हल्दी का वैज्ञानिक नाम कुरकुमा लोंगा है, इसे संस्कृत में हरिद्रा कहते हैं तथा अंग्रेजी में यह टरमेरिक के नाम से जानी जाती है। हल्दी सभी की चहेती मसाला फसल है, जिसे मनुष्य के जीवन में जन्म से मृत्यु तक अनेक अवसरों पर प्रयुक्त किया जाता है। इन परम्पराओं की उपयोगिता जो भी हो, हमारे पूर्वजों ने हल्दी को शुभ तथा मंगलदायक वस्तु माना है।
- भोजन में हल्दी की उपयोगिता uses of turmeric in food
- सौन्दर्यवर्धन में हल्दी की उपयोगिता Turmeric in cosmetic
- घरेलू चिकित्सा पद्धति में हल्दी का उपयोग Medicinal Uses of turmeric
- जलवायु व मिटटी climate requirement for turmeric
- हल्दी की किस्में Varieties of turmeric
- बीजाई का समय एवं विधि sowing or turmeric
- खाद एवं उर्वरक fertilization in turmeric
- निराई-गुड़ाई व मल्चिंग
- सिचाई irrigation in turmeric
- फसल सुरक्षा प्रबन्ध plant protection turmeric
- खुदाई एवं उपज harvesting of turmeric
भोजन में हल्दी की उपयोगिता uses of turmeric in food
प्राचीन समय से ही भारतवासी हल्दी का इस्तेमाल दाल, सब्जी, चटनी, आचार तथा अन्य भोज्य सामग्रियों को लूभावना तथा सुनहरा रंग प्रदान करने के साथ-साथ इनमें एक विशेष प्रकार की सुगंध भरने के लिए करते रहे हैं।
भारतीय पकवान या तो बिना हल्दी के बन ही नहीं सकते तथा यदि बन भी जाते हैं तो बिना हल्दी के उनका रंग फीका दिखता है तथा स्वाद भी फीका लगता है।
वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हल्दी में कैंसररोधी गुण विद्यमान है। अतः ऐसे मनुष्य जिनके भोजन में प्रति दिन हल्दी की प्रचुर मात्रा होती है, उन्हें कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है। शायद हल्दी के इन्हीं गुणों के कारण भारतीय लोग आदिकाल से हल्दी का इस्तेमाल भोजन में करते आ रहे हैं।
सौन्दर्यवर्धन में हल्दी की उपयोगिता Turmeric in cosmetic
प्राचीन काल से ही हल्दी प्राकृतिक सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तु रही है। भारत में चाहे वह उत्तर भारत की महिला हो या दक्षिण भारत की, राजस्थानी हो या मणिपुरी-सभी हल्दी का इस्तेमाल प्राकृतिक सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में अपने शरीर को आकर्षक तथा सुन्दर बनाने के लिए करती हैं।
उत्तर भारत में शादी-विवाह के अवसर पर हल्दी के चूर्ण को सरसों के तेल तथा बेसन में मिलाकर पूरे शरीर पर इसलिए लगाया जाता है ताकि शरीर पर यदि कोई चर्मरोग हो तो वह ठीक हो जाए तथा साथ ही रूप-रंग भी निखर जाये।
घरेलू चिकित्सा पद्धति में हल्दी का उपयोग Medicinal Uses of turmeric
घरेलू चिकित्सा पद्धति में हल्दी हजारों जो की एक अचूक औषधि मानी गई है। आज भी असंख्य लोग हल्दी का इस्तेमाल दवा के रूप में विभिन्न रोगों को दूर करने के लिए करते हैं।
भोजन में दाल, सब्जी, कढ़ी, पुलाव, मछली, मांस आदि में हल्दी डालने की प्रथा हमारे पूर्वजों ने शायद इसलिए अपनाई होगी, क्योंकि हल्दी में रक्तशोधक गुण होने के कारण यह रक्त को साफ करती है। हल्दी पेट दर्द को दूर करती है तथा पाचक का कार्य करती है।
हल्दी में पीली सरसों का तेल तथा गाय का घी मिलाकर घाव पर लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है। चोट लगने पर दूध में हल्दी डालकर पिला देने से दर्द तथा सूजन समाप्त हो जाती है।
जोंक के काटने पर हल्दी का पाऊडर छिड़कते ही रक्त स्राव थम जाता है। इस प्रकार हल्दी का इस्तेमाल अनेक रोगों को दूर करने के लिए दवा के रूप में किया जाता है। वर्तमान युग में इससे अनेकों औषधीय तेल, मलहम तथा अनेक होम्योपैथी एवं आयुर्वेदिक दवाएं बनाई जा रही है।
संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि हल्दी केवल एक मसाला मात्र ही नहीं बल्कि यह एक बहुमूल्य जड़ी-बूटी है, जो मनुष्य को स्वस्थ शरीर, खूबसूरती तथा लम्बी उम्र प्रदान करती है।
हल्दी की अच्छी फसल के लिए उत्तम किस्म का चुनाव, बीजाई का समय, बोने का तरीका, बीज की मात्रा, बीजोपचार की विधि, लगाने का अंतर, उर्वरक देने की विधि, समय एवं मात्रा के साथ-साथ फसल की देख-रेख एवं फसल सुरक्षा हेतु मुख्य बिन्दुओं की जानकारी उत्पादकों को होना अत्यन्त आवश्यक है, जो निम्नानुसार है
जलवायु व मिटटी climate requirement for turmeric
हल्दी मुख्यतः ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है! इसकी खेती के लिए गर्म तथा आर्द्रता वाला मौसम ज्यादा उपयुक्त रहता है। हल्दी को भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जाता है।
इसकी खेती के लिए रेतीली अथवा बलुई दोमट और मटियार दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त रहती है, यह उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए। हल्दी की खेती हल्की मिट्टी में अच्छी होती है, चिकनी व भारी मिट्टी में कन्दों का विकास अच्छा नहीं होता।
खेत की तैयारी के समय एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और 3-4 बार देशी हल से या हैरो से जुताई करें। यदि ढेले दिखाई दें तो 2-3 बार पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
हल्दी की किस्में Varieties of turmeric
गांठां के रंग और आकार के अनुसार हल्दी की कई किस्में पाई जाती है। मालाबार की हल्दी औषधीय महत्व की होती है तथा यह जुकाम और कफ के उपचार के लिए उपयुक्त है।
पूना एवं बंगलौर की हल्दी रंग के लिए अच्छी है। जंगली हल्दी अपनी सुगंधित गांठों के कारण भिन्न है तथा इसे ‘कुरकुमा एरोमेटिका’ (सुगंधित हल्दी) कहते हैं। हिमाचल प्रदेश में आमतौर पर स्थानीय किस्में ही प्रचलन में है। हल्दी की कुछ उत्कृष्ट किस्मों का विवरण निम्नानुसार है :
पालम पिताम्बर haldi Palam Pitamber turmeric
यह किस्म हरे पत्तों के साथ मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह अधिक आय देती है और औसतन वार्षिक उपज 332 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (25-26 क्विंटल प्रति बीघा) तक प्राप्त हो सकती है। इस किस्म में स्थानीय किस्मों से अधिक उपज देने की क्षमता है और इसकी गठ्ठियां उंगलियों की तरह लम्बी वरंग गहरा पीला होता है।
पालम लालिमा हल्दी Palam Lalima turmeric
इसकी गठ्ठियों का रंग नारंगी होती है और स्थानीय किस्मों की अपेक्षा इसकी औसत वार्षिक उपज अधिक होती है। इस किस्म की औसतन वार्षिक उपज 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (20-24 किवंटल प्रति बीघा) तक ली जा सकती है।
कोयम्बटूर हल्दी Coimbatore turmeric
यह बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके कंद बड़े, चमकीले एवं नारंगी रंग के होते हैं। यह 285 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
कृष्णा haldi Krishna turmeric
यह लम्बे प्रकंदों तथा अधिक उपज देने वाली किस्म है। यह कंद गलन के प्रति रोगरोधी है और 255 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
बी.एस.आर.-1 हल्दी (BRS-1)
जिन क्षेत्रों में पानी खड़ा रहता हो वहाँ के लिए अधिक उपज देने वाली उपयुक्त किस्म है। इसके कंद लम्बे तथा चमकीले पीले रंग के होते हैं। यह किस्म 285 दिनों में तैयार हो जाती है।
सवर्णा हल्दी Swarana turmeric
यह अधिक उपज देने वाली, गहरे नारंगी रंग कंद युक्त अधिक उपज देने वाली किस्म है।
सुगुना haldi Suguna turmeric
छोटे कंद और 190 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म कंद गलन रोग के लिए प्रतिरोधी है।
सुदर्शन haldi Sudarshan turmeric
इसके कन्द घने, छोटे आकार के तथा देखने में काफी खूबसूरत होते हैं। यह किस्म 190 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
बीजाई का समय एवं विधि sowing or turmeric
हल्दी की फसल की बीजाई वैसे तो अप्रैल से जुलाई तक की जा सकती है, परन्तु जहाँ पर सिंचाई के साधन हों वहाँ बीजाई अप्रैल-मई में ही कर देनी चाहिए। हल्दी को तीन प्रकार से लगाया जा सकता है। समतल भूमि में, मेढ़ों पर और ऊँची उठी हुई क्यारियों में । बलुई दोमट मिट्टी में हल्दी समतल भूमि में लगा सकते हैं, लेकिन मध्यम व भारी भूमि में बीजाई सदैव मेढ़ों पर एवं उठी हुई क्यारियों में ही करनी चाहिए।
बीजाई सदैव पंक्तियों में करें, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से 40 सैंटीमीटर एवं पंक्तियों में कंद से कंद की दूरी 20 से 25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए।
बीजाई के लिए सदैव स्वस्थ एवं रोग रहित कंद छांटना चाहिए। कंद लगाते समय विशेष ध्यान रखने की बात है कि कंद की आँखें ऊपर की तरफ हों तथा कंद को 4-5 सैंटीमीटर की गहराई पर लगाकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक fertilization in turmeric
अन्य फसलों की तरह हल्दी की अधिक उपज पाने के लिए उर्वरक समुचित मात्रा में डालना आवश्यक है। खेत तैयार करते समय 15-20 क्विंटल प्रति बीघा अच्छी प्रकार से गली-सड़ी गोबर की खाद डालें।
कच्ची गोबर की खाद खेत में न डालें क्योंकि इससे कटवर्म एवंदीमक का प्रकोप अधिक होता है और कंदों पर धब्बे पड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त बीजाई के समय 5 किलोग्राम कैन, 15 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 8 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति बीघा की दर से प्रयोग करें।
कैन की शेष मात्रा को दो बार बीजाई के 40 दिन बाद (2.5 किलोग्राम) एवं 80 दिन बाद (2.5 किलोग्राम) खड़ी फसल में प्रयोग करें या 8 किलोग्राम 12:32:16 मिक्चर एवं 6 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति बीघा बीजाई के समय डालें व बीजाई के 40-50 दिन बाद यूरिया की 3 किलोग्राम मात्रा प्रति बीघा खड़ी फसल में दें।
निराई-गुड़ाई व मल्चिंग
खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कम से कम दो-तीन निराई-गुड़ाई अवश्य करें। अगर बीजाई कतारों में या मेंढ़ों पर की गई है तो एक बार गुड़ाई देशी हल से की जा सकती है।
बीजाई के तुरन्त बाद हरे पत्तों या घास की मल्चिंग कर दें ताकि मिटटी पर पत्तियों की 5 से 8 सैंटीमीटर मोटी तह बिछ जाए। इससे कन्दों का जमाव अच्छा होता है और मिट्टी में नमी रोकने की क्षमता बढ़ती है। यदि सम्भव हो तो बीजाई के 50 दिन बाद एवं 100 दिन बाद पुनः मल्चिंग करें।
सिचाई irrigation in turmeric
हल्दी की फसल लम्बे अंतराल (लगभग 9-10 माह) में तैयार होने वाली फसल है। अतः इसे समयानुसार समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। अगेती फसल लगाने हेतु बीजाई से पहले खेत की सिंचाई कर बत्तर आते ही बीजाई करना उचित रहता है, क्योंकि हल्दी की बीजाई अप्रैल-मई माह में प्रारम्भ कर दी जाती है।
अतः फसल में वर्षा के पूर्व आवश्यकतानुसार 6-7 दिनों के अन्तराल से सिंचाई करें। शीत ऋतु में सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करें। वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद 15-20 दिन के अन्तर से फसल की सिंचाई करनी चाहिए।
फसल सुरक्षा प्रबन्ध plant protection turmeric
इस फसल में सामान्यतः कीड़े कम लगते हैं लेकिन वर्षा ऋतु में अधिक आर्द्रता होने पर हल्दी की पत्ती धब्बा बीमारी, जिसमें पत्तों के दोनों ओर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, तेजी से फैलती है।
धब्बे प्रायः पत्तों की ऊपरी सतह पर अधिक होते हैं। पत्ते विकृत आकार के तथा लाल-भूरे रंग के हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए स्वस्थ व रोगरहित बीज कंदों का चुनाव करना चाहिए तथा फसल की बीमारी से प्रभावित पत्तियों को इकट्ठा करके जला दें या जमीन में दबा दें और खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या स्कोर 25 ई.सी. या टिल्ट 25 ई.सी. (10 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी) में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।
संभव हो सके तो हल्दी की फसल दूसरे वर्ष उसी खेत में न लगाएं। कन्द गलन या गठ्ठी सड़न रोग जिसमें गांठ सड़ जाती है और पत्तियाँ भूरी हो जाती हैं की रोकथाम के लिए बीजाई से पहले कंदों का उपचार कर लें। हल्दी की फसल में तना छेदक व पत्ती छेदक कीटों का प्रकोप होने पर 1.5 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. या 1 मि. ली. क्वीनलफॉस 25 ई० सी० प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कभी-कभी हल्दी की फसल में सफेद गिडार (White grubs) का आक्रमण भी देखा गया है। यह कीट जमीन में रहकर गठ्ठियों को खाता रहता है। इस कीट के नियन्त्रण हेतू बिजाई के समय 2 लीटर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई० सी० 25 कि० ग्रा० सूखी रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें।
खुदाई एवं उपज harvesting of turmeric
हल्दी की फसल 7-9 माह में तैयार हो जाती है। इस प्रकार फरवरी-मार्च में हल्दी के कंदों को खुदाई करके निकाला जाता है। कंदों को साफ करके उनका ढेर लगाकर रखा जाता है। अच्छी फसल होने पर 18-20 क्विंटल ताजी हल्दी प्रति बीघा प्राप्त होती है, जो प्रोसैसिंग (सुखाने) के बाद 4.5 – 5.0 क्विंटल प्रति बीघा रह जाती है।
स्त्रोत – प्रेम चंद शर्मा और मनोज गुप्ता हिमाचल कृषि विश्वविद्यालय
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Sir kya mp ke rewa jile me kali mitti hai to yaha kya haldi ki fasal ho sakti hai