गाभिन पशुओं की देखभाल :
गाभिन पशुओं को ब्यानेसे तीन महीने पहले अन्य पशुओं से अलग कर लें। उनके रख-रखाव एवं खान पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है क्योंकि इस अवस्था में गर्भ में पल रहे बच्चे के उचित विकास के साथ-साथ मादा अधिक दूध उत्पादन के लिए अपने आपको तैयार करती है।
अतः सभी गाभिन पशुओं को वैज्ञानिक तरीके से संतुलित आहार खिलाएं और उनके साथ नम्र व्यवहार करें। गाभिन पशुओं को डराना, धमकाना, दौड़ाना, मारना आदि क्रियाएं नहीं करनी चाहिएं अन्यथा गर्भपात हो सकता है।
गाभिन गाय-भैंसों को ऐसे पशुओं के साथ न रखें जिन्हें गर्भपात हो गया हो या लड़ाकू किस्म के हों।
अच्छे दुधारू पशुओं का ब्याने के दो महीने पहले से दूध दुहना धीरे-धीरे बंद कर दें ताकि थन को आराम मिल सके, वे अधिक मजबूत बन सकें तथा गर्भ में बच्चे का उचित विकास हो सके। इसके अलावा इस दौरान मादा अपने शरीर की भरपाई करती है तथा वजन में वृद्धि करती है।
दुधारू पशुओं को अचानक शुष्क न करें। शुष्क करने से पहले दाना देना बंद कर दें तथा 4-5 दिन तक तूड़ी या पराली खिलाकर रखें। इसी तरह से पहले दूध दो बार की जगह एक बार दूहें, फिर एक दिन छोड़कर, उसके बाद तीन दिन में एक बार तथा कुल ब्याने के तीन महीने पूर्व संतुलित आहार खाते हुए पशु 7 से 10 दिनों के बाद दूध दुहना बिल्कुल बंद कर दें।
कम दूध देने वाले पशुओं को ब्याने से 40 दिन पहले शुष्क कराना आवश्यक है तथा दुबले-पतले एवं कमजोर दुधारू पशुओं को कम से कम 80 दिन तक शुष्क रहना चाहिए। शुष्क कराने के तुरंत बाद उसे प्रचुर मात्रा में हरा चारा तथा संतुलित दाना मिश्रण देना आवश्यक है।
ब्याने के 10 से 15 दिन पहले गाय-भैंसों को दस्तावर आहार, जैसे गेहूँ का चोकर, अलसी की खल 2 : 1 के अनुपात में देना अच्छा होता है।
यदि प्रचुर मात्रा में हरा चारा उपलब्ध हो तो उपरोक्त मिश्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके अलावा हरे चारे का अचार (साइलेज) या सूखा हरा चारा (हे) भी खिलाना उपयोगी है।
अगर कब्ज रहे तो आधा किलो अलसी का तेल नाल द्वारा पिलाया जा सकता है लेकिन इसे बार-बार नहीं देना चाहिए।
प्रथम ब्यांत वाली मादा को ब्याने के दो महीने पहले से ही उसके शरीर को प्यार से हाथ लगाकर सहलाना चाहिए। यानि कि जो क्रिया दुधारू पशुओं के साथ दूध दुहने से पहले करते हैं तकरीबन उसी तरह की प्रक्रिया पहली बार ब्याने वाली झोटी के साथ भी करें। इस क्रिया को प्रतिदिन करने से ब्याने के बाद वह पशु दुहने में असुविधा नहीं करेगा।
गर्भाधान कराने की तिथि को रिकार्ड से देखकर प्रसव काल की तिथि अनुमानित कर लें। उसी हिसाब से गाभिन पशु को ब्याने में तीन से पांच दिन पहले अलग घर में स्थानांतरित करना चाहिए ताकि ब्याने वाले पशु अशांति एवं उत्तेजना से दूर रहें।
स्थानांतरित करने से पहले ब्याने वाले घर को फिनाइल छिड़ककर अच्छी तरह से साफ कर सुखा लें। फर्श को अधिक आरामदायक बनाने के लिए उस पर सूखी बिछाली, जैसे तूड़ी या पराल डाल दें। फर्श ऊंचा-नीचा तथा फिसलने वाला नहीं होना चाहिए।
ब्याने के समय एक अनुभवी व्यक्ति द्वारा पशु का उचित ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रसूतिगृह साफ-सुथरा, रोशनीयुक्त व हवादार हो तथा उसमें सफाई की उचित व्यवस्था होनी अति आवश्यक है।

प्रसव के दौरान देखभाल :
प्रसव क्रिया आरंभ होने का सबसे मुख्य लक्षण है पशु के योनि द्वार से श्लेष्मा निकलना और अशांत रहना। ऐसे समय पशु को अनावश्यक नहीं छेड़ना चाहिए।
इस समय योनि द्वार से जल थैली बाहर निकलती है जिसे अपने आप ही फटने दें। बच्चा पहले सामने के पैरों पर सिर टिकी हुई अवस्था में बाहर आता है। यदि प्रसव स्वाभाविक रूप से चार घंटे में न हो तो किसी भी पशु चिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए।
प्रसव के बाद योनि द्वार, पूंछ तथा पीछे के आस-पास के हिस्सों को गुनगुने पानी में तैयार पोटाशियम परमैंगनेट के घोल (0.1%) से साफ कर दें।
सामान्यतः जेर (प्लेसेण्टा) 4 से 6 घण्टे में बाहर निकल जाता है। यदि जेर 12 घंटे तक अपने आप न निकले तो योग्य पशु चिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए।
जेर को पशु खा सकता है अतः इसे अलग हटा दें। यदि पशु जेर खा जाए तो उसे अपच हो जाएगा और उसका दूध उत्पादन कम हो जाएगा। इसलिए जेर को पशु की पहुंच से दूर गाड़ दें।
ब्याने के तुरंत बाद पशु को गुड़ या सीरा गुनगुने पानी में घोलकर पिलाना चाहिए तथा सरलता से पचने वाला दस्तावर चारा-दाना तीन से पांच दिनों तक खिलाते रहें। उसके बाद धीरे-धीरे 7 से 10 दिनों में उसे सामान्य आहार में लाना चाहिए।
प्रसव के बाद पहली बार पशु के थन से पूरा दूध नहीं निकालना चाहिए क्योंकि पूरा दूध निकालने से, खासकर अधिक दूध देने वाले पशुओं को, दूध ज्वर होने का भय रहता है।
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