गन्ना बिजाई का तरीका (Sugarcane Sowing method)
35,000 दो आंखों वाली या 23,000 तीन आंखों वाली पोरियां, जो लगभग प्रति एकड़ 30 से 35 क्विंटल होनी चाहिए। दो आंख वाली पोरियों को पहले से तैयार खुड्डों में 2 फुट दूरी वाली कतारों में 5 पोरियां तथा 2.5 फुट वाली कतारों में 7 पोरियां व 3 फुट वाली कतारों में 8 पोरियां प्रति मीटर रखें। बिजाई के बाद भूमि में नमी संरक्षण हेतु भारी सुहागा लगाएं। आमतौर पर गन्ना समतल विधि द्वारा बत्तर हालात में बोया जाता है, जिसमें गन्ने के जमाव के लिए पर्याप्त नमी ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाती और परिणामस्वरूप गन्ने का जमाव 35-40 प्रतिशत तक रहता है।

आधा खुड्ड सिंचाई विधि द्वारा गन्ना बिजाई करने पर गन्ने का जमाव 60-70 प्रतिशत तक ले सकते हैं। इस विधि में सूखे खुड्डों में बिजाई करके पोरियों पर हल्की मिट्टी डालकर आधे खुट्ट की ऊँचाई तक पानी लगाएं तथा बत्तर आने पर सुहागा लगाएं। इससे जमाव ज्यादा, एकसार व जल्दी होता है।
आधा सूखा खूड्ड सिंचाई विधि (Half ridge irrigation method of planting)
गन्ने के कम जमाव का मुख्य कारण खेत व पोरियों में नमी का कम होना है। अच्छे जमाव के लिए भूमि में लगभग बिजाई के एक महीने तक पर्याप्त नमी होना जरुरी है। बत्तर अवस्था में नमी बनाए रखने के लिए यदि बिजाई से उगााव के बीच के समय में खेत में पानी लगाया जाता है तो मिट्टी की उपरी सतह पर सख्त परत बन जाती है जो जमाव में रुकावट डालती है।
आधा खडड सिंचाई विधि भूमि की उपरी सतह पर बिना सख्त परत बनाए लम्बे समय तक नमा बना रखने में कारगर सिद्ध हुई है। इस विधि में खेत की तैयारी कम बत्तर वाली अवस्था में भी की जा सकती है। इस विधि में सूखे खूड्ड़ों में बिजाई करके पोरियों को कस्सी द्वारा हल्की मिट्टी से ढक दें तथा खूड़ों मे हल्का पानी खूड्ड़ की आधी ऊँचाई तक लगाएं ताकि उपर के भाग का मिट्टा सखी रहे। 3-4 दिन बाद बत्तर आने पर खूड्ड़ों को कस्सी से पूरा बन्द करके सुहागा लगा दे। इस तरह गन्ने की बिजाई करने से आम बिजाई के मुकाबले बीज को ज्यादा समय तक पूरी नमी मिलती है।
लाभ (Advantages):
• इस विधि में गन्ने का जमाव ज्यादा, एक समान व जल्दी होता है।
• गन्ने का ज्यादा जमाव (60-70 प्रतिशत) तक हो जाता है।
• पौधों की संख्या ज्यादा होती है फलस्वरूप पैदावार ज्यादा होती है। गेहूँ की कटाई के बाद गन्ने की बिजाई के लिए यह विधि उत्तम है क्योंकि खेत की तैयारी सूखे में करने की वजह से 7-10 दिन पहले बिजाई की जा सकती है तथा ज्यादा गर्मी में भी पोरियों के आस-पास नमी बनी रहती है। इस विधि में जमाव के समय नमी रहने की वजह से दीमक का प्रकोप भी कम होता है।
गड्ढा (पिट) विधि से गन्ना बिजाई (Sowing of sugarcane by pit method)
गन्ने की प्रति एकड़ ज्यादा पैदावार लेने के लिए ‘गड्ढा विधि’ उपयुक्त पाई गई है जिससे गन्ने की पैदावार को दो गना बढाया जा सकता है। गड्ढा विधि का वैज्ञानिक आधार मूल पौधे की बढ़वार का उभार तथा कल्लों के फटाव को नियंत्रित करना है।

गन्ना फसल में आने वाले कल्ले अपनी जड़ें विकसित होने तक मुख्य तने से खुराक व पानी के उपयोग व संचारण करते हैं। जिससे मुख्य तने की बढ़वार प्रभावित होती है। अतः यदि कल्लों के फुटाव को रोक दिया जाए तो मूल पौधे की बढ़वार अधिक होती है और यदि मूल पौधों की संख्या खेत में पर्याप्त हो तो अधिक पैदावार होती है।
इस उद्देश्य की प्राप्ति इस विधि द्वारा अधिक बीज का प्रयोग करके व मुख्य तनों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करके की जाती है। इस विधि में खाद, पानी व दवाई केवल गड्ढों में ही दी जाती है जो कि सीधे मूल पौधों को मिलता है तथा बेकार नहीं जाता। इस विधि में पौधों की जड़ गरी व पौधों का तना जमीन में होने के कारण गन्ने में ज्यादा खाद को सहन करने की क्षमता अधिक होती है।
गड्ढा (पिट) विधि के लाभ (Advantages of pit method)
• गड्ढों में गन्ने की जड़ें अच्छी व गहरी विकसित होने के कारण गन्ना अधिक मोटा होता है तथा गिरता नहीं है।
• खाद का प्रयोग गड्ढों में किया जाता है जिससे उनकी उपयोगिता बढ़ जाती है।
• पानी की बचत होती है तथा पानी की उपयोगिता बढ़ जाती है। • गड्ढों में सूर्य के प्रकाश, हवा और जैविक पदार्थों की उपलब्धि बढ़ जाती है जिससे जमीन की बनावट व इसकी भौतिक व रासायनिक गुणों में वृद्धि होती है और गन्ने की बढ़वार अच्छी हो जाती है।
• फसल की बिजाई के आरंभ में सिंचाई केवल गड्ढों में की जाती है इसलिए खरपतवारों का जमाव बहुत ही कम होता है।
• विशेषतया छोटे व मध्यम किसानों के लिए इस विधि से गन्ना रोपण लाभदायक है जो उनकी आय में वृद्धि कर सकता है।
गड्डा (पिट) विधि में कठिनाइयां (Difficulties in pit method)
• इस विधि में ज्यादा मजदूर लगते हैं तथा ज्यादा पैदावार लेने के लिए इसमें उचित प्रबंधन बहुत जरूरी है।
• यह विधि दूसरे तरीकों की तुलना में महंगी है तथा इसमें अधिक समय और मेहनत लगता है।
गड्डे खोदने में ज्यादा ऊर्जा लगती है तथा गड्ढे खोदने वाली मशीन की बार-बार मरम्मत करवानी पड़ती है।
• इस विधि में ज्यादा बीज लगता है एवं पोरियों को गड्ढे में रखने में कठिनाई होती है।
• आरंभ में प्रत्येक गड्ढे में अलग से पानी देने में कठिनाई के साथ-साथ समय ज्यादा लगता है।
• यह विधि लवणीय एवं कल्लर जमीन के लिए उपयुक्त नहीं है।
गड़ा (पिट) विधि में गन्ना बिजाई का तरीका (Sowing in pit method)
इस विधि में सर्वप्रथम ट्रैक्टर से संचालित ‘डबल पिट डिगर’ यंत्र द्वारा गड्डे खोदे जाते हैं। एक एकड़ में 2700 गड्डे खोदने में यह मशीन करीब 15 घंटे का समय लेती है। गड्ढे खोदने के लिए खेत में उचित नमी का होना आवश्यक है। इस विधि में खेत की जुताई करना जरूरी नहीं है। इसमें एक गड्ढे के केन्द्र से दूसरे गड्ढे के केन्द्र की दूरी 4 फुट होती है तथा प्रत्येक गड्डे का व्यास 2.25 फुट होता है।

गड्ढे की गहराई 1.25 फुट रखी जाती है। हर गड्ढे में पहले से उपचारित दो आंखों वाली गन्ने की 20 पोरियों को गोलाई में रखकर हल्की मिट्टी से ढक दें। इसके बाद गड्डे में उचित नमी बनाए रखने के लिए 5-6 लीटर पानी प्रति गड्ढा फव्वारे से डालें। जब मिट्टी पानी सोख ले तब इसके ऊपर 5-7 सें.मी. सूखी मिट्टी डालें, इससे गड्ढों में उचित नमी की उपलब्धता बनी रहेगी तथा पोरियों के ऊपर मिट्टी की सख्त परत नहीं बनेगी और जमाव अधिक होगा।
गड्डा (पिट) विधि में खाद की मात्रा व डालने का समय (Quantity and period of fertilization in pit method)
इस विधि में अच्छी तरह से गली-सड़ी गोबर की खाद 12 टन, यूरिया 55 किलोग्राम, डी ए पी 85 किलोग्राम तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश 70 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से प्रत्येक गड्ढे में एक सार समान मात्रा में मिलाकर बिजाई से पहले डालें। बिजाई के 60-70 दिन बाद यूरिया 85 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से हर एक गड्ढे में समान मात्रा में डालें। यूरिया खाद की तीसरी मात्रा 85 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से प्रत्येक गड्ढे में समान मात्रा में जून के अंत में डालकर गड्ढों को मिट्टी से भर दें। इस प्रकार प्रति एकड़ खाद की मात्रा शुद्ध नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, शुद्ध फास्फोरस 40 किलोग्राम व शुद्ध पोटाश 40 किलोग्राम डाली जाती है।
गड्ढा (पिट) विधि में सिंचाई (Irrigation in pit method)
शुरू में 2-3 सिंचाई अलग-अलग गड्ढों में करें तथा कल्लों का फुटाव रोकने के लिए समय-समय पर हल्की मिट्टी डालते रहें। इसके बाद गड्ढों को नालियों द्वारा जोड़ दें ताकि सिंचाई करने में आसानी रहे। आगे की सिंचाई 10 दिनों के अंतराल पर वर्षा ऋतु शुरु होने से पहले तथा 15-20 दिन के अंतराल पर मानसून खत्म होने के बाद करें। टपका सिंचाई विधि अपनाने पर इस विधि द्वारा गन्ना ज्यादा सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
अगस्त व सितम्बर महीने में 2-3 बंधाई करें तथा कल्लों में होने वाले फुटाव को काटते रहें। कीड़ों व बीमारियों से फसल को बचाने के लिए गन्ने में सिफारिश की हुई दवाई डालें।