बेर रहमनेसी कुल का भारतीय मूल का फलवृक्ष है ! एक मुसला जद्धारी पौधा होने के कारण अत्यधिक सुख सहनशील है ! यह जमीन की गहरी परतो से पानी लेने में सक्षम है ! इसके अतिरिक्त इसके पत्तो की क्यूटिकल परत मोती होती है जिसके कारण पत्तो से वाष्पीकरण बहुत कम होता है ! यही कारण है की शुष्क क्षेत्रीय बागवानी के लिए उतम फलवृक्ष है ! अधिक उत्पादन व् सर्वोत्तम गुन्नवत्ता के लिए निम्नलिखित सस्य क्रियाए अपनानी चाहिए !

किस्मे :
पकने के समय के अनुसार बेर कि किस्मो को तीन वर्गो में बता गया है जो की निम्न है !
- अगेती किस्मे (फरवरी में पकने वाली ) : गोला, सेब, संधुरा नारनौल
- मध्य मौसम में पकने वाली ( फरवरी अंत से मार्च मध्य तक ) : कैथली, मुड़िया मुरहारा, बनारसी कड़ाका,छुहारा
- पछेती किस्मे : उमरान, काठाफल, इलाइची
भूमि का चुनाव
बेर की बागवानी अनेक प्रकार की भूमि जैसे रेतीली, दोमट, चिकनी कुछ हद तक लवणीय आदि में की जा सकती है ! लेकिन अधिकं पैदावार व् अच्छी गुन्नवत्ता के लिए अछे जल निकास वाली दोमट मिटटी सर्वोत्तम रहती है ! भूमिगत जलस्तर 3 मीटर से उपर न हो ! जमीन की ph 8.7 तक हो ( 9.4 तक सहशील ) ! लवण सहनशीलता स्तर 11.3 मि. म्होज /cm तक है !
पौधे से पौधे व् पंक्ति से पंक्ति 8 मीटर फासला रखा जाता है ! बारानी बागवानी में फासला बढ़ा दिया जाता है ! एक एकड़ में इस दुरी पर 72 पौधे लगते है !
गड्ढ़े तैयार करना व् पौधारोपण
जून के प्रथम सप्ताह या दिसम्बर के अंत में 3 फुट लम्बे, चौड़े व् गहरे गड्ढे खोदे! खोदते समय गड्ढे के उपर की आधी मिटटी एक तरह व् निचे की आधी मिटटी दूसरी तरफ डाले ! 15-20 दिन बाद उपर की आधी मिटटी में बराबर मात्रा में गली सड़ी देशी खाद, एक किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट (SSP) व् 50 ग्राम लिन्डेन पाउडर (2%) मिलाकर गड्ढो को भर दे व् बाकि बची मिटटी भी भर दे ! एक अच्छी वर्षा का इंतजार करे या गड्ढो की सिंचाई करे और मिटटी बैठ जाने के बाद पौधरोपण करे !
नए पौधो की शुरुआती देखभाल
सहारा देना : पौधारोपण के तुरंत बाद सभी पौधो को बांस अथवा लकड़ी की सोटी/छड़ी से सहर देना चाहिए !
सिंचाई
पौधो को आवश्कता अनुसार पानी देना चाहिए ! अधिक गर्मी व् सर्दी के समय जल्दी – जल्दी सिंचाई दे ! चिकनी मिटटी की तुलना में रेतीली मिटटी में पानी कही अधिक जल्दी जल्दी देना पड़ता है ! सिंचाई के पानी के साथ 10-20 मिलीलीटर क्लोरोप्यरीफोस 20 ई सी 10 लीटर पानी में घोलकर अवश्य डाले !
निराई गुड़ाई
फलित बागों में वर्ष में 3-4 बार थावलो में निराई गुड़ाई करे व् बीच की भूमि को ट्रेक्टर अथवा पॉवर टिलर से जुताई करे विशेषकर शुरुआत के सालो में !
सिधाई एवं कांट- छांट
पहले 2-3 सालो में जमीन से 60-75 cm ऊंचाई तक मुख्य तने से कोई फुटाव न निकलने दे ! इसी तरह मूलवृन्त से निकलने वाले सभी फुटाव समय समय पर निकालते रहे ! करीब 2-2.5 फुट बढ़ने के बाद चारो दिशाओ में नई शाखाओ को प्रोत्साहन दे ताकि पौधे का मजबूत ढांचा तैयार हो सके !
बेर में नियमित व् अच्छी गुन्नवत्ता एवं भरपूर उत्पादन के लिए प्रति वर्ष सुप्तावस्था में कांट छांट अनिवार्य है ! इसके लिए 1-30 मई के बीच चालू वर्ष की बढवार को छ: द्वितीय शाखाओ के बाद काट देना चाहिए !
पौध प्रवर्धन : T-बडिंग द्वारा
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक की मात्रा निचे दी गई तालिका अनुसार दे !
पौधे की आयु | देशी खाद किलोग्राम/प्र्ति पौधा/प्रति वर्ष | यूरिया (किलोग्राम) प्रति पौधा /प्रति वर्ष | सिंगल सुपर फास्फेट SSP(किलोग्राम )/प्रति पौधा /प्रति वर्ष |
1 | 10 | 0.2 | 0.3 |
2 | 15 | 0.4 | 0.6 |
3 | 20 | 0.6 | 0.9 |
4 | 25 | 0.8 | 1.2 |
5 | 30 | 1.0 | 1.5 |
6 | 40 | 1.2 | 2.0 |
7 एवं अधिक | 50 | 1.25 | 2.5 |
सारी देशी खाद व् सिंगल सुपर फास्फेट तथा आधी यूरिया पहली वर्षा के साथ ही जून-जुलाई में डालनी चाहिए ! यूरिया की शेष मात्रा नवम्बर में जब बेर मटर के दाने के समान हो , तब देनी चाहिए ! खाद व् उर्वरक मुख्य तने से 2-3 फुट दूर डाले ! पौधो में डालने के तुरंत बाद सिंचाई देनी चाहिए !
सिंचाई
बेर के फलित पौधो को वर्ष में 3 से 4 सिंचाई देनी चाहिए !
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
बेर के फलित बागों में वर्ष भर में 3 बार निराई गुड़ाई अनिवार्य है ! पहली जून-जुलाई में खाद व् उर्वरक डालते समय, दूसरी अगस्त में व् तीसरी वर्षा ऋतू के उपरान्त सितम्बर में !
फल गिरने व् फटने की समस्या व् रोकथाम
फल गिरने व् फटने के अनेक कारण हो सकते है जैसे पोषक तत्वों की कमी, किट व् बीमारियों का प्रकोप, कांट छांट न करना, फुल फल आने के समय सिंचाई करना या जमीं में नमी की कमी होना !
जब बेर गिरने की समस्या नजर आये तो 1.5 % यूरिया (15 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी ) व् 0.5 % जिंक सलफेट (5 ग्राम जिंक सलफेट प्रति लीटर पानी ) का छिडकाव करे ! फल फटने की समस्या पर नियंत्रण हेतु पौधो को प्रचुर मात्रा में देशी खाद दे ! लम्बे सूखे अन्तराल के बाद गहरी सिंचाई न करे ! समस्या नजर आने पर 0.3% (3 ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर पानी ) का छिडकाव करना चाहिए !
किट बीमारियाँ एवं रोकथाम
बेर की फल मक्खी तथा सफ़ेद चूर्णी रोग ही सबसे हानिकारक है इसके साथ साथ अन्य किट जैसे दीमक,लाख का कीड़ा, छाल खाने वाली सुंडी तथा बीमारिया जैसे रतुआ, क्लैड़ोस्पोरियम लीफ स्पॉट, अल्टरनेरिया हानी पहुंचा सकते है !
- कीट
- फल मक्खी : यह घरेलु मक्खी जैसी ही होती है ! इसकी मादा मक्खी फलो के छिलकों के निचे अंडे देती है ! प्रभावित फल टेड़े मेढे होकर काने हो जाते है और बाज़ार में बेचने योग्य नही रहते है ! साधारण फलो की तुलना में ऐसे फल पीले होकर गिर जाते है !
नियंत्रण एवं सावधानिया :
- नवम्बर माह में जब 75-80 % फल बन चूका हो और बेर मटर के दाने के सामान हो जाये तो पेड़ो पर 500 मि.ली. डाईमेथोएट (रोगोर ) 30 ई सी को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे ! आवश्कता पड़ने पर 15 दिन बाद दुबारा दोहराए ! जनवरी माह में ( यदि प्रकोप हो) 500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई सी व् 5 किलोग्राम गुड को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे !
- मक्खी ग्रस्त फलो को प्रतिदिन इक्कठा करे व् जमीन में 2 फुट गहरा दबा दे या भेड़ बकरियों को खिला दे !
- मई-जून व् दिसम्बर-जनवरी में बाग़ में गहरी गुड़ाई या जुताई करे !
- दीमक : जड़, छाल व् तनों के क्षतिग्रस्त होने के फलस्वरूप पेड़ सुखकर मर जाते है ! पौधारोपण के बाद 2-3 साल तक 30-45 दिन में एक बार आवश्कतानुसार 10-20 मि.ली. क्लोरोप्यरीफोस 20 ई सी प्रति पौधा सिंचाई के साथ डाले !
- सफ़ेद चूर्णी रोग : इसे पाउडरी मिल्ड्यू के नाम से भी जाना जाता है ! इसका प्रकोप पत्ते व् फल दोनों पर होता है परन्तु पत्तो पर कभी कभी ही देखा जाता है ! प्रकोपित फल अथवा पत्तो पर सफ़ेद पाउडर सा जमा हो जाता है ! फलो की सतह खुरदरी व् भूरे काले रंग की हो जाती है ! प्रभावित फल या तो गिर जाते है और बाज़ार में बेचने लायक भी नही होते है जिसकी वजह से नुकसान उठाना पड़ता है !
नियंत्रण : एक ग्राम केराथेन या 2 ग्राम सल्फेक्स प्रति लीटर पानी के हिसाब से प्रथम छिडकाव बेर मटर के दाने के समान होने पर करे ! आवश्कतानुसार एक दो छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर करे !