जीरा/jeera/zeera/jira की खेती, कीमत और कमाई, किस्मे Cumin farming

जीरा/jeera/zeera/jira का वानस्पतिक नाम क्युमिनम साइमिनम है। मसालों के उत्पादन मे जीरा का दुसरा प्रमुख स्थान है ! जीरा के उत्पादन में भारत का विश्व मे प्रथम और राजस्थान का देश मे दूसरा स्थान है।

जीरा के वाष्पशील सुगंधित तेल का उपयोग खुशबूदार साबुन व केश तेल बनाने, ठंडाई, शराब आदि पेय पदार्थो को सुसजिज्त करने में भी किया जाता हैं।

जीरा में उपस्थित गंध क्यूमिनेल्डिहाइड नामक कार्बनिक पदार्थ के कारण आती है। जीरा मे वायुनाशक व मूत्रवर्धक गुण पाये जाते हैं, जिसके कारण देशी व आयुर्वेदिक दवाओं में जीरा का उपयोग होता है।

जीरा/jeera/zeera/jira का उपयोग हर प्रकार की सब्जियाँ, सूप, अचार, सॉस, पनीर आदी को स्वादिष्ट करने के लिए काम मे लिया जाता हैं।

जीरा/zeera/jeera खेती और अच्छी किस्मे
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जलवायु

जीरा शीत ऋतु की फसल है जिसके लिए शुष्क एवं ठण्डी जलवायु कि आवश्यकता होती है। जीरा की अच्छी फसल के लिए मौसम साफ व बादल रहित होना चाहिए। जीरा की फसल में अधिक नमी होने से पाला, कीट व बिमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है।

भूमि

जीरा उत्पादन के लिए रेतीली से दोमट मिट्टी सबसे अधिक अच्छी रहती है। भूमि का उचित जल निकास व जीवांश युक्त होना जरुरी होता है। क्योंकि पानी का ठहराव एवं आंशिक नमी दोनों ही हानिकारक होती है।

जीरा/jeera/zeera/jira की उन्नत किस्में

आर एस 1 (RS 1 Jeera)

जीरा की ये किस्म 80 से 90 दिन लेती है पककर तैयार होने के लिए ! यह एक अगेती किस्म है तथा इसके बीज रोयेदार होते है ! ये किस्म प्रति हैक्टेयर 6 से 10 क्विंटल की पैदावार देती है !

एम् सी 43 (MC 43 jira)

ये किस्म तैयार होने में 105से 115 दिन का समय लेती है ! प्रति हैक्टेयर 5 से 6 क्विंटल की पैदावार देती है ! जीरा की इस वैरायटी में 2.7 प्रतिशत गंधतेल मिलता है ! यह किस्म झुलसा रोग के प्रतिरोधी है !

आर जेड 19 (RZ 19 jeera)

इस वैरायटी में गंधतेल करीब 3 प्रतिशत होता है ! जीरा की इस किस्म में करीब 7 सिंचाईंयो की आवश्कता पड़ती है ! ये किस्म 120 से 130 दिन में तैयार होती है ! जीरा की पैदावार 5 से 6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर देती है !

आर जेड 209 (RZ 209 Jeera)

जीरा/jeera/zeera/jira की यह किस्म छाछ्या रोग के प्रतिरोधी है ! यह किस्म 140 से 150 में तैयार होती है ! यह किस्म 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है !

आर जेड 223 (RZ 223 Zeera)

जीरा की इस किस्म में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत होती है ! यह किस्म उख्टा व् झुलसा रोग के प्रतिरोधी है ! यह किस्म 120 से 130 दिन में तैयार होती है ! ये किस्म 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है !

जी सी 1 (Gujrat Jeera 1)

इसमें तेल की मात्रा 3.6 प्रतिशत होती है ! यह किस्म उख्टा रोग के प्रति सहनशील है ! यह किस्म तैयार होने में 105 से 110 दिन का समय लेती है ! यह किस्म 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है !

जी सी 2 (Gujrat Jeera 2)

जीरा की इस वैरायटी में तेल की मात्रा करीब 4 प्रतिशत होती है ! यह किस्म उखटा व् झुलसा रोग के प्रतिरोधी है ! यह किस्म प्रति हैक्टेयर 6 से 7 क्विंटल की पैदावार देती है ! ये किस्म करीब 100 दिन में पकाकर कटाई के लिए तैयार हो जाती है !

जी सी 3 (Gujrat Jeera 3)

इस वैरायटी में लगभग 4.4 प्रतिशत तेल होता है ! यह किस्म उखटा रोग के सहनशील है ! ये किस्म 98 दिन में तैयार हो जाती है ! यह 7 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है !

जी सी 4 (Gujrat Jeera 4)

जीरा/jeera/zeera/jira की ये फसल उखटा व् झुलसा रोग के प्रतिरोधी है ! ये किस्म 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती  है तथा 120 दिन में तैयार हो जाती है ! 

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खेत की तैयारी

समय के अनुसार 15 से 30 दिन पुर्व मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करके छोड दें, उसके बाद एक या दो जुताई देशी हल या हैरो से मिट्टी को भूरभूरी बनाने के लिए करें और अंत मे पाटा लगा दें, जिससे मृदा मे नमी की कमी न हो। हल्की मिट्टी में कम व भारी मिट्टी में अधिक जुताई करके खेत को तैयार करें।

जीरा बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

एक हैक्टर क्षेत्र के लिये 12-15 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। बुवाई से पूर्व जीरा के बीज को 2 ग्राम कार्बेण्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. या 4 ग्राम ट्राईकोडेर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित जरूर करें।

बुवाई का समय एवं विधि

जीरा/jeera/zeera/jira की बुवाई नवम्बर के प्रथम पखवाड़े मे कर देनी चाहिये। बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि की अपेक्षा 30 सेन्टीमीटर की दूरी पर कतारों मे करना अधिक उपयुक्त रहता है।

कतारों में बुआई के लिये क्यारियों में लोहे या लकड़ी के हुक से बनाई गयी लाइनों में बीज डालकर दन्ताली चलादें । बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि बीजों पर मिट्टी की परत एक सेन्टीमीटर से ज्यादा मोटी न हों।

पोषक तत्व प्रबंधन

खाद एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण फसल अनुकिया के आधार पर ही करना चाहिए।

जीरा/jeera/zeera/jira मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 36 कि.ग्रा. नत्रजन, 26 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 18 कि.ग्रा. पोटास एवं अन्य उर्वरकों की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के अनुसार करना चाहिए;

पोषक तत्वखाद/उर्वरकइकाई मात्रा मात्रा मात्रा मात्रा
   विकल्प 1विकल्प 1विकल्प 2विकल्प 2
   प्रति हैक्टेयरप्रति एकड़प्रति हैक्टेयरप्रति एकड़
कम्पोस्ट खादटन5-102-45-102-4
नाइट्रोजन  यूरियाकि.ग्रा56227831
फास्फोरसDAPकि.ग्रा5622–  
फास्फोरसSSPकि.ग्रा16265
पोटाशMOPकि.ग्रा30123012

नोट: खाद एवं उर्वरकों की मात्रा का उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट कीसी भी एक विकल्प के आधार पर ही करें।

अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट (देशी) खाद की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें। बुवाई के समय नत्रजन की आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटास की पूरी मात्रा बीज के साथ या सीड कम फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें।

नत्रजन की शेष आधी मात्रा के पुनः दो भाग करें, जिसके एक भाग को बुवाई के 35 दिन बाद एवं दुसरे भाग को बुवाई के 60 दिन बाद सिंचाई के समय देवें।

सिंचाई प्रबंधन

बुवाई के तुरंत बाद एक सिंचाई करें परंतु यह ध्यान रखें कि पानी का बहाव तेज न रहें अन्यथा बीज अस्त-व्यस्त हो सकते है।

दूसरी हल्की सिंचाई जमीन के अनुसार बुवाई के 4-10 दिन बाद करें जब बीज फूलने लगें। चूंकी बीजों का अंकुरण दूसरी सिंचाई के बाद ही दिखाइ देता है, इसलिए यदि धूप से जमीन पर पपड़ी जम जाये तो एक बहूत ही हल्की सिंचाई और कर सकते है ताकी अंकुरण अच्छी तरह से हो सकें।

इसके बाद मौसम व भूमि के आधार पर 20-25 दिनों के अन्तराल पर कुल तीन सिंचाईया कमशः 35, 60 एवं 85 दिन बाद करें। इनमे से अन्तिम सिंचाई दाने बनते समय गहरी करें। फसल पकने के समय सिंचाई बिल्कुल न करें।

खरपतवार नियन्त्रण

निराई-गुडाई

जीरा/jeera/zeera/jira की फसल में कम से कम दो निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। पहली बार 30-35 दिन बाद करें जब पौधे 5 सेन्टीमीटर लम्बे हो, तथा इसी समय पौधो की छंटनी करके पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सेन्टीमीटर रख लें जीससे कि फसल पर कीटों व रोगों का प्रकोप अपेक्षाकृत कम हों। दूसरी निराई-गुडाई 55-60 दिन बाद करें।

रासायनिक नियन्त्रण

जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए बुवाई के बाद परंतु अंकुरण से पहले पेन्डीमेथालिन 30 ई.सी. दवा को 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। या

बुवाई के 20-25 दिन बाद ऑक्सीफ्लूओरफेन 23.5 ई.सी. दवा को 200 मिलीलीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कीट एवं रोग प्रबंधन

मोयला/चैपा (एफिड)

जीरा/jeera/zeera/jira में रस चुसने वाले कीटों में मोयला प्रमुख है। इसका प्रकोप फूल आते समय अधिक होता है, जो दाना पकने तक रहता है।

यह कीट पौधों के ऊपरी भाग के सभी अंगों पर झुण्ड में चिपककर रस चूसता है तथा इस कीट द्वारा वहीं पर मीठा द्रव्य पदार्थ छोड़ने से काली फफूंद पनप जाती है।

इससे प्रभावित पौधे कमजोर हो जाते है जिससे पत्तियां सिकुड़कर मुड़ने लगती है। नम मौसम, हल्की बूंदाबादी, लम्बे समय तक बादल छाये रहने पर कीट के शिशु व प्रोढों का प्रकोप उग्र रूप धारण कर लेता है जो हानिकाकर होता है।

नियन्त्रण

1. खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखे एवं खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।

2. कीट के प्रकोप की निगरानी रखते हुए पीले चिपचिपे पाश (येलो स्ट्रीकी ट्रेप) काम में लेवें। दस पीले चिपचिपे पाश प्रति हैक्टेयर के लिए पर्याप्त है।

3. रासायनिक नियन्त्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. को 1.2 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।

या

थायमिथोक्ज़ाम 25 डब्ल्यू.जी. को 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 600

लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हों तो छिड़काव 15-20 दिन बाद दोहरायें।

उखटा (विल्ट)

यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम–क्यूमिनि नामक कवक से होता है। उखटा का प्रकोप पौधों की किसी भी अवस्था मे हो सकता है, परन्तु प्रारम्भिक अवस्था मे ज्यादा होता है।

चूंकी यह रोग बीज व मृदा जनित है, इसलीए पौधों की जड़ों मे लगता है। इस से ग्रसित पौधे खेत में हरे के हरे ही मुरझा कर सूखने लगते है, रोगी पौधे कद मे छोटे तथा पत्तियां दूर से ही पीली नजर आती है।

नियन्त्रण

1. रोग ग्रसित खेत में जीरा की बुवाई नही करें। कम से कम तीन वर्ष का फसल-चक्र अपनाये।

2. गर्मी में खेत की गहरी जुताई जरूर करें, तथा बुवाई से पूर्व सरसों, अरंडी या नीम की खली 2.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से देशी खाद के साथ भूमि में मिलावें।

3. ट्राइकोडर्मा विरीडी (जैविक फफूंदनाशी) 4 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 100 कि.ग्रा. देशी खाद में अच्छी तरह मिलाकर तैयार करें, तथा अंतिम जुताई से पुर्व भूमि में मिलाकर मृदा उपचार करना न भुलें।

4. रोग रोधक किस्म के स्वस्थ बीज को उपचारित करके ही बुवाई हेतु काम मे लें।

5. रासायनिक नियन्त्रण के लिए मेन्कोजेब का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। आवश्यक हों तो 10-15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।

झुलसा (ब्लाइट) Blight in jeera/zeera/jira

यह रोग “अल्टरनेरिया बर्नसी’ नामक कवक द्वारा फूल आने के समय आकाश मे बादल छाये रहने पर अवश्य होता है। इस रोग के लक्षण पौधे की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखते है और पौधों के सिरे झुकने लगते है।

रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर धब्बे पत्तियों से तने एवं बीजो पर बढ़ते है और धीरे-धीरे ये काले रंग में बदल जाते है जिससे पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है।

नियन्त्रण

1. गर्मी में गहरी जुताई करे व फसल चक्र अपनावें। स्वस्थ बीज ही बोने के काम में लें व बीज को उपचारित जरूर करें।

2. सिंचाई का उचित प्रबन्धन करें, तथा ज्यादा पानी वाली फसलें जीरा के पास नही लगायें।

3. फसल में फूल शुरू होने के बाद खासतौर से नमी बढ जावे एवं आकाश में बादल दिखाई दे तब फसल पर डाइथेन एम 45 (मेन्कोजेब) का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। आवश्यक हों तो 10-15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।

छाछ्या/चूर्णी फफूंद (पाउडरी मिल्ड्यू)

यह रोग “एरीसिफी पॉलीगोनी” नामक कवक द्वारा बादल छाये रहने या वातावरण मे नमी बड़ने से होता है।

इस रोग का लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर सफेद चूर्ण के रूप मे दिखाई देता है जो जल्दी ही वृद्धि करके तने व फूलों एवं अंत मे बीजो पर फैल जाता है। रोग बढ़ने पर पूरा पौधा ही सफेद से गन्दला होकर कमजोर हो जाता है।

नियन्त्रण

1. जीरा/jeera/zeera/jira की बुवाई समय पर करें, देरी से बोने के कारण इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।

2. रोग के लक्षण दिखाई देते ही बिना देरी किये गन्धक का चूर्ण 24 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें। या घुलनशील गंधक का 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति एक लीटर पानी की दर से)

या

डिनोकेप का 0.1 प्रतिशत (1 मि.ली. प्रति एक लीटर पानी की दर से) घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार छिड़काव या भुरकाव 10-15 दिन बाद दोहरायें।

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पौध संरक्षण छिड़काव कार्यकम

खड़ी फसल में कीट व रोगों के सम्मिलित नियन्त्रण हेतु निम्नानुसार “पौध संरक्षण रासायनिक छिड़काव कार्यक्रम” अपनायें;

प्रथम छिड़काव

बुवाई के 30-35 दिन बाद जीरा की फसल पर फफूंदनाशी दवा (मेन्कोज़ेब 75 डब्ल्यू.पी.) 1. 0 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें।

दूसरा छिड़काव

बुवाई के 40-45 दिन बाद फफूंदनाशी दवा (1.0 किलोग्राम मेन्कोज़ेब 75 डब्ल्यू.पी. + 1.2 किलोग्राम घुलनशील गंधक) + कीटनाशी दवा (1.2 लीटर डाईमेथोएट 30 ई.सी. या 1.0 लीटर फोस्फामिडोन 40 एस.एल. या 100 ग्राम थायमिथोक्जाम 25 डब्ल्यू.जी.) को प्रति हैक्टेयर की दर से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

तीसरा  छिड़काव

दुसरे छिड़काव को 10-15 दिन बाद उपरोक्त अनुसार ही दोहरायें।

भुरकाव:- यदि आवश्यक हों तो तीसरे छिड़काव के 10-15 दिन बाद 24 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से गंधक के चूर्ण का भुरकाव करें।

कटाई एवं भण्डारण

जीरा/jeera/zeera/jira की फसल लगभग 100 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फसल पकने पर तने और दानों में पीलापन आने लगता है और पत्तियाँ सूखकर गिरने लगती है।

कटाई के बाद खलिहान मे फसल को छाया में सुखाकर स्वच्छ पक्के फर्श पर धीरे-धीरे पीटकर दाने अलग कर लेवें। दानों को अच्छे से सुखाने के बाद बोरियों मे भरें।

Jeera/zeera/jira बीजों की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए भण्डारण से पुर्व यह सुनिस्चित कर लें की बोरीयों मे भरते समय दानों में नमी 8-10 प्रतिशत से अधिक नही रहें।

उपज जीरा/jeera/zeera/jira

उन्नत कृषि कियायें अपनाकर जीरा/jeera/zeera/jira की फसल से 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक दाने की उपज प्राप्त की जा सकती है।

जीरा/jeera/zeera/jira seed price

बाज़ार में जीरा की अनुमानित कीमत 140 रूपए प्रति किलो से 200 रूपए किलो तक मिल जाती है ! यह कीमत उत्पादन और उत्पाद की गुन्नवत्ता पर निर्भर करती है !

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