बकरी पालन व् बकरी टीकाकरण जानकारी

बकरी पालन के लिए घर की सफाई :
बकरी पालन में हमें हर चीज का ध्यान देना होता है चाहे वो बकरी टीकाकरण हो या साफ सफाई ! घर चाहे स्थयी हो या अस्थायी, उसकी प्रतिदिन सफाई आवष्यक है। अगर फर्श पक्का हो तो प्रतिदिन पानी से धो देना चाहिए। अगर कच्चा फर्श हो तो उसे ठोक-पीट कर मजबूत बना लेना चाहिए और प्रतिदिन साफ करना चाहिए।
बकरी पालन के लिए बकरी -घर की नालियों और सड़कों की सफाई भी अच्छी तरह होनी चाहिए। समय-समय पर डेटोल, सेवलौन, फिनाइल या ऐसी ही दूरी दवा से फर्श और बकरी-घर के अन्दर के हर भाग को रोगणानाषित भी कर लेना चाहिए।
बकरियों की खुराक :
आमतौर पर गाँव की बकरिया चराई पर ही निर्भर करती हैं। यदि चारागाह या परती मैदान की सूविधा मौजूद हो तो बकरियों को चरा कर भी पाला जा सकता है।
लेकिन अब चारागाह और परती जमीन न के बराबर है। ऐसी अवस्था में बकरी पालन के लिए बकरियों को थान पर खिलाने का इन्तजाम ही करना होगा।
बकरियों से अच्छी पैदावार हासिल करने और उनकी तन्दुरूस्ती कायम रखने के लिए उन्हें खुराक जरूर खिलाएँ। बकरियां पत्ते और हरा चारा बड़े चाव से खाती है।
इनकी खुराक के संबंध में एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। ये प्रतिदिन एक ही प्रकार का चारा खाना पसन्द नहीं करती है। इसलिए चारा बदल-बदल कर देना चाहिए। तन्दुरूस्ती कायम रखने और दूध की पैदावार या मोटापा बढ़ाने के लिए बकरियों के आहार में दाना भी जरूर षामिल रहे।
खुराक की मात्रा बकरियों की उत्पादन क्षमता या वनज के अनुसार घटाई-बढ़ाई जा सकती है। आमतौर पर एक बकरी को 2 किलो चारा तथा आधा किलो दाना देना मुनासिब समझा जाता है। इसके अलावा प्रत्येक दूध के के उत्पादन पर 200 ग्राम दाना अलग से देना चाहिए।
गेहूँ की भूसी, दालों का चूरा या चना और मक्का आदि तीन-चार चीजों को मिला कर दाना तैयार करना चाहिए। दाने के रूप में उबाला हुआ गेहूँ भी दिया जा सकता है। प्रतिदिन दाना में एक चुटकी नमक भी मिला देना चाहिए (दाना का एक प्रतिशत)।
बकरी पालन के लिए खुराक देने के संबंध में निम्नलिखित बातों पर विषेष ध्यान देने की जरूरत हैं –
1. बकरियों को खिलाने-पिलाने का समय निष्चित कर लेना चाहिए। इससे बकरियों की भूख अच्छी रहती है।
2. बकरी एक बार में जितना खाना खा सकती है, उतना ही चारा दें या बकरी के सामने थोड़ा-थोड़ा करके चारा रखें।
3. सूखा चारा के साथ-साथ बकरियों को हरा चारा भी जरूर खिलाएं।
4. चारा खिलाने की नाद या बाल्टी की प्रतिदिन सफाई आवष्यक है।
5. बकरियों को साफ बर्तन में ताजा पानी ही पीने के लिए दें।
6. बासी या फफूंदवाली चीजों से बकरियों को बचाना चाहिए।
7. बकरियों को भीगी हुई घास या वर्षा ऋतु की नई घास अच्छी तरह साफ करने के बाद ही खिलाई जाय ।
प्रजनन के लिए पाले जा रहे बकरों को भी वही आहार मिलना चाहिए जो दुधारू बकरियों को दिया जाता है। इसी प्रकार मांस उत्पादन के लिए पाले जा रहे बकरों को भी दुधारू बकरियों के मुकाबले का आहार मिलना चाहिए।
हा, बकरी के नवजात छौनों के आहार देने काफी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। छौंनों को कुछ समय तक केवल माँ का दूध पर ही मिलना चाहिए। छौने थन से भी दूध पी सकते हैं और उन्हें दूध निकाल कर किसी वर्तन के द्वारा भी पिलाया जा सकता है।
दो सप्ताह के बाद ही छौनों को कोमल घास खाने को देना चाहिए। उन्हें तीन महीने के बाद 200 ग्राम दाना भी दिया जा सकता है।
देखभाल
उम्र एवं अवस्था के अनुसार छौना, बकरा या गाभिन बकरी की देखभाल अलग-अलग ढंग से करनी पड़ती है।
बकरा का देखभालः
बकरा से प्रजनन कार्य लिया है। इसलिए बकरा के स्वास्थ्य और नस्ल दोनों पर ध्यान देना पड़ता है। बिहार राज्य के लिए जमनापारी नस्ल का बकरा प्रजनन के लिए उपयुक्त समझा गया है। आमतौर पर एक स्वस्थ और नस्ली बकरा पचास-साठ बकरियों के प्रजनन के लिए काफी है।
प्रजनन के लायक उम्र पूरी करने के बाद ही बकरा से प्रजनन का काम लेना चाहिए। आमतौर पर नौ महिनों की उम्र में ही नर-मेमना परिपक्व माना जाता है। लेकिन 18 महिने की उम्र प्राप्त कर लेने के बाद ही बकरा को बकरियों का गर्भाधान कराना ही उचित है। इसी प्रकार इस अवस्था तक के बकरा को एक बकरी के गर्भाधान के बाद डेढ़ सप्ताह तक आराम करने का मौका देना चाहिए।
बकरे को बराबर बकरियों के साथ नहीं रखना चाहिए। समय-समय पर उसके षरीर की सफाई भी करनी चाहिए तथा बढ़े हुए बालों को कतर देना चाहिए।
बकरियों की देखभाल :
उचित देखभाल में प्रजनन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है अच्छे प्रजनन द्वारा देषी नस्ल की बकरियाँ भी सुधर सकती हैं इसलिए अच्छे बकरा का चुनाव करने के साथ-साथ बकरियों पर भी खास ख्याल रखने की जरूरत है।
बकरियाँ वर्ष में दो बार गाभिन हो सकती है। आमतौर पर बच्चा देने के दो महिने के बाद ही बकरियाँ गर्म होने लगती है। सब कुछ सामान्य रहने पर प्रत्येक 27-28 दिनों के अन्तर पर बकरी गर्म हो जाती है। इसी प्रकार व्यस्क हो जाने के बाद ही बकरी का प्रजनन होना चाहिए।
एक वर्ष की आयु पूरी होने के बाद बकरियों के गर्भाधान के लिए बकरा से सम्पर्क कराना अच्छा होगा। बकरियों का गर्भाधान इस प्रकार कराया जाय कि बच्चे पैदा होते समय प्राकृतिक प्रकोपों से सुरक्षित रहें।
बिहार राज्य में मई-जून में बकरियों को गर्भाधान करा अक्टूबर-नवम्बर में पैदा होगे। यह समय यहाँ के पषुओं के लिए ज्यादा अनुकूल पड़ता है।
गाभिन हो जाने के बाद और प्रसव के पहले बकरियों की देखभाल में काफी मुस्तैदी बरतनी पड़ती है। बकरी के प्रसव-काल से लगभग एक महीना पहले झुंड से अलग कर देना चाहिए।
प्रसव-काल काफी निकट आ जाने पर बकरी को चराने के लिए बाहर नहीं ले जायें उसे घर के अन्दर ही आरामदायक स्थान पर रखना चाहिए। बकरी के योनि भाग का भारी हो जाना बेचैन होना, बार-बार स्थान बदलना और थन का तन जाना प्रसव-काल के समीप होने की खास पहचान है।
बच्चा देने के तीन-चार दिन बाद तक बकरी को झुण्ड से अलग ही रखना चाहिए। अगर एक दो पालते हों और वे बकरियां चराई पर पलती है तो चार-पाँच दिनों तक चरने के लिए नहीं भी नहीं भेजें। उसे घर के अंदर ही पौष्टिक खुराक खिलाएं। गाभिन बकरी को हरा चारा खिलाना कभी न भूलें।
बकरियों के दुहने का समय तय कर लेना चाहिए। निर्धारित समय पर दूध दुहने से पेदावार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। दूध दुहने वाले को अपना हाथ अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। गंदे हाथों से बकरी का थन कभी भी न छुएं।
छौने की देखभाल :
पैदा लेने के बाद छौने की सफाई कर उन्हें खड़ा कर देना चाहिए। उनके मुंह में बकरी का थन लगा देने से वे स्वयं ही दूध ही पीन लग जायेगें।
यदि छौने तुरंत खड़ा नहीं हो सके, तो घबड़ाएं नहीं। कुछ समय तक दूध नहीं भी पीएं तो भी कुछ चिन्ता करने की जरूरत नहीं हैं। थन से थोड़ा सा दूध निकाल कर छौने को पीने के लिए थन के पास ले जाना अच्छा है। अगर बकरी एक साथ दो तीन या अधिक बच्चें दे तो सबसे अंत में जन्म लेने वाले बच्चे को पहले दूध पीने का मौका देना चाहिए।
यदि छौना स्वंय खड़ा होकर थन से दूध नहीं पी पा रहा है तो पहली बार थन में छौना का मुंह लगाकर थोड़ा सा दूध निचोड देना चाहिए उसके बाद कोई कठिनाई नहीं रह जायगी।
छौनों को खीस जरूर पिलाएं। इसका उनकी तन्दुरूस्ती पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। छौनों को खुली हवा या धुप में अधिक समय तक रखना चाहिए। लेकिन गर्मी और सर्द हवा से उनकी हिफाजत भी करनी चाहिए।
ढाई-तीन महीने की उम्र में उन्हें दूध देना बन्द किया जा सकता है। ढाई-तीन माह की उम्र में प्रजनन के काम में नहीं आने वाले नर छौना (खस्सी) को बधिया कर देना चाहिए।
बकरी टीकाकरण व् कृमिनाशक दवाईया :-
बकरी पालन में कृमिनाशक दवा का प्रयोग
कं.सं. | कृमिनाशक दवा | समय | टिप्पणी |
1 | विस्तृत कृमिनाशक आइवरमेक्टीन/क्लोसनटल/एलवेन्डाजोल | प्रति दो महीने के बदलाव पर दवा दें। | |
2 | संकीर्ण स्पेक्ट्रम कृमिनाशक प्राजीक्वाण्टेल | अप्रेल/मई | सभी मेमने बच्चे और दूध छुड़ाने वाले और 4-6 महीने पर दूबारा दें। |
3 | एण्टीकक्सीडीयल कृमिनाशक सल्फामेथाजिन + ट्राईमेथोप्रीन | जून/जुलाई | छोटे पशु और दस्त के समय पर |
4 | बाह्यपरजीवी नाशक इक्टोमिन/व्यूटाक्स | सितम्बर/अक्टूबर मार्च/अप्रेल |
बकरी टीकाकरण
क्र. स. | रोग का नाम | टीका का नाम | समय | टिप्पणी |
1 | पी.पी.आर Peste des petits ruminants (PPR) | लाइव एटीनुऐटेड वैक्सीन | अक्टूबर/ नवम्बर | 6 महीने पर और 3 वर्ष के बाद दूबारा देना है। |
2 | बकरी चेचक | लाइव एटीनुऐटेड वैक्सीन | अक्टूबर/ नवम्बर | 4 महीने में वार्षिक रूप |
3 | एफ.एम.डी + एच.एस. | आयल एडजूवांट | अक्टूबर/जून | 3 महीने में और 9 महीने के बाद दूबारा देना है |
4 | संसर्गजन्य इकथिमा टीका | फार्मलाइज्ड वैक्सीन | फरवरी/मार्च | मेमना और बच्चा दो महीना में |
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