाते हैं।

पिंजरे की छत की जाली (12 गेज) का आकार 2″x1″ होना चाहिए, ताकि खरगोश पिंजरे के ऊपर डाली गई घास को आराम से खा सकें।

शिशुओं के घोंसले की ऊपरी छत 3/4″x3/4″ ही रखनी चाहिए। पिंजरों को मजबूती के लिए लोहे के फ्रेम में भी फिट किया जा सकता है; परन्तु एक तो उसकी कीमत बढ़ जाती है व दूसरा 1-2 वर्ष बाद फ्रेम जंग का शिकार हो जाता है, जिससे उसके कब्जे आदि टूटने लगते हैं।

पिंजरों को 6 या 8 के सेट में भी बनाया जा सकता है, ताकि पिंजरों की बनावट पर कम खर्च आये। इस तरीके से तार को भी काफी हद तक बेकार होने से बचाया जा सकता है, क्योंकि जाली बार-बार काटने से खराब होती है।

प्रसव पिंजरों एवं प्रजनन पिंजरों को फ्रेमनुमा आकार में बनाना चाहिए। प्रसव पिंजरा दो पिंजरों को आपस में जोड़कर बनाया जाता है, जिनके बीच में एक द्वार होता है, ताकि मादा अन्दर से ही शिशु के घोंसले में आती जाती रहे तथा जरूरत पड़ने पर द्वार बाहर से ही बन्द किया जा सके।

मादा पिंजरे का आकार 1.5’X1.5×1.5″ तथा शिशु के पिंजरे का आकार 1’X1.5×1′ होता है। वयस्क खरगोश के लिए 1.5’X1.5’X1.5′ तथा प्रजनन के लिए 1.5’X2’X1.5′ आकार का पिंजरा बनाना चाहिए।

खरगोश में प्रजनन Breeding in Rabbit

नर व मादा खरगोश लगभग 6 महीने में प्रजनन योग्य हो जाते हैं। वर्ष में एक मादा से 4 बार ही शिशु लेने चाहिए। प्रजनन के समय हमेशा मादा को ही नर खरगोश के पिंजरे में लाना चाहिए।

सफल प्रजनन के तुरन्त पश्चात नर खरगोश पीछे को या एक तरफ गिर जाता है तथा चिल्लाने जैसी आवाज निकालता है।

खरगोशों में गर्भकाल लगभग 30 दिन का होता है। गर्भवती मादा को प्रजनन करवाने के 27-28 दिनों बाद नेस्ट बॉक्सयुक्त पिंजरे में रख देना चाहिए।

नेस्ट बॉक्स में नारियल का रेशा, लकड़ी का बुरादा, पुआल या भूसा आदि डालकर 2 से 3 इंच मोटा बिस्तर बिछा देना चाहिए।

खरगोश के शिशु बालरहित पैदा होते हैं तथा उनकी आंखें बन्द होती हैं। लगभग 4 दिनों बाद बाल निकलने प्रारम्भ हो जाते हैं तथा आंखें 10-14 दिनों बाद खुलती हैं। शिशुओं को सुबह और शाम दो बार दूध पिलाया जाता है।

तीसरे सप्ताह में शिशु दूध के अलावा दाना, घास व पानी लेना तथा पिंजरे में नेस्ट बॉक्स से निकलकर इधर-उधर घूमना शुरू कर देते हैं। शिशुओं को लगभग 28-42 दिनों बाद मां से अलग कर दिया जाता है तथा नर व मादा शिशओं की पहचान कर अलग-अलग पिंजरों में अकेला रखा जाता है।

प्रजनन के लिए खरगोशों का चयन खरगोशों की संख्या, प्रजनन क्षमता, 84 दिनों के वजन (मांस वाले). ऊन उत्पादन व गुणवत्ता (ऊन वाले) के आधार पर करना चाहिए।

मांस व ऊन उत्पादन बढ़ाने के लिए खरगोशों का प्रजनन रिकार्ड रखना महत्वपूर्ण होता है। इस रिकार्ड से ही अच्छे प्रजनक खरगोशों का चयन करना चाहिए ताकि प्रजनन से बचाया जा सके।

सगे पशुओं (भाई-बहनों) का आपस में प्रजनन नहीं करवाना चाहिए। समय-समय पर नर को प्रजनन के लिए बदलते रहना चाहिए।

खरगोश रोग एवं उपचार Rabbit disease and diagnosis

खरगोश में अन्य पशुओं की अपेक्षा बहुत कम रोग होते हैं। इसके साथ ही खरगोश में टीकाकरण की भी आवश्यकता नहीं होती है।

अगर खरगोश का आहार, पानी तथा पिंजरों व आवास की साफ-सफाई अच्छी न हो, तो खरगोशों में रोग होने की आशंका बढ़ती है।

अत: इन्हीं बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। पिंजरों की सफाई प्रतिदिन झाडू या तार ब्रश से करनी चाहिए व इन्हें कीटाणुमुक्त करने के लिए हर महीने आग से जलाकर साफ करना चाहिए। खरगोशशाला में हर 15 दिनों में चूने इत्यादि का छिड़काव करते रहना चाहिए।

रोगी खरगोशों को अलग कमरे में रखकर इलाज करवाना चाहिए। मरे हुए खरगोशों के दबाने या जलाने की उचित व्यवस्था हो, ताकि रोग फैलने का भय न रहे।

खरगोश पालन के लिए आहार Rabbit food

खरगोशों को दाना, गोली या चूरे के रूप में दिया जाता है। गोली के रूप में खरगोश दाना अच्छी प्रकार से खाता है तथा इसमें दाना बहुत ही कम व्यर्थ होता है। परन्तु यह दाना मंहगा पड़ता है तथा दाने में क्या मिलाया है I यह पता लगाना भी मुश्किल होता है। किसान भाई दाना अपने ही घरों में चूरे के रूप में बना सकते हैं।

चूरे के रूप में खरगोश को खाने में कोई कठिनाई नहीं होती है। खाद्यान्न ज्यादा बारीक पिसे हुए नहीं बल्कि दरड़े हुए होने चाहिए, ताकि आहार व्यर्थ न हो तथा खरगोशों को छींकों की दिक्कत न हो। छोटे शिशुओं को 15 दिनों का होने पर दाना दरड़कर देना शुरू करना चाहिए।

विनिंग (छठे सप्ताह) के बाद खरगोश को 30 से 40 ग्राम, 60 से 65 दिनों के खरगोश को 50 से 60 तथा 4 से 6 महीने के खरगोश को 80 से 100 ग्राम दाना प्रतिदिन देना चाहिए। गाभिन एवं दूध देने वाली मादाओं के लिए हर समय दाना एवं चारा उपलब्ध होना चाहिए।

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हमारे देश में घास और दाना अलग-अलग खिलाया जाता है। पोषक तत्व दाने में ज्यादा रखे जाते हैं, ताकि इनमें घास के पोषक तत्वों को जोड़ने पर उपयुक्त मात्रा में पोषक तत्व खरगोशों को मिल सकें। यहां कुल आहार का 70 प्रतिशत सूखा द्रव्य दाने के रूप में तथा शेष 30 प्रतिशत चारे के रूप में दिया जाता है। यानी एक वयस्क को एक दिन में 120 ग्राम दाना तथा 200 से 250 ग्राम हरा चारा जैसे-बरसीम, जई, क्लोवर, फैस्कों, राई घास तथा विभिन्न प्रकार की पत्तियां आदि देनी चाहिए।

आहार बनाते समय यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि खाद्यान्न साफ-सुथरे हों तथा उनमें फफूंदी आदि नहीं उगी हो।

बरसात के दिनों में मक्का, मूंगफली की खल एवं खुले अनाजों में फफूंद उगी मिलती है, जो एफ्लाटॉकान नाम एक जहर पैदा करती है तथा खरगोशों में महामारी का कारण बनती है।

राईस पालिश आदि कुछ ऐसे खाद्यान्न हैं जो कि ज्यादा तेल होने की वजह से रेनसीड हो जाते हैं और खरगोश आहार को नहीं खाता है।

खरगोश पालन रोजगार rabbit farming business

खरगोश पालन पढे-लिखे बेरोजगार युवाओं के लिये एक बहुत ही अच्छा रोजगार का साधन है। घरेलू महिलाएं अपने गृहकार्य से बचे हुये समय का सदुपयोग करते हुए खरगोश पालन से अपने घर की आमदनी बढ़ाने में सहयोग कर सकती हैं।

छोटे किसान दस मादा एवं दो नर से खरगोश पालन कर 3 महीने बाद खरगोश बेचकर कमाई शुरू कर सकते हैं और एक वर्ष में 40 से 50 हजार का शुद्ध लाभ कमा सकते हैं।

ग्रामीण छात्र-छात्राएं भी अपनी रुचि के हिसाब से पढ़ाई के साथ-साथ अपनी पढ़ाई का खर्च भी निकाल सकते हैं। खरगोश की मेंगनी पर्याप्त नाइट्रोजन एवं अधिक फॉस्फोरस होने की वजह से जैविक खेती के लिये उपयोगी होती है।

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