बाकला काली मटर (Fababean)

बाकला (विसिया फाबा, एल) एक रबी दलहनी फसल है। बाकला(Fababean) को अनहोनी काली मटर, राजरावन, कद्दू हरालियाकी, सेम, काबुली बाकला, हिन्दी मटर आदि अलग-अलग क्षेत्रीय नामों से जाना जाता है। विश्व की लगभग 70 प्रतिशत बाकला(Fababean) की पैदावार केवल अकेले चीन में होती है। मिश्र, सीरिया, चीन और अमेरीका में इसकी मुख्य खेती होती है। भारत में इसकी सिफारिश हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के लिए की गई है। भारतवर्ष में प्रतिदिन दाल की आवश्यकता प्रति आदमी 200 ग्राम है जबकि दालों की उपलब्धि 35-40 ग्राम प्रति व्यक्ति है। इस प्रकार बहुत सारे भारतीय लोग संतुलित आहार से वंचित रह जाते हैं और प्रोटीन कुपोषणता का शिकार हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण भारत की निरन्तर बढ़ती जनसंख्या व दालों की कम पैदावार है। बाकला(Fababean) में 24-28 प्रतिशत प्रोटीन होती हे और इसकी खेती कम पानी वाले और सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। अत: बाकला(Fababean) की एक अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
मिट्टी व जलवायु (Soil and climate)
बाकला(Fababean) की खेती दोमट मिट्टी से हल्की चिकनी मिट्टी में की जा सकती है। रेतीली, अम्लीय तथा क्षारीय जमीन पर इसे नहीं उगाना चाहिए। अच्छे जमाव के लिए 20-22° सैंटीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता होती है। फसल के पकने के समय शुष्क वातावरण होना चाहिए। फूलों के समय ज्यादा सर्दी व पाला नहीं होना चाहिए। भूमि की पी.एच. 6.5 से 7.5 तक होनी चाहिए। ta किस्मे (Variety)
हरियाणा बाकला(Fababean) 1 (Haryana Faba bean 1): इसका पौधा हरे रंग का, सीधा बढ़ने वाला, ऊँचाई 95-100 सें.मी. और 145-150 दिन में पककर तैयार हो जाता है। इसकी औसत पैदावार 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसमें प्रोटीन (20-25 प्रतिशत) और दूसरे जैसे-कार्बोहाइड्रेटस 50-60 प्रतिशत, वसा 2-3 प्रतिशत, कैल्शियम 80 मि.ग्रा. प्रति 100 नाम और विटामिन ‘ए’ 100 आई.यू. प्रति ग्राम पाए जाते हैं। इसकी खेती सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
खेत की तैयारी (Field preparation)
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इससे सभी खरपतवार और कीड़े नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद 2-3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। खेत का पानी निकालने के लिए अच्छा निकास प्रबन्ध होना चाहिए।
बिजाई का समय (Time of sowing)
मैदानी क्षेत्रों में अक्तूबर के आखिरी पखवाड़े में इसकी बिजाई कर देनी चाहिए। इसको नवम्बर के पहले तथा दूसरे सप्ताह में भी बो सकते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की सुविधानुसार इसे अक्तूबर मास में बीजना चाहिए। देरी से बिजाई करने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
बीज का उपचार (Seed treatment)
बाकला(Fababean) में विद्यमान जीवाणु ग्रन्थियां वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को जमीन में स्थापित करती हैं, परन्तु इसकी पैदावार क्षमता को बढ़ाने के लिए राइजोबियम का टीका लगाना अत्यन्त अनिवार्य है। इसके जीवाणु आमतौर पर जमीन में उपलब्ध नहीं होते हैं। लगभग डेढ़ कप पानी में 50-60 ग्राम गुड़ या शक्कर या चीनी का घोल बनाकर 40 किलोग्राम बीज पर छिड़काव करें। इसके तुरन्त बाद राइजोबियम के एक पैकेट को खोल कर बीज पर छिड़क दें। बीज को हाथों से अच्छी तरह से मिलायें ताकि सभी बीजों पर टीका अच्छी तरह से लग जाए। बिजाई से पहले बीज को छाया में सुखा लें। उपचारित बीज से लगभग 10-15 प्रतिशत अधिक पैदावार होने की सम्भावना होती है।
बिजाई का तरीका (Method of sowing)
अच्छी पैदावार पाने के लिए बिजाई लाइनों में करनी चाहिए। लाईन से लाईन की दूरी 45 स.मी. और पौधे से पौधे की दरी 7-10 सें.मी. होनी चाहिए। अगर इसे चारे के लिए बीजना हो तो लाईन से लाईन की दरी 30 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 3-4 सें.मी. होनी चाहिए। बीज का 3-4 सें.मी. की गहराई पर बीजना चाहिए। यदि बीज का जमाव कम हो तो खाली स्थानों पर खुरप की सहायता से दुबारा बीज बीजना चाहिए।

बीज की मात्रा (Seed rate)
बीज की मात्रा प्रायः किस्म, अंकुरण क्षमता एवं जमीन में विद्यमान नमी पर निर्भर करती है!दाने की फसल के लिए 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर और चारे की फसल के 120 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज डालना चाहिए।
खाद व उर्वरक (Manure and fertilizer)
बाकला(Fababean) एक दलहनी फसल है। इसलिए इसको खाद की कोई विशेष आवश्यकता नहीं हाता है। परन्तु कमजोर जमीन में 40 किलोग्राम शुद्ध नत्रजन तथा 60 किलोग्राम शुद्ध फास्फोरस प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए। फास्फोरस वाली खाद तथा नाइट्रोजन वाली आधी खाद को बिजाई से पहली जुताई पर डालें। नाइट्रोजन वाली बाकी आधी मात्रा को पहला पानी देने के बाद प्रयोग में लायें।
सिंचाई व जल निकास (Irrigation and water drainage)
एक सिंचाई बिजाई से पहले करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 सिंचाइयां करनी चाहिए। पहली सिंचाई बिजाई के 30 दिन बाद, दूसरी फूल आने पर और तीसरी दाने बनने के समय करनी चाहिए। दाने बनने के समय पानी की कमी पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। खेत में अधिक पानी होने पर पानी निकालने का सुनिश्चित प्रबन्ध होना चाहिए। इससे पैदावार बहुत अच्छी होती है।
खरपतवार नियन्त्रण (Weed control)
बाकला(Fababean) की पैदावार को खरपतवार 80-85 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए खरपतवारों को नियन्त्रित करना बहुत जरूरी है। इसके लिए 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिएं। ये क्रमश: बिजाई के 15, 30 तथा 45 दिन के बाद करनी चाहिएं।
पौध संरक्षण (Plant protection)
बाकला(Fababean) की फसल पर अब तक किसी विशेष बीमारी व कीड़े का प्रकोप नहीं पाया गया है। इसलिए किसी कीटनाशक दवा की जरूरत नहीं है।
कटाई व गहाई (Harvesting and threshing)
जब बाकला(Fababean) की 80-85 प्रतिशत पत्तियां सूख कर गिर जाएं व फलियों का रंग काला पड़ जाए तब फसल को तुरन्त काट लेना चाहिए। फसल को न काटने पर फलियां चटक जायेंगी और दाने फलियों से निकल कर जमीन पर बिखर जायेंगे जिससे पैदावार काफी कम होगी। तत्पश्चात् फसल को 2-3 दिन तक खुली धूप में सुखाना चाहिए। इसके बाद हल्के हाथ से डण्डों से पिटाई करके दाने निकालें। ट्रैक्टर या लों से गहाई करके या धैशर से भी इसके दानों को निकाला जा सकता है।
बीज भण्डारण (Seed storage)
दानों को भण्डारण करने से पहले अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए ताकि इनमें 10-12 प्रतिशत तक नमी रह जाए। इसके बाद दानों को कीटाणुरहित बोरियों में भरकर तख्तों पर ठण्डा जगह पर रख दें। अधिक गर्मी के वातावरण में भण्डारण करने से बीज की अंकुरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पैदावार (Yield)
बाकला(Fababean) की दानों की औसत पैदावार 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। हरा चारा 40-50 टन प्रति हैक्टेयर होता है।
घरेलू उपयोग (Household utility)

आशा की जाती है कि आने वाले समय में बाकला(Fababean), चने का स्थान ले लेगी। बाकला(Fababean) को उगाकर इसके कच्चे दाने, हरा फलियों तथा पके हुए दानों से विभिन्न प्रकार के पौष्टिक एवं स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ बनाए जा सकते हैं और घरेलू स्तर पर इनका उपयोग किया जा सकता है।
कुछ घरेलू उपयोगों का वर्णन निम्नलिखित है:
- बाकला(Fababean) की कच्ची फलियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर आलू व अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर मिश्रित सब्जियां बनाई जा सकती हैं।
- इसके कच्चे दानों को निकाल कर किसी भी दाल (राजमास, मूंग, उड़द, लोबिया, मटर तथा चने आदि) के साथ मिलाकर सब्जियां बनाने के काम में लाया जा सकता है।
- पके हुए दानों का छिलका उतार कर चने की दाल की तरह उपयोग किया जा सकता है।
- इसके दानों से चने की तरह बेसन बनाया जा सकता है।
- इसके दानों को अंकुरित करके खाया जा सकता है।
- इसके दानों को उबाल कर स्वादानुसार नमक मिलाकर खाया जा सकता है।
- चने व मक्का की तरह बाकला(Fababean) के दानों को भूनकर बहुत ही स्वादिष्ट नमकीन तैयार की जा सकती है। इसके दानों को तल कर या बगैर तले नमक में मिलाकर नाश्ते के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
- गेहूं व अन्य अनाज के आटे की तरह बाकले के आटे से बहुत व्यंजन बनाए जा सकते हैं। इसक आटे को एक निश्चित अनुपात में गेहूँ या अन्य अनाज के आटे के साथ मिलाकर चपाती, नॉन, कचौरी, समोसा, डोसा तथा हलवा आदि बनाए जा सकते हैं। इस प्रकार से बनाए गए व्यंजन विशद्ध गेहूँ के आटे से बनाए गए पदार्थो की तुलना में अधिक स्वादिष्ट तथा पोष्टिक होते हैं। 15-20 प्रतिशत बाकला(Fababean) गेहूँ के साथ मिलाकर पिसवाने पर यह बेसन का काम करता है।
बाकला(Fababean) से बनी सूजी, मैदे व बेसन से कई प्रकार की मिठाइयां तैयार की जा सकती । गुलाब जामुन, बर्फी व लड्डू विशेष तौर पर बनाए जाते हैं।
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