ड्रैगनफ्रूट / पिताया की खेती कैसे करे, कमाई क्या होगी

ड्रैगनफ्रूट का हिंदी नाम पिताया है इसके ताजे फल का इस्तेमाल खाने के अतिरिक्त जैम, आइसक्रीम, जेली, जूस और वाइन बनाने में किया जाता है। ये एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन और खनिज पदार्थों का असीम स्रोत है।

इसके फलों में 83-88 प्रतिशत पानी, 12-18 डिग्री ब्रिक्स सकल घुलनशील अवयव (टीएसएस), 0.2 से 0.3 प्रतिशत अम्लता पाई गई।

लाल-गुलाबी गूदेदार फलों में फिनॉल्स, फ्लैवनॉयड और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा सफेद गूदेदार फलों की अपेक्षा दो से तीन गुना ज्यादा होती है।

ड्रैगनफूट दमा, मधुमेह, एलर्जी से पीड़ित या अल्प रोगरोधी क्षमता वाले व्यक्तियों के लिए वरदान है।

भारत में ड्रैगनफ्रूट की कुल खपत का 95 प्रतिशत आयात हो रहा है।

इसकी खेती उष्ण और शुष्क उपोष्ण दोनों क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसको बलुई दोमट मृदा से लेकर दोमट मृदा तक विभिन्न प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है।

जीवांशयुक्त, अच्छे जल निकास वाली बलुई या बलुई दोमट मृदा इसकी खेती

के लिए उपयुक्त है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी-एच मान 5.5 से 7 तक उपयुक्त माना जाता है।

हमारे देश के दक्षिणी, पश्चिमी, उत्तर एवं पूर्व के क्षेत्र, जो सूखा और पाले से मुक्त हैं, इसकी खेती के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं।

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ड्रैगनफ्रूट / पिताया बाग स्थापना के लिए गड्ढे एवं पौधों का रोपण

खेत की अच्छी तरह से जुताई के बाद मृदा को समतल कर 2 X 2 मीटर या 2.5 x 2.5 मीटर पर रेखांकन कर 60X60X60 सें.मी. आकार के गड्ढे जून में खोद लेने चाहिए।

लगभग 15-20 दिनों तक गड्ढों को खुला छोड़ने के बाद ऊपर की मृदा में 10-15 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट एवं 100 ग्राम/गड्ढा डीएपी या सिंगल सुपर फॉस्फेट मिलाकर इन्हें भर देना चाहिए।

जुलाई-अगस्त में कलम (कटिंग) से तैयार पौधों का रोपण किया जाता है। ड्रैगनफ्रूट का रोपण फरवरी-मार्च में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

एक गडढे में 2 पौधे लगाए जाते हैं। इस तरह से 2X2 मीटर की दूरी पर लगाने पर एक हैक्टर खेत में 5000 ड्रैगनफ्रूट के पौधे लगाए जा सकते हैं।

इन पौधों को तेजी से बढ़ने में मदद करने के लिए इनके सहारे के लिए प्रत्येक गड्ढे में लकड़ी/बांस/कंक्रीट के स्तंभ लगाने चाहिए।

2X2 मीटर पर लगाने पर 2500 कंक्रीट स्तंभों और 2.5 X 2.5 मीटर पर लगाने पर 1600 स्तंभों की आवश्यकता पड़ती है। एक स्तंभ के दोनों तरफ एक-एक पौधा लगाया जाता है।

ड्रैगनफूट का प्रवर्द्धन

ड्रैगनफ्रूट का प्रवर्द्धन बीज के जरिए भी किया जा सकता है। बीज से उगाने पर फल आने में लंबा समय लगता है और पौधों में विविधता आने का भी डर रहता है।

इसका प्रवर्द्धन आदर्श पौधे से परिपक्व तने की कटिंग बनाकर ही किया जाता है। लगभग 15-25 सें.मी. लंबे टुकड़ों को कटिंग के लिए बनी उचित क्यारियों में लगाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

कटिंग कम से कम तीन दिनों तक किसी छायादार जगह में रखने के बाद ही लगानी चाहिए। रूटिंग हार्मोन/पाउडर के प्रयोग से जड़ें और अच्छी निकलती हैं।

पांच से छह महीने में कटिंग से तैयार पौधे लगाने लायक हो जाते हैं। सीधी कटिंग खेत में लगाने की बजाय कटिंग से तैयार पौधों को ही तैयार गड्ढों में लगाना उचित रहता है।

बरसात में अधिक नमी के कारण इनके सड़ने का डर रहता है। कटिंग को फरवरी-मार्च में भी लगाया जा सकता है। बरसात में कटिंग लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मिश्रण में पर्याप्त बालू हो, जिससे कटिंग के सड़ने की आशंका न रहे।

सामान्य रूप से मिट्टी, गोबर की खाद और बालू का 1:1:1 अनुपात का मिश्रण उचित रहता है।

ड्रैगनफ्रूट / पिताया में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

एक वर्ष के पौधे के लिए 10 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फॉस्फोरस और 50 ग्राम पोटाश फरवरी में प्रत्येक थाले में दी जानी चाहिए।

तीन वर्ष या इससे अधिक के पौधे के लिए 25-30 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद, 200 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस एवं 200 ग्राम पोटाश/थाला पर्याप्त होती है। समस्त गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं आधी पोटाश फरवरी-मार्च में दे देनी चाहिए।

आधी बची पोटाश फल लगने के बाद देनी चाहिए। सिंचाई, गुड़ाई एवं पौधों को सहारा देना

फल के विकास के समय मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। गर्मी के दिनों में सामान्यतः 7-10 दिनों में इसे पानी की आवश्यकता होती है। इन दिनों में थाले में मल्चिंग करने से सिंचाई के अंतराल को बढ़ाया जा सकता है।

अगर ड्रिप सिंचाई उपलब्ध हो, तो अति उत्तम होगा। समय-समय पर निराई-गुड़ाई कर खेत के वार्षिक शाकीय खरपतवार या बहुवर्षी झाड़ियां निकालते रहना चाहिए।

ड्रैगनफ्रूट की खेती में सबसे अधिक व्यय पौधों को सहारा देने के लिए कंक्रीट के स्तंभ बनाने में होता है।

पौधों की रोपण

दूरी के अनुसार कंक्रीट के 4 x 4 x 7 से .8 फीट आकार के खंभे बनाकर इन्हें 1.5 से – 2.0 फीट जमीन में गाड़ देना चाहिए। एक हैक्टर के लिए 1600 से 2500 खंभों की आवश्यकता होती है।

खंभे इस प्रकार बनाने चाहिए कि ऊपर की तरफ तीन या चार दिशाओं में लोहे का सरिया हो। उस पर कोई पुराना टायर या लकड़ी की पहियेनुमा स्पोर्ट बांधी जा सके और उसी के बीच से होकर पौधे के तने चारों तरफ फैल सकें।

काट-छांट

शुरू में बहुत नीचे से निकलने वाली, कमजोर और नीचे की तरफ बढ़ने वाली शाखाओं को निकाल देना चाहिए।

सर्वाधिक मजबूत और तेजी से सीधे ऊपर की ओर बढ़ने वाली शाखाओं को ही रखना चाहिए। पौधे का ढांचा इस तरह विकसित होना चाहिए कि नीचे से सिर्फ दो या तीन मुख्य तने ही ऊपर की तरफ बढ़ें।

जाड़े के दिनों में जब फलत समाप्त हो जाती है, तब आवश्यकतानुसार पौधों को वांछित आकार देने के लिए कुछ अवांछित शाखाओं को निकाल देना चाहिए।

सूखी, रोगग्रस्त या आपस में फंसने वाली शाखाओं को भी निकाल देना चाहिए। कटी हुई स्वस्थ शाखाओं से तने की कटिंग बनाकर 3 से 5 दिनों बाद लगाया जा सकता है।

ड्रैगनफ्रूट / पिताया में फल फूल

फूल खिलने और परागण के लगभग 50-55 दिनों के बाद ड्रैगनफूट के फलों की तुड़ाई की जा सकती है।

पौधों में अप्रैल से सितंबर के बीच फूल लगते हैं और जून से दिसंबर तक फल पकते हैं। इस अवधि में एक पेड़ से 5-6 बार फल तोड़े जा सकते हैं। कच्चे फल गहरे हरे रंग के होते हैं, जबकि पकने पर इनका रंग लाल या गुलाबी हो जाता है।

रंग बदलने के तीन से चार दिनों के अंदर फलों को तोड़ना उपयुक्त होता है। अगर फलों का निर्यात किया जाना हो या दूर बाजार भेजना हो, तो रंग बदलने के एक दिन के भीतर ही इन्हें तोड़ लेना चाहिए।

ड्रैगनफ्रूट, कैक्टेसी कुल का पौधा है। इसकी तीन तरह की प्रजातियां यथा गुलाबी रंग के गुलाबी गूदेदार फल, गुलाबी रंग के सफेद गूदेदार फल और पीले रंग के सफेद गूदेदार फल प्रचलन में हैं।

इसकी खेती हमारे देश के कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में की जा रही है। ड्रैगनफूट थाईलैंड, वियतनाम, इजराइल और श्रीलंका में काफी लोकप्रिय है। भविष्य में इसकी खेती की असीम संभावनाएं हैं।

पुष्पण एवं परागण

ड्रैगनफ्रूट की कटिंग से तैयार पौधे 12 से 15 महीने में ही फल देने लगते हैं। सर्वप्रथम इसकी कलिकाएं निकलती हैं। ये लगभग 10-15 दिनों में खिलती हैं।

इसके फूल सिर्फ रात के समय 1 बजे से सुबह 5 बजे के बीच खिलते हैं। रात में अगर इनके नर भाग (पुमंग) के पुंकेसरों से पराग एक ब्रुश की सहायता से लेकर पुष्प के मादा भाग (जायांग) के वर्तिकानों पर लगाकर परागण कर दिया जाए, तो इससे फलों का आकार बढ़ जाता है और फल ज्यादा संख्या में आते हैं।

जैसे ही सवेरा होता है, इसके फूलों का नर भाग धीरे-धीरे लटक जाता है। इन्हें आगे चलकर लगभग 8-10 दिनों बाद विकसित हो रहे फल से सावधानीपूर्वक निकाल देना चाहिए, क्योंकि इससे चींटियां आकर्षित होती हैं।

ये फूल सुगंधित होते हैं और रात में इनका परागण प्राकृतिक रूप से कीटों द्वारा होता है।

ड्रैगनफ्रूट उपज और बाजार मूल्य

ड्रैगनफ्रूट को लगाने में लगभग 10-12 लाख रुपये प्रति हैक्टर खर्च हो जाते हैं। इसकी पहली फसल लगभग 12-15 महीने बाद मिलती है।

तीन वर्ष में इसके पौधों से काफी अच्छी उपज मिलती है और 8-10 कि.ग्रा./स्तंभ फल आसानी से मिल जाते हैं।

फलों की उपज 15-20 टन/हैक्टर तक मिल जाती है

ये ब्लॉग केवल जानकारी के लिए है I इस जानकारी के इस्तेमाल से फायदे या नुकसान के लिए लेखक या वेबसाइट जिम्मेवार नही होगी I अपने विवेक व् कृषि विभाग की सहायता से तकनीक का प्रयोग करके खेती कार्य करे I

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