अरण्ड एक प्रमुख तिलहनी फसल है जिसके बीजो से तैयार होने वाला तेल अनेक ओधोगिक एव औषधि हेतु प्रयुक्त किया जाता है ! अब तक इसकी खेती बेकार पड़ी भूमि व असिंचित अवस्था में होती थी ! परन्तु अब इसकी खेती सिंचित क्षेत्रो में निम्लिखित उन्नत तरीके अपनाकर करने से 12 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज ली जा सकती है !

भूमि की आवश्यकता एवं खेत की तैयारी
अरण्ड के लिए रेतीली या दोमट मिटटी उपयुक्त है ! मानसून के पहले आने वाली वर्षा के तुरन्त बाद गहरी जुताई करे ! अरण्ड की फसल के लिए खेत की 2-3 जुताइयां उपयूक्त होती है !
अरण्ड की खेती की समयावधि
कुछ कीस्में 5 या 6 महीने की फसल के रूप में अच्छा आर्थिक लाभ दे रही है ! परन्तु अधिक उपज व लाभ के लिए अरण्ड की फ़सल 10 महिने तक रखनी चहिए ! सर्दी के मौसम में यह फ़सल फूल व फल देना बन्द कर देती है तथा अधिक सर्दी पड़ने पर फ़सल को बहुत नुकसान होता है ! थोड़ी गर्मी शुरू होते ही यह फ़सल फ़ल देती है इसीलिए फसल को अप्रैल–मई तक रखना अधिक लाभदायक है !
उन्नत कीस्में एवं संकर कीस्में
सी.एच.-1 : यह 110 – 115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है ! कम बढती है तथा एक साथ पकती है ! इसका दाना छोटा होता है ! सिंचित क्षेत्रो के लिए यह उपयूक्त कीसम है ! इसकी औसत पदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है !
जी.सी.एच.4 : यह एक संकर किस्म है ! गलन के प्रतिरोधी है ! सिंचित क्षेत्रो के लिए यह उपयुक्त किस्म है ! इसकी औसत पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ है !
जी.सीएच -5 : यह एक संकर किस्म है ! जड़ गलन के प्रतिरोधी है ! सिंचित क्षेत्रो के लिए यह उपयूक्त किस्म है ! इसकी औसत पैदावार 9 क्विंटल प्रति एकड़ है !
डी.सी.एच.32 : यह एक संकर किस्म है ! मुरझाने के प्रतिरोधी है ! सिंचित क्षेत्रो के लिए यह उपयूक्त किस्म है ! इसका दाना मोटा होता है ! इसकी औसत पैदावार 9 क्विंटल प्रति एकड़ है !
आर.एच.सी.-1 : यह एक संकर किस्म है ! यह शुष्क एंव सिंचित क्षेत्रो के लिए उपयुक्त है ! इसकी औसत पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ है !
डी.सी.एच.-177 : : यह एक संकर किस्म है ! मुरझाने के प्रतिरोधी है ! असिंचित क्षेत्रो के लिए यह उपयुक्त है ! इसकी औसत पैदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है !
बिजाई का उचित समय
बारानी क्षेत्रो में बिजाई मानसून आने पर ( जुलाई के पहले पखवाड़े में ) करना उचित है ! यदि आपके पास सिचाई की सुविधा है तथा अरण्ड के बाद रबी में दुसरी फ़सल लेना चाहते हैं तो अरण्ड की बीजाई जून के पहले सप्ताह में करें तथा कम अवधि में पकने वाली किस्म लें ! परन्तु जून में बिजाई करने से उत्पादन कम होगा क्योंकी नर फूल ज्यादा आएंगे ! पहले बिजाई करने से कीड़ो का प्रकोप भी अधिक होगा !
बीज उपचार
फ़सल को आल्टरनेरिया पत्ती अंगमारी बीज पत्र की अंगमारी तथा मुरझाने जैसी बीमारियों से बचाव के लिए बीज का उपचार थिरम या बेविस्टीन 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें !
बीज की मात्रा व दुरी
बारानी क्षेत्रो में भूमि में नमी के आधार पर 3 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज पर्याप्त है ! परन्तु सिंचित अवस्था व लाइनों की आधिक दूरी (120 से.मी ) की दशा में बीज दर 2 किलोग्राम प्रति एकड़ रखें ! इस तरह से न सिर्फ बीज की लागत कम होती है बल्कि हम एक और अंत: फसल जेसे मुंग, मोठ, ग्वार आदि की 2 कतारें खाली जगह में लेकर अधिक लाभ कमा सकते हैं ! जल्दी पकने वाली किस्म सी.एच.-1 के लिए 60×30 से.मी. तथा संकर किस्मो के लिए सिंचित अवस्था में 120×60 से.मी. तथा असिंचित दशा में 90×60 से.मी. रखें !
बिजाई की विधि
साधारणत देशी हल से बीज को 10–12 सें.मी. गहरा बोए जिससे नमी अधिक समय तक रहती है और अच्छा अंकुरण होता है ! बारानी क्षेत्रो में हल्के बीज अलग करने और अच्छी पौध संख्या के लिए बीज को 12 घंटे तक भिगोएं !
खाद की मात्रा एंव डालने का तरीका
बारानी फ़सल में 8 किलोग्राम नत्रजन व 16 किलोग्राम फास्फोरस,सिंचित फ़सल में 16 किलोग्राम नत्रजन व 16 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ बिजाई से पहले बोएं !
सिचाई
सामान्य वर्षा की दशा में कम अवधि वाली फसलों में,सिंचाई की जरूरत नहीं होती ! मध्यम व लम्बी अवधि की संकर किस्मो की अधिक पैदावार के लिए 3-4 ,सिंचाई की आवश्यकता होती है
कीट नियन्त्रण
लाल रोम युक्त इलिल्याँ जुलाई से अगस्त में, सेमिलुपुर जुलाई से सितम्बर में, केप्सूल बेधक अक्तूबर से मार्च तक तथा जैसीड नवम्बर से जनवरी तक फ़सल को नुकसान पहुचाते है ! इनकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफोस 1.5 मि.ली.या इंडोसल्फान 2 मी.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें
बीमारियाँ एंव बचाव
पहले बताया गया बीज उपचार करें ! आल्टरनेरिया पत्ती अंगमारी आने की दशा में मेन्कोजेब (इडोफिल एम्.45) 0.2 प्रतिशत तथा बेक्टीरिया पत्ती धब्बा के नियन्त्रण के लिए कॉपर-आक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) या एक ग्राम 10 लीटर पानी में छिडकाव करें ! जड़ गलन व मुरझाना रोग नियन्त्रण के लिए खेत में पानी जमा न होने दें तथा सहनशील व प्रतिरोध कीस्में उगाएँ !
कटाई व गहाई (छिलका निकालना )
बुआई के लगभग 100 दिनों के बाद मुख्य स्पाइक जब हल्के पीले-भूरे हो जाएं तो कटाई के लिए तैयार हो जाते है ! इस समय कटाई न करने से दाने झड़ कर नीचे गिर जाएगें ! इसके बाद 30 दिन के अन्तराल से स्पाइक की कटाई करते रहें ! जनवरी – फरवरी में फ़सल की कटाई नहीं होगी क्योंकी फ़सल में फल नहीं बनता तथा थोड़ी गर्मी शुरू होते ही फिर फल देना शुरू कर देती है ! सिंचित व लम्बी अवधि वाली संकर किस्मो से अधिक उपज लेने के लिए कटाई मई तक लेते रहें ! छड़ियो या डंडे से कूट कर या बैल या ऊँट की सहायता से की जाती है ! आजकल गहाई के लिए मशीनें भी उपलब्ध हैं !