किसानों की आय बढ़ाने में अदरक (Ginger Farming) की खेती महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं ! इसकी खेती एकल और अंतरवर्तीय (intercropping) फसल दोनों में की जा सकती है ! अदरक उच्च गुणवत्ता युक्त पोषक तत्वों से भरपूर होता है ! साथ ही इसमें औषधीय गुण भी प्रचुर मात्रा में होते हैं ! अदरक (Ginger Farming) की खेती सबसे अधिक भारत में होती है ! इसके उत्पादन का दो तिहाई भाग भारत में ही उपयोग में लाया जाता है !
जलवायु
भारत में अदरक (Ginger Farming) की खेती केरल, असम, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में की जाती है ! अदरक मुख्यतः प्राकृतिक वर्षा पर ही निर्भर रहती है ! खेती 150 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले इलाकों में की जाती है ! इसकी खेती के लिए गर्म नम जलवायु उपयुक्त होती है ! इसकी खेती समुद्री तट से लेकर पहाड़ों तक 15 हज़ार मीटर तक की ऊंचाई तक की जाती है ! अदरक (Ginger Farming) की खेती अकेले या नारियल, कॉफी, पपीता अन्य वृक्षों के अंतरवर्तीय (intercropping) के बीच में की जा सकती है !
मिटटी
अदरक (Ginger Farming) की खेती सभी प्रकार के जमीन जीवाश्म युक्त एवं उचित जल निकास वाली भूमि में की जाती है ! लेकिन हल्की रेतीली दोमट मिट्टी अच्छे जल निकास वाली अच्छी रहती है ! भारी भूमि में कन्द व पौधे का विकास उचित तरीके से नहीं हो पाता जिसमें उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है !
खेत की तैयारी
इसकी इसकी खेती के लिए भूमि की चार से पांच जुताई करके मिटटी को भुरभुरी बना कर समतल कर लेना चाहिए जहां जल निकास की सुविधा ना हो वहां एक से 2 मीटर चौड़ी 2 से 3 इंच ऊंची 3 से 4 मीटर लंबी क्यारियां बनाकर बुवाई करनी चाहिए
अदरक (Ginger Farming) की किस्मे
अदरक की कई प्रकार की किस्में हैं !
कच्चे अदरक के लिए –
रियो डी जेनेरियो
चाइना
वायनाड लोकल
टफनगिया
टेली रोल के लिए – रियो डी जेनेरियो
सोंठ के लिए –
मारण,
वायनाड मैनन,
थोड़े,
वुल्लूनाटू,
अरनाडू
खाद / उर्वरक Ginger Farming
अदरक (Ginger Farming) को बहुत अधिक मात्रा में पोषक तत्व की आवश्यकता होती है ! अदरक को चुना एवं फास्फोरस की आवश्यकता होती है ! बुवाई के पूर्व खेत तैयार करते समय गोबर की सड़ी खाद 40 टन प्रति हेक्टेयर व 20 टन वर्मी कंपोस्ट डालना चाहिए ताकि मिट्टी में जीवाश्म जैविक कार्बन के साथ-साथ दूसरे पोषक तत्व रह सके और मृदा में उचित वायु संचार हो और नमी बनी रह सके ! इसके अलावा बोते समय 100 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश डाला प्रति हेक्टेयर चाहिए

फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो से तीन बार में बुवाई के 2 महीने बाद डालनी चाहिए ! फास्फोरस गोलक जैव उर्वरक की पांच किलोग्राम मात्रा 50 किलोग्राम की हुई गोबर की खाद में मिलाकर करना चाहिए ताकि फास्फोरस की विलेयता में वृद्धि हो और पौधे द्वारा उचित मात्रा में अवशोषित किया जा सके ! अंतरवर्तीय (intercropping) खेती में यह फसल इसलिए भी महत्वपूर्ण है ! क्योंकि इसको आंशिक छाया की आवश्यकता होती है और आम और आंवले के बाग़ में भी इसको बड़ी आसानी से मिल जाती है !
उर्वरक प्रबंधन बहुत ही महत्वपूर्ण है ! क्योंकि यह कन्द वाली फसल है ! आदि मात्र हमने बुवाई पर डालनी है बाकी हमारी नाइट्रोजन बच गई उसको हम तीन भागों में विभाजित करते हैं ! पहला उपयोग 20 से 40 दिन की अवस्था में दूसरा उपयोग 60 से 70 दिन की अवस्था में तीसरा उपयोग फसल के 80 से 90 दिन के हो जाने पर करते हैं ! ऐसा करने से फसल की वृद्धि सामान्य होती है ! और हमें अच्छी पैदावार मिलती है !
बुवाई का समय Ginger Farming
अदरक (Ginger Farming) की बुवाई केरल में मई, मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में मध्य जून तथा उत्तर प्रदेश एवं पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई के प्रथम एवं द्वितीय सप्ताह में की जाती है ! बुवाई का समय इस प्रकार चुनना चाहिए कि वर्षा शुरू होने से पहले पौधे 2 सप्ताह के हो जाए !
अदरक (Ginger Farming) के बीज की मात्रा
अदरक बोने के लिए अदरक की पिछली फसल के कंद उपयोग में लाए जाते हैं ! बड़े-बड़े अदरक के पंजों को इस तरह तोड़ लेते हैं कि एक टुकड़े में दो से तीन अंकुर रहे ! एक हेक्टेयर में बुआई करने के लिए 12 से 15 क्विंटल कंद की आवश्यकता होती है ! अंतरवर्तीय (intercropping) फसलों में बीज की मात्रा कम लगती है !
बीज उपचार
बोनी से पहले कंदों को बावस्टीन 3 ग्राम प्रति लीटर अथवा डाइथेन एम् 45 को 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से गोल में 30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करना चाहिए !
बुवाई का तरीका
अदरक (Ginger Farming) की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए ! बीज कंदों को चार से पांच सेंटीमीटर गहराई में बोने के पश्चात हल्की मिटटी या गोबर की खाद परत से ढक देना चाहिए ! बुवाई के पश्चात क्यारियों को हरी पुआल या भूसे से ढक देना चाहिए !
हरी पुआल या भूसे से ढकने के फायदे

इससे भूमि में काफी समय तक नमी बनी रहती है !
अंकुरण शीघ्र होता है !
खरपतवार नियंत्रण होता है !
सिंचाई की आवश्यकता कम होती है !
जमीन में वायु का संचार होता है !
जैविक खाद की पूर्ति होती है !
निराई गुड़ाई
अदरक (Ginger Farming) का अंकुरण बुवाई के 15 से 20 दिन बाद होता है ! अदरक की बुवाई के 40 से 45 दिन के बाद की अवस्था मे हर माह फसल की निराई गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ानी चाहिए ! वर्षा के नही होने पर प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए ! लेकिन ध्यान रखें कि सिंचाई के बाद खेत में पानी कहीं भी ना खड़ा रहे इसके लिए जरूरी है कि जमीन समतल उचित जल निकास वाली हो !
अदरक (Ginger Farming) का उत्पादन / कटाई
अदरक की फसल लगभग 8 से 9 महीने में तैयार हो जाती है ! पकने की अवस्था में पौधे की बढ़वार रुक जाती है ! पौधे भी पीले पढ़कर सूखने लग जाते हैं ! और पानी देने के बाद भी उनकी वृद्धि नहीं होती ऐसी फसल खोदने लायक मानी जाती है ! अदरक की फसल औसतन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती है ! 1 एकड़ में करीब 120000 रूपए का खर्च आता है और एक एकड़ में 120 क्विंटल अदरक (Ginger Farming) हो सकता है ! अदरक का मार्केट रेट कम से कम 40 रूपए मिल ही जाता है ! 1 एकड़ में अगर 40 के हिसाब से लगाए तो करीब 480000 रूपए की आमदनी हो जाती है ! इस तरह से 1 एकड़ में सारे खर्च निकाल कर कम से कम 250000 का आपको फायदा हो सकता है !
DDK
उ. प्र. में और म.प्र. में अदरक की खेती की खेती किन किन जिलों में होती हैं कृपया बताए
मै जिला पीलीभीत उत्तर प्रदेश से हूं क्या मेरे यहां अदरक की खेती हो जाएगी
मै फतेहपुर जिले का रहने वाला हूं ऊ.प्र. और म. प्र. में किन किन जिलों में अदरक की खेती की जाती है कृपया बताए
Mai sultanpur se mai bhi adrak ki kheti karna chahta hu