गन्ने की फसल के किट व बीमारियां और रोकथाम (insect-pests of sugarcane)

गन्ना की फसल में बहुत से कीड़े नुकसान पहुंचाते हैं। फसल उगते समय बीज से उगी आंखों को दीमक खा जाती है, मोढ़ी फसल के छोटे पौधे व प्ररोह पूरी तरह से सूख जाते हैं।

कन्सुआ के आक्रमण से पौधों की गोभ सूख जाती है। चोटी बेधक के आक्रमण से गोभ के पत्तों में सुराख और मध्य शिरा के बीच में सुरंग बन जाती हैं। जुलाई व इसके बाद इस कीट के आक्रमण वाले पौधों के ऊपर अगोलों का गुच्छा-सा बन जाता है।

जड़ बेधक का अधिक प्रकोप सितम्बर से नवम्बर तक होता है। तराई बेधक सितम्बर से लेकर फसल की कटाई तक अधिक नुकसान पहुंचाता है व पूरे गन्ने में सुराख कर देता है।

रस चूसने वाले कीड़ों में से काली कोड़ी व माईट अप्रैल से जून तक तथा पायरिल्ला (अल/घोड़ा) जुलाई से अक्तूबर तक अधिक नुकसान पहुंचाता है।

सफेद मक्खी सेम वाली मोढ़ी फसल में अगस्त से लग जाती है। ये कीट, पत्तों का रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं। स्केल कीट गन्ने की पोरियों का रस चसकर प्रभावित करता है। टिड़े की विभिन्न प्रजातियों में से “फड़का” फसल को छोटी अवस्था से लेकर पूरे वृद्धिकाल तक हानि पहुँचाता है।

गन्ना फसल के मुख्य कीटों की पहचान, नुकसान पर के लक्षण तथा उनके प्रबंधन का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है।

1. जमीन के अन्दर रहकर गन्ने की जड़ों को व पौधों के जमीन के अन्दर के भाग को नुकसान पहुंचाने वाले कीट (Subterranean insect-pests which damage root and underground portion of sugarcane)

दीमक (Termite):

इस कीट के मटमैले भूरे रंग के पंखरहित प्रौढ़ व बच्चे मिट्टी की सुरंग अथवा बाम्बी में रहते हैं। बिजाई के तुरन्त बाद ही दीमक बीज की आंखों व सिरों को खोखला कर देती हैं। ये फुटाव पश्चात् गन्ने की जड़ों को व पौधों के जमीन के अन्दर के भाग को खाती हैं, जिससे पौधे सूख जाते हैं व खींचने पर जमीन से आसानी से निकल आते हैं।

गन्ने के किट

बरसात उपरान्त गन्ना फसल पर आक्रमण से पत्ते पीले पड़ कर सूख जाते हैं व बाद में पूरा गन्ना ही सूखकर गिर जाता है। गन्ने की पोरियां खोखली हो जाती हैं व जड़ की तरफ से मिट्टी से भर जाती है। इनका हमला अक्सर गर्म शुष्क व रेतीले इलाकों में अधिक पाया जाता है।

कच्ची गोबर की खाद के इस्तेमाल से व खेत में फसल अवशेष छोड़ने से दीमक खेतों में पहुंच जाती है।

सफेद लट (White grub):

सफेद लट का आक्रमण रेतीली जमीनों में जुलाई से अक्तूबर तक रहता है। मानसून की पहली बरसात के होने पर इस कीट के प्रौढ़ जमीन से निकलकर खेतों के आसपास बेर, जामुन, नीम आदि वृक्षों पर बैठ जाते हैं।

मादा कीट जमीन में अण्डे देती है। इनसे निकली सण्डियां अर्धविराम आकार की होती हैं जो गन्ने की जड़ो को व जमीन के अन्दर के भाग को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसे पौधे सूख कर गिर जाते हैं। इस कीट की वर्ष में एक ही पीढी होती है।

2. पौधे के विभिन्न भागों के बेधक कीट (Borers)

कनसुआ (Early shoot borer):

इसके प्रौढ़ मटमैले भूरे रंग के तितलीनुमा होते है। मादा पत्तियों की निचली सतह पर समूह में भूरे-सफेद रंग के अण्डे देती है, जिनसे निकली सुण्डीयो के शरीर पर लम्बाई के बल पांच गहरी धारियां होती हैं।

गन्ने के किट

सूण्डियां जमीन की सतह या मोड़ा नीचे जाकर तने में घुस कर पौधों को खाती हैं जिस कारण पौधों की गोभ मर जाती है। सूखा गोभ खींचने पर आसानी से बाहर आ जाती है व इसमें शराब जैसी दुर्गन्ध आती है।

कन्सुआ का प्रकोप गर्म व शुष्क मौसम (अप्रैल से जून) में फसल की प्रारंभिक अवस्था में सर्वाधिक होता है। गेहं के बाद बोई फसल में इस कीट का हमला सर्वाधिक होता है। अधिक आक्रमण की हालत में खेत में पौधों की संख्या कम हो जाती है जिसकी वजह से पैदावार में कमी आ जाती है।

जड़ बेधक (Root borer):

इसकी सूण्डियां जड़ को नहीं खातीं अपितु जड़ के ऊपर के भाग में सुरंग बनाकर तन्तुओं को खाती हैं। ग्रसित पौधों के बाहर के पत्ते पहले सूखते हैं व बाद में गोभ सूख जाती है जो खींचने पर आसानी से बाहर नहीं निकलती और न ही पौधा खींचने पर उखड़ता है।

गन्ने के किट

इसकी सूण्डी दूधिया रंग की व बिना धारी के होती है। यह कीट गन्ना फसल को भराभक अवस्था में कम परन्तु बरसात के बाद अधिक प्रकोपित करता है। सूखे की अवस्था में फसल पर इसका प्रकोप बढ़ जाता है।

वर्षाकाल में जड़बेधक के आक्रमण से पत्ते पीले पर हैं व पौधे की बढ़वार रुक जाती है जिससे पैदावार में कमी आती है। खेत में सूखा रोग (विल्ट) के जीवाणु होने से ग्रसित गन्ने सूख जाते हैं।

चोटी बेधक (Top borer):

इस कीट की पहली व दूसरी पीढ़ी बरसात से पहले का तीसरी व चौथी पीढ़ी बरसात के बाद हमला करती है।

इस कीट की सफेद रंग की मादा तितली की पीठ के पीछे कत्थई रंग के बालों का गच्छा होता है। अण्डे पत्तों पर समूह में होते हैं जो की रंग के बालों से ढके होते हैं।

गन्ने के किट

सूण्डियां पत्तों की मध्य शिरा में सुरंग बनाकर गन्ने की चोटी में घुस जाती हैं। छोटे ग्रसित पौधों की गोभ कानी हो जाती है और ऐसे पौधे बाद में सूख जाते हैं।

जूलाई से सितम्बर में इसके आक्रमण से ऊपर की पोरियों की आंख फूट जाती है जिस कारण चोटी में अगोलों का झुण्ड नजर आता है। इसे ‘बन्ची टॉप’ कहते हैं।

फसल में इस कीट का आक्रमण ‘बन्ची टॉप’ की वजह से आसानी से पहचाना जा सकता है। ग्रसित फसल की पैदावार तथा चीनी में कमी आती है।

तराई बेधक (Stalk borer):

इसकी सूण्डी के शरीर पर लम्बाई में पांच धारिया होता हैं। फसल की प्रांरभिक अवस्था में पहली व दूसरी पीढ़ी से ग्रसित पौधे पूरे सूख जाते है !

वर्षाकाल के बाद सूण्डियां पोरियों में घुसकर अन्दर ही अन्दर सुरंग बना कर खाती रहता है। खाया हुआ गन्ना अन्दर से लाल हो जाता है।

गिरे हुए गन्ने, ज्यादा सिंचाई व अधिक नत्रजन प्रयोग से इस कीट का प्रकोप बढ़ता है। अधिक चीनी वाली, रसीली व नरम किस्मों में यह काट अधिक लगता है।

गुरदासपुर बेधक (Gurdaspur borer):

इस कीट का हमला फसल में जून अन्त से सितम्बर अन्त तक रहता है। अण्डों से निकली छोटी-छोटी सूण्डियां ऊपर की कच्ची पोरियों (पहली से चौथी पोरी) की आंख में सुराख बना कर पोरी को छल्लेनुमा ढंग से खाती है।

गन्ने के किट

इसकी सूण्डी के शरीर पर लम्बाई के बल चार लम्बी, गहरी जामुनी रंग की धारियां होती हैं। छोटी सृण्डियां ऊपर की कच्ची पोरियों में आंख के रास्ते घुस कर छल्लेनुमा ढंग से खाती हैं।

पहले बीच का पत्ता व बाद में पूरी चोटी सूख जाती है। थोड़ा झटका देने पर गन्ना खाई हुई जगह से टूट जाता है।

सितम्बर अंत में तीसरी पीढ़ी की सूण्डियां जमीन के अन्दर की पोरियों में सुराख कर अगले साल मानसून आने तक सुप्त अवस्था में पड़ी रहती है जिससे यह कीट एक फसल से दूसरी फसल तक फैलता है।

3. पौधे के विभिन्न भागों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाने वाले कीट (Sucking insectpests of sugarcane)

काली कीडी (Black bug):

इसके प्रौढ़ छोटे, काले रंग के व पंखों वाले होते हैं, जबकि शिशु गुलाबी व काले रंग के तथा बिना पंख वाले होते हैं।

गन्ने के किट

यह गोभ के अन्दर छुप कर रस चुसते है जिस कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं व उन पर आंख जैसे लाल धब्बे पड़ जाते हैं।

इसका प्रकोप अक्सर गर्मी व शुष्क मौसम (मई-जून) में मोढ़ी फसल में अधिक पाया जाता है। प्रभावित फसल की बढ़वार में कमी आती है तथा देख कर लगता है जैसे फसल में नत्रजन की कमी हो गई है।

मोढी फसल में समय पर रोकथाम न होने की वजह से यह कीट बौअड फसल पर चला जाता है।  

पायरिल्ला (Pyrilla):

पायरिल्ला जिसे अल या फड़का भी कहते हैं, हर पांच-सात साल में महामारी के रूप में हमला करता है। इसके प्रौढ़ भूसे जैसे रंग के व नुकीले सिर वाले होते हैं।

मादा अल पत्तों पर समूहों में अण्डे देती है। यह अण्डे हल्के हरे-सफेद रंग के व लाइनों में होते हैं जो सफेद बालों से ढके होते हैं। इनके शिशु भरे-सफेद रंग के होते हैं जिनकी पीठ के पीछे दो धागे जैसे लम्बे पर होते हैं।

प्रौढ़ व बच्चे दोनों ही पत्तों का रस चूसते हैं जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और बाद में सूख जाते हैं। यह कीट मलमूत्र के रूप में एक चिपचिपा-सा रस निकालते हैं जो पत्तों पर चिपक जाता है।

इस रस पर काली फफूंदी लग जाती है जो पत्ते को ढक लेती है व इससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा पहुंचती है। पायरिल्ला का अधिक हमला होने से गन्ने की बढ़वार रुक जाती है तथा गन्नों में चीनी की मात्रा कम हो जाती है।

अनाज के कीड़े तथा उनसे होने वाली हानियां

सफेद मक्खी (Whitefly):

यह कीट अगस्त से अक्तूबर तक फसल पर आक्रमण करता है। सूखे तथा बाढ़ दोनो अवस्थाओं में इसका प्रकोप ज्यादा होता है।

इसकी दो जातिया गन्ना फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। ‘आलीरोलोबस बेरोडेनसिस’ की पहचान पत्तों पर चिपक सफेद छोटे-छोटे निशानों से होती है, जबकि ‘निओमसकेलिया बरगाई’ के चकत्ते छोटे-छोटे काले रंग के होते हैं।

इस कीट के बच्चे पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा अधिक आक्रमण होने पर सूख जाते हैं। यह कीट एक चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ते हैं जिस पर काली फफूंदी लग जाती है जो प्रकाश संश्लेषण में बाधा पहुंचाती है।

मोढ़ी की फसल में कम नत्रजन व कम सिंचाई की अवस्था में भी यह काफी नुकसान पहुंचाता है।

अष्टपदी (Mite):

आठ टांगों वाली रेड माइट आंखों से साधारणतया नहीं दिखती। यह पत्तों की निचली तरफ जाले में पलती है। इनके द्वारा रस चूसने की वजह से पत्तों पर लाल लम्बी धारियां पड़ जाती हैं।

गन्ना फसल पर कभी-कभी सूखे की अवस्था में जाले वाली या पीली अष्टपदी का भी आक्रमण पाया जाता है। इसका हमला फसल पर बरसात व बरसात के बाद के मौसम में पाया जाता है।

सूखे की अवस्था में यह पत्तों की उल्टी तरफ पत्ते की लम्बाई के बल लाइन में जाले बना कर पत्तों का रस चूसते हैं। ग्रसित फसल के पत्तों पर सफेद गोल-गोल मोती के आकार के धब्बे लम्बाई के बल कतारों में पाये जाते हैं।

अधिक आक्रमण होने पर पत्ते सूख जाते हैं व फसल की बढ़वार पर असर पड़ता है।

चुरड़ा (Thrips):

यह कीट काले रंग के पतले व बहुत छोटे आकार के होते हैं जो पौधों की गोभ में छुपकर रस चूसते हैं। ग्रसित फसल के पत्तों की नोक सूखकर अन्दर की ओर मुड जाती है।

इस कीट का आक्रमण मई से जुलाई के महीनों में सूखे की अवस्था में कभी-कभी होता है। ग्रसित पौधों के पत्तों की चोटी सूख जाती है।

गर्मी के मौसम में समय पर सिंचाई देने से इस कीट से फसल का बचाव हो जाता है।

स्केल कीट (Scale insect):

इस कीट का आक्रमण गन्ने में पोरी बनने के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है। यह कीट विशेषत: गन्ने के निचले भाग को अधिक प्रभावित करता है जिसके फलस्वरूप इसके गुण व शर्करा प्राप्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

गन्ने के किट

इसके शिशु पोरियों पर झुण्ड के रूप में चिपक जाते हैं व बाद में अपने शरीर पर मोम की तह जमा लेते हैं। बच्चे पोरियों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं।

4. पत्तों को खाकर नुकसान करने वाले कीट (Insect-pests which damage leaves)

टिड्डे (Grasshopper):

कभी-कभी मई से जुलाई के महीनों में भारी बरसात होने के कारण टिड्डे कुछ इलाकों में टिड्डी दल का रुप धारण कर गन्ना फसल में नुकसान पहुंचाते हैं।

इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पौधों के पत्तों को खाते हैं। टिड्डे की विभिन्न प्रजातियों में से “फड़का” (हीरोगलाइफस नाइगरेपलेटस) फसल को छोटी अवस्था से लेकर पूरे वृद्धिकाल तक हानि पहुँचाता है।

शिशु और प्रौढ़ पत्तों को किनारों से खाते हैं, जिससे भारी प्रकोप की अवस्था में पत्तों की केवल मध्य शिराएं और कभी-कभी तो केवल पतला तना ही रह जाता है, फसल छोटी रह जाती है। इस कीड़े की एक और प्रजाति (हीरागलाइफस बनीइन), जिसके शिशु व प्रौढ़ हरे रंग के होते हैं, भी मिलती है परन्तु इसकी संख्या पहली प्रजाति की अपेक्षा कम होती है। पत्ती बिछाई गई मोढ़ी की फसल पर यह कीट ज्यादा नुकसान करता है।

कीट प्रबंधन के उपाए (Management of insect-pests) गन्ने के किट

गन्ना फसल में हानिकारक कीटों को रोकथाम के लिए उनके प्रबंधन का वर्णन निम्नलिखित है !

फरवरी-मार्च (February-March)

दीमक, कन्सु आ व जड़ बेधक (Termite, early shoot borer and root borer): दीमक कन्सुआ व जड़ बेधक से बचाव के लिए बिजाई के समय पोरियों के ऊपर प्रति एकड़ 2.5 लीटर क्लोरपाइरीफॉस (डरमेट/डर्सबान/ क्लासिक/राडार/ लीथल) 20 ई.सी. या 600 मि.ली. फिप्रोनिल (रीजेन्ट) 5 एस. सी. (रेतीली मिट्टी के लिए 700 मि.ली.) का 600-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर फव्वारे से छिड़कें

अथवा

150 मि.ली. ईमीडाक्लोप्रिड (कान्फीडोर 200 एस. एल. या इमिडागोल्ड 200 एस. एल.) को 250-300 लीटर पानी में मिलाकर खुड्डों में पोरियों के ऊपर नैपसैक पम्प से छिड़काव करें !

अथवा

8 कि. ग्रा. डर्सबान 10 जी. (दानेदार) या 10 कि.ग्रा. फिप्रोनिल (रीजेन्ट) 0.3 जी. (रेतीली मिट्टी के लिए 12 कि.ग्रा.) या 7.5 कि.ग्रा. सेविडोल 4 जी प्रति एकड़ का खुड्डों में भुरकाव करें।

जहां दीमक की समस्या गंभीर नहीं है वहां 1.5 लीटर अमृतगार्ड 0.03 प्रतिशत को 600 लीटर पानी में मिलाकर खुड्डों में पड़े बीज पर फव्वारे से छिड़कें। उपचार के तुरन्त बाद सुहागा लगाकर खुड्डों को बंद कर दें ताकि कीटनाशक का असर कम न होने पाये।

अप्रैल-जून (April-June)

दीमक, कन्सुआ व जड़ बेधक (Termite, early shoot borer and root borer):

बुआई के समय बीज व मिट्टी का उपचार न होने की अवस्था में तथा मोढी की फसल में ऊपर लिखे कीटनाशकों में से कोई एक कीटनाशक फसल के जड़ क्षेत्र में डालकर हल्की सिंचाई करें।

मई-जून के महीनों में औसतन दस दिन के अन्तर पर पानी लगाने से कन्सुआ व दीमक के आक्रमण से बचाव होता है और साथ ही फसल की अधिक बढवार व फुटाव होने से पैदावार में वृद्धि होती है।

मई के महीने में हल्की मिट्टी व जून में भारी मिट्टी चढ़ाने से कन्सुआ की रोकथाम होती है। ऐसा करने से कन्सुआ के प्रौढ़ों का पौधों से बाहर निकलने का रास्ता बन्द हो जाता है तथा पौधे के अन्दर ही उनकी मृत्यु हो जाती है।

कन्सुआ व चोटी बेधक (Early shoot borer and top borer):

अप्रैल से जून के महानी में समय-समय पर बेधक कीटों से ग्रसित पौधों को जमीन की सतह से गहरा काटकर नष्ट करें इससे इन कीटों की संख्या में कटौती होती है।

काली कीड़ी (Black bug):

मोढ़ी फसल में इस कीट की रोकथाम के लिए मध्य मर्ड क प्रति एकड़े 400 मि.ली. फेन्थोएट (एलसान/फैंडाल 50 ई. सी.) या 160 मि.ली. डाईक्लोरवॉय 76 ई.सी. या 400 मि.ली. क्लोरपाइरीफॉस(डर्सबान) 20 ई.सी. को 400 लीटर पानी में घोल कर फुट या राकिंग पम्प से छिड़काव करें।

कीटनाशक का गोभ के अन्दर पहुंचना जरूरी है ताकि दिन के समय इनमें छुपे काली कीड़ी के शिशु व प्रौढ़ खत्म हो जाएं। कीटनाशक के घोल में दस किलो यूरिया प्रति एकड़ मिलाने से फसल को लाभ मिलता है।

अगर यह कीट पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ हो तो 25 से 30 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें। बौअड़ फसल पर इस कीट का हमला होने पर भी मई-जून में इसकी रोकथाम ऊपर बतलाये गये ढंग से अवश्य कर लें नहीं तो सूखे की अवस्था में यह कीट सितम्बर-अक्तूबर तक फसल को नुकसान पहुंचा सकता है।

पायरिल्ला, अष्टपदी व चुरड़ा (Pyrilla, mite and thrips):

पायरिल्ला कभी-कभी अप्रैल-जून के महीनों में फसल को नुकसान पहुँचा सकता है। इसके लिए 400 मि.ली. मैलाथियान (सायथियान/मैलटाफ) 50 ई.सी. को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें परन्तु इसका इस्तेमाल तभी करना चाहिए जब परजीवी खेतों में नहीं हो।

अष्टपदी की रोकथाम के लिए 500 मि.ली. मिथाईल डैमेटान (मैटासिस्टॉक्स) 25 ई.सी. या 600 मि.ली. डाईमैथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें। यह कीटनाशक फसल में चूरड़ा की भी रोकथाम करते हैं।

अप्रैल-अक्तूबर (April-October)

चोटी बेधक (Top borer):

अप्रैल से जून तक ग्रसित पौधों को जमीन की सतह से गहरा काटकर नष्ट कर दें। पत्तों पर चिपके कत्थई रंग के बालों के गुच्छे से ढके अण्ड-समूहों को भी इस दौरान इकटठा करके नष्ट करें।

अप्रैल अंत से मई के प्रथम सप्ताह तक प्रति एकड़ 150 मि.ली. राईनेक्सीपायर (कोराजन) 20 ई.सी. को 400 लीटर पानी में मिलाकर पीठ वाले पंप से मोटा फव्वारा बनाकर फसल के जड़ क्षेत्र में डालकर हल्की सिंचाई करें। इससे चोटी बेधक के साथ कनसुआ की रोकथाम भी हो जाती है।

ऐसे खेतों में जहां इस कीट का आक्रमण जून के अन्त में 15 प्रतिशत से अधिक हो, 13 किलो कार्बोफ्यूरान (फ्यूराडान) 3-जी या 8 किलो फोरेट (थिमेट/फोराटोक्स/यूमेट 10 सी. जी. या वोलफोर) 10-जी प्रति एकड़ खुड्डों के साथ-साथ डालें तथा हल्की सिंचाई करें।

यदि मई के महीने में मोढी व शरद्कालीन फसल में इस कीट का आक्रमण 5 प्रतिशत से अधिक हो तब भी इनमें से किसी एक कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए।

जुलाई-नवम्बर (July-November)

पायरिल्ला (Pyrilla):

मौसम में बदलाव के कारण किन्हीं-किन्हीं सालों में पायरिल्ला इस समय महामारी का रूप धारण कर लेता है। परन्तु इस समय आमतौर पर इस किट के अन्डो, बच्चों (निम्फ) तथा प्रौढ़ के परजीवी भी खेत में मौजूद रहते हैं।

अण्डे के परजीवी pyrilla के अण्डों के अन्दर ही पलते हैं, जिसकी वजह से पायरिल्ला के अण्डों का रग दूधिया बदल कर भूरा, गुलाबी मटमैला या काला हो जाता है।

बच्चों के परजीवी पायरिल्ला के बच्चो के शरीर पर चिपके काले उभरे हुए धब्बे की शक्ल में नजर आते हैं। इसी प्रकार शिशु व वयस्क परजीवी पायरिल्ला के बच्चों व प्रौढ़ के शरीर पर तथा गन्ने के पत्तों पर चिपके सफेद उभरे हुए धब्बे के रूप में नजर आते हैं।

अण्डे के परजीवी का नाम टेटारासटिकस पायरिली तथा काइलोन्यरस पायरिली है। एपीरिकेनिया मैलेनाल्युका नामक परजीवी पायरिला के बच्चे व प्रौढ़ दोनों को परजीवीकृत करता है।

ये सब परजीवी मिलकर पायरिल्ला की कुदरती तौर पर सही रोकथाम कर लेते हैं। परन्तु कई बार खेत में इनकी संख्या (गिनती) पायरिल्ला की संख्या के मकाबले कम होने के कारण सही व समय पर रोकथाम नहीं हो पाती है और फसल में नुकसान हो जाता है।

ये परजीवी पायरिल्ला से ग्रसित ज्वार, बाजरा व मक्की की फसल में भी काफी संख्या में पाये जाते है। पायरिल्ला से ग्रसित गन्ना फसल में इनकी संख्या बढ़ाने के लिए इन फसलों से इकट्ठा करके परजीवियों को गन्ना फसल में छोड़ना चाहिये।

यदि किसी कारणवश परजीवी न प्राप्त हो सकें तब पायरिल्ला के बढ़ते हुए आक्रमण को रोकने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।

इसके लिए 400-600 मि.ली. मैलाथियान (सायथियान/मैल्टाफ) 50 ई.सी. को 400-600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से फसल में बढ़वार के अनुसार छिड़काव करें।

गुरदासपुर बेधक (Gurdaspur borer):

जुलाई से सितम्बर तक हर सप्ताह इस कीट से ग्रसित पौधों के ऊपर की तीन चार पोरी तक चोटी के भाग को काटकर खत्म कर दें।

जड़ बेधक (Root borer):

ग्रसित फसल की समय पर सिंचाई करते रहें तथा अगस्त में 8 किलो क्विनलफॉस 5 जी प्रति एकड़ खुड्डों के साथ-साथ डाल कर सिंचाई दें।

सफेद मक्खी (Whitefly):

इस कीट की रोकथाम के लिए 800 मि.ली. मैलाथियान (सायथियान/मैलटॉफ) 50 ई.सी या इतनी ही मात्रा में मिथाइल डेमेटान (मॅटासिस्टाक्स) 25 ई.सी. या 600 मि.ली. डाईमेथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. को 400 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

घोल में दस किलो यूरिया मिला कर छिड़काव करने से पत्तों पर हरापन जल्दी ही वापिस लौट आता है तथा फसल को फायदा मिलता है।

तराई बेधक (Stalk borer):

तराई बेधक की रोकथाम के लिए मध्य जुलाई से अक्तूबर तक इस कीट के अण्डों के परजीवी ट्राईकोग्रामा काईलोनिस को दस दिन के अंतर पर प्रति एकड़ बीस हजार परजीवी के हिसाब से छोड़ें।

एक ‘ट्राइको’ कार्ड पर एक एकड़ के परजीवी चिपकाए जाते हैं। कार्ड को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर प्रति एकड़ 35-40 स्थानों पर गन्नों के नीचे के पत्तों के उल्टी तरफ लगाएं अथवा अगोले में टांगें। इस समय फसल में कीटनाशकों का प्रयोग न करें। गन्ने को बांध कर गिरने से बचायें। गिरे हुए गन्ने में यह कीट बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।

सफेद लट (White grub):

मानसून की पहली बरसात के समय पेड़ों पर इकट्ठा हुए कीट के प्रोढों को रात के समय इकट्ठा करके नष्ट करें। धान के साथ फसल चक्र अपनाने से इस कीट से राहत मिलती है।

अप्रैल-नवम्बर (April-November)

टिड्डे (Grasshopper): इस कीड़े की रोकथाम के लिए 400 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. या 800 मि.ली. मैलिथियान 50 ई.सी. या 1200 ग्राम कार्बेरिल 50 डब्ल्यू.पी. का 400 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

इसके अलावा 10 कि.ग्रा. मिथाईल पैराथियान 2-डी प्रति एकड़ की दर से धूड़ा भी इस कीट को नियन्त्रित कर देता है।

दिसम्बर-मार्च (December-March)

तराई बेधक व दीमक (Stalk borer and termite):

फसल की कटाई के बाद सूख गन्ने व सूखी पत्ती आदि को नष्ट कर दें। फसल अवशेष खेत में पड़े रहने से दीमक व बेधक कीटों को बढ़ावा मिलता है।

स्केल कीट (Scale insect):

स्केल कीट से ग्रसित फसल की पिड़ाई जल्दी करना चाहिये। फसल की कटाई जमीन की सतह के साथ से करनी चाहिये तथा कटाई के बाद सूखा पत्तो व सुखे गन्नों को खत्म कर देना चाहिये। अधिक ग्रसित फसल की मोढ़ी नहीं रखना चाहिये।

बिजाई के लिए स्वच्छ बीज का चुनाव करना चाहिये। यह कीड़ा विशेषतः गन्ने के निचले भाग को अधिक प्रभावित करता है जिसके फलस्वरूप इसके गुण व शर्करा प्राप्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि इसके पूर्ण नियन्त्रण के लिये नीचे बताई विधियों को न अपनाया गया तो यह अन्य जिलों में भी आ सकता है: ।

1. स्केल कीड़ाग्रस्त क्षेत्रों में पेस्ट एक्ट लागू होना चाहिये और ऐसे क्षेत्रों से बीज अन्य क्षेत्रों में बिल्कुल नहीं ले जाने देना चाहिए।

2. इस कानून में आये क्षेत्रों से ईख पिड़ाई के लिये गन्ना मिल, खांडसारी व गुड़ बनाने वाले दूसरे क्षेत्रों में नहीं जाने देनी चाहिए। 3. बिजाई के लिए या तो स्वस्थ बीज लें या फिर बीज को 0.1 प्रतिशत मैलाथियान (20 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी.+10 लीटर पानी) के घोल में 20 मिनट तक भिगों लें।

4. कीटग्रस्त क्षेत्रों में केवल एक मोढ़ी ही लेने की इजाजत दें।

5. कटाई के तुरन्त बाद सभी पत्तियों व नये फुटावों को खेत में ही खत्म कर देना चाहिये।

6. गन्ने के निचले भाग से 2 से 3 बार पत्तियां उतार दें । जब कीड़े का आक्रमण शुरू हो और फिर जब फसल 6 व 8 महीने की हो, यदि सम्भव हो तो पत्ती उतारने के बाद 0.1 प्रतिशत मैलाथियान का छिड़काव करें।

7. इन कीटों की जानकारी के लिए एक ऐसा प्रोग्राम चलाना चाहिए जिससे पता चलता रहे कि यह किन-किन क्षेत्रों में है, कैसे बढ़ रहा है और फिर समय-समय पर इसकी रोकथाम के उपाय बताये जायें।

8. उन कीटग्रस्त क्षेत्रों से, जहां पानी खड़ा रहे, पानी को अवश्य निकाल दें।

बीमारियां (Diseases)

रत्ता रोग/लाल सडन (Red rot):

यह एक फफूंदी के कारण लगता है। इससे पत्ते पाले पड़ जाते हैं, गन्ना पिचक जाता है, उस पर काले दाग पड़ जाते हैं, गन्ना बीच से लाल हो जाता है जिससे सफेद आड़ी पट्टियां दिखाई देती हैं और गन्ने में से शराब की सी बू आने लगती है।

रोकथाम (Control):

रोगरहित बीज का चुनाव करें। फसल से रोगी पौधे निकाल कर जला दें। सारे का सारा पौधा ही निकालें। बीमारी वाली फसल को जल्दी काट कर पिडाई कर दे। वर्षा के मौसम में बीमारी का प्रसार तेजी से होता है इसलिए रोगग्रस्त फसल के खेतों की मेढ बन्दी करें। बीमारी वाले खेत की मोढ़ी न लें और एक साल तक उसमें ईख न लें। रोगरोधी किस्मों की काश्त करें।

सोका रोग (Wilt):

यह भी फफूंदी से होता है। रोगग्रस्त गन्नों के आंतरिक उत्तको लालिमायुक्त भूरे स्थान बन जाते हैं। पौधे के गोब की पत्तियां पीली पड़कर ढ़ीली हो जाती है । सूख जाती हैं। रोग ग्रस्त गन्नों की बढ़वार रुक जाती है तथा गन्नों की पोरियां सिकड जाती गन्ने हल्के हो जाते हैं तथा काटकर निरीक्षण करने पर आन्तरिक भाग खोखले हो जाते हैं । नौकाकार दिखते हैं। ग्रस्त गन्नों में अंकुरण की क्षमता खत्म हो जाती है, उपज तथा चीनी में काफी कमी आ जाती है।

रोकथामः

बिजाई के समय स्वस्थ पोरियां ही बीजें। रोगी खेत में कम से कम तीन साल तक फसल-चक्र अपनायें।

कंडुआ (Smut):

यह भी फफूंदी के कारण होता है। रोग ग्रस्त पौधों की गोभ से चाबूक जैसी संरचना निकलती है जिसमें काले रंग के बीजाणु चाँदी रंग की झिल्ली में भरे होते हैं जो कि बाहर निकलते ही फूट जाती है और इससे लाखों की संख्या में हवा द्वारा ले जाये जाने वाले स्पोर वातावरण में फैल जाते हैं। ग्रसित पौधों से कल्लों का फुटाव हो जाता है जो बौने रह जाते हैं।

रोकथाम (Control): गन्ने के किट

रोगरहित खेत से बीज लें। रोगी पौधों को निकाल कर नष्ट करें। नम उष्म विधि से उपचारित बीज से पैदा की हुई नर्सरियों से ही बोने के लिए बीज लें।

उपज बढ़ाने सम्बन्धी संकेत (Tips for higher yield)

1. विभिन्न क्षेत्रों के लिए गन्ने की सिफारिश की गई उन्नत किस्में बोयें।

2. रोगों व कीड़ों से रहित स्वस्थ बीज बोयें और गन्ने की पोरियों का फफूंदनाशक मरक्युरीअल दवाओं से बिजाई के समय उपचार कर लें।

3. उपयुक्त बीज मात्रा डालें और उपयुक्त फासला ही रखें।

4. ठीक समय पर बिजाई करें।

5. नाइट्रोजन व फास्फोरस वाले उर्वरक पर्याप्त मात्रा में और उपयुक्त समय पर दें।

6. गर्मी में जल्दी-जल्दी सिंचाइयां करते रहें।

7. उपयुक्त समय पर कीड़ों और बीमारियों की रोकथाम करें।

गन्ने के किट- स्त्रोत CCSHAU

शेयर करे

3 thoughts on “गन्ने की फसल के किट व बीमारियां और रोकथाम (insect-pests of sugarcane)”

Leave a comment

error: Content is protected !!