ब्रॉयलर पालन : एक लाभकारी व्यवसाय Poultry Farming
पॉल्ट्री (Poultry farming) : सभी ऐसी पक्षियाँ जिनको मांस या अंडे उत्पादन के लिए पाला जाता है और जो पालतू स्थिति में भी प्रजनन क्षमता बनाए रखते हैं । उदाहरण -मुर्गी, बत्तख, बटेर, टर्की, तीतर इत्यादि ।
- ब्रॉयलर पालन : एक लाभकारी व्यवसाय Poultry Farming
- पॉल्ट्री उत्पादन से लाभ Benefit from poultry farming
- पॉल्ट्री उत्पादन में समस्याएँ Problems in poultry farming
- पॉल्ट्री में अवसर Opportunities in poultry farming
- उच्च ब्रॉयलर स्ट्रेन का चुनावः Choice of strain in broiler farming
- ब्रॉयलर उत्पादन से लाभ benefits in broiler farming
- नस्ल का चुनाव Breed selection in broiler farming
- ब्रॉयलर प्रबंधन broiler management
- ब्रॉयलर के लिए आवश्यक जगह –Space requirement for broiler farming
- चूहे से बचाव Rat management in broiler farming
- सघन बिछावन पद्धति : Intensive laying method
- चूजे का आगमन – Arrival of chick
- ब्रूडिंग (brooding)
- जल water requirement in poultry Farming (broiler)
- मुर्गियों का भोजन व् बर्तन (Poultry Feed & Feeder types)
- संतुलित राशन balanced Feed for broiler or poultry farming
- टीकाकरण vaccination in poultry farming
- दवाई poultry medicine
- प्रकाश व्यवस्था light management in poultry farming
- वातायन ventilation in broiler farming
- अमोनिया गैस के दुष्परिणाम Side effects of ammonia gas
- साफ सफाई cleanliness in poultry farming
- ब्रायलर में होनेवाली बीमारियाँ Broiler diseases in poultry farming
- (1). मैरेक्स बीमारी- Marex disease
- (2). रानीखेत या न्यूकेसल बीमारी Ranikhet or Newcastle disease:
- (3) मुर्गी चेचक- Chicken pox
- (4) गंबोरो बीमारी Gamboro disease –
- (5) मुर्गी कोलेरा- Hen Cholera
- (6) संक्रामक कोराइजा Infectious choriza in poultry –
- (7) ब्रूडर निमोनिया – Brooder pneumonia
- (8) माइकोटोक्सीकोसिस Mycotoxicosis –
- (9) काक्सीडियोसिस Coccidiosis –
- लेयर पालन (Layer Farming)
- आवास प्रबंधन: Layer house management in poultry farming
- भोजन प्रबंधन : Feed for Layer farming
पॉल्ट्री उत्पादन से लाभ Benefit from poultry farming
• आय प्राप्ति ।
• उच्च गुणवत्ता प्रोटीन की प्राप्ति ।
• रोजगार के अवसर |
• विपणन आसान है-

पॉल्ट्री उत्पादन में समस्याएँ Problems in poultry farming
• उच्च गुणवत्ता वाले चूजे की अनुपलब्धता । हैचरी का अभाव ।
• टीकाकरण के बारे में जानकारी का अभाव ।
• उच्च कोटि की पॉल्ट्री (Poultry farming) आहार जाँच प्रयोगशालाओं का अभाव ।
• बर्डफ्लू जैसी बीमारियों का भय ।
• वित्तीय समस्याएँ-पॉल्ट्री (Poultry farming) को उद्योग का दर्जा दिया गया है और इसके लिए सब्सिडी कम दी जाती है ।
पॉल्ट्री में अवसर Opportunities in poultry farming
पॉल्ट्री (Poultry farming) उत्पादन में अत्यधिक अवसर है । आज भारत विश्व में मुर्गी मांस उत्पादन तथा अंडा उत्पादन में क्रमशः तृतीय तथा चौथा स्थान रखता है । आज जितना सब्सिडी कृषि के विभिन्न आयामों में दिए जा रहे उतना इसे प्राप्त नहीं है । उच्च गुणवत्ता वाले नस्ल, संतुलित आहार, रोग-जॉच और कुशल प्रबंधन इसे शीर्ष स्थान पर ला सकता है ।
उच्च ब्रॉयलर स्ट्रेन का चुनावः Choice of strain in broiler farming
ब्रॉयलर (Broiler Farming) के उस स्ट्रेन का चुनाव करे जो तेजी से बढ़ता हो, कम आहार में अधिक वजन दे, जल्दी पंख निकले, शारीरिक ढांचा अच्छा हो तथा मृत्यु दर कम हो ।
ब्रॉयलर उत्पादन से लाभ benefits in broiler farming
1. कम समय में अधिक आय ।
2. सिर्फ 6 सप्ताह में बिक्री लायक ।
3. एक वर्ष में काफी संख्या में उत्पादन की पुनरावृत्ति कर सकते हैं ।
4. टीकाकरण करने पर बीमारियों से बचाया जा सकता है ।
5. ऑल-इन-ऑल आउट विधि से पॉल्ट्री (Poultry farming) फार्म में बीमारी फैलाने वाले जीवाणु तथा विषाणु से पॉल्ट्री (Poultry farming) फार्म को निजात दिलाई जा सकती है ।
नस्ल का चुनाव Breed selection in broiler farming
ब्रायलर के नस्ल विभिन्न ब्रीडिंग पद्धतियों द्वारा विकसित किए जाते हैं और इन्हें स्ट्रेन कहा जाता है । ब्रायलर पालन के लिए कुछ स्ट्रेन निम्नलिखित है :
1. वेनकाव-वेंकटेश्वर हैचरी द्वारा विकसित नस्ल जैसे कॉब-300 या कॉब-400
2. केगब्रो-यह केगब्रो फार्म द्वारा विकसित हैं ।
3. पर्लब्रो सम्राट तथा पर्लब्रो विक्रम-यह पूना पर्लस हैचरी का है ।
4. कैरीबो विशाल, कैरी सफेद, 7 सप्ताह की आयु में औसत वजन 2100 ग्राम |
5. कौरीबो मृत्युंजय-नेकेड नेक ब्रायलर 7 सप्ताह की आयु पर शरीर भार 2000 ग्राम केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित ।
6. कैरी रेनब्रो-रंगीन ब्रायलर, 7 सप्ताह की आयु पर शरीर भार 2100 ग्राम केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित |
7. कैरीब्रो धनराज-बहुरंगीन ब्रॉयलर (Broiler Farming), 7 सप्ताह की आयु में 2100 ग्राम
8. कैरीबो ट्रोपीकाना-एक उष्ण कटिबंधीय जलवायु हेतु ब्रॉयलर (Broiler Farming), 7 सप्ताह की आयु पर शरीर भार 1800 ग्राम ।

ब्रॉयलर प्रबंधन broiler management
चूजे के आगमन से पहले का कार्य .
1. आवास को चूजे के आने के एक सप्ताह पहले अच्छी तरह सफाई करें । लिटर हटायें, पानी के बर्तन, भोजन के बर्तन सभी की अच्छी तरह सफाई करें ।
2. लकड़ी के बुरादे अच्छा लीटर बनाता है । अगर लकड़ी का बुरादा ताजा है, उससे लकड़ी का गंध निकलता है तो धूप में सुखायें । लकड़ी के टुकड़े इत्यादि को उससे निकाल दें । अगर लकड़ी का बुरादा न मिले तो गन्ने का छिलका, धान की भूसी इत्यादि का इस्तेमाल कर सकते है !
3. 2-4 इंच का लीटर बिछायें ।
4. ब्रूडर हाउस में भोजन और पानी के बर्तन इस तरह लगायें (देखें चित्र) ऐसा लगाने का कारण यह है कि चूजा कहीं भी न फॅसे, अन्यथा भोजन, पानी और गर्मी से वंचित होने पर चूजा मर सकता है |

5. ब्रूडर गार्ड से हॉवर 1.2 फीट की दूरी पर रखें । 15 से. मी. उँची चिक गार्ड पर्याप्त है ।
6. ब्रूडर का तापमान हॉवर के छोड़ में और लिटर के एक इंच ऊपर थर्मामीटर का बल्व रखकर लेते हैं ।
ब्रॉयलर के लिए आवश्यक जगह –Space requirement for broiler farming
1. साधारण आवास जहाँ कृत्रिम तापमान तथा आद्रता का प्रबंधन न हो वैसी स्थिति में प्रति ब्रायलर एक वर्गफुट जगह चाहिए ।
2. अगर आवास प्रबंधन बेहतर हो तो इसे 0.9 वर्ग फुट प्रति ब्रायलर कर सकते हैं ।
3. अगर नियंत्रित वातावरण आवास प्रबंधन हो तो इसे 0.8 वर्गफुट प्रति ब्रायलर कर सकते है !
नोट : अगर नियंत्रित वातावरण आवास प्रबंधन हो तो अलार्म की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए ।
चूहे से बचाव Rat management in broiler farming
चूहा मुर्गी का भोजन को काफी नुकसान करता है । यह विभिन्न तरह की बीमारियों को भी फैलाता है । फर्श मजबूत बनायें । कंकड़, पत्थर, बालू बगैरह भरकर फर्श बनावें । एक चूहा अपने जीवनकाल में 20 ब्रायलर के भोजन का नुकसान करता है ।
सघन बिछावन पद्धति : Intensive laying method
लिटर – लकड़ी का बुरादा, गन्ने बगास धान का भूसी, पुआल की कुट्टी इत्यादि । लकड़ी का बुरादा सबसे अच्छा लिटर है क्योंकि इसका जल अवशोषण क्षमता अधिक है । लिटर की नमी 20 से 25 प्रतिशत सीमित रखें ।
लिटर की नमी जांच करने की साधारण विधि – लिटर मुट्टी में लें । मुट्ठी खोलें । अगर लिटर भुरभुरा हो तो नमी कम है । अगर हल्का बंध जाए तो सही है और ज्यादा गोल बने तथा चिपचिपाहट हो तो अधिक नमी है । अधिक नमी होने पर आवास में अमोनिया गैस की मात्रा बढ़ जाती है और इससे कुक्कुट में आँख की समस्या आती है । आँख से पानी आना, लाल होना तथा अंधापन भी हो सकता है ।
लकड़ी का फर्श (slat) – लकड़ी की पट्टी लगाकर फर्श बनाया जाता है । लकड़ी की पटिट्यों के बीच जगह छोड़ी जाती है । जिससे बीट अपने-आप नीचे गिरती रहती है । इसलिए इसे साफ करने की जरूरत नहीं पड़ती !
तारों की जाली का फर्श – इसमें 12 से 14 गेज के तार की जाली का फर्श बनाया जाता है । यह फर्श तकरीबन 14 डिग्री की ढाल में और जमीन से तकरीबन 50 सेटीमीटर उँचा होता है । फर्श के एक तरफ खाने के लिए और दूसरी तरफ पानी के लिए जगह होती है ।
चूजे का आगमन – Arrival of chick
1. अखबार को बिछावन के ऊपर फैलायें । इस अखबार के उपर मक्का बारीक पिसा हुआ को फैलायें । पाँच प्रतिशत शर्करा, चीनी, अथवा ग्लूकोज-डी का घोल बनायें । आपके चूजे थके हुए हैं उनका शर्बत से स्वागत करें । इस को पानी के बर्तन में भरे । ध्यान रहे कि पानी अखबार पर न गिरे ।
2. हैचरी को फोन कर जानकारी प्राप्त करें कि उन्हें क्या-क्या टीका दिया गया है । अगर मेरेक्स बीमारी का टीका न दिया गया हो तो 0.2 मि.ली. टीका चूजे की गर्दन की चमड़ी में दें । कभी कभार रानीखेत बीमारी से बचाव के लिए एफ-1 स्ट्रेन का टीकाकरण प्रथम दिन करते हैं । एक बूंद आँख अथवा नाक में अथवा पानी में मिलाकर टीकाकरण दिया जाता है !
3. ध्यान दें कि ब्रूडर में सही तापमान है, पानी के बर्तन साफ-सुथरे हैं । उनमें लिटर न हो । भोजन चूजे को उपलब्ध हो । यह सुनिश्चित करें कि चूजे हॉवर के नीचे भोजन कर रहे हों, गर्मी सेक रहे अथवा पानी पी रहे हों । सुस्त, लँगड़े चूजे को निकाल दें ।
4. अखबार प्रति दो दिन में बदलें । पानी के बर्तन रोजाना साफ करें और ताजा शुद्ध पानी भरें । पानी की गुणवत्ता पर ध्यान दें । देखें तालिका 1
5. रिकार्ड रखें – भोजन का रिकार्ड, मौत का रिकार्ड, ब्रूडर का तापमान का रिकार्ड, टीकाकरण का दिनांक तथा टीका और भी जो कार्य-दिवस सुनिश्चित करें ।
तालिका 1 जल की गुणवत्ता
कुल घुलनशील पदार्थ | 1000 पी.पी.एम |
क्षारता | 400 पी.पी.एम |
पी.एच | 7.5 से 8.0 |
नाइट्रेट | 45 पी.पी.एम |
सल्फेट | 250 पी.पी.एम |
नमक | 500 पी.पी.एम |
लौह | 2 पी.पी.एम |

ब्रूडिंग (brooding)
चूजे को शुरूआती दिनों में अधिक तापमान की आवश्यकता होती है । यह तापमान गैस, मिट्टी का तेल, बिजली, कोयला, लकड़ी इत्यादि द्वारा दिया जाता है । कभी-कभार पाइप में गर्म पानी का संचार कर कमरे को गर्म कर दिया जाता है । किसी भी तरह से मुर्गे के आवास को निर्धारित तापमान पहुंचाना ही ब्रूडिंग है ।
तालिका 2 : ब्रूडिंग के लिए आवश्यक तापमान
चूजे की उम्र | तापमान (°F) | तापमान (°C) |
प्रथम सप्ताह | 95 | 35 |
दूसरा सप्ताह | 90 | 32.2 |
तीसरा सप्ताह | 85 | 29.4 |
चौथा सप्ताह | 80 | 26.6 |
पाँचवॉ सप्ताह | 75 | 23.9 |
छठा सप्ताह | 70 | 21.1 से विपणन तक |
टीकाकरण के दिन ब्रूडर का तापमान थोड़ा बढ़ा दें । कुछ बीमारियों के होने पर जैसे संक्रामक ब्रोकाइटिस में ब्रूडर का तापमान बढ़ाने से फायदा होता है । ब्रूडर का तापमान सही है कि नहीं यह जानने के लिए चूजे की गतिविधि पर ध्यान दें । देखें चित्र (2)

अवस्था | स्थिति |
1. चूजे घूमते-टहलते, चुचुआते, दाना चुगते हैं और बिखरे होते हैं । | उचित |
2. चूजे आवाज करते हैं तथा एक दिशा में होते है। | हवा का बहाव एक दिशा मे है |
3. हावर के नीचे चूजे इकटठा है। | ठंड है। तापमान बढ़ायें। |
4. चिक गार्ड के पास चूजे इकटठा है। | गर्मी है तापमान घटायें। |
जल water requirement in poultry Farming (broiler)
मुर्गी के शरीर में 60 – 70 प्रतिशत मात्रा में जल विद्यमान है । अगर शरीर में 20 प्रतिशत पानी की कमी हो तो मौत हो सकती है । पानी शरीरिक प्रक्रियाओं जैसे पाचन, श्वसन, उत्सर्जन इत्यादि के लिए आवश्यक है ।
> सौ चूजे के लिए पानी की आवश्यकता निर्धारित करने के लिए साधारण तरीका है कि चूजे की उम्र (सप्ताह में) को दो से गुणा करें ।
उदाहरणार्थ छ: सप्ताह के 100 चूजे के लिए पीने का पानी की आवश्यकता होगी 2 x 6 = 12 लीटर
मुर्गियों का भोजन व् बर्तन (Poultry Feed & Feeder types)
चूजे के भोजन के बर्तन दो आकार में आते है1. वृत्ताकार तथा 2 . लंबाकार शुरूआती दौर में एक सप्ताह की उम्र तक एक फीडर (बर्तन) प्रति 100 चूजे रखते हैं । एक-तिहाई फीडर हॉवर के अंदर तथा दो तिहाई हॉवर के बाहर रखते है । ढक्कन वाला फीडर बेहतर है । अन्यथा चूजे फीडर में प्रवेश कर खाते है और वहीं बीट करते है ।
वृत्ताकार (Circular Feeder)
30 से 35 फीडर प्रत्येक 9 किलो क्षमता का 1000 चूजे के लिए पर्याप्त है । फीडर में रील लगाकर तथा समय-समय पर उसकी उँचाई बढ़ाये ताकि चूजे को भोजन करने में असुविधा न हो । भोजन के लिए बर्तन में जगह की आवश्यकता निम्नलिखित है –
» प्रथम दो सप्ताह तक एक इंच प्रति चूजा (2.5 से.मी.)
» दो सप्ताह से 42 दिन तक 1.75 इंच प्रति चूजा (4.5 सें.मी.) । .
लंबाकार (Longitudinal Feeder)
फीडर में दोनों तरफ की लंबाई मापें तथा वृत्ताकार फीडर में उसका परिधि निकालें । फीडर को कभी भी पूरा न भरें । दिन में दो-तीन बार भोजन भरने से चूजे भोजन अधिक करेगे और भोजन बर्बाद भी नहीं होगा ।
1. फीडर पूरा भरा होने पर 30 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है ।
2. फीडर आधा भरा होने पर 3 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है ।
3. फीडर एक-तिहाई भरा होने पर 1 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है ।
संतुलित राशन balanced Feed for broiler or poultry farming
मुर्गी को ऐसा भोजन जो प्रतिदिन के पोषक तत्वों की आवश्यकता सुनिश्चित करता हो संतुलित राशन है । संतुलित राशन बनाने के लिए हम व्रायलर को उम्र के अनुसार विभिन्न वर्गों में बाँट देते हैं ।
1. स्टार्टर (0-3 सप्ताह )
2. फिनिशर ( 3-6 सप्ताह)
ब्रायलर को भोजन में ऊर्जा, प्रोटीन, वसा खनिज विटामिन सुनिश्चित करना पड़ता है । इनमें किसी भी घटक की कमी होने पर अथवा अनुपात सही न होने पर विभिन्न तरह की पोषण सबंधी वीमारियाँ आ जाती है । स्टार्टर में तेजी से बढ़ाना लक्ष्य होता है इसलिए प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है तथा फिनिशर में वजन बढाने के लिए ऊर्जा की मात्रा बढ़ाते हैं ।
ऊर्जा के लिए अनाज जैसे मक्का, ज्वार, चावल गेहूँ इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है । प्रोटीन के लिए तेल की खली जैसे मूंगफली, सोयाबीन, सूर्यमुखी, सरसों इत्यादि खनिज के लिए डाइकेल्सियम फॉस्फेट, चूना पत्थर कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की मात्रा सुनिश्चित करता है !
विटामिन ए, वी, डी, के तथा विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, ई, अमीनो अम्ल मिथियोनिन, लाइसिन इत्यादि तथा कोलीन क्लोराइड मिलाकर पोषक तत्वों की पूति की जाती है । साधारण नमक आधा किलो प्रति 100 किलो आहार मिलाया जाता है ।
तालिका 3 ब्रायलर आहार के लिए उपलब्ध आहार घटक
आहार घटक | स्टार्टर आहार | फिनिशर आहार |
अनाज | 58 फीसदी | 65 फीसदी |
प्रोटीन खली | 22-25 फीसदी | 20-22 फीसदी |
अन्य | 10 फीसदी | 5 फीसदी |
प्रोटीन पशु जनित | 0.5 फीसदी | 0.5 फीसदी |
नमक | 0.5 फीसदी | 0.5 फीसदी |
खनिज मिश्रण | 2-3 फीसदी | 2-3 फीसदी |
विटामिन ए, बी2 डी, के | 20-29 ग्राम प्रति/क्विंटल | 2-3 ग्राम प्रति/क्विंटल |
तालिका 4 : स्टार्टर व फिनिशर आहार तैयार करना
आहार घटक | ब्रायलर स्टार्टर | व्रायलर फिनिशर |
मक्का | 48 फीसदी | 25 फीसदी |
सोयावीन की खली | 36 फीसदी | 31 फीसदी |
राइस वान (भूसी) | 14 फीसदी | 10 फीसदी |
नमक | 0.5 फीसदी | 0.5 फीसदी |
विटामिन, (ए. वी. डी के तथा बी, ई) | 0.1 फीसदी | 0.1 फीसदी |
मिथियोनिन | 0.1 फीसदी | 0.1 फीसदी |
डाइकेल्शियम फॉस्फेट | 1.2 फीसदी | 1.2 फीसदी |
चूना पत्थर | 1.2 फीसदी | 1.2 फीसदी |
सूक्ष्म खनिज मिश्रण | 0.1 फीसदी | 0.1 फीसदी |
भोजन में मुर्गीपालन के कुल लागत का 70 फीसदी खर्च होता है । अल्प लागत में पोषक आहार बनाने के लिए माइक्रोसॉफट एक्सेल इस्तेमाल किया जाता है । कंप्यूटर द्वारा राशन फॉर्मूलेट करना पुराना पियरसन विधि से आसान है । सॉफ्टवेयर द्वारा राशन फॉर्मूलेट किया जाता है ।
आजकल बाजार में कई कंपनियों के व्रायलर सांद्र आहार मिश्रण उपलब्ध हैं । इन्हे अनाज व अन्य अनाज उत्पाद को मिलाकर वायलर आहार तैयार किया जाता है । व्रायलर स्टार्टर आहार के लिए व्रायलर सांद्र यानी कंसंट्रेट 50 फीसदी, मक्का 50 फीसदी और वायलर फनिशर आहार के लिए व्रायलर कंसट्रेट 45 फीसदी मक्का 45 फीसदी और राइस पालिश 10 फीसदी मिलाया जाता है ।
मुनाफा काफी हद तक आहार खपत तथा वजन मांस उत्पादन के अनुपात पर निर्भर करता है । इसे फीड कनवर्शन कहते हैं । उदाहरण, 1.5 किलो वजन प्राप्त करने के लिए अगर 3 किलो आहार की खपत हो तो फीड कनवर्शन है –
3 किलो फीड 1.5 किलो वजन = 3 + 1.5 = 2 अनुपात बढ़ने पर मुनाफा घटता है तथा अनुपात घटने पर मुनाफा बढ़ता है ।
एफिसियंसी निकालने के लिए जिदा वायलर के औसत वजन को फीड कनवर्शन से भाग देते हैं तथा इसे 100 की मात्रा से गुणा करते हैं
उदाहरण के लिए –
जिंदा वायलर का औसत वजन = 1.7 किलो
फीड कनवर्शन = 1.99 परफार्मेस एफिसियसी = 1
-100 = 35.42
ग्रास माजिन प्रति फर्श ईकाई: इसे निकालने के लिए व्रायलर के विभिन्न फलाक की तुलना करते हैं । इसका फार्मूला है ।
सकल आय – आहार का खर्च / फीट वर्ग अथवा वर्ग मीटर = ग्रास मार्जिन प्रति फर्श ईकाई
नोटः मृत्युदर औसत वजन इत्यादि आय को प्रभावित करते हैं ।
टीकाकरण vaccination in poultry farming
टीकाकरण मुर्गी को विभिन्न वीमारियों से बचाते हैं । इसमें कई बीमारियों से मृत्यु तथा उत्पाद प्रभावित होता है । वीमारियों के कई कारक होते हैं विषाणु जीवाणु इत्यादि । विषाणु जनित वीमारियों से वचने के लिए टीकाकरण तथा जैव सुरक्षा ही उपाय है । वीषाणु जनित वीमारियों के टीके उपलब्ध हैं । जीवाणु जनित वीमारियों में एंटीबायटिक का उपयोग कर फिर भी कुछ इलाज किया जा सकता है किन्तु विषाणुजनित बीमारियों में एंटीवायटिक कारगर नही होते । इसलिए वचाव में ही सुरक्षा है ।
सावधानियाँ: care to be taken in poultry vaccination
टीका लगवाने से पहले तथा टीका लगवाने के समय मुर्गीपालक को कुछ एहतियात बरतने चाहिए ।
टीका यानी वैक्सीन खरीदते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि दवा विक्रेता वैक्सीन को फ्रिज से निकाल कर दे ।
वैक्सीन को खरीदते ही थरमस के अंदर बर्फ में रख लेना चाहिए । इस्तेमाल में लाने तक इसे बर्फ या फिज में ही रखना चाहिए । वैक्सीन खरीदते समय वैक्सीन की एक्सपायरी डेट को भी देख लेना चाहिए । टीके का इस्तेमाल निर्देशानुसार करना चाहए । टीका सुबह में ही लगाना चाहए । वीमार मुर्गियों को टीका नहीं लगाना चाहिए । वैक्सीन के साथ मुर्गियों को एंटीवायटिक दवा नहीं देना चाहिए ।
मुर्गी टीकाकरण की विधि method of poultry vaccination
कुछ टीके चमड़ी में दिए जाते हैं, कुछ नाक अथवा आँख में बूँद देकर, कुछ टीके पानी में मिलाकर दिए जाते हैं । आँख अथवा नाक में बूंद विधि द्वारा टीकाकरण बेहतर है क्योंकि सभी मुर्गियों का टीकाकरण सुनिश्चित होता है । पानी में मिलाकर बड़े फार्म में किया जाना चाहिए क्योंकि यह आसान हैं । बड़े फॉर्म में स्प्रे विधि से भी टीका दिया जाता है ।
पानी में टीकाकरण करने के लिए वैक्सीन करने के 3-4 घंटे पहले पानी के बर्तन हटा दें । उसे भली भाँति साफ करें । वैक्सीन के लिए हमेशा साफ पानी जिसमें ब्लीचिग पाउडर या क्लोरीन न हो का इस्तेमाल किया जाता है । पानी की आवश्यक मात्रा से थोड़ा कम पानी में दूध का पाउडर 240 ग्राम प्रति 40 लीटर पानी के हिसाब से मिलायें । वैक्सीन के नाम, ब्रांड वैच नंबर और दिनांक जिस दिन दिया गया हो नोट करें । ब्रूडर का तापमान 5°F (2.8°c) सामान्य से बढा दें । वैक्सीन के रिएक्शन को नोट करें । दूसरे दिन से विटामिन पानी में मिलाकर दे जबतक सामान्य न हो जाये।
व्रायलर का टीकाकरण broiler vaccination
बीमारी | टीका या वैक्सीन | टीका लगाने उम्र | टीका लगाने की मात्रा की |
मेरेक्स | मेरेक्स वैक्सीन | एक दिन | 0.2 मि.ली. गर्दन की चमड़ी के नीचे |
रानीखेत | एफ-1 या लासोटा | 2 से 6 दिन | एक बूँद आँख में या नाक में |
संक्रामक ब्रोकायटिस | आइ बी वैक्सीन | 1 से 7 दिन | एक-एक बूँद आँख या नाक में |
गंबोरा | आइ बी डी पहला टीका (इंटरमीडिस्ट स्ट्रेन) | 14 दिन | एक बूँद आँख या नाक में |
गंबोरो | आइ बी डी दूसरा टीका | 28 दिन | एक-एक बूँद आँख या नाक में |
रानीखेत | एफ-1 | 32 दिन | एक बूँद आँख या नाक में |
दवाई poultry medicine
दवाई देने का दो तरीका है एक पूरे बाड़े के मुर्गियों को तथा दूसरा एक-एक मुर्गियों को मुर्गियों में अगर एक भी मुर्गी बीमार है तो जाँच करवायें । जाँच करवाने पर अगर किसी बीमारी का पता चले तो ये माना जाता है कि सभी मुर्गिया उस रोग से ग्रसित हैं । रोग-मुक्त करवाने हेतु सभी मुर्गियों को दवा देना होता है । मुर्गियों को इस प्रकार दवा दिया जाता है
1. आहार में-
यह बीमारी से बचाव हेतु आहार में मिलाया जाता है | ग्रोथ प्रोमोटर, कॉक्सिडयोस्टेट इत्यादि आहार में मिलाया जाता है । हलाँकि बीमारी के समय भोजन घट जाता है इसलिए उपचार हेतु आहार में दवा मिलाना उचित नहीं है ।
2. जल में –
इलाज के लिए दवा जल में मिलाना बेहतर है जैसे एंटीवायटिक, कृमि नाशक, एंटी कॉविसीडियल पानी में दिया जाता है । टीकाकरण के लिए जल में टीका मिलाया जाता है ।
चोट लगने इत्यादि में अकेले मुर्गी को दवा दी जाती है या उपचार किया जाता है ।
प्रकाश व्यवस्था light management in poultry farming
ब्रायलर आवास में समुचित प्रकाश व्यवस्था होनी चाहिए । प्रायः लगातार प्रकाश व्यवस्था रहती है सिर्फ एक घंटा अंधेरा रखा जाता है ताकि मुर्गे अंधेरे से न डरें अन्यथा अंधेरा होने पर मुर्गियाँ एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती है और कुछ को मौत भी हो जाती है |
प्रथम 14 दिन अधिक तेज प्रकाश दिया जाता है । इसके लिए पहले 60 वाट बल्व प्रति 200 वर्ग फुट दिया जाता है वाद में इसे घटाकर 15 वाट वल्व कर दिया जाता है ताकि प्रकाश कम किया जा सके | 21 वें दिन तक यह 15 वाट प्रति 200 वर्ग फीट कर दिया जाता है |
वातायन ventilation in broiler farming
आवास में समुचित वातायन व्यवस्था होनी चाहिए | ऑक्सीजन घर में पहुंचे तथा कार्वनडाइआक्साइड गैस बाहर निकले । नमी अमोनिया वाहर निकालने, तापमान आद्रता नियंत्रित करने तथा बीमारी से बचाने हेतु विभिन्न प्रकार की वातायन व्यवस्था की जाती है ।
(अ) प्राकृतिक वातायन– Natural ventilation
खिड़की, दरवाजे इत्यादि द्वारा पाकृतिक वातायन करते हैं । खिड़की एक दूसरे के विपरीत दिशा में होनी चाहिए ताकि क्रास-बेंटिलेशन हो । डॉपर खिड़की इत्यादि वातायन के उपयुक्त साधन है ताकि प्रकाश आये तथा धूप नियंत्रित हो ।
(ब) दवाब वातायन– Pressure ventilation
इसे दो प्रकार से किया जाता है-पॉजिटिव दवाब तथा निगेटिव दवाब द्वारा वातायन किया जाता है जैसे स्कजास्ट पंखे द्वारा | तापमान तथा वायु गति वातायन नियंत्रित करता है । उदाहरणर्थ 65-70° F (18.3 – 21.1 ° F में वायुगति 30 फीट (9 मी) प्रति मिनट होनी चाहिए । अधिक तापमान में अधिक वायु-गति चाहिए तथा कम तापमान में कम वायुगति । अधिक उम्र के मुर्गे अधिक वायु-गति बर्दाश्त करते हैं ।
अमोनिया गैस की मात्रा मुर्गे के बाड़े में 20 पी.पी.एम से अधिक होने पर मुर्गे में इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।
अमोनिया गैस के दुष्परिणाम Side effects of ammonia gas
1. श्वसन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है तथा रानीखेत बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है ।
2. वजन पर असर पड़ता है तथा कम वजन रहता है ।
3. अंधापन हो जाता है अगर 50 पी.पी.एम. से ज्यादा आमोनिया गैस रहता है । अगर लिटर में नमी 21-25 प्रतिशत के बीच रहता है तो अमोनिया गैस का सृजन नहीं होता | नमी 30 प्रतिशत से अधिक होने पर तीव्र गति से अमोनिया गैस का सृजन होता है तथा तापमान बढ़ने पर यह गति तीव्रतर हो जाती है ।
10-15 पी.पी.एम : सूंघकर पता लगाया जा सकता है ।
25-35 पी.पी.एम : आँख में जलन होती है तथा नाक बहने लगता है ।
50 पी.पी.एम : आँख से पानी बहने लगता है तथा सूज जाती है ।
75 पी.पी.एम : मुर्गे अपने पंख फड़फड़ाते हैं तथा अकड़ण महसूस करते हैं ।
मृत मुर्गे को सही तरह से दफनाना या जला देना चाहिए | उसे इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि इससे बीमारी फैलने का खतरा रहता है । विदेशों में विद्युत शवगृह में इसे भलीभाँति जला दिया जाता है । गड्ढे में दफनाने के लिए एक गड्ढा 6 फुट व्यास तथा 6 फूट गहरा 10000 मुर्गे के यूनिट के लिए पर्याप्त है ।
साफ सफाई cleanliness in poultry farming
मुर्गे के बाड़े का साफ सफाई जब वाड़ा खाली हो तो कर देनी चाहिए । इसके लिए लिटर निकाल दें भोजन तथा पानी के वर्तन वाहर निकाल कर उसे पानी के फब्बारे (स्प्रे गन) द्वारा साफ करें । मकड़े के जाल, धूल इत्यादि निकाल दें । हो सके तो आवास गृह को पानी के फव्वारे से साफ करें ।
फ्यूमिगेशन करने के लिए फार्मेलिन तथा पोटैशियम परमांगनेट का इस्तेमाल किया जाता है ।
प्रति 100 फुट धन अथवा 2.33 मी घन
पावर | फार्मेलिन (एम एल) | पोटैशियम परमांगेनट (ग्राम) |
1x | 40 | 20 |
2x | 80 | 40 |
3x | 120 | 60 |
5x | 200 | 100 |
जव वाड़ा खाली हो तो फ्यूमिगेशन करें । सारे खिड़की दरवाजे 43 घंटों के लिए बंद करें । उसके बाद दीवारों को चूना से लिपाई करें । फिर उसे बंद कर दें । उसे चूजे आने के छ: घंटे पहले ही खोलें तथा अकारण किसी को अदर घुसने न दे । पानी, भोजन के वर्तन डिटर्जेट से साफ करें ।
फिनाइल, फार्मेलिन, आयोडीन क्लोरीन, क्वारटरनरी अमोनिया इत्यादि बाजार में उपलब्ध हैं तथा इनका इस्तेमाल कर मुर्ग खाने को जीवाणु, विषाणु तथा विभिन्न सूक्ष्म परजीवों से बचाया जा सकता है और बीमारी की रोकथाम की जा सकती है ।
ब्रायलर में होनेवाली बीमारियाँ Broiler diseases in poultry farming

ब्रायलर कम दिनों तक (करीब डेढ़ माह) पाला जाता है इसलिए उनका साफ-सफाई, रख-रखाव का विशेष ख्याल रखना होता है अन्यथा रोग होने पर आर्थिक नुकसान हो सकता है । ब्रायलर में होने वाले मुख्य बीमारियाँ है ।
(1). मैरेक्स बीमारी- Marex disease
यह बीमारी विषाणु जनित है और लार नाक के पानी पंख की चमड़ी तथा बीट से फैलती है । इस में लड़खड़ाना, पंखों का गिरना, पेट फूल जाना, शरीर में गिल्टी पड़ना, कम दिखाई पड़ना, त्वचा पर झुरियाँ हो कर मुर्गी की मौत हो जाती है । पायः मैरेक्स वीमारी में एक पाँव अंदर तथा दूसरा बाहर फैला होता है । पोस्ट-मार्टम में चैकियल या सायटिक स्नायु तंत्रिका में एक मोटा पाया जाता है तथा दूसरा सामान्य । रोकथाम के लिए मैरेक्स टीका एक दिन के चूजे को प्रायः हैचरी में दिया जाता है ।
(2). रानीखेत या न्यूकेसल बीमारी Ranikhet or Newcastle disease:
यह विषाणु जनित बीमारी है और इस बीमारी का फैलाव एक मुर्गी से दूसरी मुर्गी में मुँह व नाक से निकलने वाले पानी से हवा से और संक्रमित दाने व बिछावन से होता है । इस बीमारी में तेज बुखार आना, मुँह खोल कर साँस लेना, दस्त आना, खाँसी, हाँफना, लड़खड़ाना और गरदन नीचे मोड़ कर दोनों पैरों के बीच रखना जैसी परेशानियाँ होती है ।
वचाव-टीकाकरण द्वारा इस बीमारी से बचाया जा सकता है
(3) मुर्गी चेचक- Chicken pox
यह बीमारी मुर्गियों के आपस में मिलने से चोंच मारने में खाल छिलने या घाव हो जाने से एक मुर्गी से दूसरी मुर्गियों में फैलाती है । ऐसी मुरगी की कलगी, गरदन व चेहरे पर मस्से की तरह दाने व छाले होते है । शुरू में ये दाने लाल, फिर पीले हो कर आखिर में काले पड़ जाते हैं ।
इस बीमारी मे मुर्गीयाँ बहुत बेचैन हो कर मुँह खोल कर हाँफती हैं । उन की आँख व नाक से वदवूदार पानी आने लगता है । वे खाना-पीना कम कर देती हैं ।
रोकथाम-फाउल पोक्सि बी एम स्ट्रेन टीका 4 से 5 सप्ताह की उम्र पर लगवाना चाहिए । बूस्टर 14से 16 सप्ताह की उम्र में देना होता है ।
पिजन पॉक्स का टीका अंडा देनेवाली मुर्गियों को समय से लगवाना चाहिए । विटामिन व एंटी वायोटिक दाने, पानी में मिला कर देने चाहिए ।
(4) गंबोरो बीमारी Gamboro disease –
यह बीमारी दूषित दाने, विछावन और बीट द्वारा फैलती है । इस बीमारी में मुर्गियों का सुस्त रहना, सफेद दस्त होना, कलगी का सूज जाना होता है और चूजों की मौत हो जाती है ।
रोकथाम-टीकाकरण 14 और 28 दिन में इंटरमीडिएट स्ट्रेन का देना चाहिए ।
(5) मुर्गी कोलेरा- Hen Cholera
यह बीमारी खराब भोजन, पानी और मुँह व नाक से निकलने वाले पानी से फैलती है । इस बीमारी में तेज बुखार, हरे बादामी या पीले रंग के पतले दस्त और भोजन में कमी तथा प्यास बढ़ जाती है। साँस लेने में भी कठिनाई होती है ।
रोकथाम- टीकाकरण कर इस बीमारी से बचाया जा सकता है ।
दवाओं में सल्फाडीमीडीन, एंटीबायटिक में टेट्रासाइक्लीन, होस्टासाइक्लीन या इनरोमाइसिन ।
(6) संक्रामक कोराइजा Infectious choriza in poultry –
यह बीमारी हीमोफिलस गैलिनेरम के कारण होती है । यह दूषित दानापानी से फैलती है । इस में साँस लेने में परेशानी, आँख और नाक से लाल रंग का गाढ़ा बदबूदार पानी निकलना व आँखों में सूजन आ कर पलकों का चिपक जाना होता है ।
उपचार : सल्काक्लोर और ट्राइमेथोप्रिम 1:5 या कोजुमिक्स प्लस दवा दें ।
(7) ब्रूडर निमोनिया – Brooder pneumonia
यह बीमारी फफूंद एसपरजिलस फ्यूमिगेटस से होती है । बिछावन में ज्यादा नमी होने की वजह से ये बीमारी होती है । इसमें आँख, नाक और मुँह से पानी आना भोजन व पानी ठीक तरह से न खाना, सांस लेने में कठिनाई, आँखे लाल होना, तेज बुखार सुस्ती और बेहोश होना लक्षण दिखाई पड़ता है।
रोकथाम- डेमाइसिन 10 मि.ली. 1 लीटर पानी में 7-10 दिन तक देना चाहिए ।
(8) माइकोटोक्सीकोसिस Mycotoxicosis –
यह बीमारी एसपरजिलस नामक फुकुंद के कारण होती है । इसके फैलने की खास वजह फुकुंद लगा दाना खाना होता है । दाना में नमी की मात्रा अधिक (12 प्रतिशत से अधिक) होने पर फुकुंद जनित होता है । मुर्गी को पानी जैसे पतले दस्त आना, दाना व पानी कम लेना शरीर का विकास न होना और अंडे कम देना पाया जाता है ।
रोकथाम-फुकुंद लगा दाना न दें। कॉपर सल्फेट 5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी दें।
(9) काक्सीडियोसिस Coccidiosis –
यह बीमारी प्रोटोजोआ द्वारा जनित है । इसमें आइमेरिया टेनेला, आइमेरिया नेकेट्रिस इत्यादि से होता है ।
इसमें खूनी पेचिस, कमजोर चूजे, दस्त, आँतों से खून आना लक्षण देखा जाता है। इस बीमारी से बचाया जा सकता है वशर्ते पानी और भोजन के वर्तन की नियमित सफाई, विछावन में नमी न होने देना सुनिश्चित करें ।
दवा के लिए अम्प्रोलियम सल्फेट, नाइट्रोफयूराजोन, सेलिनोमाइसिन, मडुरामासिन का इस्तेमाल करें ।
लेयर पालन (Layer Farming)

ब्रायलर पालन की ही तरह लेयर पालन (Layer Farming) और रख-रखाव किया जाता है । लेयर पालन (Layer Farming) अंडा उत्पादन के लिए किया जाता है । लेयर का उत्पादन हम सघन विछावन पद्धति और पिंजड़ा पद्धति में कर सकते हैं, किन्तु पिजड़ा पद्धति अधिक अपनाया जाता है क्योंकि इसके कुछ फायदे हैं । जैसे :
1. इसमें मुर्गी के अंडे उत्पादन की रिकार्ड रखी जा सकती है ।
2. बीमारियाँ कम होती हैं ।
3. जगह कम लगता है । किन्तु पिजड़ा पद्धति में पिंजड़े का खर्च अधिक पड़ता है ।
लेयर पालन (Layer Farming) में लेयर को हम उम्र के अनुसार तीन वर्गों में बाँट सकते है :
1. ब्रूडर 2. ग्रोवर 3. लेयर
ब्रूडर में हम ब्रायलर की तरह ही ब्रूडिंग करते हैं । ग्रोवर स्टेज में हम कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था नहीं करते । लेयर यानि अंडा उत्पादन स्टेज में हम प्रकाश की व्यवस्था करते हैं क्योंकि शोध में पाया गया है कि प्रकाश का अंडा उत्पादन में अहम योगदान है । प्रकाश व्यवस्था हम विभिन्न प्रकार से कर सकते हैं ।
1.स्टेप अप प्रकाश पद्धति : Step up lighting method
इस पद्धति में आहिस्ता-आहिस्ता प्रकाश की अवधि बढ़ाई जाती है जब तक कि 15 से 16 घंटा प्रकाश की अवधि प्राप्त न हो जाये | बेहतर है कि प्रकाश की अवधि आधा घंटा प्रति सप्ताह की दर से बढ़ाएँ । प्रकाश की अवधि दिन के सूर्य के प्रकाश की अवधि तथा रात्रि के कृत्रिम प्रकाश की अवधि दोनों को जोड़कर है । प्रकाश की अवधि प्रायः 16-23 सप्ताह के अवधि में बढ़ाया जाता है ।
2. स्टेप डाउन प्रकाश पद्धति Step down lighting method
इस पद्धति में हम शुरूआत अधिक प्रकाश अवधि से करते हैं जिसे हम धीरे-धीरे 15-16 घंटे की कुल अवधि तक ले जाते हैं ।
3. एहिमेरल प्रकाश पद्धति : Ahimeral Lighting System
इस पद्धति में हम प्रकाश और अंधेरे की अवधि को इस प्रकार सुनिश्चित करते हैं कि उनका कुल योग 24 घंटा न हो । उदाहरणार्थ :
उम्र | प्रकाश/अंधकार अवधि | कुल |
17-26 सप्ताह | 11 घंटा प्रकाश, 17 घंटा अंधकार | 28 घंटा |
27 सप्ताह | 13 घंटा प्रकाश, 13 घंटा अंधकार | 26 घंटा |
28 से 70 सप्ताह | 15 घंटा प्रकाश, 9 घंटा अंधकार | 24 घंटा |
इस पद्धति द्वारा प्रकाश व्यवस्था में बड़े आकार के अंडे प्राप्त होते है।
ध्यान दें:
1. प्रकाश पूरे घर में बराबर फैला हो ।
2. एक वाट प्रति 4 वर्ग फुट अथवा 5 से 10 लक्स । लक्स प्रकाश की इकाई है ।
3. बल्ब साफ रखें ।
4. सी.एफ.एल अथवा एल..इ.डी. बल्ब का इस्तेमाल कर उर्जा की बचत की जा सकती है ।
आवास प्रबंधन: Layer house management in poultry farming
आवास की साफ-सफाई होनी चाहिए । आवास को साफ करने के लिए विभिन्न तरह के रसायनों का उपयोग किया जाता है
1. कॉस्टिक सोडा : 11 से 12 ग्राम प्रति लीटर जल में मिलायें । सौ लीटर घोल 1000 वर्ग फीट के लिए पर्याप्त है ।
2. वाशिंग सोडा : 50 से 60 ग्राम प्रति लीटर पानी में या 5 से 6 किलो प्रति 1000 वर्ग फीट ।
ध्यान दें : कॉस्टिक सोडा का इस्तेमाल करते वक्त दस्ताना और जूते अवश्य पहनें ।
अगर जुएँ, कीलनी का प्रकोप हो तो साइथियॉन 80 मिली से 160 मिली प्रति 10 लीटर पानी इस्तेमाल करें ।
विभिन्न कोटी के चूजों के लिए आवास प्रबंधन इस प्रकार है :
ब्रूडर (0-8 सप्ताह) | ग्रोवर (6-20 सप्ताह) | लेयर (21-72 सप्ताह) | |
दिशा | शेड की लंबाई पूरब से पश्चिम दिशा में होनी चाहिए जिससे गर्मी में सूरज की रोशनी सीधे | शेड पर न पड़े । | तदनुसार | तदनुसार |
फर्श पद्धति | 15 वर्ग इंच 0-15 दिन तक चूजा, 32-37 वर्ग इंच प्रति मीटर चूजा 16-60 दिन तक | 60 वर्ग इंच प्रति चूजा | 72 वर्ग इंच प्रति लेयर अथवा 23 लेयर प्रति वर्ग मीटर |
सघन विछावन | 0.5 वर्ग फुट प्रति चूजा 0-4 सप्ताह तक, 1 वर्ग फुट प्रति चूजा 5-8 सप्ताह तक | 1.25 वर्ग फीट प्रति चूजा | 1.5 वर्ग फीट प्रति लेयर अथवा 7 लेयर प्रति वर्ग मीटर |
फीडर जगह
पिंजड़ा पद्धति | 1 इंच प्रति चूजा | 2 इंच अथवा 5 सेमी प्रति चूजा | 3 इंच अथवा 7.5 सेमी प्रति लेयर |
सघन विछावन | 2.5 सेमी प्रति चूजा | 3 इंच प्रति चूजा | 3 इंच अथवा 7.5 सेमी प्रति लेयर |
पानी जगह :
पिंजड़ा पद्धति | 1 निप्पल प्रति 16 चूजे 0-15दिन तक, 1 निप्पल प्रति 8 चूजा 15-60 दिन तक | 0.75 इंच प्रति चूजा | 1 इंच अथवा 2.5 सेमी प्रति लेयर |
पिंजड़ा आकार | बॉक्स आकार | केलिफोर्निया | केलिफोर्निया |
चूहे से बचाव | जाली तथा ओवरहेंग द्वारा, 1 ओवरहेंग 5 फीट होनी चाहिए | तदनुसार | तदनुसार |
ब्रूडर पिंजडा :
यह 4 फीट छ: इंच लंबा, 4 फीट चौडा तथा 12 इंच ऊँचा होता है । यह धरातल से 18 इंच ऊँचा होता है । इसमें 70-80 चूजे ब्रूड किए जा सकते हैं । देखें चित्र :

ग्रोवर पिजड़ा :
यह 5 फीट लंबा 15 इंच चौड़ा तथा 14 इंच ऊँचा होता है ।

लेयर पिंजड़ा :
यह पिंजड़ा 15 इंच लंबा, 12 इंच चौड़ा तथा 18 इंच ऊँचा होता है ।

भोजन प्रबंधन : Feed for Layer farming
लेयर का भोजन विभिन्न अवस्था के अनुसार दिया जाता है।
1. चूजा स्टेज, 2. ग्रोवर स्टेज, 3. लेयर स्टेज
क्योंकि उनमें पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता भिन्न होती है । प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज पदार्थ तथा विटामिन और जल आवश्यक हैं । ऊर्जा के लिए अनाज तथा अनाज के अवशेष, प्रोटीन के लिए खली तथा मछली का समावेश किया जाता है ।
खनिज के लिए चूना पत्थर, आयस्टर या सेल ग्रिट और विटामिन के लिए विटामिन ‘बी’ तथा ‘ए’, ‘बी2’, ‘डी’ के का समावेश किया जाता है । इनके लिए विभिन्न मानक तय हैं ।
भारतीय मानक ब्यूरो का विभिन्न अवस्था के अनुसार संतुलित राशन तैयार किया जाता है । भोज्य पदार्थ सेलमोनेला, हानिकारक रसायन तथा विष विहीन हो । जल साफ-सुथरा तथा प्रदूषण विहीन हो तथा पीने योग्य हो ।
लेयर में कैल्सियम चूना पत्थर के टुकड़े 3 से 5 मिमी और पाउडर के रूप में देते हैं । इनमें फेज फीडिंग किया जाता है। फेज 1, फेज 2 तथा फेज 3 ।
फेज 1 फीडिंग : 18 सप्ताह से 28 सप्ताह तक तथा 58 ग्राम अंडे के जनन तक किया जाता है । इसमें प्रोटीन की मात्रा 18% होती है ।
फेज 2 फीडिंग : तब से दिया जाता है जब अंडे का वजन 58 ग्राम होता है तथा प्रति लेयर 100-110 ग्राम भोजन की आवश्यकता होती है ।
फेज 3 फीडिंग : 50 सप्ताह से ऊपर तक दिया जाता है और इसमें अंडे का वजन 60 ग्राम होता
प्रबंधन layer management :
टीकाकरण चोंच काटना, रिकार्ड रखना, फलॉक यूनिफारमिटी तथा रोगों से देखभाल उचित तरह से करना चाहिए । लेयर में अनेक रोग होते हैं जो कि ब्रायलर में नहीं पाये जाते हैं । ऐसे रोगों के लिए विशेष जानकारी तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता है ।
इसे भी पढ़े बकरी टीकाकरण, कृमिनाशक दवाई व् बकरी देखभाल
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