गुलाब की खेती का फूलो की दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान है। गुलाब को फूलों का राजा भी कहा जाता है। गुलाब के पुष्पों की मांग, भारत सहित दुनियाभर में 12-13 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है।
गुलाब की खेती देश में खपत व विदेश में निर्यात करने के लिए, दोनों रूप में, महत्वपूर्ण है। गुलाब को कट फ्लावर, गुलाब जल, गुलाब तेल, गुलकंद आदि उत्पादों के लिए भी उगाया जाता है।
गुलाब के लिए बीच की जलवायु, अर्थात न अधिक ठंड एवं न अधिक गर्मी होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में दिन का तपमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात का 12-14 डिग्री सेल्सियस अति उत्तम माना जाता है।
गुलाब की खेती में प्रजातिया Variety of Rose
संकर Hybrid Rose Variety
क्रिमसन ग्लोरी, मिस्टर लिंकन, लव, जॉन एफ. केनेडी, जवाहर, मृणालिनी, प्रेसीडेन्ट, राधा कृष्णन, फर्स्ट लव, अपोलो, पूसा सोनिया, गंगा टाटा सेटनरी, आर्किड, सुपर स्टार, अमेरिकन हेरिटेज आदि।
पाली एन्था Polyantha Rose
अन्जनी, रश्मि, नर्तकी, प्रीति, स्वाती।
फ्लोरीबन्डा
बन्जारन, देहली प्रिंसेज, डिम्पल, चन्द्रमा, सदाबहार, सोनोरा, नीलाम्बरी, करिश्मा, सूर्य किरण आदि।
गैन्डी फ्लोरा
क्वीन एलिजाबेथ, मान्टे जुमा आदि।
मिनीपेचर
ब्यूटी सीक्रेट, रेड फ्लश, पुश्कला, बेबी गोल्ड स्टार, सिल्वर टिप्स आदि।
लता गुलाब
कॉकटेल, ब्लैक ब्वाय, लैमार्क, पिंक मैराडोन, मैरिकल नील आदि।
मृदा Soil for Rose
गुलाब के लिए मृदा दोमट तथा अधिक कार्बनिक पदार्थ वाली होनी चाहिए, जिसका पी-एच मान 5.3 से 6.5 तक हो।

गुलाब की खेती में पौध तैयार करना
जंगली गुलाब के ऊपर ‘टी’ बडिंग द्वारा इसकी पौध तैयार होती है। इसकी कलम जून-जुलाई में क्यारियों में लगभग 15 सें.मी. की दूरी पर लगा दी जाती है और इनमें पत्तियां फूट जाती हैं।
नवंबर-दिसंबर में चाकू की सहायता से फुटाव आई टहनियों पर से कांटे साफ कर दिये जाते हैं।
जनवरी में अच्छी किस्म के गुलाब से टहनी लेकर ‘टी’ आकार कलिका निकालकर जंगली गुलाब के ऊपर लगाकर पॉलीथीन से कसकर बांध देते हैं। इस प्रकार जुलाई-अगस्त में रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाती है।
इसे भी पढ़े – जीरा की खेती
ले-आउट और तैयारी
सुन्दरता की दृष्टि से औपचारिक ले आउट करके क्यारियां तैयार की जा सकती है, जिनका आकार 5 x 2 मीटर रखा जा सकता है।
क्यारियों को अप्रैल-मई में एक मीटर गहराई तक खोदें और 15-20 दिनों तक खुला छोड़ दें।
क्यारियों में 30 सें.मी. तक सूखी पत्तियों को डालकर खोदी गई मिट्टी से इन्हें भर दें। इसके साथ ही गोबर की सड़ी खाद खेत (क्यारी) में डाल दें। इसके बाद क्यारियों को पानी से भर दें।
दीमक से बचाव के लिए फॉलीडाल धूल या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी. का प्रयोग करें। लगभग 10-15 दिनों बाद ओट आने पर इन्हीं क्यारियों में पंक्ति बनाते हुए पौधे से पौधे व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 X 60 सें.मी. रखी जाती है।
गुलाब की पौध रोपाई – कैसे लगायें गुलाब
पौधशाला से सावधानीपूर्वक खोदकर उत्तर भारत के मैदानी भागों में सितंबर-अक्टूबर में पौध की रोपाई करनी चाहिए।
ध्यान दें कि कलिकायन वाला भाग रोपाई के समय भूमि की सतह से 15 सें.मी. ऊंचा रहे। पौधे से पौधे व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 x 60 सें.मी. रखी जाती है। पौध लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई कर दें।
सिंचाई irrigation in rose
गुलाब की खेती के लिए सिंचाई का उत्तम प्रबंध होना चाहिए और आवश्यकतानुसार गर्मी में 5-7 दिनों बाद तथा सर्दी में 10-12 दिनों बाद सिंचाई करनी चाहिए।
गुलाब की कटाई-छंटाई (प्रूनिंग)
काट-छांट का कार्य गुलाब की खेती में महत्वपूर्ण है I इसके लिए मैदानी भागों में अक्टूबर का दूसरा सप्ताह उपयुक्त होता है, बशर्ते काट-छांट के समय वर्षा न हो।
पौधों में 3-5 मुख्य टहनियों को 30-45 सें.मी. लंबाई में काट दिया जाता है। इन्हें 45 अंश (डिग्री) पर आंख के 5 मि.मी. ऊपर से काटा जाता है, जिससे आंख खराब न हो पाये।
गुलाब में खाद एवं उर्वरक
गुलाब के विकास के लिए ठंड के दिनों में 3-4 घण्टे की धूप और रात्रि की ओस बहुत आवश्यक है।
उत्तम कोटि का फूल लेने के लिए (प्रूनिंग के बाद) प्रति पौधा 10 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी खाद मृदा में मिलाकर सिंचाई करनी चाहिए।
गोबर की खाद देने के एक सप्ताह बाद जब पौधों में नई कोंपलें फूटने लगें तब 200 ग्राम नीम की खली, 100 ग्राम हड्डी का चूरा तथा रासायनिक खाद का मिश्रण 50 ग्राम प्रति पौधा जिसमें यूरिया, सुपर फॉस्फेट तथा पोटेशियम सल्फेट 1:2:1 अनुपात में हो, देना चाहिए।
गुलाब के फूलों की कटाई
सफेद, लाल और गुलाबी रंग के फूलों में अधखुली पंखुड़ियों में जब ऊपरी पंखुड़ी नीचे की ओर मुड़ना शुरू हों, तब काटना ठीक रहता है।
फूलों को काटते समय एक या दो पत्तियां टहनी पर छोड़ देनी चाहिए, जिससे पौधों को वहां से फिर बढ़वार मिलती है।
गुलाब की खेती में रोग एवं कीट नियंत्रण
पाउडरी मिल्ड्यू रोग (खर्रा)
इस फफूंदीजनित रोग में पत्तियों, तनों तथा कलियों पर सफेद चूर्ण फैला दिखाई देता है।
उपचार
पौधों पर रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक (2 ग्राम प्रति लीटर पानी में) या डाइनोकैप (1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में) या ट्राइडेमार्फ (1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में) का घोल बनाकर 15 दिनों के अंतर पर दो छिड़काव दवाओं को अदल-बदल कर करें।
डाईबैक या उल्टा सूखा रोग
इस रोग का प्रकोप वर्षा के बाद से प्रारंभ होकर दिसंबर के अंत तक होता है। इसमें टहनियां ऊपर से शुरू होकर नीचे की ओर सूखना शुरू कर देती हैं तथा पौधे का तना काला पड़कर मर जाता है।
उपचार
50 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
कीट
माहूं अथवा चैंपा (एफिड)
गुलाब में ये कीट छोटे, गोल, हरे, गहरे हरे या काले रंग के होते हैं। ये पौधे से रस चूसते रहते हैं। इनके प्रकोप से गुलाब की पत्तियां सिकुड़ जाती हैं एवं पौधा सूख जाता है।
उपचार
कीट दिखाई देते ही तुरन्त डाईमिथोएट 1.5 मि.ली./लीटर पानी में अथवा मोनोक्रोटोफॉस 1 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर 2-3 छिड़काव करें।
शल्क कीट
इसका प्रकोप गुलाब के पौधे पर बहुतायत में होता है। ये लाल और भूरे रंग के शल्क कीट मुलायम तने का रस चूसकर उन्हें कुरूप बना देते हैं।
नियंत्रण
फोरेट 10-जी 3-4 ग्राम या फॉलीडाल 2 प्रतिशत धूल की 10-15 ग्राम प्रति पौधे की दर से गुड़ाई करके मृदा में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए।